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आपराधिक कानून
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 107
« »17-Jun-2025
सुल्तान सईद इब्राहिम बनाम प्रकाशन एवं अन्य "भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 107 के अनुसार, किसी अपराध का अन्वेषण करने वाले पुलिस अधिकारी को किसी भी ऐसी संपत्ति की कुर्की के लिये अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करना होता है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: अपराधी क्रियाकलाप या अपराध के घटित होने से प्राप्त हुई है।" न्यायमूर्ति वी.जी. अरुण |
स्रोत: केरल उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति वी.जी. अरुण की पीठ ने निर्णय दिया कि दण्ड प्रक्रिया संहिता में अपराध के आगम को अभिग्रहण करने या कुर्की करने का कोई उपबंध नहीं है, जो अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 107 में निहित है।
- केरल उच्च न्यायालय ने हेडस्टार ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड बनाम केरल राज्य (2025) मामले में यह निर्णय सुनाया ।
हेडस्टार ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड बनाम केरल राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- संयुक्त अरब अमीरात स्थित कंपनी मेसर्स एप्पल मिडिल ईस्ट जनरल ट्रेडिंग एल.एल.सी., जो अब इस मामले में तीसरी प्रत्यर्थी है, खाद्यान्न और खाद्य पदार्थों के आयात और निर्यात में सम्मिलित है।
- हेडस्टार ट्रेडिंग एल.एल.पी. के माध्यम से, तीसरे प्रत्यर्थी ने स्पेज़िया ऑर्गेनिक कॉन्डीमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड को कोच्चि से संयुक्त अरब अमीरात (UAE) तक 378 मीट्रिक टन चीनी के निर्यात के लिये ऑर्डर दिया।
- माल के अग्रिम संदाय के रूप में, तीसरे प्रत्यर्थी ने आई.डी.बी.आई. बैंक (IDBI Bank), कोच्चि में स्पेज़िया ऑर्गेनिक कॉन्डीमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड के खाते में ₹49.53 लाख भेजे।
- शिपमेंट 30 दिनों के भीतर पहुँचाने का वादा किया गया था, किंतु चीनी कभी नहीं भेजी गई।
- पूछताछ में पता चला कि सरकारी नीति में बदलाव के कारण अब भारत से चीनी का निर्यात नहीं किया जा सकता - यह तथ्य आपूर्तिकर्त्ता ने सौदा करते समय छुपाया था।
- राशि वापस करने का वचन करने के होते हुए भी, स्पेज़िया ऑर्गेनिक कॉन्डीमेंट्स प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक ऐसा करने में असफल रहे।
- परिणामस्वरूप, तीसरे प्रत्यर्थी ने परिवाद दर्ज कराया जिसके कारण कलमस्सेरी पुलिस थाने में भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 406, 420 सहपठित धारा 34 के अधीन अपराध संख्या 732/2024 दर्ज किया गया ।
- यह पाया गया कि अग्रिम राशि में से ₹46,50,525 मेसर्स हेडस्टार ट्रेडिंग एल.एल.पी. को अंतरित कर दिये गए , जिसने बदले में ₹52,44,750 हेडस्टार ग्लोबल प्राइवेट लिमिटेड को अंतरित कर दिये , जो वर्तमान कार्यवाही में याचिकाकर्त्ता है।
- तत्पश्चात् , पुलिस ने एक नोटिस (परिशिष्ट 'B') जारी किया जिसमें बैंक को याचिकाकर्त्ता के खाते से डेबिट फ्रीज करने का निदेश दिया गया । याचिकाकर्त्ता ने परिशिष्ट 'C' के माध्यम से मजिस्ट्रेट के समक्ष इसे चुनौती दी, जिसे परिशिष्ट 'D' आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- महाराष्ट्र राज्य बनाम तापस डी. नियोगी (1999) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि यदि किसी खाते में जमा धन का किसी अपराध से संबद्ध होने का संदेह हो तो पुलिस अधिकारी दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 102 के अंतर्गत बैंक खाते को अभिगृहीत कर सकता है या उसके परिचालन पर रोक लगा सकता है।
- न्यायालय ने इस मामले में निर्णय दिया कि इस उपबंध के अधीन बैंक खातों को “संपत्ति” माना जाता है।
- न्यायालय ने आगे कहा कि धारा 102(1) के अधीन पुलिस अधिकारी किसी भी संपत्ति को अभिगृहीत कर सकता है, जिसके चोरी होने या अपराध में सम्मिलित होने का संदेह हो। यद्यपि, यदि ऐसा कोई संदेह नहीं है, तो अभिग्रहण अस्वीकार्य है।
- न्यायालय ने टिप्पणी की कि दण्ड प्रक्रिया संहिता में अध्याय 7-क के अंतर्गत सीमा-पार मामलों के सिवाय अपराध के आगम की कुर्की या समपहरण के लिये स्पष्ट उपबंधों का अभाव है। भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) में धारा 107 को अधिनियमित करके इस कमी को दूर किया गया है।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 107 के संबंध में न्यायालय ने निर्णय दिया कि पुलिस अधिकारी को अपराध के आगम होने का संदेह होने पर संपत्ति की कुर्की के लिये मजिस्ट्रेट के पास आवेदन करना चाहिये। मजिस्ट्रेट नोटिस जारी कर सकता है और पक्षकारों को सुनने के पश्चात्, व्ययन को रोकने के लिये कुर्की आदेश या अंतरिम एकपक्षीय आदेश भी पारित कर सकता है।
- न्यायालय ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 106 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 107 के बीच अंतर भी स्पष्ट किया।
- भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 106 (दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 102 के समरूप है) पुलिस को साक्ष्य के तौर पर संपत्ति कुर्क करने की अनुमति देती है। इसके विपरीत, धारा 107 के अधीन आपराध के आगम को कुर्क करने, उसे संरक्षित करने और समपहरण करने के लिये मजिस्ट्रेट के अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
- वर्तमान तथ्यों के अनुसार पुलिस ने संदिग्ध निधि अंतरण की श्रृंखला के आधार पर याचिकाकर्त्ता के बैंक खाते को फ्रीज कर दिया।
- न्यायालय ने कहा कि यदि धनराशि पर अपराध के आगम का संदेह है, तो भी ऐसी धनराशि की जब्ती करने के लिये भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 107 के अधीन प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिये।
- इस प्रकार उच्च न्यायालय ने याचिका को स्वीकार कर लिया, विवादित डेबिट फ्रीज आदेश को रद्द कर दिया, तथा स्पष्ट किया कि पुलिस को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 107 का पालन करते हुए, यदि आवश्यक हो तो कुर्की के लिये मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करना चाहिये।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 107 क्या है?
- यह ध्यान देने योग्य है कि दण्ड प्रक्रिया संहिता में अपराध के आगम को अभिग्रहण करने या कुर्क करने का कोई उपबंध नहीं है, सिवाय अध्याय 7-क के, जो संविदाकारी राज्य में संपत्ति की कुर्की और समपहरण में सहायता के लिये अन्य देशों के साथ व्यतिकारी व्यवस्था से संबंधित है।
- दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 102 को धारा 106 के रूप में बनाए रखने तथा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में धारा 107 को सम्मिलित इस कमी को दूर किया गया है।
- इस प्रकार, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 107 एक नया जोड़ा गया उपबंध है।
- धारा 107 (1) उपबंधित करती है कि:
- यदि पुलिस अधिकारी को यह विश्वास करने का कारण है कि कोई संपत्ति प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: किसी अपराधी क्रियाकलाप के परिणामस्वरुप या अपराध से प्राप्त हुई है, तो वह उसकी कुर्की की मांग कर सकता है।
- ऐसा करने से पहले पुलिस अधिकारी को पुलिस अधीक्षक या आयुक्त से अनुमोदन प्राप्त करना होगा।
- तत्पश्चात् अधिकारी को उस न्यायालय या मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन करना होगा जिसके पास मामले का संज्ञान लेने या सुनवाई करने की अधिकारिता है।
- धारा 107 (2) उपबंधित करती है कि:
- यदि न्यायालय या मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण है कि विचाराधीन संपत्ति अपराध के आगमों से अर्जित हो सकती है, तो वे आगे की कार्रवाई शुरू कर सकते हैं।
- ऐसा विश्वास साक्ष्य लेने से पूर्व या पश्चात् भी किया जा सकता है।
- न्यायालय या मजिस्ट्रेट संबंधित व्यक्ति को नोटिस जारी कर यह बताने के लिये कह सकता है कि संपत्ति को कुर्क क्यों न किया जाए।
- व्यक्ति को कारण बताओ नोटिस का उत्तर देने के लिये चौदह दिन का समय दिया गया है।
- धारा 107 (3) उपबंधित करती है कि:
- यदि उपधारा (2) के अंतर्गत नोटिस में उल्लेख किया गया है कि कोई संपत्ति मुख्य व्यक्ति की ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा धारण की गई है, तो उस अन्य व्यक्ति को भी सूचित किया जाना चाहिये।
- नोटिस की एक प्रति मुख्य व्यक्ति की ओर से संपत्ति रखने वाले व्यक्ति को दी जानी चाहिये।
- धारा 107 (4) उपबंधित करती है कि:
- न्यायालय या मजिस्ट्रेट कारण बताओ नोटिस के स्पष्टीकरण और उपलब्ध तथ्यों पर विचार करने के पश्चात् कुर्की का आदेश पारित कर सकता है।
- संबंधित व्यक्ति या व्यक्तियों को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाना चाहिये।
- यदि यह पाया जाता है कि संपत्ति अपराध से अर्जित की गई है तो कुर्की आदेश जारी किया जा सकता है।
- यदि व्यक्ति चौदह दिनों के भीतर उपस्थित नहीं होता है या अपना मामला प्रस्तुत नहीं करता है, तो न्यायालय या मजिस्ट्रेट एकपक्षीय कुर्की आदेश पारित कर सकता है।
- धारा 107 (5) उपबंधित करती है कि:
- यदि न्यायालय या मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण है कि उपधारा (2) के अंतर्गत नोटिस जारी करने से कुर्की या अधिग्रहण का उद्देश्य असफल हो जाएगा, तो वे अंतरिम एकपक्षीय आदेश पारित कर सकते हैं।
- यह अंतरिम आदेश बिना किसी पूर्व सूचना के संपत्ति की कुर्की या अधिग्रहण का निदेश दे सकता है।
- अंतरिम आदेश उपधारा (6) के अंतर्गत अंतिम आदेश पारित होने तक प्रवृत्त रहेगा।
- धारा 107 (6) उपबंधित करती है कि:
- यदि न्यायालय या मजिस्ट्रेट यह निर्धारित करता हैं कि कुर्क या अभिगृहीत की गई संपत्ति अपराध की आगम है, तो वे तदनुसार आदेश जारी करेंगे।
- आदेश में जिला मजिस्ट्रेट को निदेश दिया जाएगा कि वह अपराध से प्राप्त आगम को अपराध से प्रभावित व्यक्तियों के बीच समान रूप से वितरित करें।
- धारा 107 (7) उपबंधित करती है कि:
- उपधारा (6) के अंतर्गत आदेश प्राप्त होने पर जिला मजिस्ट्रेट को अपराध के आगम का वितरण साठ दिन के भीतर करना होगा।
- जिला मजिस्ट्रेट स्वयं वितरण कार्य कर सकते हैं या अपने अधीनस्थ अधिकारी को ऐसा करने के लिये प्राधिकृत कर सकते हैं।
- धारा 107 (8) उपबंधित करती है कि:
- यदि ऐसे आगमों को प्राप्त करने के लिये कोई दावेदार नहीं है या कोई दावेदार अभिनिश्चय योग्य नहीं है या दावेदारों के समाधान के पश्चात् कोई अधिशेष है तो अपराध के ऐसे आगमों को सरकार समपहृत कर लेगी ।