पॉक्सो (POCSO) अधिनियम लैंगिक रूप से तटस्थ
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पॉक्सो (POCSO) अधिनियम लैंगिक रूप से तटस्थ

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 09-Aug-2023

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने राकेश बनाम दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी  और अन्य (Rakesh v. State of NCT of Delhi & Anr.) के मामले में कहा है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) लैंगिक रूप से तटस्थ विधान (gender–neutral legislation) है और यह तर्क देना सही नहीं है कि इस कानून का दुरुपयोग किया जा रहा है।  

पृष्ठभूमि 

न्यायालय आरोपी की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें नाबालिग पीड़िता (जो घटना के समय सात वर्ष की थी) और उसकी मां को वापस बुलाने के उसके आवेदन को खारिज़ कर दिया गया था। 

आरोपी ने कथित तौर पर पीड़िता के साथ बलात्कार किया था, जिसके बाद एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज़ की गई। अक्तूबर 2016 में पॉक्सो (POCSO) अधिनियम की धारा 6 के तहत यह मामला दर्ज़ किया गया था। 

पीड़िता और शिकायतकर्त्ता अर्थात् पीड़िता की मां का मुख्य परीक्षण(Examination- in -chief) और प्रति-परीक्षण (Cross-Examination) अक्तूबर 2018 में हुआ। 

आरोपी ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code, 1973 (CrPC)) की धारा 311 के तहत एक याचिका दायर किया था, जिसमें प्रति-परीक्षण (Cross-Examination) ठीक से नहीं किये जाने के आधार पर पीड़िता और उसकी मां को दोबारा बुलाने का निर्देश देने की मांग की गई थी। 

उच्च न्यायालय ने याचिका को खारिज़ कर दिया और कहा कि पिछले वकीलों की अक्षमता ही किसी गवाह को प्रति-परीक्षण (Cross-Examination) के लिये पुनः बुलाने का आधार नहीं हो सकता है और प्रति-परीक्षण (Cross-Examination) लंबे समय तक किया गया था।   
 
न्यायालय की टिप्पणियाँ (Court’s Observations ) 

न्यायालय ने कहा कि यद्यपि अभियुक्त को निष्पक्ष सुनवाई की अनुमति दी जानी चाहिये और इसे सुनिश्चित किया जाना चाहिये, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं हो सकता है कि निष्पक्ष सुनवाई का संकेत देने के लिये हर प्रकरण/वाद में प्रति-परीक्षण (Cross-Examination) के अनुचित तरीके के बार-बार अवसर दिये जाएँ। 

इसके अतिरिक्त, न्यायमूर्ति स्वर्णकांता शर्मा ने कहा कि पॉक्सो (POCSO) अधिनियम लिंग आधारित नहीं है और जहाँ तक पीड़ित बालकों का प्रश्न है, यह तटस्थ है। 

न्यायालय ने आगे कहा कि कोई भी कानून, चाहे वह लिंग आधारित हो या नहीं, उसका दुरुपयोग होने की संभावना है, न्यायालय ने कहा कि न तो विधायिका कानून बनाना बंद कर सकती है और न ही न्यायपालिका उनका कार्यान्वित केवल इसलिये बंद कर सकती है क्योंकि उनका दुरुपयोग किया जा सकता है। 
 
वैधानिक प्रावधान (Legal Provisions ) 
 
पॉक्सो अधिनियम, 2012 (POCSO Act, 2012) 

यह अधिनियम 2012 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय (Ministry of Women and Child Development) के तहत पारित किया गया था।  

बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन हमला और अश्लील सामग्री सहित संबंधी यौन अपराधों से बचाने के लिये बनाया गया एक व्यापक विधान है। 

यह लैंगिक रूप से तटस्थ अधिनियम है और बालकों के कल्याण को सर्वोपरि महत्त्व का विषय मानता है। 

यह ऐसे अपराधों और संबंधित मामलों और घटनाओं की सुनवाई के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना का प्रावधान करता है। 

पॉक्सो (POCSO) संशोधन विधेयक, 2019 द्वारा इस अधिनियम में प्रवेशन यौन उत्पीड़न और गंभीर प्रवेशन यौन उत्पीड़न के अपराधों के लिये दंड के रूप में मृत्युदंड की शुरुआत की गई थी। 

इस अधिनियम की धारा 4 में प्रवेशन यौन उत्पीड़न के लिये दंड का प्रावधान है। 

पॉक्सो (POCSO) अधिनियम की धारा 2(1)(D) के तहत, 18 वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बालक माना जाता है । 

पॉक्सो (POCSO) अधिनियम की धारा 6 गंभीर प्रवेशन यौन उत्पीड़न के लिये दंड से संबंधित है।  

इसमें कहा गया है कि, जो कोई भी गंभीर प्रवेशन यौन उत्पीड़न करता है, उसे कठोर कारावास का दंड दिया जाएगा, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम नहीं होगी, लेकिन जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, जिसका अर्थ उस व्यक्ति को शेष जीवन के लिये कारावास होगा और जुर्माना या मृत्युदंड भी दी जाएगी। 
  
 CrPC की धारा 311 

CrPC की धारा 311 महत्त्वपूर्ण गवाहों को बुलाने या उपस्थित व्यक्ति की संपरीक्षा करने की न्यायालय की शक्ति से संबंधित है ।  

इसमें कहा गया है कि कोई भी न्यायालय, किसी भी जांच, मुकदमे या अन्य कार्यवाही के किसी भी चरण में, किसी भी व्यक्ति को गवाह के रूप में बुला सकती है, या उपस्थिति में किसी भी व्यक्ति की संपरीक्षा भी कर सकती है, भले ही उसे गवाह के रूप में नहीं बुलाया गया हो, या पहले से ही परीक्षण किये गए किसी भी व्यक्ति को वापस बुला सकती है और दोबारा उसकी संपरीक्षा कर सकती है।  

प्रति-परीक्षण (Cross-Examination ) 

एक परीक्षण केवल एक गवाह से संबंधित तथ्य से संबंधित प्रासंगिक प्रश्न पूछने की प्रक्रिया है। 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872 (IEA)) की धारा 137 उन तरीकों से संबंधित है जिनसे एक गवाह की संपरीक्षा की जा सकती है। इसमें निम्नलिखित तीन तरीके बताए गए हैं। 

मुख्य परीक्षण (Examination-in-Chief) - गवाह को बुलाने वाले पक्ष द्वारा किये गए परीक्षण को मुख्य परीक्षण कहा जाएगा।  

प्रति-परीक्षण (Cross-Examination) - प्रतिपक्ष द्वारा किसी गवाह का परीक्षण प्रति-परीक्षण (Cross-Examination) कहा जाएगा। 

पुन:परीक्षण (Re-Examination) - किसी गवाह के प्रति-परीक्षण (re-examination) के बाद उसे बुलाने वाले पक्ष द्वारा किये गए परीक्षण को पुन:परीक्षण कहा जाएगा। 

IEA की धारा 138 जहाँ वह कारण दर्शित करने के लिये हाज़िर है वहाँ प्रक्रिया के क्रम से संबंधित है।  

इसमें कहा गया है कि साक्ष्यों को पहले मुख्य परीक्षण हेतु हाज़िर किया जाएगा फिर (यदि विरोधी पक्ष ऐसा चाहता है) प्रति-परीक्षण किया जाएगा, फिर (यदि उसे बुलाने वाला पक्ष ऐसा चाहता है) पुनः परीक्षण किया जाएगा। 

मुख्य परीक्षण और प्रति परीक्षण प्रासंगिक तथ्यों से संबंधित होनी चाहिये, लेकिन प्रति-परीक्षण उन तथ्यों तक सीमित नहीं होनी चाहिये जिसे साक्ष्य ने अपने मुख्य परीक्षण में हाज़िर किया था। 

IEA ने पुनः परीक्षण के लिये दिशानिर्देशों का निम्नलिखित समुच्चय को निर्धारित किया है। 

धारा 139 के अनुसार, दस्तावेज़ पेश करने के लिये बुलाए गए व्यक्ति का तब तक प्रति-परीक्षण नहीं किया जा सकता जब तक उसे साक्ष्य के रूप में नहीं बुलाया जाता। 

धारा 140 के अनुसार, शील का साक्ष्य देने वाले साक्षी (Witnesses to character) का प्रति-परीक्षण और पुन: परीक्षण नहीं किया जा सकता है। 

धारा 143 के अनुसार, प्रति-परीक्षण में प्रश्न (leading questions) पूछे जा सकते हैं। 

धारा 145 के अनुसार, एक साक्ष्य से उसके द्वारा लिखित रूप में या लेखबद्ध (writing or reduced into writing) किये जा चुके दिये गए पिछले बयानों के विषय में प्रति-परीक्षण किया जा सकता है । 

धारा 146 प्रति-परीक्षण में वैध प्रश्नों के विषय में संबंधित है। इसमें कहा गया है कि जब किसी साक्ष्य का प्रति-परीक्षण किया जाता है, तो उससे निम्नलिखित के लिये कोई भी प्रश्न पूछा जा सकता है - 

(1) उसकी सत्यवादिता परखने की है,   

(2) यह पता लगाना कि वह कौन है और जीवन में उसकी स्थिति क्या है, अथवा 

(3) उसके शील भंग और उसके चरित्र से संबंधित या ऐसे प्रश्नों जो उसे प्रत्यक्षतः या परोक्षत: अपराध में फंसाने की प्रवृत्ति रखता हो, या उसे किसी शास्ति या समपहरण के लिये उच्छन्न करता हो या प्रत्यक्षत: या परोक्षत: उच्छन्न करने की प्रवृत्ति रखता हो।