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सिविल कानून
डिक्रीदार या क्रेता को कब्जे परिदत्त किये जाने में प्रतिरोध
«21-May-2025
परिचय
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) का आदेश 21 डिक्रियों और आदेशों के निष्पादन से संबंधित है, जो वाद-विवाद के उस महत्वपूर्ण चरण को दर्शाता है जहाँ वादी को अपने मुकदमे का प्रतिफल प्राप्त होता है। नियम 97 से 106 विशेष रूप से निष्पादन की एक महत्त्वपूर्ण अवस्था से संबंधित हैं - स्थावर संपत्ति पर कब्जा करने में प्रतिरोध या बाधा और इच्छुक पक्षकारों के लिये उपलब्ध विधिक उपचार।
नियम 97: स्थावर संपत्ति पर कब्जा करने में प्रतिरोध या बाधा
- जहाँ अचल संपत्ति के कब्जे की डिक्री के धारक या डिक्री के निष्पादन में विक्रय की गई ऐसी संपत्ति के क्रेता का ऐसी संपत्ति पर कब्जा अभिप्राप्त करने में किसी व्यक्ति द्वारा प्रतिरोध या बाधा डाली जाती है, वहाँ वह ऐसे प्रतिरोध या बाधा का परिवाद करते हुए आवेदन न्यायालय से कर सकेगा।
- ऐसा आवेदन प्राप्त होने पर, न्यायालय उस आवेदन पर न्यायनिर्णयन इसमें अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार करने के लिये अग्रसर होगा।
नियम 98: न्यायनिर्णयन के पश्चात् आदेश
- नियम 101 के निर्दिष्ट प्रश्नों के अवधारण के पश्चात्, न्यायालय:
- या तो आवेदन को मंजूर करते हुए और यह निदेश देते हुए कि आवेदक को संपत्ति का कब्जा दे दिया जाए या फिर आवेदन को खारिज करते हुए आदेश करेगा।
- ऐसा अन्य आदेश पारित करेगा जो वह मामले की परिस्थितियों में ठीक समझे।
- यदि न्यायालय का यह समाधान हो जाता है कि निर्णीतऋणी या उनकी ओर से कार्य करने वाले किसी व्यक्ति द्वारा बिना किसी पर्याप्त कारण के प्रतिरोध किया गया था, तो वह आवेदक को कब्जा सौंपने का आदेश देगा तथा यदि अवरोध जारी रहता है तो वह प्रतिरोध करने वाले पक्षकार को तीस दिन तक सिविल कारागार में निरुद्ध किये जाने का आदेश दे सकता है।
नियम 99: डिक्रीदार या क्रेता द्वारा बेकब्जा किया जाना
- जहा निर्णीतऋणी से भिन्न किसी अन्य व्यक्ति को डिक्री के धारक या क्रेता द्वारा बेकब्जा कर दिया जाता है, तो वे न्यायालय में आवेदन कर सकते हैं।
- न्यायालय उस आवेदन पर न्यायनिर्णयन इसमें अंतर्विष्ट उपबंधों के अनुसार करने के लिये अग्रसर होगा।
नियम 100: बेकब्जा किये जाने का परिवाद करने वाले आवेदन पर पारित किया जाने वाला आदेश
- नियम 101 में निर्दिष्ट प्रश्नों के अवधारण पर न्यायालय या तो:
- आवेदन को मंजूर करते हुए और यह निदेश देते हुए कि आवेदक को संपत्ति का कब्जा दे दिया जाए।
- आवेदन को खारिज करते हुए आदेश करेगा।
- ऐसा अन्य आदेश पारित करेगा जो वह मामले की परिस्थितियों में ठीक समझे।
नियम 101: अवधारित किये जाने वाले प्रश्न
- नियम 97 या 99 के अधीन आवेदनों से उत्पन्न होने वाले पक्षकारों के बीच सभी प्रश्न (जिनके अंतर्गत अधिकार, हक़ या हित से संबंधित प्रश्न भी है) आवेदन पर विचार करने वाले न्यायालय द्वारा अवधारित किये जाएंगे।
- न कि किसी पृथक् वाद द्वारा और इस प्रयोजन के लिये न्यायालय तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि मे किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, ऐसे प्रश्नों का विनिश्चय करने की अधिकारिता रखने वाला समझा जाएगा।
नियम 102: वादकालीन अंतरिती को इन नियमों का लागू न होना
- ये नियम उस व्यक्ति द्वारा किये गए प्रतिरोध पर लागू नहीं होते हैं, जिसे निर्णीतऋणी ने उस वाद के संस्थित होने के पश्चात् संपत्ति अंतरित की थी, जिसमें डिक्री पारित की गई थी।
नियम 103: आदेशों को डिक्री माना जाना
- नियम 98 या 100 के अधीन पारित आदेशों का प्रभाव डिक्री के समान होगा तथा अपील के संबंध में उन पर भी समान शर्तें लागू होंगी।
नियम 104: लंबित वाद के परिणाम के अधीन आदेश
- नियम 101 या 103 के अधीन आदेश किसी भी लंबित वाद के परिणाम के अधीन होंगे, जहाँ जिस पक्षकार के विरुद्ध आदेश दिया गया है, उसने वर्तमान कब्जे का अधिकार स्थापित करने की मांग की है।
नियम 105: आवेदन की सुनवाई
- आवेदनों की सुनवाई के लिये प्रक्रियात्मक दिशा-निर्देश प्रदान करता है, जिसमें तारीखें तय करना और उपसंजात न होने के परिणाम भी सम्मिलित हैं।
नियम 106: एकपक्षीय रूप से पारित आदेशों, आदि का अपास्त किया जाना
- कार्यवाही के दौरान किसी पक्षकार के उपसंजात न होने पर आदेशों को अपास्त करने की प्रक्रिया का विवरण दिया गया है, जिसमें ऐसे आवेदनों के लिये 30 दिन की परिसीमा काल भी सम्मिलित है।
सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 97 के निर्वचन में विरोधाभास
- उच्चतम न्यायालय ने सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) के आदेश 21 नियम 97 के निर्वचन में न्यायिक असंगति पर चिंता जताने वाली याचिका पर नोटिस जारी किया है, जो किसी डिक्री के निष्पादन में प्रतिरोध या बाधा से संबंधित है।
- दो पूर्व निर्णयों के बीच विरोधाभास पाया गया:
- ब्रह्मदेव चौधरी बनाम ऋषिकेश प्रसाद जायसवाल (1997) में , न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि कोई तृतीय पक्षकार बेकब्जा सामना कर रहा हो, तो वह आदेश 21 नियम 97 के अधीन अनुतोष की मांग कर सकता हैं।
- इसके विपरीत, श्रीराम हाउसिंग फाइनेंस बनाम ओमेश मिश्रा मेमोरियल चैरिटेबल ट्रस्ट (2022) ने एक संकीर्ण दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें प्रावधान की प्रयोज्यता को डिक्रीदारों और नीलामी क्रेताओं तक सीमित कर दिया।
- न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की, जिसमें सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 97 के अधीन याचिकाकर्त्ता के निष्पादन आवेदन को विचारण न्यायालय द्वारा खारिज करने के निर्णय को बरकरार रखा गया था।
- याचिकाकर्त्ता, जो गबन के अभियुक्त एक पूर्व बैंक कर्मचारी की पत्नी है, ने दावा किया कि नीलाम की गई संपत्ति उसकी स्वयं अर्जित संपत्ति थी और उसने सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 21 नियम 97, 98 और 26 (2) के अधीन प्रक्रियात्मक अनियमितताओं का हवाला देते हुए विक्रय को चुनौती देने की मांग की।
- अवर न्यायालयों ने श्रीराम हाउसिंग फाइनेंस पर विश्वास करते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी और कहा कि तृतीय पक्षकार आदेश 21 नियम 97 का आह्वान नहीं कर सकता।
- याचिकाकर्त्ता ने ब्रह्मदेव चौधरी का हवाला देते हुए इस तर्क का विरोध किया, जिसमें तृतीय पक्षकार के हस्तक्षेप की अनुमति देते हुए व्यापक निर्वचन का समर्थन किया गया है।
- परस्पर विरोधी निर्णयों के कारण एक विवादास्पद विवाद्यक पाते हुए, उच्चतम न्यायालय ने प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया।
- न्यायालय ने यह भी निदेश दिया कि उसकी अनुमति के बिना याचिकाकर्त्ता के संपत्ति पर कब्जे में कोई बाधा नहीं डाली जाएगी।
- इस मामले की सुनवाई अगस्त 2025 में पुनः निर्धारित है।
निष्कर्ष
सिविल प्रक्रिया संहिता के अधीन डिक्री का निष्पादन, विशेषतः स्थावर संपत्ति के कब्जे से संबंधित, आदेश 21 के नियम 97 से 106 में निर्धारित एक व्यापक ढाँचे द्वारा शासित होता है। इन उपबंधों का उद्देश्य डिक्रीदारों और नीलामी क्रेताओं के अधिकारों को तृतीय पक्षकार के अधिकारों के साथ संतुलित करना है जो विधिक रूप से बेकब्जा होने का विरोध कर सकते हैं। यद्यपि, न्यायिक निर्वचन, विशेषत: नियम 97 के दायरे के संबंध में, सुसंगत नहीं रही हैं। उच्चतम न्यायालय के समक्ष चल रहा मामला - ब्रह्मदेव चौधरी और श्रीराम हाउसिंग फाइनेंस के बीच मतभेद को उजागर करता है - इस विधिक अस्पष्टता को स्पष्ट रूप से सामने लाता है। न्यायालय के अंतिम निर्णय से इस बात पर बहुत आवश्यक स्पष्टता मिलने की उम्मीद है कि क्या तृतीय पक्षकार नियम 97 के अधीन अनुतोष की मांग कर सकते हैं और विवादित कब्जे से संबंधित भविष्य की निष्पादन कार्यवाही के लिये इसके महत्त्वपूर्ण निहितार्थ होंगे।