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सांविधानिक विधि
जम्मू और कश्मीर में पुस्तकों का समपहरण
« »11-Aug-2025
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
परिचय
5 अगस्त 2024 को, जम्मू और कश्मीर गृह विभाग ने एक अधिसूचना जारी कर 25 पुस्तकों को "ज़ब्त" घोषित कर दिया, जिससे क्षेत्र में उनके प्रचलन पर प्रभावी रूप से प्रतिबंध लग गया। यह कार्रवाई अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण की छठी वर्षगाँठ पर की गई, जिसमें ए.जी. नूरानी और अरुंधति रॉय जैसी लेखिकाओं की कृतियों को निशाना बनाया गया। सरकार का दावा था कि इन पुस्तकों में "मिथ्या कथाएँ (False Narratives)" हैं और ये पृथकतावादी विचारधारा को बढ़ावा देती हैं जो युवाओं को भ्रमित कर सकती हैं और भारतीय राज्य से अन्यसंक्रामण को बढ़ावा दे सकती हैं।
जम्मू एवं कश्मीर सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 के निरसन की वर्षगाँठ पर 25 पुस्तकें क्यों ज़ब्त कर लीं गई?
- अधिसूचना में विभिन्न विधाओं की 25 पुस्तकों को - जिनमें राजनीतिक जीवनियाँ, ऐतिहासिक विवरण और अकादमिक कार्य सम्मिलित हैं - ऐसी सामग्री के रूप में वर्गीकृत किया गया है जो आतंकवाद का महिमामंडन करती है और हिंसा भड़काती है।
- गृह विभाग ने कहा कि इन कार्यों का निरंतर प्रसार युवाओं को इस प्रकार प्रभावित कर सकता है कि उनमें राष्ट्र-विरोधी भावनाएँ उत्पन्न हो सकती हैं।
- इस कार्रवाई का समय अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण की वर्षगाँठ के साथ मेल खाता है, जो इन सामग्रियों को लोक प्रसार से हटाने के सरकार के निर्णय को राजनीतिक महत्त्व देता है।
पुस्तकों और अन्य सामग्रियों को समपहृत करने के लिये भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 98 के अधीन विधिक उपबंध क्या हैं?
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 98 : समपहरण के अधीन सामग्री का दायरा
- समाचार पत्र: प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1867 के अधीन रजिस्ट्रीकृत कोई भी आवधिक प्रकाशन।
- पुस्तकें: प्रेस एवं पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1867 के अंतर्गत परिभाषित सभी मुद्रित प्रकाशन।
- दस्तावेज़: इसमें मोटे तौर पर पारंपरिक लिखित सामग्री के अलावा कोई भी पेंटिंग, ड्राइंग, फोटोग्राफ या अन्य दृश्य प्रतिनिधित्व सम्मिलित है।
- भौगोलिक उत्पत्ति: सामग्री को समपहृत किया जा सकता है, चाहे वे कहीं भी मुद्रित की गई हों (विदेशी प्रकाशन भी सम्मिलित हैं) ।
प्रवर्तक परिस्थितियाँ - सामग्री भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अधीन दण्डनीय होनी चाहिये:
- धारा 152: भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को संकट में डालने वाले कृत्य
- धारा 196: धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता को बढ़ावा देना
- धारा 197: राष्ट्रीय एकता के के प्रतिकूल आरोप, दावे
- धारा 294: लोक स्थानों पर अश्लील कार्य और गाने
- धारा 295: धर्म का अपमान करने के आशय से पूजा स्थलों को क्षति पहुँचाना या अपवित्र करना
- धारा 299: विद्वेषपूर्ण एवं जानबूझकर किये गए ऐसे कृत्य जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाए
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 98 के अधीन पुस्तक समपहरण के लिये प्रक्रिया, प्राधिकरण और सांविधानिक ढाँचा क्या है?
सरकार का अधिकार और प्रक्रिया:
- व्यक्तिपरक संतुष्टि: राज्य सरकार को यह राय बनानी चाहिये कि सामग्री में दण्डनीय सामग्री है ।
- अनिवार्य अधिसूचना: सरकार की राय के लिये विशिष्ट आधार बताते हुए आधिकारिक राजपत्र अधिसूचना आवश्यक है ।
- तत्काल प्रभाव: अधिसूचना प्रकाशन के तुरंत बाद समपहरण प्रभावी हो जाता है ।
- पूर्ण प्रतिबंध: समपहृत सामग्री के मुद्रण, प्रकाशन, विक्रय और वितरण पर लागू होता है ।
प्रवर्तन तंत्र:
- सार्वभौमिक पुलिस शक्ति: कोई भी पुलिस अधिकारी (पद की परवाह किये बिना) भारत में कहीं भी समपहृत सामग्री को ज़ब्त कर सकता है ।
- तलाशी वारण्ट प्राधिकरण: मजिस्ट्रेटों को संदिग्ध परिसरों के लिये तलाशी वारण्ट जारी करने का अधिकार दिया गया है।
- न्यूनतम पद की आवश्यकता: केवल उप-निरीक्षक या उससे ऊपर के पद के अधिकारी ही तलाशी वारण्ट निष्पादित कर सकते हैं ।
- उचित संदेह मानक: तलाशी उन स्थानों पर ली जा सकती है जहाँ सामग्री "हो सकती है या होने का उचित संदेह हो सकता है ।
- परिसर परिभाषा: इसमें कोई भी स्थान शामिल है जहाँ प्रतिबंधित सामग्री संग्रहीत या वितरित की जा सकती है।
न्यायिक समीक्षा की परिसीमाएँ:
- अनन्य अधिकारिता: धारा 98 के अधीन आदेशों को केवल धारा 99 के प्रावधानों के अनुसार चुनौती दी जा सकती है।
- कोई संपार्श्विक आक्षेप नहीं: न्यायालय वैकल्पिक विधिक कार्यवाही के माध्यम से समपहरण आदेशों की जांच नहीं कर सकते।
- संरचित समीक्षा प्रक्रिया: ऐसे आदेशों को चुनौती देने हेतु पक्षकारों को विशेष रूप से उन प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं का पालन करना होगा जो अधिनियम की आगामी धाराओं में विनिर्दिष्ट हैं।
सांविधानिक संतुलन:
- अनुच्छेद 19(1)(क) सभी नागरिकों को वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रत्याभूत करता है।
- अनुच्छेद 19(2) संप्रभुता, राज्य सुरक्षा, लोक व्यवस्था और अपराधों के उकसावे को रोकने के हित में "युक्तियुक्त निर्बंधन" की अनुमति देता है।
विधिक प्रक्रिया:
- सरकार को यह राय बनानी होगी कि सामग्री प्रासंगिक धाराओं के अधीन मानदंडों को पूरा करती है।
- समपहरण के कारणों को आधिकारिक अधिसूचना में दर्ज और प्रकाशित किया जाना चाहिये।
- पुलिस अधिकारियों को परिसरों की तलाशी लेने और प्रतिबंधित सामग्री ज़ब्त करने का अधिकार प्राप्त होता है।
- अधिसूचना पर प्रभाव तत्काल होता है।
न्यायिक निगरानी:
- प्रभावित पक्ष उस क्षेत्र पर अधिकार रखने वाले उच्च न्यायालय में समपहरण आदेश को चुनौती दे सकते हैं।
- महाराष्ट्र राज्य बनाम संघराज दामोदर रूपावते (2010) में उच्चतम न्यायालय के पूर्व निर्णय ने वैध समपहरण अधिसूचनाओं के लिये प्रमुख सिद्धांत स्थापित किये:
- सरकार को तथ्यों के आधार पर अपनी राय के लिये स्पष्ट आधार बताना चाहिये।
- आदेश को बताए गए आधारों के गुण-दोष के आधार पर उचित ठहराया जाना चाहिये।
- सामग्री का मूल्यांकन लेखक के आशय और पाठकों पर संभावित प्रभाव को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिये।
- सरकार को उचित संदेह से परे अपराध साबित करने की आवश्यकता नहीं है, किंतु अपराध के तत्त्व विद्यमान होने का प्रमाण देना होगा।
निष्कर्ष
जम्मू और कश्मीर में पुस्तकों का समपहरण राज्य द्वारा लोक व्यवस्था और राष्ट्रीय अखंडता के लिये हानिकारक माने जाने वाले साहित्य पर नियंत्रण हेतु तत्काल विधिक शक्तियों के प्रयोग का प्रतिनिधित्व करती है। यद्यपि सरकार संप्रभुता बनाए रखने और युवाओं के कट्टरपंथ को रोकने की वैध चिंताओं का हवाला देती है, किंतु ऐसी कार्रवाइयों में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और सुरक्षा संबंधी चिंताओं का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। उच्च न्यायालय में चुनौतियों के माध्यम से न्यायिक समीक्षा की उपलब्धता यह सुनिश्चित करती है कि सांविधानिक सुरक्षा उपाय लागू रहें, यद्यपि समपहरण का तत्काल प्रभाव साहित्यिक स्वतंत्रता पर व्यावहारिक बाधाएँ उत्पन्न करता है जब तक कि ऐसी चुनौतियों का समाधान नहीं हो जाता।