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वाणिज्यिक विधि

टीआरएफ लिमिटेड बनाम एनर्गो इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (2017)

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 06-Nov-2024

परिचय

यह एक ऐतिहासिक निर्णय है जो मध्यस्थ को नामित करने के लिये एक ऐसे व्यक्ति की पात्रता पर चर्चा करता है जो स्वयं मध्यस्थ बनने के लिये अयोग्य होता है। 

  • यह निर्णय न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति एम.एम. शांतनागौदर द्वारा दिया गया।

तथ्य

  • प्रतिवादी कंपनी थोक सामग्री हैंडलिंग उपकरण उपाप्ति के व्यवसाय में लगी हुई है।
  • प्रतिवादी ने अपीलकर्त्ता को सम्पूर्ण डिज़ाइन, विनिर्माण आदि के लिये क्रय आदेश जारी किया।
  • अपीलकर्त्ता ने माध्यस्थम् का आह्वान किया और प्रबंध निदेशक द्वारा उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश को भी मध्यस्थ नियुक्त किया गया।
  • नियुक्ति के बाद अपीलकर्त्ता द्वारा यह आधार प्रस्तुत किया गया कि माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 (A & C अधिनियम) की धारा 12 (5) के साथ पाँचवीं और सातवीं अनुसूची के आधार पर प्रबंध निदेशक मध्यस्थ के रूप में कार्य करने के लिये अयोग्य हो गए हैं और इसलिये उनके पास नामांकन करने का कोई अधिकार नहीं है।
  • इस मामले में उच्च न्यायालय ने माना कि किसी एक पक्ष से एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त करने का अधिकार नहीं छीना जा सकता।
  • इसलिये, एक अपील दायर की गई।

शामिल मुद्दा

  • क्या प्रबंध निदेशक, विधि के अनुसार अयोग्य हो जाने के बाद भी मध्यस्थ को नामित करने के लिये पात्र है?

टिप्पणी

  • न्यायालय ने कहा कि A & C अधिनियम की धारा 12 (5) तीन संघटकों से संबंधित है: पक्षकार उप-धारा की प्रयोज्यता को छोड़ सकते हैं; उक्त छूट केवल पक्षकारों के बीच विवाद उत्पन्न होने के बाद ही हो सकती है; और ऐसी छूट लिखित रूप में स्पष्ट समझौते द्वारा होनी चाहिये।
  • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह भी कहा कि पश्चिम बंगाल राज्य बनाम एसोसिएटेड कॉन्ट्रैक्टर्स (2014) में दिये गए प्राधिकार पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह इस मामले में उल्लिखित समस्या से संबंधित नहीं है।
  • न्यायालय ने कहा कि वर्तमान तथ्यों को देखते हुए माध्यस्थम् समझौते के निम्नलिखित दो खंडों पर विचार किया जाना चाहिये:
    • खंड (c) में कहा गया है कि सभी विवाद, जिन्हें आपसी बातचीत से नहीं सुलझाया जा सकता, उन्हें संशोधित अधिनियम के अनुसार माध्यस्थम् के लिये भेजा जाएगा तथा उसके द्वारा ही निपटाया जाएगा।
    • खंड (d) में यह प्रावधान है कि जब तक अन्यथा प्रावधान न किया जाए, समझौते के संबंध में पक्षकारों के बीच कोई विवाद या मतभेद प्रबंध निदेशक या उनके नामित व्यक्ति के एकमात्र माध्यस्थम् के लिये भेजा जाएगा।
  • कानून में यह कल्पना से परे है कि कोई व्यक्ति जो वैधानिक रूप से अयोग्य है, किसी व्यक्ति को नामांकित कर सकता है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि एक बार अवसंरचना गिरने के बाद, भवन का गिरना तय होता  है। बिना स्तंभ के कोई इमारत नहीं बन सकती।
  • इस प्रकार, जब एकमात्र मध्यस्थ के रूप में प्रबंध निदेशक की पहचान समाप्त हो जाती है, तो किसी अन्य को मध्यस्थ के रूप में नामित करने की शक्ति भी समाप्त हो जाती है।

निष्कर्ष

  • इस निर्णय में मध्यस्थों की नियुक्ति के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत पर चर्चा की गई है। 
  • इस निर्णय में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति मध्यस्थ के रूप में नियुक्त होने के लिये अयोग्य होता है तो ऐसा व्यक्ति मध्यस्थ को नामित नहीं कर सकता है।