स्वतंत्र विचार बनाम भारत संघ (AIR 2017 SC 4904)
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आपराधिक कानून

स्वतंत्र विचार बनाम भारत संघ (AIR 2017 SC 4904)

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 10-May-2024

परिचय:

11 अक्टूबर 2017 को, उच्चतम न्यायालय  द्वारा एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया गया जिसमें न्यायालय ने कहा कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 375 का अपवाद 2 अपने आप में मनमाना है तथा कहा गया कि अपनी पत्नी के साथ, यदि उसकी उम्र 15 से 18 वर्ष के मध्य है, भले ही उसकी सहमति हो, फिर भी पति संभोग नहीं कर सकता।

तथ्य:

  • याचिकाकर्त्ता वर्ष 2009 में पंजीकृत एक सोसायटी है तथा बाल अधिकारों के लिये काम करती है।
  • सोसायटी ने 15 से 18 वर्ष की आयु के मध्य विवाह करने वाली लड़कियों के संबंध में ध्यान आकर्षित करने के लिये जनहित में भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत एक याचिका दायर की है।
  • याचिकाकर्त्ता की दलील थी कि IPC की धारा 375 के अधीन संभोग हेतु सहमति के लिये निर्धारित उम्र 18 वर्ष है।
  • लेकिन अगर, 15 से 18 वर्ष के बीच की लड़की विवाहित है, तो उसका पति, लड़की की सहमति के बिना और IPC के अधीन दण्ड के बिना भी यौन संबंध स्थापित कर सकता है।
  • यह प्रस्तुत किया गया कि IPC की धारा 375 का अपवाद 2 न केवल मनमाना है, बल्कि भेदभावपूर्ण भी है तथा COI के अनुच्छेद 15(3) के लाभकारी आशय के विपरीत है, जो संसद को महिलाओं एवं बच्चों के लिये विशेष प्रावधान बनाने में सक्षम बनाता है।

शामिल मुद्दे:

  • क्या, किसी पुरुष एवं उसकी 15 से 18 वर्ष तक की आयु की लड़की होते हुए पत्नी के बीच यौन संबंध बलात्संग है?
  • क्या IPC की धारा 375 का अपवाद 2, जहाँ तक ​​यह 15 से 18 वर्ष की आयु की लड़कियों से संबंधित है, असंवैधानिक है तथा रद्द किये जाने योग्य है?

क्या IPC की धारा 375 का अपवाद 2 भेदभावपूर्ण है?

टिप्पणी:

  • उच्चतम न्यायालय ने माना कि अपवाद 2, जहाँ तक ​​यह 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से संबंधित, अनुचित, अन्यायपूर्ण, अन्यायपूर्ण और लड़कियों के अधिकारों का उल्लंघन है। उस हद तक यह मनमाना है तथा रद्द किये जाने योग्य है।
  • इसके अतिरिक्त, अपवाद 2 जहाँ तक ​​यह 18 वर्ष से कम उम्र की लड़कियों से संबंधित है, भेदभावपूर्ण है तथा COI के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है।
  • इसमें कोई संदेह नहीं है कि IPC की धारा 375 को आंशिक रूप से निरसित करने से कोई नया अपराध नहीं बन रहा है। यह अपराध IPC की धारा 375 के मुख्य भाग एवं यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 3 एवं 5 के अधीन पहले से ही मौजूद है।
  • चूँकि इस न्यायालय ने "वैवाहिक बलात्संग" के व्यापक मुद्दे पर विचार नहीं किया है, इसे विधि के समक्ष लाने और COI के अनुरूप बनाने के लिये IPC की धारा 375 के अपवाद 2 को पढ़ा जाना चाहिये।
  • IPC की धारा 375 का अपवाद 2, जहाँ तक ​​यह 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की से संबंधित है, निम्नलिखित आधारों पर रद्द किया जा सकता है-
    • यह मनमाना, अस्थिर, मनमौजी और बालिकाओं के अधिकारों का उल्लंघन है तथा निष्पक्ष, उचित एवं तर्कसंगत नहीं है। इसलिये, COI के अनुच्छेद 14, 15 एवं 21 का उल्लंघन है।
    • यह POCSO के प्रावधानों के साथ भेदभावपूर्ण एवं असंगत है, जो लागू होना चाहिये।

निष्कर्ष:

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने IPC की धारा 375 के अपवाद 2 को खारिज कर दिया तथा माना कि प्रावधान मनमाना है, क्योंकि यह COI के अनुच्छेद 14, 15 एवं 21 में निहित सिद्धांतों का उल्लंघन है।