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सांविधानिक विधि

आरक्षण अधिकार और आवेदन संबंधी आवश्यकताएँ

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 15-Dec-2025

बलजिंदर कौर बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य (2025) 

"आरक्षण अधिकार तभी साकार होते हैं जब उम्मीदवार वैध प्रमाण पत्रों के साथ आरक्षित पदों के लिये आवेदन करते हैंऔर सेवा नियम विज्ञापन की अस्पष्टताओं पर हावी होते हैं।" 

न्यायमूर्ति रंजन शर्मा 

स्रोत: हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय 

खबरों में क्यों? 

हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रंजन शर्मा नेबलजिंदर कौर बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य (2025) मामलेमें आरक्षित ओबीसी पद के लिये गैर-चयन को चुनौती देने वाली एक रिट याचिका को खारिज कर दियायह मानते हुए कि आरक्षण के लाभ तभी प्राप्त होते हैं जब उम्मीदवार वैध प्रमाण पत्रों के साथ आरक्षित श्रेणी के पदों के लिये सक्रिय रूप से आवेदन करते हैं। 

बलजिंदर कौर बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य और अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • याचिकाकर्ता बलजिंदर कौर बिलासपुर जिले के मजारी स्थित सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल (GSSS) में पीटीए के अंतर्गत पंजाबी शिक्षिका के रूप में कार्यरत थीं।   
  • 06.08.2010 कोबिलासपुर के शिक्षा उप निदेशक ने आवधिक आधार पर पंजाबी शिक्षकों के पदों का विज्ञापन दियाजिसमें एक पद ओबीसी श्रेणी के लिये आरक्षित था। 
  • दिनांक 21.08.2004 केप्रमाण पत्र के अनुसारयाचिकाकर्ता ओबीसी श्रेणी से संबंधित था । 
  • याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने ओबीसी आरक्षित पद के लिये आवेदन किया था लेकिन उसका चयन नहीं हुआ। 
  • प्रत्यर्थी संख्या 4 (दलजीत सिंह)जो ओबीसी श्रेणी से संबंधित थेका चयन हुआ और उन्हें 24.10.2010 को आरक्षित पद पर नियुक्त किया गया। 
  • याचिकाकर्ता ने शुरू में CWP संख्या 7643/2010 दायर की थीजिसे राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण में टीए संख्या 2636/2015 के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया था। 
  • अधिकरण के समाप्त होने के बादमामला CWPOA संख्या 1968/2019 के रूप में वापस उच्च न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया गया। 
  • याचिकाकर्ता ने दलजीत सिंह की नियुक्ति कोरद्द करने कीमांग की और आरक्षित ओबीसी पद के विरुद्ध स्वयं की नियुक्ति का दावा किया। 
  • दिनांक 24.11.2011 के अपने उत्तर हलफनामे में प्रतिवादियों ने कहा कि याचिकाकर्ता नेआरक्षित ओबीसी पद के लिये आवेदन नहीं किया था,और उन्हें कोई आवेदन (अनुलग्नक पी-10) प्राप्त नहीं हुआ था। 

न्यायालय की क्याटिप्पणियाँ थीं ? 

आरक्षित श्रेणी के लिये आवेदन पर : 

  • न्यायालय ने गौर किया कि भर्ती अधिसूचना में स्पष्ट रूप से उम्मीदवारों को अपने आवेदन के साथ आरक्षित श्रेणी प्रमाण पत्र संलग्न करने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ता ओबीसी उम्मीदवार के रूप में आवेदन करने का कोई प्रमाण प्रस्तुत करने में विफल रहा। 
  • "आरक्षित पद के लिये विचार किये जाने का आरक्षित उम्मीदवार का अधिकार तभी प्राप्त होता है और पुख्ता होता है जब आरक्षित उम्मीदवार स्वयं आरक्षित पद के लिये आवेदन करता हैअन्यथा नहीं।" 
  • न्यायालय ने निर्णय सुनाया कि केवल ओबीसी श्रेणी से संबंधित होने से आरक्षित पद पर नियुक्ति का स्वतः अधिकार प्राप्त नहीं हो जाता। याचिकाकर्ता ने ओबीसी आरक्षण के लिये आवेदन न करने का विकल्प चुना थाइसलिए सामान्य श्रेणी में असफल चयन के बाद उसे आरक्षण का दावा करने का कोई अधिकार नहीं था। 

प्रमाणपत्र की वैधता पर : 

  • न्यायालय ने याचिकाकर्ता के दिनांक 21.08.2004 के ओबीसी प्रमाण पत्र की परीक्षा की। हिमाचल प्रदेश भूमि अभिलेख नियमावली के खण्ड 28.13 के अधीनओबीसी प्रमाण पत्रों की वैधता एक वर्ष की होती है। 
  • प्रमाण पत्र की वैधता 21.08.2005 को समाप्त हो गई थीजबकि विज्ञापन 06.08.2010 को जारी किया गया था - पांच वर्ष बाद। 
  • याचिकाकर्ता विज्ञापन की तिथि पर ओबीसी का दर्जा और नॉन-क्रीमी लेयर पात्रता स्थापित करने में विफल रहीजिससे उसका दावा और भी कमजोर हो गया। 

शैक्षणिक योग्यता के संबंध में : 

  • याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि प्रत्यर्थी संख्या पंजाबी में M.A. की डिग्री न होने के कारण अपात्र था। 
  • न्यायालय ने पाया कि भर्ती नियमों में वैकल्पिक योग्यताएं निर्धारित की गई थीं (ऑनर्स सर्टिफिकेट या B.ED. के साथ B.A. ऑनर्स या ज्ञानी सर्टिफिकेट के साथ 10+2 या पंजाबी में M.A.)।  
  • चूंकि प्रत्यर्थी संख्या के पास पंजाबी विश्वविद्यालयपटियाला से ज्ञानी प्रमाण पत्र के साथ 10+2 की योग्यता थीइसलिए वह पूर्णतः पात्र था। न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि विज्ञापन में "/" का प्रयोग M.A. को अनिवार्य बनाता हैऔर यह माना कि इसे भर्ती नियमों के अनुरूप पढ़ा जाना चाहिये।  

सेवा नियम विज्ञापनों पर हावी होते हैं : 

  • न्यायालय ने यह स्थापित किया कि विज्ञापन और सेवा नियमों के बीच टकराव की स्थिति में वैधानिक नियम ही मान्य होंगे।ईएसआईसी बनाम भारत संघ (2022)औरचंद्र शेखर सिंह बनाम झारखण्ड राज्य (2025) काहवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि त्रुटिपूर्ण विज्ञापन वैधानिक योग्यताओं को रद्द नहीं कर सकते या सेवा नियमों के विपरीत अधिकार सृजित नहीं कर सकते। 

सामान्य श्रेणी के दावे और देरी पर : 

  • याचिकाकर्ता ने बाद में सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के मुकाबले उच्च योग्यता का दावा किया। 
  • न्यायालय ने इस पर निर्णय देने से इनकार कर दिया क्योंकि: (1) सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों को पक्षकार नहीं बनाया गया था, (2) चयन के बाद से 15 वर्ष से अधिक समय बीत चुका थाऔर (3) इस स्तर पर पक्षकार बनाने में देरी और लापरवाही हुई थी। 

अंतिम निर्णय : 

  • न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी और प्रत्यर्थी संख्या की नियुक्ति को बरकरार रखा। 
  • याचिकाकर्ता का चयन न होने का कारण यह बताया गया कि उसने संबंधित समय पर वैध प्रमाण पत्र के साथ ओबीसी-आरक्षित पद के लिये आवेदन नहीं किया था। 

भारत में आरक्षण से संबंधित प्रमुख प्रावधान क्या हैं? 

के बारे में: 

  • आरक्षण एक प्रकार का सकारात्मक भेदभाव है जिसका उद्देश्य हाशिए पर पड़े समूहों के लिये समानता को बढ़ावा देना और सामाजिक और ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना है। यह वंचित समुदायों के उत्थान के लिये शिक्षा और रोजगार में तरजीही व्यवहार प्रदान करता है। 

मुख्य प्रावधान:   

  • भारत के संविधानमें  सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने और ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों के लिये पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु विभिन्न प्रावधान शामिल हैं। 
  • ये प्रावधान  भाग III (मौलिक अधिकार) और भाग XVI (कुछ वर्गों से संबंधित विशेष प्रावधान) में लागू होते हैं। 

आरक्षण संबंधी भाग III के अंतर्गत अनुच्छेद: 

  • अनुच्छेद 15(3):  राज्य को महिलाओं और बच्चों के लिये विशेष प्रावधान करने का अधिकार देता है।   
  • अनुच्छेद 15(4):  राज्य को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सहित सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिये विशेष प्रावधान करने में सक्षम बनाता है। 
  • अनुच्छेद 15(5):  सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गोंअनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये शैक्षणिक संस्थानों (निजीगैर-सहायता प्राप्त संस्थानों सहितलेकिन अल्पसंख्यक संस्थानों को छोड़कर) में आरक्षण की अनुमति देता है। 
  • अनुच्छेद 15(6):  103वें संवैधानिक संशोधन (2019) के माध्यम से पेश किया गयाराज्य को अनारक्षित श्रेणियों में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिये आरक्षण सहित विशेष प्रावधान करने की अनुमति देता है। 
  • अनुच्छेद 16(4):  राज्य सेवाओं में पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व न करने वाले किसी भी पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिये नियुक्तियों/पदों में आरक्षण की अनुमति देता है। 
  • अनुच्छेद 16(4):  अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये पदोन्नति में आरक्षण की अनुमति देता है (77वां संशोधन अधिनियम, 1995, 85वें संशोधन अधिनियम, 2001 द्वारा परिणामी वरिष्ठता को शामिल करने के लिये संशोधित)।
  • अनुच्छेद 16(4):  राज्य को 50% की सीमा का उल्लंघन किये बिना पिछले वर्षों से रिक्त आरक्षित रिक्तियों को आगे ले जाने की (अग्रनयनअनुमति देता है (81वां संशोधन अधिनियम, 2000)।  
  • अनुच्छेद 16(6):  पिछड़े वर्ग के आरक्षण से अलग, EWS के लिये लोक नियोजन में आरक्षण का प्रावधान करता है। 
  • आरक्षण संबंधी भाग XVI के अंतर्गत अनुच्छेद: 
  • अनुच्छेद 330 और 332: क्रमशः लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान करते हैं। 
  • अनुच्छेद 233:   प्रत्येक नगरपालिका मेंअनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये सीटोंका आरक्षण सुनिश्चित करता है । 
  • अनुच्छेद 243: प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति  के लिये आरक्षण अनिवार्य करता है  ।  
  • अनुच्छेद 335: इसमें कहा गया है कि  प्रशासनिक दक्षता बनाए रखने के अनुरूप सार्वजनिक सेवाओं और पदों पर नियुक्तियां करते समय अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियोंके दावों को  ध्यान में रखा जाएगा । 

आरक्षण के विकास की समयरेखा 

1950-1951 

संविधान का प्रारंभ और प्रथम संशोधन के अनुच्छेद 15 में दिये गए सक्षम प्रावधान 

और ओबीसीएससी और एसटी के उत्थान के लिये विशेष प्रावधान करने हेतु अनुच्छेद 16  

  1982 

केंद्रीय शिक्षण संस्थानों और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिये आरक्षण क्रमशः 15% और 7.5% निर्धारित किया गया है। 

  1990 

केंद्र सरकार द्वारा संचालित नौकरियों में ओबीसी के लिये 27% आरक्षण लागू किया गया है। 

मंडल आयोग की सिफारिश 

   2005 

93वें संवैधानिक संशोधन ने अनुच्छेद 15(5) को शामिल कियाजिससे ओबीसी के लिये आरक्षण संभव हो सका। 

निजी संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य। 

    2019 

103वें संवैधानिक संशोधन ने अनुच्छेद 15(6) और 16(6) को जोड़ाजिससे 10% तक की छूट संभव हो गई। 

अनारक्षित श्रेणी में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिये आरक्षण। 

शैक्षणिक संस्थान और लोक नियोजन 

आरक्षण पर न्यायिक दृष्टिकोण: 

  • मद्रास राज्यबनाम श्रीमती चंपाकम दोरैराजन (1951) का मामला आरक्षण के मुद्दे परउच्चतम न्यायालयका पहला महत्वपूर्ण मामला था। इस मामले के परिणामस्वरूप संविधान में पहला संशोधन हुआ। 
  • उच्चतम न्यायालय ने बताया कि राज्य के अधीन रोजगार के मामले में अनुच्छेद 16(4) पिछड़े वर्ग के नागरिकों के पक्ष में आरक्षण प्रदान करता हैजबकि अनुच्छेद 15 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं किया गया है। 
  • मामले में उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुसारसंसद नेअनुच्छेद 15 में खण्ड (4) जोड़कर संशोधन किया। 
  • इंद्र साहनी बनाम भारत संघ (1992)मामले मेंन्यायालय ने अनुच्छेद 16(4) के दायरे और सीमा की जांच की। 
  • न्यायालय ने कहा है किओबीसी के क्रीमी लेयर कोआरक्षण के लाभार्थियों की सूची से बाहर रखा जाना चाहियेपदोन्नति में आरक्षण नहीं होना चाहिये और कुल आरक्षित कोटा 50% से अधिक नहीं होना चाहिये।  
  • संसद ने77 वेंसंवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1995 कोअधिनियमित करके जवाब दिया जिसनेअनुच्छेद 16(4क) को पेश किया। 
  • यह अनुच्छेद राज्य को सार्वजनिक सेवाओं में पदोन्नति के दौरान अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों के पक्ष में सीटें आरक्षित करने का अधिकार प्रदान करता हैयदि लोक नियोजन में इन समुदायों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। 
  • उच्चतम न्यायालय नेएम. नागराज बनाम भारत संघ (2006)मामले मेंअनुच्छेद 16(4क) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखतेहुए कहा कि ऐसी कोई भी आरक्षण नीति संवैधानिक रूप से वैध होने के लिये निम्नलिखित तीन संवैधानिक आवश्यकताओं को पूरा करेगी: 
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा होना चाहिये ।  
  • लोक नियोजन में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। 
  • ऐसी आरक्षण नीति से प्रशासन की समग्र कार्यक्षमता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। 
  • जरनैल सिंह बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता मामले (2018)में , उच्चतम न्यायालय ने यह माना कि पदोन्नति में आरक्षणके लिये राज्य को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के पिछड़ेपन पर मात्रात्मक डेटा एकत्र करने कीआवश्यकता नहीं है। 
  • न्यायालय ने धारित किया कि क्रीमी लेयर के अधीन आरक्षण का प्रावधान अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति पर भी लागू होता हैऔर इसलिए राज्यअपने समुदाय की क्रीमी लेयर से संबंधित अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों कोपदोन्नति में आरक्षण नहीं दे सकता है । 
  • जनहित अभियान बनाम भारत संघ (2022) मामलेमें 103वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। उच्चतम न्यायालय ने103 वेंसंवैधानिक संशोधनकी वैधता को बरकरार रखा । 
  • न्यायालय नेअनुच्छेद 15 और 16 में संशोधन करके 103वें संविधान (संशोधन) अधिनियम, 2019 के अधीन10% EWS आरक्षण लागू किया। 
  • इसमेंअनुच्छेद 15 (6) और अनुच्छेद 16 (6) शामिल किये गए।