एडमिशन ओपन: UP APO प्रिलिम्स + मेंस कोर्स 2025, बैच 6th October से   |   ज्यूडिशियरी फाउंडेशन कोर्स (प्रयागराज)   |   अपनी सीट आज ही कन्फर्म करें - UP APO प्रिलिम्स कोर्स 2025, बैच 6th October से










होम / भारतीय साक्ष्य अधिनियम

सांविधानिक विधि

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 के अधीन महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ

    «
 11-Nov-2025

धारा 2. परिभाषाएँ

(1) इस अधिनियम में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, -

(क) "न्यायालय" के अंतर्गत सभी न्यायाधीश और मजिस्ट्रेट तथा मध्यस्थों के सिवाय साक्ष्य लेने के लिये वैध रूप से प्राधिकृत सभी व्यक्ति आते हैं।

(ख) "निश्चायक सबूत" से अभिप्रेत है कि जब इस अधिनियम द्वारा एक तथ्य को किसी अन्य तथ्य का निश्चायक सबूत घोषित किया जाता है, वहाँ न्यायालय उस एक तथ्य के साबित हो जाने पर उस अन्य को साबित हुआ मानेगा और उसे नासाबित करने के प्रयोजन के लिये साक्ष्य दिये जाने की अनुज्ञा नहीं देगा।

(ग) किसी तथ्य के संबंध में "नासाबित" से अभिप्रेत है कि जब न्यायालय अपने समक्ष विषयों पर विचार करने के पश्चात् या तो यह विश्वास करे कि उसका अस्तित्व नहीं है , या उसके अनस्तित्व को इतना अधिसंभाव्य समझे कि उस विशिष्ट मामले की परिस्थितियों में किसी प्रज्ञावान व्यक्ति को इस अनुमान पर कार्य करना चाहिये कि उस तथ्य का अस्तित्व नहीं है।

(घ) "दस्तावेज़" से ऐसा कोई विषय अभिप्रेत है जिसको किसी पदार्थ पर अक्षरों, अंकों या चिह्नों के साधन द्वारा या उनमें से एक से अधिक साधनों द्वारा अभिव्यक्त या वर्णित या अन्यथा अभिलेखबद्ध किया गया है जो उस विषय के अभिलेखन के प्रयोजन से उपयोग किये जाने को आशयित हो या जिसका उपयोग किया जा सके और इसके अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल अभिलेख भी हैं।

(ङ) “साक्ष्य” से अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत आते हैं-

(i) सभी कथन, जिसके अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक रूप से दिये गए कथन सम्मिलित है, जिसे न्यायालय जांचाधीन तथ्य के विषयों के संबंध में अपने समक्ष साक्षियों द्वारा किये जाने की अनुज्ञा देता है या अपेक्षा करता है और ऐसे कथन मौखिक साक्ष्य कहलाते है। 

(ii) न्यायालय के निरीक्षण के लिये पेश किये गए सभी दस्तावेज़, जिनके अंतर्गत इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल अभिलेख भी है और ऐसे दस्तावेज़ दस्तावेज़ी साक्ष्य कहलाते है।

(च) “तथ्य” का अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत आते हैं-

(i) ऐसी कोई वस्तु, वस्तुओं की अवस्था या वस्तुओं का संबंध, जो इंद्रियों द्वारा बोधगम्य हो।

(ii) कोई मानसिक दशा, जिसका भान किसी व्यक्ति को हो।

(छ) "विवाद्यक तथ्य" से अभिप्रेत है और उसके अंतर्गत ऐसा कोई भी तथ्य, जो स्वयं से, या अन्य तथ्यों के संसर्ग में किसी ऐसे अधिकार, दायित्त्व या निर्योग्यता के, जिसका किसी वाद या कार्यवाही में प्राख्यान या प्रत्याख्यान किया गया है, आता है, अस्तित्व, अनस्तित्व प्रकृति या विस्तार की उत्पत्ति अवश्यमेव होती है।

स्पष्टीकरण-जब कभी, कोई न्यायालय विवाद्यक तथ्य को सिविल प्रक्रिया से संबंधित किसी तत्समय प्रवृत्त विधि के उपबंधों के अधीन अभिलिखित करता है, तब ऐसे विवाद्यक के उत्तर में जिस तथ्य का प्राख्यान या प्रत्याख्यान किया जाना है, वह विवाद्यक तथ्य है।

(ज) "उपधारणा कर सकेगा" – जहाँ कहीं इस अधिनियम द्वारा यह उपबंधित है कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारणा कर सकेगा, वहाँ न्यायालय या तो ऐसे तथ्य को साबित हुआ मान सकेगा, यदि और जब तक वह नासाबित नहीं किया जाता है, या उनके सबूत की मांग कर सकेगा।

(झ) “साबित नहीं हुआ” - कोई तथ्य तब साबित नहीं हुआ कहा जाता है, जब वह न तो साबित किया गया हो और न नासाबित।

(ञ) “साबित” - कोई तथ्य साबित हुआ कहा जाता है, जब न्यायालय अपने समक्ष के विषयों पर विचार करने के पश्चात् या तो यह विश्वास करे कि उस तथ्य का अस्तित्व है, या उसके अस्तित्व को इतना अधिसंभाव्य समझे कि उस विशिष्ट मामले की परिस्थितियों में किसी प्रज्ञावान व्यक्ति को इस अनुमान पर कार्य करना चाहिये कि उस तथ्य का अस्तित्व है।

(ट) “सुसंगत” – एक तथ्य दूसरे तथ्य से सुसंगत कहा जाता है जब कि तथ्यों की सुसंगति से संबंधित इस अधिनियम के उपबंधों में निर्दिष्ट प्रकारों में से किसी भी प्रकार से वह तथ्य उस तथ्य से संसक्त हो।

(ठ) “उपधारणा करेगा” – जहाँ कहीं इस अधिनियम द्वारा यह निर्दिष्ट है कि न्यायालय किसी तथ्य की उपधारणा करेगा, वहाँ न्यायालय ऐसे तथ्य को साबित मानेगा यदि और जब तक वह नासाबित नहीं किया जाता है।