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वाणिज्यिक विधि

मध्यस्थ नियुक्ति आदेश के विरुद्ध कोई पुनर्विलोकन या अपील नहीं

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 01-Dec-2025

हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड बनाम बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड और अन्य 

"एक बार मध्यस्थ नियुक्त हो जाने के बादमध्यस्थता प्रक्रिया निर्बाध रूप से आगे बढ़नी चाहिये। धारा 11 के अधीन किसी आदेश के पुनर्विलोकन या अपील के लिये कोई सांविधिक प्रावधान नहीं हैजो एक सचेत विधायी विकल्प को दर्शाता है।" 

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और आर. महादेवन 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड बनाम बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड और अन्य (2025)के मामले में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ नेनिर्णय दिया कि माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 के अधीन मध्यस्थ नियुक्त करने के आदेश के विरुद्ध कोई पुनर्विलोकन या अपील नहीं की जा सकती है। 

हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड बनाम बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड और अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी (HCC) और बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड (BRPNNL) के बीच 2014 के एक संविदा को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। 
  • संविदा में माध्यस्थम् खण्ड का प्रयोग पहले भी एक विवाद में किया गया थाजिसके परिणामस्वरूप अंतिम निर्णय हुआजिसका दोनों पक्षकारों द्वारा सम्मान किया गया। 
  • जब दूसरा विवाद सामने आयातो हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी (HCC) ने उसी माध्यस्थम् खण्ड का उपयोग किया और बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड (BRPNNL) के प्रबंध निदेशक से मध्यस्थ नियुक्त करने का अनुरोध किया। 
  • प्रबंध निदेशक द्वारा अनुरोध पर कार्रवाई करने में असफल रहने के बादहिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी (HCC) ने माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम की धारा 11 के अधीन पटना उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।  
  • 2021 मेंपटना उच्च न्यायालय ने विवाद को सुलझाने के लिये न्यायमूर्ति शिवाजी पांडे (सेवानिवृत्त) को एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया। 
  • दोनों पक्षकारों ने तीन वर्षों से अधिक समय तक माध्यस्थम् कार्यवाही में सक्रिय रूप से भाग लिया तथा 70 से अधिक सुनवाइयों में भाग लिया।  
  • दोनों पक्षकारों ने संयुक्त रूप से कई अवसरों पर अधिनियम की धारा 29क के अधीन मध्यस्थ के कार्यकाल में विस्तार की मांग की। 
  • 2024 की शुरुआत मेंजब बहस लगभग पूरी हो गई थीबिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड (BRPNNL) ने माध्यस्थम् करार के अस्तित्व को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय के समक्ष एक पुनर्विलोकन याचिका दायर की।  
  • पटना उच्च न्यायालय ने पुनर्विलोकन याचिका स्वीकार कर लीचल रही माध्यस्थम् कार्यवाही को निलंबित कर दियाऔर तत्पश्चात हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी (HCC) की मूल धारा 11 याचिका को खारिज कर दिया।    
  • इस निर्णय से व्यथित होकर हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन कंपनी (HCC) ने उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की। 

न्यायालय की टिप्पणियां  

  • न्यायालय ने कहा कि एक बार जब पटना उच्च न्यायालय ने धारा 11(6) के अधीन 2021 में मध्यस्थ नियुक्त कर दियातो यह पदेन कार्यात्मक हो गया और वह अपने आदेश को पुन: नहीं खोल सकता या उसका पुनर्विलोकन नहीं कर सकता। 
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यद्यपि उच्च न्यायालयों के पास सीमित पुनर्विलोकन शक्तियां हैंकिंतु माध्यस्थम् के मामलों में ऐसी शक्तियां अत्यंत सीमित हैं और इसका प्रयोग केवल अभिलेख में स्पष्ट त्रुटि को सुधारने या किसी अनदेखी तथ्य को संबोधित करने के लिये किया जा सकता हैन कि विधि के निष्कर्षों पर पुनर्विचार करने के लिये।  
  • न्यायालय ने कहा कि धारा 11 के अधीन किसी आदेश के पुनर्विलोकन या अपील के लिये कोई सांविधिक प्रावधान नहीं हैजो एक सचेत विधायी विकल्प को दर्शाता है कि एक बार मध्यस्थ नियुक्त हो जाने के पश्चात्माध्यस्थम् प्रक्रिया निर्बाध रूप से आगे बढ़नी चाहिये 
  • न्यायालय ने कहा कि बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड (BRPNNL) के पास उपलब्ध उचित उपचार अधिकरण के समक्ष धारा 16 का प्रयोग करना या अनुच्छेद 136 के अधीन विशेष अनुमति याचिका दायर करना हैन कि पुनर्विलोकन याचिका दायर करना। 
  • तीन वर्षों तक माध्यस्थम् कार्यवाही में पूर्ण रूप से भाग लेने के बादजिसमें मध्यस्थ के अधिदेश को बढ़ाने के लिये संयुक्त आवेदन भी सम्मिलित हैबिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड (BRPNNL) को पुनर्विलोकन के माध्यम से मामले को पुनः खोलने से रोक दिया गया था। 
  • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि उच्च न्यायालय द्वारा अपने ही नियुक्ति आदेश को भूतलक्षी रूप से अमान्य घोषित करने से निश्चितता कमजोर हुईन्यायिक आदेशों की पवित्रता कमजोर हुईतथा माध्यस्थम् में न्यूनतम न्यायिक हस्तक्षेप के सिद्धांत का खंडन हुआ।  
  • उच्चतम न्यायालय ने पटना उच्च न्यायालय के पुनरीक्षण आदेश को अपास्त कर दिया तथा अपील को स्वीकार कर लियाजिससे माध्यस्थम् कार्यवाही जारी रह सके।  

माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 11 क्या है? 

  • मध्यस्थों की राष्ट्रीयता: 
    • किसी भी राष्ट्रीयता का कोई भी व्यक्ति मध्यस्थ हो सकता हैजब तक कि दोनों पक्ष में अन्यथा करार न हों। 
    • नियुक्ति प्रक्रिया: 
    • उपधारा (6) के अधीनपक्षकार मध्यस्थों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर करार करने के लिये स्वतंत्र हैं। 
    • किसी करार के अभाव मेंतीन मध्यस्थ अधिकरण के लियेप्रत्येक पक्षकार एक मध्यस्थ नियुक्त करता हैऔर दो नियुक्त मध्यस्थ तीसरे (अध्यक्ष) मध्यस्थ का चयन करते हैं। 
  • मध्यस्थ संस्थाओं की भूमिका: 
    • उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय मध्यस्थों की नियुक्ति के लिये श्रेणीबद्ध मध्यस्थ संस्थाओं को नामित कर सकते हैं। 
    • जिन न्यायक्षेत्रों में श्रेणीबद्ध संस्थाएँ नहीं हैंवहाँ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मध्यस्थों का एक पैनल बना सकते हैं। 
    • इन मध्यस्थों को मध्यस्थ संस्थाएँ माना जाता है तथा वे चौथी अनुसूची में निर्दिष्ट शुल्क के हकदार होते हैं। 
  • विफलता की स्थिति में नियुक्ति: 
    • यदि कोई पक्षकार अनुरोध प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर मध्यस्थ नियुक्त करने में विफल रहता हैया यदि दो नियुक्त मध्यस्थ 30 दिनों के भीतर तीसरे पर सहमत होने में विफल रहते हैंतो नियुक्ति नामित मध्यस्थ संस्था द्वारा की जाती है। 
    • अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थम् के लिये उच्चतम न्यायालय संस्था को नामित करता हैअन्य मध्यस्थताओं के लिये उच्च न्यायालय ऐसा करता है। 
  • एकमात्र मध्यस्थ की नियुक्ति: 
    • यदि पक्षकार 30 दिनों के भीतर एकमात्र मध्यस्थ पर करार करने में विफल रहते हैंतो नियुक्ति उपधारा (4) के अनुसार की जाती है। 
  • करार प्रक्रिया के अधीन कार्य करने में विफलता: 
    • यदि कोई पक्षनियुक्त मध्यस्थया नामित व्यक्ति/संस्था करार प्रक्रिया के अधीन कार्य करने में विफल रहता हैतो न्यायालय द्वारा नामित मध्यस्थ संस्था नियुक्ति करती है। 
  • प्रकटीकरण आवश्यकताएँ: 
    • मध्यस्थ नियुक्त करने से पहलेमध्यस्थ संस्था को धारा 12(1) के अनुसार भावी मध्यस्थ से लिखित प्रकटीकरण प्राप्त करना होगा। 
    • संस्था को पक्षकारों के करार और प्रकटीकरण की विषय-वस्तु द्वारा अपेक्षित किसी भी योग्यता पर विचार करना होगा। 
  • अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थम्: 
    • अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थम् में एकमात्र या तीसरे मध्यस्थ की नियुक्ति के लियेनामित संस्था पक्षकारों से भिन्न राष्ट्रीयता वाले मध्यस्थ की नियुक्ति कर सकती है। 
  • एकाधिक नियुक्ति अनुरोध: 
    • यदि विभिन्न संस्थाओं से कई अनुरोध किए जाते हैंतो पहला अनुरोध प्राप्त करने वाली संस्था ही नियुक्ति करने के लिए सक्षम होगी। 
  • नियुक्ति हेतु समय-सीमा: 
    • मध्यस्थ संस्था को नियुक्ति के लिये आवेदन का निपटारा विपक्षी पक्षकार को नोटिस देने के 30 दिनों के भीतर करना होगा। 
  • शुल्क अवधारण: 
    • मध्यस्थ संस्थाचौथी अनुसूची में दी गई दरों के अधीनमध्यस्थ अधिकरण की फीस और संदाय पद्धति अवधारित करती है। 
    • यह अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थताओं पर लागू नहीं होता है या जहाँ पक्षकार मध्यस्थ संस्था के नियमों के अनुसार फीस अवधारण पर करार हो गए हों। 
  • न्यायिक शक्ति का गैर-प्रत्यायोजन: 
    • उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति या संस्था को नामित करना न्यायिक शक्ति का प्रत्यायोजन नहीं माना जाता है।