होम / करेंट अफेयर्स
आपराधिक कानून
केवल एक बाल साक्षी के साक्ष्य के आधार पर दोषसिद्धि
«18-Dec-2025
|
बद्दम प्रशांत रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य "साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 के अधीन सक्षमता मूल्यांकन अनिवार्य है जब दोषसिद्धि पूरी तरह से एक बाल साक्षी के अपुष्ट परिसाक्ष्य पर आधारित हो।" न्यायमूर्ति जे. श्रीनिवास राव |
स्रोत: तेलंगाना उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
तेलंगाना उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जे. श्रीनिवास राव ने बद्दाम प्रशांत रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2025) के मामले में दोहराया कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 118 के अधीन बाल पीड़ित की सक्षमता का आकलन अनिवार्य है जब किसी अभियुक्त की दोषसिद्धि पूरी तरह से बच्चे के अपुष्ट परिसाक्ष्य पर आधारित होती है।
बद्दाम प्रशांत रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- पीड़ित एक अवयस्क बालक था जिसे ट्यूशन कक्षाओं में भेजा जा रहा था।
- पीड़ित ने अभिकथित किया कि उसके ट्यूशन शिक्षक (अभियुक्त/अपीलकर्त्ता) ने उसके साथ जबरदस्ती की और उसकी सहमति के बिना लैंगिक संबंध बनाए।
- अभियुक्त ने कथित तौर पर पीड़ित को धमकी दी कि यदि उसने इस घटना के बारे में किसी को बताया तो वह उसे विषय की परीक्षा में फेल कर देगा।
- भयभीत पीड़ित ने घटना के बारे में अपने मित्र को बताया।
- इसके बाद मित्र ने पीड़ित की माता को घटना के बारे में जानकारी दी।
- पीड़ित के पिता ने इस जानकारी के आधार पर पुलिस में परिवाद दर्ज कराया।
- विशेष सेशन न्यायाधीश ने अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377 (प्रकृति विरुद्ध अपराध) के अधीन दोषसिद्ध ठहराया।
- अभियुक्त को 10 वर्ष के कठोर कारावास और 1,000 रुपए के जुर्माने का दण्ड दिया गया।
- अभियुक्त ने अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए तेलंगाना उच्च न्यायालय में दाण्डिक अपील दायर की।
- पीड़ित के पिता ने अपने पुत्र को किसी चिकित्सक से परीक्षा कराने की अनुमति नहीं दी ।
- विचारण न्यायालय ने नपुंसकता परीक्षा और बाल साक्षी के कथन के आधार पर अभियुक्त को दोषसिद्ध ठहराया।
- विचारण न्यायालय ने साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 के अधीन बाल साक्षी की प्रारंभिक सक्षमता का मूल्यांकन नहीं किया।
न्यायालय की क्या टिप्पणियां थीं?
- न्यायालय ने कहा कि विचारण न्यायालय ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 के अधीन प्रारंभिक सक्षमता का मूल्यांकन किये बिना, केवल अवयस्क साक्षी के परिसाक्ष्य और सक्षमता प्रमाण पत्र पर ही विश्वास किया।
- न्यायालय ने पाया कि विचारण न्यायालय बालक की सक्षमता स्थापित करने वाली किसी भी बातचीत को अभिलिखित करने में विफल रहा।
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि पीड़ित और उसके पिता दोनों ने सरकारी डॉक्टर द्वारा रेफर किये जाने के बावजूद चिकित्सा परीक्षा कराने से इंकार कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप महत्त्वपूर्ण संपोषक साक्ष्य का अभाव रहा।
- न्यायालय ने माना कि विचारण न्यायालय का यह कर्त्तव्य है कि वह पहले उचित प्रारंभिक जांच के माध्यम से यह सुनिश्चित कर ले कि बालक उससे पूछे गए प्रश्नों को समझता है और तर्कसंगत उत्तर दे सकता है।
- न्यायालय ने कहा कि यह साबित करने के लिये सक्षमता परीक्षा अनिवार्य है कि बालक को सिखाया-पढ़ाया नहीं गया है।
- न्यायालय ने माना कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 न्यायिक अधिकारी को बालक की सक्षमता, प्रश्नों को समझने की क्षमता और सुसंगत एवं विश्वसनीय उत्तर प्रदान करने की क्षमता का प्रारंभिक सक्षमता मूल्यांकन करने का आदेश देती है।
- न्यायालय ने कहा कि चूँकि दोषसिद्धि पूरी तरह से एक अवयस्क की अपुष्ट परिसाक्ष्य पर आधारित थी, जिसकी मानसिक क्षमता की ठीक से परीक्षा नहीं की गई थी, इसलिये दोषसिद्धि को बरकरार रखना असुरक्षित था।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि दोषसिद्धि को अपास्त किया जाना चाहिये और अभियुक्त को दोषमुक्त कर दिया जाना चाहिये।
- पीठ ने दोषसिद्धि को अपास्त कर दिया और अभियुक्त को दोषमुक्त कर दिया।
भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 118 (भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) की धारा 124) क्या है?
बारे में:
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 118 (जिसे अब भारतीय साक्षी अधिनियम, 2023 की धारा 124 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया है) साक्षियों की सक्षमता से संबंधित है।
- इस धारा में यह उपबंध करती है कि सभी व्यक्ति परिसाक्ष्य देने के लिये सक्षम होंगे, जब तक कि न्यायालय यह न समझे कि वे पूछे गए प्रश्नों को समझने या उन प्रश्नों के तर्कसंगत उत्तर देने में असमर्थ हैं।
- यह उपबंध विशेष रूप से बाल साक्षियों, मानसिक रूप से विकृत चित्त व्यक्तियों या मौखिक रूप से संवाद करने में असमर्थ व्यक्तियों पर लागू होता है।
धारा 118 भारतीय साक्ष्य अधिनियम/धारा 124 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रमुख उपबंध:
- सभी व्यक्तियों को साक्षियों के रूप में परिसाक्ष्य देने के लिये सक्षम माना जाता है।
- यदि कोई व्यक्ति पूछे गए प्रश्नों को समझने में असमर्थ हो तो उसे अक्षम माना जा सकता है।
- यदि कोई व्यक्ति प्रश्नों के तर्कसंगत उत्तर देने में असमर्थ हो तो उसे अक्षम माना जा सकता है।
- अक्षमता के कारणों में कम आयु (युवावस्था), अत्यधिक वृद्धावस्था, शारीरिक या मानसिक रोग, या कोई अन्य समान कारण सम्मिलित हैं।
- धारा 118 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अधीन स्पष्टीकरण: एक पागल व्यक्ति साक्ष्य देने के लिये अक्षम नहीं है, जब तक कि पागलपन के कारण वह प्रश्नों को समझने और युक्तिसंगत उत्तर देने में असमर्थ न हो।
- धारा 124 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अधीन स्पष्टीकरण: एक विकृत चित्त व्यक्ति परिसाक्ष्य देने के लिये अक्षम नहीं है, जब तक कि चित्त-विकृति के कारण वह प्रश्नों को समझने और युक्तिसंगत उत्तर देने में असमर्थ न हो।
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम (IEA) से भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA) में एकमात्र महत्त्वपूर्ण परिवर्तन शब्दावली में है: आधुनिक, गैर-कलंकित भाषा को प्रतिबिंबित करने के लिये "पागल" शब्द को " विकृत चित्त व्यक्ति" से परिवर्तित कर दिया गया है।
बाल साक्षियों की सक्षमता का मूल्यांकन:
- किसी बाल साक्षी का परिसाक्ष्य अभिलिखित करने से पहले विचारण न्यायालय का यह अनिवार्य कर्त्तव्य है कि वह उसकी प्रारंभिक सक्षमता का मूल्यांकन करे।
- न्यायालय को उचित प्रारंभिक जांच के माध्यम से यह सुनिश्चित करना होगा कि बालक पूछे गए प्रश्नों को समझता है।
- न्यायालय को यह आकलन करना होगा कि क्या बालक युक्तिसंगत और सुसंगत उत्तर दे सकता है।
- सक्षमता परीक्षा यह स्थापित करने के लिये की जाती है कि बालक को ट्यूशन या कोचिंग नहीं दी गई है।
- दोष सिद्ध करने के लिये बालक के परिसाक्ष्य पर विश्वास करने से पहले मूल्यांकन किया जाना चाहिये और उसे अभिलिखित किया जाना चाहिये।