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आपराधिक कानून

भारतीय न्याय संहिता , 2023 की कमियाँ

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 29-Aug-2024

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

परिचय:

हाल के वर्षों में, भारत में महत्त्वपूर्ण तकनीकी एवं आर्थिक परिवर्तन हुए हैं, जिससे अपने नागरिकों को लाभ पहुँचाने एवं उनकी सुरक्षा के लिये विधायी प्रगति की आवश्यकता प्रतीत हुई है। सरकार ने औपनिवेशिक युग की आपराधिक संहिताओं को परिवर्तित करने के लिये नए आपराधिक संविधियाँ प्रस्तुत किये हैं, जिसका उद्देश्य विधिक प्रणाली को आधुनिक बनाना है। हालाँकि इन नए संविधियों को डिजिटल युग की चुनौतियों का पर्याप्त रूप से समाधान न करने और संभावित रूप से समस्याग्रस्त प्रावधानों को प्रस्तुत करने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा है।

भारत में भारतीय न्याय संहिता क्या है?

  • संसदीय समिति ने भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की समीक्षा की है, जिसमें भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव है, जिसमें व्यभिचार को अपराध मानने के लिये लिंग-तटस्थ प्रावधान भी निहित है।
  • गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत BNS, औपनिवेशिक युग के IPC (भारतीय दण्ड संहिता) को प्रतिस्थापित करने का पथ अग्रसर करता है।
  • BNS को 20 अध्यायों में विभाजित किया गया है, जिसमें 358 धाराएँ एवं 23 अध्याय हैं।
  • यह संविधि कुछ अपराधों, विशेष रूप से महिलाओं एवं बच्चों के विरुद्ध अपराधों के लिये दण्ड की मात्रा में वृद्धि करता है।
  • यह छोटे अपराधों के लिये दण्ड के रूप में सामुदायिक सेवा के प्रावधान प्रस्तुत करता है।

BNS द्वारा प्रमुख संशोधन क्यों किये गए हैं?

  • भारतीय न्याय संहिता, 2023 BNS की धारा 69 में विवाह के लिये मिथ्या वचन देने वालों के विरुद्ध प्रावधान है।
  • अप्राप्तवय के साथ सामूहिक बलात्संग एवं भीड़ द्वारा हत्या के संबंध में भी प्रावधान हैं।
  • अप्राप्तवय के साथ बलात्संग के अपराध के मामले में मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास का प्रावधान।
  • 'देशद्रोह' के स्थान पर 'अलगाव' या 'देश की संप्रभुता, एकता एवं अखंडता के विरुद्ध कार्य' को शामिल किया गया है।
  • नए संविधि में जल्द ही पुरुषों एवं ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के विरुद्ध यौन अपराधों पर एक धारा शामिल की जा सकती है।
    • पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे BNS के अधीन उन प्रावधानों को लागू करें जो दोषपूर्ण तरीके से बंधक बनाने एवं शारीरिक चोट पहुँचाने से संबंधित हैं, जब तक कि यह विसंगति दूर नहीं हो जाती।

नए आपराधिक विधियों की कमियाँ क्या हैं?

  • परिभाषाओं में अस्पष्टता:
    • कई नए अपराधों एवं विधिक शब्दों में स्पष्ट परिभाषा का अभाव है, जिसके कारण विधि की व्यक्तिपरक व्याख्या एवं असंगत अनुप्रयोग की संभावना बढ़ जाती है।
  • व्यापक आतंकवाद के लिये प्रावधान:
    • सामान्य आपराधिक विधि में आतंकवाद संबंधी अपराधों को "आर्थिक सुरक्षा" जैसे अस्पष्ट शब्दों के साथ शामिल करने से दुरुपयोग एवं अतिक्रमण की संभावना बढ़ सकती है।
  • सामुदायिक सेवा की अपर्याप्त परिभाषा:
    • अधिनियम यह स्पष्ट करने में विफल रहा है कि सामुदायिक सेवा क्या होती है, जिसके कारण संभवतः सज़ा संबंधी निर्णय विवादास्पद या समस्याग्रस्त हो सकते हैं।
  • अस्पष्ट संगठित अपराध के लिये प्रावधान:
    • संगठित अपराध की परिभाषा अत्यधिक व्यापक है तथा इसमें अपरिभाषित शब्द शामिल हैं, जिससे संभावित दुरुपयोग की संभावना बनी रहती है।
  • समस्याग्रस्त "छोटे संगठित अपराध" की अवधारणा:
    • दण्ड को कृत्य के बजाय "असुरक्षा की सामान्य भावना" के आधार पर देने से विधि का भेदभावपूर्ण अनुप्रयोग हो सकता है।
  • समानांतर प्रावधान:
    • भारतीय न्याय संहिता एवं UAPA दोनों में स्पष्ट अंतर के अभाव में आतंकवाद संबंधी अपराधों का सह-अस्तित्व, भ्रम एवं मनमाने ढंग से लागू किये जाने को जन्म दे सकता है।
  • विधि प्रवर्तन को विवेकाधीन शक्ति:
    • पुलिस अधिकारियों को BNS या UAPA लागू करने के बीच निर्णय लेने की अनुमति देने जैसे प्रावधानों से असंगत प्रवर्तन हो सकता है।

भारत में आपराधिक विधि में अभी भी क्या संशोधन की आवश्यकता है?

  • व्यापक साइबर अपराध के लिये प्रावधान:
    • भारत सरकार के राष्ट्रीय साइबर अपराध रिपोर्टिंग पोर्टल द्वारा मान्यता प्राप्त आधुनिक साइबर अपराधों जैसे साइबर धमकी, ऑनलाइन स्टॉकिंग, फ़िशिंग, ईमेल हैकिंग एवं सोशल मीडिया अपराधों से निपटने के लिये नए खंड शुरू करने का प्रावधान।
  • डेटा संरक्षण संबंधी अपराध:
    • भारतीय न्याय संहिता (BNS) के अधीन "संपत्ति" की परिभाषा में संशोधन करके इसमें स्पष्ट रूप से "डेटा" को शामिल किया जाना चाहिये, जिससे डेटा चोरी को दण्डनीय अपराध बनाया जा सके।
  • वर्चुअल वर्ल्ड संबंधी अपराध:
    • मेटावर्स एवं अवतारों के माध्यम से आभासी वातावरण में किये गए अपराधों के लिये नए खंड प्रस्तुत किये जाने की आवश्यकता है।
  • AI-संबंधी अपराध:
    • कृत्रिम बुद्धिमत्ता से जुड़े अपराधों, जैसे डीपफेक और कृत्तिम बुद्धिमत्ता जनित सामग्री (एआई-जनरेटेड सामग्री) का दुरुपयोग, को संबोधित करने के लिये प्रारूप का प्रावधान, जो वर्तमान में BNS के अंतर्गत निहित नहीं हैं।
  • प्रौद्योगिकी-तटस्थ भाषा संबंधी अपराध:
    • संपूर्ण BNS में भाषा को संशोधित करके इसमें "साइबर", "वर्चुअल", "डिजिटल", "इलेक्ट्रॉनिक" एवं "डेटा" जैसे शब्दों को निहित किया जाना चाहिये, ताकि भौतिक एवं डिजिटल दोनों प्रकार के अपराधों पर इनकी प्रयोज्यता सुनिश्चित की जा सके।
  • स्पष्ट परिभाषा की आवश्यकता:
    • दुरुपयोग को रोकने एवं सुसंगत अनुप्रयोग सुनिश्चित करने के लिये BNS की धारा 111 में "आर्थिक सुरक्षा" एवं "आर्थिक अपराध" जैसे शब्दों के लिये सटीक परिभाषाएँ प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • दुरुपयोग के विरुद्ध सुरक्षा उपाय का प्रावधान:
    • आतंकवाद एवं संगठित अपराध से संबंधित धाराओं में जाँच एवं संतुलन लागू करना, विशेष रूप से BNS के अधीन आतंकवाद के आरोपों को लागू करने में पुलिस अधीक्षकों को दी गई विवेकाधीन शक्ति के संबंध में।
  • लिंग तटस्थता:
    • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377 के पुनः लागू न होने को ध्यान में रखते हुए, BNS की धारा 63 (बलात्संग) को संशोधित करके इसे लिंग-तटस्थ बनाया जाए।
  • उभरते वित्तीय अपराधों पर ध्यान देना:
    • जटिल तकनीकी छल, जैसे सीमा पार साइबर डकैती एवं क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित अपराधों से निपटने के लिये नए खंड प्रस्तुत किये जाने की आवश्यकता है।
  • राजनीतिक असहमति को संतुलित करने की आवश्यकता:
    • राजनीतिक आंदोलन एवं विरोध के वैध रूपों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये BNS की धारा 172(2) (विधिक शक्ति का प्रयोग करने से रोकने या विवश करने के लिये आत्महत्या का प्रयास) में संशोधन करें।
  • नियमित अपडेट करने की आवश्यकता:
    • तेज़ी से विकसित हो रही प्रौद्योगिकी एवं सामाजिक परिवर्तनों के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये BNS की आवधिक समीक्षा एवं अद्यतन को अनिवार्य करने वाला प्रावधान प्रस्तुत किया जाए।
  • पशुगमन पर चर्चा:
    • पशु-मानव यौन संबंध को अपराध मानने वाले प्रावधानों को पुनः लागू करना, जो भारतीय दण्ड संहिता में निहित थे, परंतु BNS में निरसित कर दिये गए हैं।
  • साइबर अपराध हब प्रावधान:
    • साइबर अपराध केंद्रों की घटना से निपटने के लिये धाराएँ लागू करना, ताकि ऐसे क्षेत्रों में प्रभावी विधि प्रवर्तन संभव हो सके।

निष्कर्ष:

जैसे-जैसे हम भारत के नए आपराधिक संविधियों के साथ आगे बढ़ रहे हैं, यह स्पष्ट है कि संशोधन आवश्यक है, लेकिन इस पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाना चाहिये तथा इसे लागू किया जाना चाहिये। भारतीय न्याय संहिता एवं संबंधित विधियों ने आधुनिकीकरण की दिशा में कदम उठाए हैं, लेकिन वे हमारे डिजिटल युग की जटिलताओं को संबोधित करने में कम पड़ गए हैं। 21वीं सदी में सही मायने में न्याय व्यवस्था स्थापित करने के लिये, इन विधियों को व्यापक साइबर अपराध प्रावधानों, स्पष्ट परिभाषाओं एवं दुरुपयोग के विरुद्ध सशक्त सुरक्षा उपायों को शामिल करने के लिये और अधिक परिष्कृत करने की आवश्यकता है। अंततः हमारी कानूनी प्रणाली को तकनीकी प्रगति एवं सामाजिक परिवर्तनों के साथ तालमेल बनाए रखने के लिये निरंतर विकसित होना चाहिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह सभी नागरिकों की सुरक्षा में प्रासंगिक, निष्पक्ष एवं प्रभावी बनी रहे।