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सांविधानिक विधि

अधिकरण

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 12-Jan-2024

परिचय:

अधिकरण एक अर्द्ध-न्यायिक संस्था है जो प्रशासनिक या कर-संबंधी विवादों को सुलझाने जैसी समस्याओं से निपटने के लिये स्थापित की जाती है। मूल संविधान में अधिकरणों के संबंध में उपबंध नहीं थे। वर्ष 1976 के 42वें संशोधन अधिनियम द्वारा भारत के संविधान (1950) में एक नया भाग XIV-A जोड़ा गया।

  • भाग XIV-A को अधिकरण के रूप में जाना जाता है और इसमें दो अनुच्छेद अर्थात् अनुच्छेद 323A व 323B शामिल हैं।

COI का अनुच्छेद 323A:

यह अनुच्छेद प्रशासनिक अधिकरणों से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-

(1) संसद, विधि द्वारा, संघ या किसी राज्य के अथवा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अथवा सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण के अधीन किसी निगम के कार्यकलाप से संबंधित लोक सेवाओं और पदों के लिये भर्ती तथा नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों के संबंध में विवादों व परिवादों के प्रशासनिक अधिकरणों द्वारा न्यायनिर्णयन या विचारण के लिये उपबंध कर सकेगी।

(2) खंड (1) के अधीन बनाई गई विधि-

(a) संघ के लिये एक प्रशासनिक अधिकरण और प्रत्येक राज्य के लिये अथवा दो या अधिक राज्यों के लिये एक पृथक्‌ प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना के लिये उपबंध कर सकेगी।

(b) उक्त अधिकरणों में से प्रत्येक अधिकरण द्वारा प्रयोग की जाने वाली अधिकारिता, शक्तियाँ (जिनके अंतर्गत अवमान के लिये दंड देने की शक्ति है) और प्राधिकार विनिर्दिष्ट कर सकेगी।

(c) उक्त अधिकरणों द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया के लिये (जिसके अंतर्गत परिसीमा के बारे में और साक्ष्य के नियमों के बारे में उपबंध हैं) उपबंध कर सकेगी।

(d) अनुच्छेद 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता के सिवाय सभी न्यायालयों की अधिकारिता का खंड (1) में निर्दिष्ट विवादों या परिवादों के संबध में अपवर्जन कर सकेगी।

(e) प्रत्येक ऐसे प्रशासनिक अधिकरण को उन मामलों के अंतरण के लिये उपबंध कर सकेगी जो ऐसे अधिकरण की स्थापना से ठीक पहले किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित हैं और जो, यदि ऐसे वाद हेतुक जिन पर ऐसे वाद या कार्यवाहियाँ आधारित हैं, अधिकरण की स्थापना के पश्चात्‌ उत्पन्न होते तो, ऐसे अधिकरण की अधिकारिता के भीतर होते।

(f) राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 371D के खंड (3) के अधीन किये गए आदेश का निरसन या संशोधन कर सकेगी।

(g) ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध (जिनके अंतर्गत फीस के बारे में उपबंध हैं) अंतर्विष्ट कर सकेगी जो संसद ऐसे अधिकरणों के प्रभावी कार्यकरण के लिये तथा उनके द्वारा मामलों के शीघ्र निपटारे के लिये और उनके आदेशों के प्रवर्तन के लिये आवश्यक समझे।

(3) इस अनुच्छेद के उपबंध इस संविधान के किसी अन्य उपबंध में या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे।।

COI  का अनुच्छेद 323B:

यह अनुच्छेद अन्य मामलों के लिये अधिकरणों से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि -

(1) समुचित विधानमंडल, विधि द्वारा, ऐसे विवादों, परिवादों या अपराधों के अधिकरणों द्वारा न्यायनिर्णयन या विचारण के लिये उपबंध कर सकेगा जो खंड (2) में विनिर्दिष्ट उन सभी या किन्ही विषयों से संबंधित हैं संबंध में ऐसे विधानमंडल को विधि बनाने की शक्ति है।

(2) खंड (1) में विनिर्दिष्ट विषय निम्नलिखित हैं, अर्थात्-

(a) किसी कर का उद्ग्रहण, निर्धारण, संग्रहण और प्रवर्तन।

(b) विदेशी मुद्रा, सीमाशुल्क सीमांतों के आर-पार आयात और निर्यात।

(c) औद्योगिक और श्रम विवाद।

(d) अनुच्छेद 31A में यथापरिभाषित किसी संपदा या उसमें किन्ही अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन या ऐसे किन्ही अधिकारों के निर्वापन या उपांतरण द्वारा या कृषि भूमि की अधिकतम सीमा द्वारा या किसी अन्य प्रकार से भूमि सुधार

(e) नगर संपत्ति की अधिकतम सीमा।

(f) संसद के प्रत्येक सदन या किसी राज्य विधानमंडल के सदन या प्रत्येक सदन के लिये निर्वाचन, किंतु अनुच्छेद 329 और नुच्छेद 329A में निर्दिष्ट विषयों को छोड़कर।

(g) खाद्य पदार्थों का (जिनके अंतर्गत खाद्य तिलहन व तेल हैं) और ऐसे अन्य माल का उत्पादन, उपापन, प्रदाय और वितरण, जिन्हें राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा, इस अनुच्छेद के प्रयोजन के लिये आवश्यक माल घोषित करे व ऐसे माल की कीमत का नियंत्रण।

(h) किराया, उसका विनियमन और नियंत्रण तथा किरायेदारी संबंधी विवादक, जिनके अंतर्गत मकान मालिकों एवं किरायेदारों के अधिकार, हक व हित शामिल हैं।

(i) उपखंड (a) से उपखंड (h) में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधियों के विरुद्ध अपराध और उन विषयों में से किसी की बाबत फीस।

(j) उपखंड (a) से उपखंड (i) में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी का आनुषंगिक कोई विषय।

(3) खंड (1) के अधीन बनाई गई विधि-

(a) अधिकरणों के उत्क्रम की स्थापना के लिये उपबंध कर सकेगी।

(b) उक्त अधिकरणों में से प्रत्येक अधिकरण द्वारा प्रयोग की जाने वाली अधिकारिता, शक्तियाँ (जिनके अंतर्गत अवमान के लिये दंड देने की शक्ति है) और प्राधिकार विनिर्दिष्ट कर सकेगी।

(c) उक्त अधिकरणों द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया के लिये (जिसके अंतर्गत परिसीमा के बारे में और साक्ष्य के नियमों के बारे में उपबंध हैं) उपबंध कर सकेगी।

(d) अनुच्छेद 136 के तहत उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता के सिवाय सभी न्यायालयों की अधिकारिता का उन सभी या किन्ही विषयों के संबंध में अपवर्जन कर सकेगी जो उक्त अधिकरणों की अधिकारिता के अंतर्गत आते हैं।

(e) ऐसे अधिकरण को उन मामलों के अंतरण के लिये उपबंध कर सकेगी जो ऐसे अधिकरण की स्थापना से ठीक पहले किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित हैं और जो, यदि ऐसी वाद हेतुक जिन पर ऐसी वाद या कार्यवाहियाँ आधारित हैं, अधिकरण की स्थापना के पश्चात् उत्पन्न होते तो ऐसी अधिकरण की अधिकारिता के भीतर होते हैं।

(f) ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक उपबंध (जिनके अंतर्गत फीस के बारे में उपबंध हैं) अंतर्विष्ट कर सकेगी जो समुचित विधानमंडल ऐसे अधिकरणों के प्रभावी कार्यकरण, उनके द्वारा मामलों के शीघ्र निपटारे और उनके आदेशों के प्रवर्तन के लिये आवश्यक समझे।

(4) इस अनुच्छेद के उपबंध इस संविधान के किसी अन्य उपबंध में या तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए भी प्रभावी होंगे।

स्पष्टीकरण: इस अनुच्छेद में, किसी विषय के संबंध में, "समुचित विधानमंडल" से, यथास्थिति, संसद या किसी राज्य का विधानमंडल अभिप्रेत है, जो भाग XI के उपबंधों के अनुसार ऐसी विषयों के संबंध में विधि बनाने के लिये सक्षम हैं।

अनुच्छेद 323A और 323B के बीच अंतर:

  • जहाँ अनुच्छेद 323 A केवल लोक सेवा मामलों के लिये अधिकरणों की स्थापना पर विचार करता है, वहीं अनुच्छेद 323 B कुछ अन्य मामलों के लिये अधिकरणों की स्थापना पर विचार करता है।
  • जबकि अनुच्छेद 323 A के अधीन अधिकरण केवल संसद द्वारा स्थापित किये जा सकते हैं, अनुच्छेद 323 B के अधीन अधिकरण की स्थापना संसद और राज्य विधानमंडल दोनों द्वारा उनकी विधायी क्षमता के अंतर्गत आने वाले मामलों के संबंध में की जा सकती है।
  • अनुच्छेद 323 A के अधीन, केंद्र के लिये केवल एक और प्रत्येक राज्य के लिये एक या दो या दो से अधिक राज्यों के लिये एक अधिकरण स्थापित किया जा सकता है। अधिकरणों के उत्क्रम का कोई प्रश्न नहीं है, जबकि अनुच्छेद 323 B के अधीन अधिकरणों का एक उत्क्रम बनाया जा सकता है।

न्यायालय और अधिकरण के बीच अंतर:

  • अधिकरण और न्यायालय दोनों पक्षों के बीच के विवादों से निपटते हैं जो विषयों के अधिकारों को प्रभावित करते हैं। किंतु दोनों में कुछ अंतर भी हैं, जो इस प्रकार हैं:

न्यायालय

अधिकरण  

यह पारंपरिक न्यायिक प्रणाली का हिस्सा है।

यह एक अर्द्ध-न्यायिक निकाय है।

सिविल न्यायालयों के पास सिविल प्रकृति के सभी मुकदमों की सुनवाई करने की न्यायिक शक्ति है, जब तक कि संज्ञान स्पष्ट रूप से या परोक्ष रूप से वर्जित न हो।

अधिकरणों के पास विशेष विषयों के मामलों की सुनवाई करने की शक्ति है जो उन्हें विधि द्वारा प्रदान की जाती हैं।

न्यायपालिका कार्यपालिका से स्वतंत्र है।

प्रशासनिक अधिकरण पूर्णतः कार्यपालिका के नियंत्रण में है।

यह साक्ष्य और प्रक्रिया के सभी नियमों से बाध्य है।

यह न्याय की प्रकृति के सिद्धांतों से बाध्य है।