संपत्ति-कर आयुक्त बनाम चंदर सेन AIR 1986 SC 1753
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संपत्ति-कर आयुक्त बनाम चंदर सेन AIR 1986 SC 1753

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 01-May-2024

परिचय:

यह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 के अंतर्गत एक महत्त्वपूर्ण मामला है।

मामले के तथ्य:  

  • रंगी लाल एवं उनके बेटे चंदर सेन अचल संपत्ति एवं व्यवसाय में एक हिंदू संयुक्त परिवार (HUF) के सदस्य हैं।
  • 10 अक्टूबर 1961 को रंगी लाल एवं चंदर सेन के बीच आंशिक बँटवारा हुआ तथा व्यवसाय को साझेदारी के माध्यम से उनके मध्य बँटवारा कर दिया गया।
  • 17 जुलाई 1965 को रंगी लाल की मृत्यु हो गई तथा वे अपने पीछे भागेदारी फर्म पुस्तक में 1,85,043 रुपए का क्रेडिट बैलेंस छोड़ गए।
  • आकलन वर्ष 1966-67 के लिये, चंदर सेन (जिन्होंने अपने बेटों के साथ एक नया HUF बनाया) ने 1,85,043 रुपए, अपनी कुल संपत्ति के रूप में शामिल नहीं किये तथा उन्होंने दावा किया कि, यह उनकी व्यक्तिगत संपत्ति है।
  • संपत्ति-कर अधिकारी ने चंदर सेन के HUF की कुल संपत्ति में 1,85,043 रुपए शामिल कर दिये।
  • आकलन वर्ष 1967-68 के लिये रंगी लाल के खाते में 23,330 रुपए का ब्याज जमा किया गया था। चंदर सेन ने इसे कटौती के रूप में दावा करने के लिये यह तर्क दिया कि यह उनकी व्यक्तिगत आय थी। आयकर अधिकारी ने इस दावे को खारिज कर दिया।
  • अपील पर, अपीलीय सहायक आयुक्त ने संपत्ति-कर एवं आयकर आकलन दोनों के लिये चंदर सेन के दावों को स्वीकार कर लिया।
  • राजस्व अपीलें आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण द्वारा खारिज कर दी गईं।
  • संपत्ति-कर के संदर्भ में, उच्च न्यायालय ने माना कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 के अंतर्गत, वह राशि चंदर सेन के HUF की संपत्ति नहीं थी।
  • इसी तरह, आयकर संदर्भ में, उच्च न्यायालय ने माना कि ब्याज, कटौती के रूप में स्वीकार्य था।
  • इसलिये, अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की।

शामिल मुद्दे:

  • क्या 185043 रुपए और 182742 रुपए (ब्याज के हिसाब के बाद) की राशि चंदर सेन की HUF या उनकी व्यक्तिगत अर्जित संपत्ति थी?
  • क्या चंदर सेन के HUF के व्यावसायिक लाभ की गणना में 23330 रुपए का ब्याज कटौती के रूप में स्वीकार्य था?

टिप्पणी:

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हिंदू विधि के अनुसार, जब पुत्र जन्म लेता है, तो उसे पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलता है तथा वह सहदायिक का हिस्सा बन जाता है। हालाँकि, उसकी विधिक स्थिति हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 8 से प्रभावित हो सकती है।
    • धारा 8 कुछ संपत्ति के संबंध में उत्तराधिकारियों को इंगित करती है तथा उत्तराधिकारियों की श्रेणी-I में पुत्र तो सम्मिलित है लेकिन पौत्र नहीं। इसमें एक पूर्व मृत पुत्र का पुत्र भी शामिल है।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब अनुसूची के श्रेणी-I के अंतर्गत उत्तराधिकारी के रूप में पुत्र को धारा 8 द्वारा विचारित स्थिति में संपत्ति विरासत में मिलती है, तो उसे अपने अविभाजित परिवार के कर्त्ता के रूप में लेने के लिये नहीं कहा जा सकता है।
  • गुजरात उच्च न्यायालय के दृष्टिकोण को स्वीकार करने का तात्पर्य यह होगा कि जिस पुत्र को धारा 8 के अंतर्गत बाहर करने का आशय है, उसे धारा 8 में उल्लिखित योजना के विपरीत जन्म से अधिकार मिलेगा।

निष्कर्ष:

  • उच्चतम न्यायालय ने गुजरात उच्च न्यायालय की राय से असहमति जताई।