होम / संपत्ति अंतरण अधिनियम

सिविल कानून

क्रेता और विक्रेता के अधिकार और दायित्व

    «    »
 27-Nov-2023

परिचय:

बिक्री में कीमत के बदले संपत्ति में स्वामित्व का अंतरण होता है। कीमत का तात्पर्य भुगतान की गई कीमत, या वादा किया हुआ, आंशिक भुगतान या आंशिक वादा किये गए मूल्य से हो सकता है। अंतरक (Transferor) को विक्रेता कहा जाता है और अंतरिती (Transferee) को क्रेता कहा जाता है।

क्रेता और विक्रेता के अधिकार एवं दायित्व (धारा 55):

  • संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (Transfer of Property Act- TPA) की धारा 55 विक्रेता और क्रेता को कुछ अधिकार व दायित्व प्रदान करती है।
  • विक्रेता और क्रेता के अधिकारों एवं देनदारियों को दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है।
    • बिक्री से पहले अधिकार और देनदारियाँ।
    • बिक्री के बाद अधिकार और देनदारियाँ।

विक्रेता की देनदारियाँ:

बिक्री पूरी होने से पहले विक्रेता की देनदारियाँ:

बिक्री पूरी होने से पहले, विक्रेता की देनदारियाँ इस प्रकार हैं: -

  • संपत्ति या हक में भौतिक दोष, यदि कोई हो, का खुलासा करने के लिये, [धारा 55(1)(a)]:
    • बिक्री पूर्ण होने से पूर्व, विक्रेता क्रेता को संपत्ति में अप्रकट सामग्री दोष (Latent Material Defect) या अपने स्वयं के हक (स्वामित्व अधिकार/Ownership Rights) में किसी भी दोष का खुलासा करने के लिये बाध्य है।
  • निरीक्षण के लिये हक-विलेख प्रस्तुत करना [धारा 55(1)(b)]:
    • यदि क्रेता विक्रेता से निरीक्षण के लिये हक विलेख (Title Deed) के लिये अनुरोध करता है, तो विक्रेता का कर्त्तव्य है कि वह न केवल उन दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करे जो उसके पास हैं, बल्कि उन दस्तावेज़ों के निरीक्षण की व्यवस्था भी करे जो उसकी शक्ति के भीतर हैं।
  • हक के अनुसार प्रासंगिक प्रश्नों का उत्तर देने के लिये [धारा 55(1)(c)]:
    • विक्रेता का कर्त्तव्य क्रेता द्वारा पूछे गए सभी प्रश्नों का उत्तर देना है जो स्वामित्व के हस्तांतरण के लिये प्रासंगिक हैं।
  • प्रवहण (Conveyance) निष्पादित करने का कर्त्तव्य [धारा 55(1)(d)]:
    • विक्रेता का कर्त्तव्य प्रवहण (Conveyance) निष्पादित करना है। कहने का तात्पर्य यह है कि उसे स्वामित्व के हस्तांतरण को प्रभावित करना होगा। यह विक्रेता द्वारा विक्रय-विलेख (Sale-Deed) पर हस्ताक्षर करने या अँगूठे का निशान लगाने से किया जाता है।
  • हक विलेख और संपत्ति की देखभाल [धारा 55(1)(e)]:
    • प्रवहण के निष्पादन के बाद, विक्रेता का अगला कर्त्तव्य संपत्ति व स्वामित्व के दस्तावेज़ों की देखभाल करना है। बिक्री के बाद इन्हें क्रेता को सौंप दिया जाना है।
  • व्ययों का भुगतान [धारा 55(1)(g)]:
    • बिक्री पूरी होने से पूर्व विक्रेता संपत्ति का मालिक बना रहता है। अत: सरकारी बकाया आदि का भुगतान उसे ही करना होगा। बिक्री पूर्ण होने से पहले विक्रेता का अंतिम कर्त्तव्य सभी व्ययों का भुगतान करना है।

बिक्री के पूरा होने के बाद विक्रेता की देनदारियाँ:

  • क्रेता को कब्ज़ा देने के लिये [धारा 55(1)(f)]:
    • क्रेता द्वारा मांगे जाने पर, विक्रेता का यह कर्त्तव्य है कि वह क्रेता को या ऐसे व्यक्ति को संपत्ति का कब्ज़ा दे, जिसे वह (क्रेता) निर्देश देता है, यह क्रेता को संपत्ति का कब्ज़ा देने के लिये एक निहित अनुबंध है।
  • स्वामित्व हेतु अनुबंध के लिये [धारा 55(2)]:
    • प्रत्येक बिक्री में विक्रेता स्पष्ट रूप से यह प्रतिभूति देता है कि जो ब्याज वह हस्तांतरित कर रहा है वह स्थिर रहेगा और उसके पास उसे हस्तांतरित करने का अधिकार है। तकनीकी रूप से इसे स्वामित्व के लिये निहित अनुबंध के रूप में जाना जाता है।
  • मूल्य प्राप्त होने पर हक-विलेख वितरित करना [धारा 55(3)]:
    • बिक्री पूर्ण होने के बाद विक्रेता को संपत्ति का हक विलेख क्रेता को सौंपना होता है।
    • बिक्री के बाद, स्वामित्व के हस्तांतरण के स्वभाविक परिणाम के रूप में हक-विलेख को क्रेता को हस्तांतरित कर दिया जाता है।
    • विक्रेता न केवल उन दस्तावेज़ों को सौंपने के लिये उत्तरदायी है जो उसके पास हैं, बल्कि वे दस्तावेज़ भी सौंपने के लिये उत्तरदायी हैं जो महत्त्वपूर्ण हैं व उसकी अधिकार के अंतर्गत आते हैं।

विक्रेता के अधिकार:

बिक्री पूर्ण होने से पूर्व विक्रेता का अधिकार [धारा 55(4)(a)]:

  • बिक्री पूर्ण होने से पूर्व विक्रेता संपत्ति के सभी किराए, मुनाफे या अन्य लाभकारी हितों का हकदार है।
  • जब तक स्वामित्व हस्तांतरित नहीं हो जाता, तब तक विक्रेता संपत्ति का मालिक बना रहता है और इस दौरान उसे संपत्ति के मुनाफे का आनंद लेने का पूर्ण अधिकार है।
  • बिक्री का अनुबंध खरीदार के पक्ष में कोई मालिकाना हित उत्पन्न नहीं करता है।

बिक्री पूर्ण होने के बाद विक्रेता का अधिकार [धारा 55(4)(b)]:

  • बिक्री के पूर्ण होने के बाद, यदि पूरी कीमत या उसका कोई हिस्सा अवैतनिक रहता है, तो विक्रेता संपत्ति पर ग्रहणाधिकार या शुल्क प्राप्त कर लेता है।
  • किसी स्थावर संपत्ति की बिक्री का पूर्ण होना कीमत के भुगतान पर निर्भर नहीं करता है, इसकी कीमत या उसके कुछ भाग का भुगतान बिक्री के बाद भी किया जा सकता है। इसलिये, धारा 55(4)(b) के तहत विक्रेता को संपत्ति से अवैतनिक क्रय-धन वसूल करने का अधिकार दिया गया है। इसे अवैतनिक मूल्य के लिये विक्रेता का कानूनी शुल्क कहा जाता है।

क्रेता की देनदारियाँ:

बिक्री पूर्ण होने से पूर्व क्रेता की देनदारियाँ:

बिक्री पूर्ण होने से पूर्व क्रेता के कर्त्तव्य (देनदारियाँ) इस प्रकार हैं:

  • उन तथ्यों का खुलासा करना जो संपत्ति के मूल्य में भौतिक रूप से वृद्धि करते हैं [धारा 55(5)(a)]:
    • क्रेता विक्रेता को उन तथ्यों (संपत्ति का प्रकार, उसका स्थान आदि) का खुलासा करने के लिये उत्तरदायी है जो संपत्ति के मूल्य में भौतिक रूप से वृद्धि करता है। यह दायित्व केवल उन तथ्यों के प्रकटीकरण तक सीमित है जो क्रेता के स्वामित्व या हित से संबंधित हैं।
  • कीमत का भुगतान [धारा 55(5)(b)]:
    • क्रेता के पक्ष में बिक्री पूर्ण होने पर, विक्रेता पर विलेख के निष्पादन का कर्त्तव्य होता है तथा क्रेता पर कीमत के भुगतान का कर्त्तव्य होता है। लेकिन, क्रेता स्वामित्व के हस्तांतरण से पूर्व पूर्ण राशि का भुगतान करने के लिये बाध्य नहीं है।

बिक्री पूर्ण होने के बाद क्रेता की देनदारियाँ:

बिक्री पूरी होने के बाद, क्रेता पर निम्नलिखित दो देनदारियाँ होती हैं:

  • संपत्ति की हानि, यदि कोई हो, वहन करने के लिये, [धारा 55(5)(c)]:
    • यदि बिक्री के बाद संपत्ति को कोई हानि होती है, तो संपत्ति के मालिक के रूप में क्रेता को उस हानि को वहन करना पड़ेगा। वह विक्रेता को हानि वहन करने के लिये नहीं कह सकता जब तक कि यह सिद्ध न हो जाए कि हानि विक्रेता के कारण ही हुई है।
  • व्ययों का भुगतान करने के लिये [धारा 55(5)(d)]:
    • बिक्री पूर्ण होने के बाद, चूँकि क्रेता संपत्ति का मालिक बन जाता है, वह सरकारी बकाया, किराया, राजस्व या करों जैसे व्यय का भुगतान करने के लिये उत्तरदायी होता है।

क्रेता के अधिकार:

बिक्री पूर्ण होने से पूर्व क्रेता का अधिकार [धारा 55(6)]:

  • यह अधिकार तब होता है जब विक्रेता संपत्ति को बेचने से इनकार कर देता है तथा क्रेता पहले ही अग्रिम कुछ राशि का भुगतान कर चुका होता है। यह स्थिति क्रेताओं के आरोप का कारण बनती है तथा इस स्थिति में क्रेता अपने धन को ब्याज सहित वापस प्राप्त करने का हकदार है व ब्याज का भुगतान कब्ज़े की डिलीवरी की तारीख या धन के हस्तांतरण की तारीख से किया जाएगा।
    • लेकिन अगर क्रेता की गलती के कारण बिक्री नहीं हो पाती है, तो क्रेता पर कोई शुल्क नहीं लगता है तथा वह अपना धन वापस नहीं मांग सकता है।

बिक्री पूर्ण होने के बाद क्रेता का अधिकार [धारा 55 (6)(a)]:

  • इस की धारा 55 (6)(a) के अनुसार, क्रेता संपत्ति पर सभी अधिकार प्राप्त करने का हकदार है, जिसमें सभी किराए, लाभ व संपत्ति पर मिलने वाले अन्य लाभ शामिल हैं।
  • बिक्री पूरी होने के बाद या स्वामित्व के हस्तांतरण के बाद क्रेता संपत्ति का मालिक बन जाता है और वह स्वामित्व के हस्तांतरण की तारीख से सभी लाभों का हकदार है।