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आपराधिक कानून
आपराधिक मानव वध
« »27-Mar-2024
परिचय:
आपराधिक मानव वध मानवता के विरूद्ध सबसे गंभीर अपराधों में से एक है। कल्पेबल शब्द लैटिन शब्द "कल्पे" से आया है, जो सज़ा का प्रतीक है। लैटिन शब्द "होमो + सीडा", जिसका अर्थ है मानव + हत्या, यहीं से मानव वध शब्द की उत्पत्ति हुई है। इसका तात्पर्य मानव द्वारा मानव की हत्या करने से है। मानव वध विधियुक्त या विधिविरुद्ध हो सकता है। भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) आपराधिक मानव वध के प्रावधान से संबंधित है।
IPC की धारा 299:
- यह धारा आपराधिक मानव वध से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जो कोई मृत्यु कारित करने के आशय से, या ऐसी शारीरिक क्षति कारित करने के आशय से, जिससे मृत्यु कारित हो जाना संभाव्य हो, या यह ज्ञान रखते हुए कि यह संभाव्य है कि वह उस कार्य से मृत्यु कारित कर दे, कोई कार्य करके मृत्यु कारित कर देता है, वह आपराधिक मानव वध का अपराध करता है।
- स्पष्टीकरण 1- वह व्यक्ति, जो किसी दूसरे व्यक्ति को, जो किसी विकार रोग या अंगशैथिल्य से ग्रस्त है, शारीरिक क्षति कारित करता है और तद्द्द्वारा उस दूसरे व्यक्ति की मृत्यु त्वरित कर देता है, उसकी मृत्यु कारित करता है, यह समझा जाएगा।
- स्पष्टीकरण 2- जहाँ कि शारीरिक क्षति से मृत्यु कारित की गई हो, वहाँ जिस व्यक्ति ने, ऐसी शारीरिक क्षति कारित की हो, उसने वह मृत्यु कारित की है, यह समझा जाएगा, यद्यपि उचित उपचार और कौशलपूर्ण चिकित्सा करने से वह मृत्यु रोकी जा सकती थी।
- स्पष्टीकरण 3- माँ के गर्भ में स्थित किसी शिशु की मृत्यु कारित करना मानव वध नहीं है। किंतु किसी जीवित शिशु की मृत्यु कारित करना आपराधिक मानव वध की कोटि में आ सकेगा, यदि उस शिशु का कोई भाग माँ के गर्भ से बाहर निकल आया हो, यद्यपि उस शिशु ने श्वास न ली हो या वह पूर्णतः उत्पन्न न हुआ हो।
दृष्टांत:
- A एक गड्ढे पर लकड़ियाँ और घास इस आशय से बिछाता है कि तद्द्द्वारा मृत्यु कारित करे या यह ज्ञान रखते हुए बिछाता है कि संभाव्य है कि तद्द्द्वारा मृत्यु कारित हो। Z यह विश्वास करते हुए कि वह भूमि सुदृढ़ है उस पर चलता है, उसमें गिर पड़ता है और मारा जाता है। A ने आपराधिक मानव वध का अपराध किया है।
- A यह जानता है कि Z एक झाड़ी के पीछे है, लेकि B यह नहीं जानता। Z की मृत्यु कारित करने के आशय से या यह जानते हुए कि उससे Z की मृत्यु कारित होना संभाव्य है, B को उस झाड़ी पर गोली चलाने के लिये, A उत्प्रेरित करता है। B गोली चलाता है और Z को मार डालता है । यहाँ, यह हो सकता है कि B किसी भी अपराध का दोषी न हो, किंतु A ने आपराधिक मानव वध का अपराध किया है।
आपराधिक मानव वध के आवश्यक संघटक:
- आपराधिक मानव वध के आवश्यक संघटक निम्नलिखित हैं:
- एक मानव की मृत्यु कारित होनी चाहिये।
- वह मृत्यु किसी अन्य व्यक्ति के कृत्य के कारण होनी चाहिये।
- मृत्यु कारित करने वाला कृत्य निम्नलिखित के साथ किया गया होना चाहिये:
- मृत्यु कारित करने का आशय; अथवा
- शारीरिक क्षति कारित करने का आशय जिससे मृत्यु होना संभाव्य हो; अथवा
- इस ज्ञान के साथ कि इस तरह के कृत्य से मृत्यु कारित होने की संभावना है।
हत्या की कोटि में न आने वाला आपराधिक मानव वध:
- IPC की धारा 300 के अपवाद, कुछ ऐसे मामलों की गणना करते हैं जिनमें आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है:
- यदि अपराधी गंभीर और अचानक उकसावे के कारण आत्म-नियंत्रण की शक्ति से वंचित हो जाता है तथा उकसाने वाले व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है या गलती या दुर्घटना से किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता है, तो यह आपराधिक मानव वध नहीं है। यह अपवाद निम्नलिखित प्रावधानों के अधीन है:
- अपराधी द्वारा उकसावे की मांग नहीं की गई है या स्वेच्छा से उकसाया नहीं गया है।
- विधि का पालन करते हुए या किसी लोक सेवक द्वारा ऐसे लोक सेवक की शक्तियों के वैध प्रयोग में किये गए किसी भी काम से उकसावे की कार्रवाई नहीं की जाती है।
- निजी प्रतिरक्षा के अधिकार के वैध प्रयोग में की गई किसी भी बात से उकसावे के लिये कार्रवाई नहीं की जाती है।
- यदि यह निजी प्रतिरक्षा के अधिकार का प्रयोग करता है तो आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है।
- आपराधिक मानव वध, हत्या नहीं है, अगर यह लोक सेवक द्वारा सद्भावना से किया गया हो।
- आपराधिक मानव वध, हत्या नहीं है अगर यह बिना किसी पूर्व चिंतन के, अचानक झगड़े पर आवेश में आकर की किया गया हो।
- आपराधिक मानव वध हत्या नहीं है जब जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है, वह अट्ठारह वर्ष से अधिक आयु का होने पर भी मृत्यु को प्राप्त होता है या अपनी सहमति से मृत्यु का ज़ोखिम उठाता है।
गलती या दुर्घटना से आपराधिक मानव वध:
- IPC की धारा 301 जिस व्यक्ति की मृत्यु कारित करने का आशय था उससे भिन्न व्यक्ति की मृत्यु करके आपराधिक मानव वध से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति कोई ऐसी बात करके, जिससे उसका आशय मृत्यु कारित करना हो, या जिससे वह जानता हो कि मृत्यु कारित होना संभाव्य है, किसी व्यक्ति की मृत्यु कारित करके, जिसकी मृत्यु कारित करने का न तो उसका आशय हो और न वह यह संभाव्य जानता हो कि वह उसकी मृत्यु कारित करेगा, आपराधिक मानव वध करे, तो अपराधी द्वारा किया गया आपराधिक मानव वध उस भाँति का होगा जिस भाँति का वह होता, यदि वह उस व्यक्ति की मृत्यु कारित करता जिसकी मृत्यु कारित करना उसके द्वारा आशयित था या वह जानता था कि उस द्वारा उसकी मृत्यु कारित होना संभाव्य है।
हत्या की कोटि में न आने वाला आपराधिक मानव वध के लिये सज़ा:
- IPC की धारा 304 आपराधिक मानव वध की सज़ा से संबंधित है।
- IPC की धारा 304 को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है: धारा 304 (भाग I) और धारा 304 (भाग II)।
- धारा 304 (भाग I) में कहा गया है कि, जो कोई ऐसा आपराधिक मानव वध करेगा, जो हत्या की कोटि में नहीं आता है, यदि वह कार्य जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई है, मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु होना संभाव्य है, कारित करने के आशय से किया जाए, तो वह आजीवन कारावास से, या दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और ज़ुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
- धारा 304 (भाग II) में कहा गया है कि, यदि वह कार्य इस ज्ञान के साथ कि उससे मृत्यु कारित करना संभाव्य है, किंतु मृत्यु या ऐसी शारीरिक क्षति, जिससे मृत्यु कारित करना संभाव्य है, कारित करने के किसी आशय के बिना किया जाए, तो वह दोनों में से किसी भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, या ज़ुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
निर्णयज विधि:
- नारा सिंह चालान बनाम उड़ीसा राज्य (1997) मामले में, उड़ीसा उच्च न्यायालय ने माना है कि IPC की धारा 299 वर्ग है और IPC की धारा 300 प्रजाति है। इसलिये, हत्या की कोटि में नहीं आने वाले आपराधिक मानव वध के संबंध में कोई स्वतंत्र धाराएँ नहीं हैं।
- कुसा माझी बनाम उड़ीसा राज्य (1985) मामले में, न्यायालय ने इसे हत्या की कोटि में न आने वाला आपराधिक मानव वध माना, क्योंकि इससे शारीरिक क्षति हुई थी जिससे मृत्यु होने की संभावना थी। न्यायालय ने यह भी कहा कि यह अचानक हुआ था और पूर्व नियोजित नहीं था।