ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2014)
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दंड प्रक्रिया संहिता

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आपराधिक कानून

ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2014)

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 09-May-2024

परिचय:

दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 154 के तहत प्रथम इत्तिला रिपोर्ट (FIR) का पंजीकरण अनिवार्य है, यदि सूचना किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा करती है और ऐसी परिस्थिति में कोई प्रारंभिक जाँच की अनुमति नहीं है।

तथ्य:

  • यह याचिका उच्चतम न्यायालय के समक्ष ललिता कुमारी द्वारा दायर की गई थी, जो अपने पिता के माध्यम से भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 32 के तहत अपहरण की गई अपनी नाबालिग बेटी की सुरक्षा के लिये बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट जारी करने के लिये दायर की गई थी।
  • याचिकाकर्त्ता ने पुलिस स्टेशन के प्रभारी अधिकारी के समक्ष एक लिखित रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिस पर उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की।
  • पुलिस अधीक्षक की संलिप्तता के बाद प्राथमिकी दर्ज की गई।
  • प्राथमिकी दर्ज होने के बाद भी न तो आरोपियों की गिरफ्तारी के लिये और न ही नाबालिग लड़की की बरामदगी के लिये को कदम उठाया गया।

शामिल मुद्दा:

  • क्या कोई पुलिस अधिकारी दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 154 के तहत संज्ञेय अपराध करने से संबंधित कोई जानकारी प्राप्त करने पर प्राथमिकी दर्ज करने के लिये बाध्य है या पुलिस अधिकारी के पास दर्ज करने से पहले ऐसी जानकारी की सत्यता का परीक्षण करने के लिये "प्रारंभिक जाँच" करने का अधिकार है?

टिप्पणियाँ:

  • CrPC की धारा 154(1) में "होगा (Shall)" शब्द का उपयोग स्पष्ट रूप से विधायी आशय को दर्शाता है कि यदि पुलिस को दी गई जानकारी किसी संज्ञेय अपराध के घटित होने का खुलासा करती है तो FIR दर्ज करना अनिवार्य है।
  • यदि प्राप्त जानकारी संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करती है, लेकिन जाँच की आवश्यकता को इंगित करती है, तो प्रारंभिक जाँच केवल यह सुनिश्चित करने के लिये की जा सकती है कि संज्ञेय अपराध का खुलासा हुआ है या नहीं।
  • यदि पूछताछ में संज्ञेय अपराध होने का खुलासा होता है, तो FIR दर्ज की जानी चाहिये।
  • ऐसे मामलों में जहाँ प्रारंभिक जाँच शिकायत को बंद करने पर समाप्त होती है, ऐसे समापन की प्रविष्टि की एक प्रति पहले मुखबिर को प्रदान की जानी चाहिये।
  • संज्ञेय अपराध का खुलासा होने पर पुलिस अधिकारी अपराध दर्ज करने के अपने कर्त्तव्य से नहीं बच सकता। उन दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्रवाई की जानी चाहिये, जो FIR दर्ज नहीं करते हैं, यदि उनके द्वारा प्राप्त जानकारी से संज्ञेय अपराध का पता चलता है।
  • प्रारंभिक जाँच का दायरा प्राप्त जानकारी की सत्यता को सत्यापित करना नहीं है, बल्कि केवल यह सुनिश्चित करना है कि क्या जानकारी किसी संज्ञेय अपराध का खुलासा करती है।
  • प्रारंभिक जाँच किस प्रकार की और किन मामलों में की जानी है, यह प्रत्येक मामले के तथ्यों तथा परिस्थितियों पर निर्भर करेगा।
  • अभियुक्त और शिकायतकर्त्ता के अधिकारों को सुनिश्चित तथा संरक्षित करते हुए प्रारंभिक जाँच समयबद्ध की जानी चाहिये, जो किसी भी मामले में 7 दिन से अधिक नहीं होनी चाहिये।
  • सामान्य डायरी/स्टेशन डायरी/दैनिक डायरी एक पुलिस स्टेशन में प्राप्त सभी सूचनाओं का रिकॉर्ड होता है, इसलिये हम निर्देश देते हैं कि संज्ञेय अपराधों से संबंधित सभी जानकारी, चाहे FIR दर्ज करने के परिणामस्वरूप हो या जाँच के कारण हो, अनिवार्य रूप से और सावधानीपूर्वक प्रतिबिंबित की जानी चाहिये। उक्त डायरी में और प्रारंभिक जाँच करने का निर्णय भी प्रतिबिंबित होना चाहिये।

निष्कर्ष:

  • इस प्रकार, CrPC की धारा 154 के तहत प्रयुक्त भाषा से संसद का आशय स्पष्ट है कि संज्ञेय अपराध के घटित होने से संबंधित एक मात्र जानकारी FIR दर्ज करने के लिये पर्याप्त है।