होम / एडिटोरियल
अंतर्राष्ट्रीय कानून
इजराइल-ईरान के हवाई हमले और अंतर्राष्ट्रीय विधि
«24-Jun-2025
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
परिचय
ईरानी सैन्य और न्यूक्लियर प्रतिष्ठानों पर हाल ही में किये गए इजरायली हवाई हमलों ने अंतर्राष्ट्रीय विधि की सीमाओं और आक्रमण पूर्व आत्मरक्षा के सिद्धांत के विषय में महत्त्वपूर्ण चर्चा पुनः प्रारंभ कर दिया है। जैसे-जैसे इन क्षेत्रीय शक्तियों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है, विधि विशेषज्ञ इस तथ्य पर अलग अलग विचार रखते हैं कि क्या इजरायल द्वारा की गई कार्यवाही वैध आत्मरक्षा या अवैध आक्रमण पूर्व आत्मरक्षा के अंतर्गत किया गया हमला हैं। यह प्रश्न द्विपक्षीय संबंधों से परे है, संभावित रूप से अमेरिकी भागीदारी को दर्शाता है और उन मूलभूत सिद्धांतों को चुनौती देता है जो यह निर्धारित करते हैं कि राष्ट्र कब एक-दूसरे के विरुद्ध उचित रूप से बल का प्रयोग कर सकते हैं।
जस एड बेलम क्या है?
- जस एड बेलम, जिसका शाब्दिक अर्थ है "युद्ध का अधिकार", अंतर्राष्ट्रीय विधि का वह निकाय है जो यह निर्धारित करता है कि राज्य कब वैध रूप से सशस्त्र बलों का सहारा ले सकते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र चार्टर में निहित यह विधिक सिद्धांत स्थापित करता है कि दो परिस्थितियों को छोड़कर सैन्य बल का प्रयोग निषिद्ध है: सशस्त्र हमले के विरुद्ध आत्मरक्षा या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा प्राधिकरण।
- यह सिद्धांत 1837 के कैरोलीन टेस्ट से संबंधित है, जिसने स्थापित किया कि आक्रमण पूर्व आत्मरक्षा केवल तभी स्वीकार्य है जब "आसन्न, भयंकर खतरे" का सामना करना पड़े, जिसके लिये त्वरित सैन्य कार्यवाही के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प न हो।
वर्ष 1948 के बाद से ईरान-इज़राइल संबंध रणनीतिक गठबंधन से लेकर शेडो वार तक कैसे विकसित हुए हैं?
वर्ष 1979 से पूर्व गठबंधन युग:
- ईरान वर्ष 1948 में इजरायल के राज्य का दर्जा मान्यता देने वाले पहले मध्य पूर्वी देशों में से एक था।
- शाह मोहम्मद रजा पहलवी के पश्चिमी समर्थक शासन के तहत, ईरान एवं इजरायल के बीच सशक्त कूटनीतिक एवं रणनीतिक संबंध थे।
- ईरान ने डेविड बेन गुरियन के "परिधीय सिद्धांत" का पालन किया, अरब शत्रुता का सामना करने के लिये गैर-अरब मुस्लिम देशों के साथ गठबंधन किया।
- अरब राज्यों के आर्थिक बहिष्कार के बावजूद, ईरान ने इजरायल के साथ तेल व्यापार को बनाए रखा और महत्त्वपूर्ण राजनयिक सहयोग स्थापित किया।
क्रांतिकारी परिवर्तन (1979):
- इस्लामी क्रांति ने ईरान-इज़राइल संबंधों को मौलिक रूप से बदल दिया।
- अयातुल्ला खुमैनी के धर्मतंत्रीय शासन ने इज़राइल की वैधता को अस्वीकार कर दिया, तथा अमरीका एवं इजरायल को क्रमशः "बड़ा शैतान" एवं "छोटा शैतान" करार दिया।
- ईरान की नई इस्लामी सरकार ने इज़राइल को फ़िलिस्तीनी भूमि पर औपनिवेशिक कब्ज़ा करने वाले के रूप में देखा।
शैडो वॉर काल:
- राजनयिक संबंधों के टूटने के बावजूद, इजरायल ने इराक की क्षेत्रीय शक्ति को कमजोर करने के लिये ईरान-इराक युद्ध (1980-1988) के दौरान ईरान का गुप्त रूप से समर्थन किया।
- यह सामरिक सहयोग निरंतर छद्म युद्ध में विकसित हुआ।
- ईरान ने लेबनान में हिजबुल्लाह और गाजा में हमास जैसे आतंकवादी समूहों को वित्तपोषित और हथियार देना आरंभ कर दिया।
इजरायल ने जवाब में ईरानी न्यूक्लियर वैज्ञानिकों की टारगेट किलिंग्स कीं तथा ईरान के न्यूक्लियर साइट के विरुद्ध स्टक्सनेट वायरस जैसे साइबर हमले किये।
क्या ईरान पर इजरायल का हालिया हमला अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत आसन्न खतरे के सिद्धांत का उल्लंघन है?
- अंतर्राष्ट्रीय विधि मूल रूप से राज्यों को एक दूसरे के विरुद्ध बल प्रयोग करने से रोकता है, सिवाय आत्मरक्षा या संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्राधिकरण के मामलों के।
- वर्ष 1837 में किये गए कैरोलीन टेस्ट से यह स्थापित होता है कि बल का प्रयोग केवल तभी किया जा सकता है जब "आसन्न, भारी खतरे" से निपटने के लिये "बिल्कुल आवश्यक" हो।
- इजरायल के प्रधानमंत्री द्वारा हमलों को "कुछ महीनों के अंदर" ईरान को न्यूक्लियर क्षमताएँ विकसित करने से रोकने के रूप में वर्णित करना इस तथ्य पर प्रश्न खड़ा करता है कि क्या यह आसन्नता मानक को पूर्ण करता है।
- मार्को मिलनोविक जैसे विधिक विद्वान तर्क देते हैं कि आसन्न ईरानी न्यूक्लियर हमले का कोई विश्वसनीय साक्ष्य नहीं है, यह सुझाव देते हुए कि इजरायल की कार्यवाही इस सदियों पुराने सिद्धांत का उल्लंघन कर सकती है।
क्या ईरान पर इजरायल का हालिया हमला अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत आसन्न खतरे के सिद्धांत का उल्लंघन है?
- कुछ विधिक विशेषज्ञों का तर्क है कि इजरायल के हमले ईरान के प्रॉक्सी नेटवर्क, जिसमें हमास, हिजबुल्लाह और हुती विद्रोही शामिल हैं, के विरुद्ध वैध आत्मरक्षा की निरंतरता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- यह तर्क "निकारागुआ टेस्ट" पर आधारित है, जो यह निर्धारित करता है कि किसी राज्य को "प्रभावी नियंत्रण" या "पर्याप्त भागीदारी" के माध्यम से प्रॉक्सी कार्यवाहियों के लिये कब उत्तरदायी माना जा सकता है।
- जबकि ईरान हिजबुल्लाह जैसे समूहों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव रखता है, साक्ष्य बताते हैं कि ये प्रॉक्सी अक्सर स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं - हमास कथित तौर पर 7 अक्टूबर, 2023 के हमलों के लिये ईरानी समर्थन हासिल करने में विफल रहा।
- हालाँकि, इजरायली क्षेत्र और लाल सागर शिपिंग पर चल रहे हुती हमले ईरान को निरंतर आक्रामकता से जोड़ने के लिये सशक्त आधार प्रदान कर सकते हैं।
क्या ईरान के प्रति इजरायल की सैन्य प्रतिक्रिया अंतर्राष्ट्रीय विधि के आवश्यकता एवं आनुपातिकता के मानकों को पूरा करती है?
- भले ही इजरायल की कार्यवाहियाँ वैध आत्मरक्षा के रूप में योग्य हों, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय विधि के अनुसार सैन्य प्रतिक्रियाएँ आवश्यक एवं रक्षात्मक आवश्यकता के समानुपातिक दोनों होनी चाहिये।
- ईरानी न्यूक्लियर और सैन्य सुविधाओं के खिलाफ इजरायल के बमबारी अभियान के दायरे का मूल्यांकन वास्तविक खतरे और उपलब्ध विकल्पों के आधार पर किया जाना चाहिये।
- अप्रैल और अक्टूबर 2024 में ईरान एवं इजरायल के बीच पिछले प्रत्यक्ष आदान-प्रदान अपेक्षाकृत सीमित थे, जिससे यह प्रश्न करता है कि क्या वर्तमान वृद्धि आनुपातिकता बनाए रखती है या अत्यधिक प्रतिक्रिया का प्रतिनिधित्व करती है जो क्षेत्रीय सुरक्षा को और अस्थिर कर सकती है।
क्या ईरान के विरुद्ध इजरायल को अमेरिकी सैन्य समर्थन अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत वैध होगा?
- अमेरिकी सैन्य हस्तक्षेप की संभावना विधिक जटिलता की एक और परत जोड़ती है, क्योंकि राष्ट्रपति ट्रम्प ईरान की फोर्दो न्यूक्लियर फैसिलिटीज़ के विरुद्ध हमलों पर विचार कर रहे हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय विधि विधिविरुद्ध हमलों के पीड़ितों की सहायता करते समय सामूहिक आत्मरक्षा की अनुमति देता है, बशर्ते पीड़ित राज्य सहायता का अनुरोध करे।
- हालाँकि, अगर इजरायल की कार्यवाहियों को अंतर्राष्ट्रीय विधि के अंतर्गत अवैध माना जाता है, तो अमेरिका की भागीदारी भी अवैध होगी, जब तक कि अमेरिका ईरान के विरुद्ध आत्मरक्षा के लिये एक स्वतंत्र औचित्य स्थापित नहीं कर सकता।
- यह अंतर्संबंध इस तथ्य पर प्रकाश डालता है कि अंतर्राष्ट्रीय विधि का उल्लंघन कैसे हो सकता है, संभावित रूप से कई देशों को विधिक रूप से संदिग्ध सैन्य कार्यवाहियों में शामिल कर सकता है।
निष्कर्ष
इजरायल-ईरानी संघर्ष एक क्षेत्रीय विवाद से कहीं अधिक का प्रतिनिधित्व करता है - यह अंतरराष्ट्रीय विधिक व्यवस्था के लिये एक टेस्ट का मामला है जिसने सदियों से राज्य के व्यवहार को नियंत्रित किया है। क्या इजरायल के हमले वैध पूर्व-आक्रमणकारी आत्मरक्षा या अवैध आक्रमण हैं, इसका अंतरराष्ट्रीय न्यायालयों में कभी भी निश्चित रूप से समाधान नहीं हो पाएगा, लेकिन जो उदाहरण प्रस्तुत की जा रही है, वह बहुत मायने रखती है। स्थापित विधिक मानदंडों का प्रत्येक उल्लंघन साझा अपेक्षाओं को कमजोर करता है जो वैश्विक स्थिरता को बनाए रखने में सहायता करते हैं, जिससे दुनिया सभी देशों के लिये क्रमिक रूप से अधिक खतरनाक एवं अप्रत्याशित बनती जा रही है।