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आपराधिक कानून
विवाह का वचन
« »30-May-2025
बटलंकी केशव (केसवा) कुमार अनुराग बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य, " जब अभियुक्त-अपीलकर्त्ता को वास्तविक परिवादकर्त्ता के आक्रामक लैंगिक व्यवहार एवं अत्यधिक आसक्त प्रवृत्ति (obsessive nature) के बारे में जानकारी प्राप्त हुई, तब प्रस्तावित विवाह से घबराकर पीछे हटना पूर्णतः न्यायोचित था ।" न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने परिवादकर्त्ता के चालाकीपूर्ण आचरण और विधिक प्रक्रिया के दुरुपयोग का हवाला देते हुए बलात्संग के मामले को रद्द कर दिया।
उच्चतम न्यायालय ने बटलांकी केशव (केशव) कुमार अनुराग बनाम तेलंगाना राज्य एवं अन्य, (2025) मामले में यह निर्णय दिया ।
बटलांकी केशव (केशव) कुमार अनुराग बनाम तेलंगाना राज्य एवं अन्य, 2025 मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- परिवादकर्त्ता और अभियुक्त अपीलकर्त्ता की मुलाकात 'भारत मैट्रिमोनी' वेबसाइट के माध्यम से हुई थी, जब अपीलकर्त्ता संयुक्त राज्य अमेरिका में रह रहा था, और वे 6 जनवरी, 2021 को तय की गई प्रारंभिक विवाह की तारीख के साथ एक-दूसरे से विवाह करने के लिये सहमत हुए।
- अपीलकर्त्ता ने निर्धारित विवाह तिथि को टाल दिया और परिवादकर्त्ता से विवाह किये बिना ही संयुक्त राज्य अमेरिका लौट गया, किंतु बाद में भारत वापस आया और कथित तौर पर उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित किये।
- परिवादकर्त्ता द्वारा पहले दर्ज कराए गए परिवाद के पश्चात्, दोनों पक्षकारों के बीच पुलिस थाने में इंस्पेक्टर की उपस्थिति में समझौता हो गया, जिसके अधीन अपीलकर्त्ता ने परिवादकर्त्ता से विवाह करने तथा विवाह का पंजीकरण कराने पर सहमति व्यक्त की, जिसके लिये दोनों पक्षकारों ने एक लिखित करार पर हस्ताक्षर किये।
- तत्पश्चात् अपीलकर्त्ता और उसकी माँ ने विभिन्न बहानों से विवाह के प्रति अनिच्छा दिखाई, शुभ तिथियों के बारे में बहाने बनाए और विवाह की व्यवस्था के बारे में बातचीत बंद कर दी, जबकि कथित तौर पर परिवादकर्त्ता को परेशान किया।
- परिवादकर्त्ता ने 29 जून, 2021 को पहली प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) (अपराध संख्या 751/2021) दर्ज की, जिसमें छल और विवाह करने का वचन तोड़ने का आरोप लगाया गया, जिसमें 24 जून, 2021 को लैंगिक संबंध की केवल एक घटना का उल्लेख किया गया।
- तत्पश्चात्, परिवादकर्त्ता ने केरल में एक और परिवाद दर्ज कराया, जिसे साइबराबाद स्थानांतरित कर दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप 1 फरवरी, 2022 को प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 103/2022 दर्ज की गई।
- दूसरी प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में 4 मई, 11 मई, 28 मई और 7 जून 2021 को जबरन लैंगिक संबंध बनाने की कई घटनाओं का आरोप लगाया गया है, साथ ही यह भी आरोप लगाया गया है कि अपीलकर्त्ता ने जातिगत मतभेदों का हवाला देते हुए उससे विवाह करने से इंकार कर दिया।
- आरोपों में बलात्संग के लिये भारतीय दण्ड संहिता की धारा 376(2)(ढ) और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(2)(फ) के अधीन अपराध सम्मिलित थे।
- अपीलकर्त्ता ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के अधीन एक याचिका के माध्यम से दूसरी प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने की मांग की, जिसे शुरू में तेलंगाना उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया था।
- अन्वेषण से पता चला कि परिवादकर्त्ता ने पहले भी 2019 में उस्मानिया विश्वविद्यालय के एक सहायक प्रोफेसर सहित अन्य पुरुषों के विरुद्ध इसी तरह के परिवाद दर्ज किये थे, जिसमें विवाह का मिथ्या वचन करके छल और लैंगिक शोषण के समान आरोप थे।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने परिवादकर्त्ता द्वारा दर्ज की गई दो प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) के बीच महत्त्वपूर्ण विरोधाभासों को नोट किया, विशेष रूप से यह कि पहली प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में लैंगिक संभोग की केवल एक घटना का उल्लेख किया गया था, जबकि दूसरी प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में पहले परिवाद से पहले की कई घटनाओं का आरोप लगाया गया था, जिससे यह असंभव हो जाता है कि एक शिक्षित 30 वर्षीय महिला ऐसे महत्त्वपूर्ण विवरणों को छोड़ देगी।
- पक्षकारों के बीच चैट रिकॉर्ड की जांच करने पर, न्यायालय ने पाया कि परिवादकर्त्ता ने चालाकी करने की बात स्वीकार की थी और कहा था कि वह "ग्रीन कार्ड धारक बनने की कोशिश कर रही थी", साथ ही उसने यह भी कहा था कि वह "अगले शिकार पर निवेश" करना चाहती थी और अपने लक्ष्यों को तब तक परेशान करना चाहती थी जब तक कि वे उसे छोड़ न दें।
- न्यायालय ने पाया कि परिवादकर्त्ता ने प्रतिशोधात्मक और चालाकीपूर्ण व्यवहार का प्रदर्शन किया है, उसने पहले भी अन्य पुरुषों के विरुद्ध इसी तरहा के परिवाद दर्ज कराए थे, जिससे यह साबित होता है कि जब संबंध वांछित तरीके से आगे नहीं बढ़े तो वह मिथ्या आरोप लगाने की प्रवृत्ति रखती थी।
- न्यायालय ने निर्धारित किया कि परिवादकर्त्ता के आक्रामक लैंगिक व्यवहार और जुनूनी स्वभाव का पता चलने पर, जैसा कि चैट रिकॉर्ड और उसकी प्रलेखित मनोवैज्ञानिक स्थिति से स्पष्ट होता है, अपीलकर्त्ता द्वारा प्रस्तावित विवाह से पीछे हटना उचित था।
- SC/ST अधिनियम के अधीन जाति-आधारित आरोपों के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि इन्हें सात महीने बाद दर्ज की गई दूसरी प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में ही शामिल किया गया था, जबकि मूल परिवाद में जातिगत भेदभाव का कोई उल्लेख नहीं था, जो कठोर दण्डात्मक उपबंधों को लागू करने के लिये मनगढ़ंत बात को दर्शाता है।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि अभियोजन जारी रखना न्याय का उपहास और न्यायिक प्रक्रिया का घोर दुरुपयोग होगा, क्योंकि दूसरी प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) में ठोस साक्ष्य के बिना मनगढ़ंत और विद्वेषपूर्ण आरोप लगाए गए थे।
- अंततः, न्यायालय ने निर्णय दिया कि आरोपित प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) अपीलकर्त्ता को परेशान करने के लिये रची गई मिथ्या का पुलिंदा मात्र है, तथा विधिक प्रणाली के आगे दुरुपयोग को रोकने के लिये दोनों प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) तथा सभी अनुवर्ती कार्यवाहियों को रद्द कर दिया।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) के अधीन विवाह का वचन क्या है?
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 69 विशेषत: प्रवंचनापूर्ण साधनों से या विवाह का मिथ्या वचन देकर मैथुन को अपराध मानती है, जिसके लिये दस वर्ष तक का कारावास और जुर्माने के दण्ड का उपबंध है।
- न्यायालयों को यह स्थापित करना होगा कि अभियुक्त का शुरू से ही विवाह करने का कोई आशय नहीं था, मिथ्या वचन सम्मति का प्राथमिक कारण था, और अभियुक्त जानता था कि सम्मति इस प्रवंचनापूर्ण वचन पर आधारित थी।
- यह उपबंध परिस्थितियों के कारण अधूरे रह जाने वाले वास्तविक वचनों तथा शुरू से ही विद्वेषपूर्ण आशय से किये गए जानबूझकर मिथ्या वचनों के बीच अंतर करता है।
- यह विधिक ढाँचा 'विवाह के मिथ्या वचन पर बलात्संग' की अवधारणा को न्यायिक मान्यता प्रदान करने से विकसित हुआ है, जिसकी स्थापना अनुराग सोनी बनाम राज्य छत्तीसगढ़, 2019 जैसे ऐतिहासिक मामलों के माध्यम से हुई, जिसमें भारत के उच्चतम न्यायालय ने इसे एक पृथक् लैंगिक अपराध की श्रेणी के रूप में स्वीकार किया।
- अनुराग सोनी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य - इस निर्णय में 'विवाह के मिथ्या वचन पर बलात्संग को एक स्वतंत्र लैंगिक अपराध के रूप में न्यायिक मान्यता प्रदान की गई।
- उच्चतम न्यायालय ने दीर्घकालीन संबंधों में दायर हो रहे आपराधिक परिवादों की बढ़ती प्रवृत्ति पर चिंता व्यक्त की है, तथा यह उल्लेख किया है कि केवल वचनों के आधार पर वर्षों तक संबंध बनाए रखना अविश्वसनीय प्रतीत होता है, जब तक कि प्रारंभिक प्रवंचनापूर्ण (initial deception) का कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य न हो। विवाह के मिथ्या वचन पर बलात्संग के अपराध के लिये यह आवश्यक है कि यह दर्शाया जाए कि शारीरिक संबंध केवल विवाह के वचन पर ही आधारित थे।
- हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि मिथ्या वचन के आरोप तब निराधार हो जाते हैं जब रिश्ते वास्तव में विवाह में परिणत हो जाते हैं।
- न्यायालय ऐसे मामलों में विशेष रूप से जहाँ परिवादकर्त्ताओं प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो अथवा संबंध का स्वाभाविक विघटन हुआ हो, विधिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने हेतु न्यायिक संयम का प्रयोग करते हैं।