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दंड विधि
भारत में विचाराधीन कैदियों की स्थिति
« »28-Sep-2023
स्रोत - हिंदुस्तान टाइम्स
संदर्भ
हाल ही में राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Service Authority- NALSA) ने विचाराधीन कैदियों की संख्या को कम करने के लिये एक विशेष राष्ट्रव्यापी अभियान फिर से शुरू किया है।
- इस अभियान की शुरुआत के साथ ही न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने उच्चतम न्यायालय की अंडर ट्रायल रिव्यू कमेटी (Undertrial Review Committees- UTRCs) से जमानत के लिये पात्र विचाराधीन कैदियों की पहचान करने का आग्रह किया और मजिस्ट्रेटों को शर्तों को संशोधित करने के लिये प्रोत्साहित किया ताकि विचारण-पूर्व हिरासत के बजाय स्वतंत्रता को आदर्श बनाया जा सके।
विचाराधीन कैदी किसे माना जाता है?
- विचाराधीन कैदी का तात्पर्य ऐसे आरोपी व्यक्ति से है जिसे न्यायालय द्वारा दोषी करार नहीं दिया गया है और उसके विरुद्ध चल रहा मामला न्यायालय में लंबित है।
- 78वें विधि आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, एक विचाराधीन कैदी में ऐसा व्यक्ति भी शामिल है जो जाँच के दौरान न्यायिक हिरासत में रिमांड पर है।
भारत में विचाराधीन कैदियों की स्थिति क्या है?
- विचाराधीन कैदियों की संख्या 77% या दोषियों की संख्या से तीन गुना अधिक है।
- कारागार सांख्यिकी भारत (Prison Statistics India) 2021 रिकॉर्ड के अनुसार:
- वर्ष 2021 में विचाराधीन कैदियों की संख्या 4,27,165 है जबकि वर्ष 2020 में यह संख्या 3,71,848 थी, एक वर्ष की अवधि के दौरान इस संख्या में 9% की वृद्धि हुई है।
- 31 दिसंबर 2021 तक 4,27,165 विचाराधीन कैदियों में से, सबसे अधिक विचाराधीन कैदी ज़िला कारागारों में (51.4%, 2,19,529 विचाराधीन कैदी) बंद थे, इसके बाद केंद्रीय कारागारों में (36.2%, 1,54,447 विचाराधीन कैदी) और उप-कारागारों में (10.4%, 44,228 विचाराधीन कैदी) बंद थे।
- वर्ष 2021 के अंत तक देश में विचाराधीन कैदियों की सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश में (21.2%, 90,606 विचाराधीन कदी) दर्ज की गई है, इसके बाद बिहार (13.9%, 59,577 विचाराधीन कैदी) और महाराष्ट्र (7.4%, 31,752 विचाराधीन कैदी) का स्थान है।
- 4,27,165 विचाराधीन कैदियों में से केवल 53 सिविल कैदी थे।
- 5,54,034 कैदियों में से 68% कैदी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं।
विचाराधीन कैदियों के समक्ष समस्याएँ?
- जेलें/कारागार खतरनाक स्थान हैं और इसलिये विचाराधीन कैदियों को दुर्व्यवहार एवं हिंसा जैसे शारीरिक दुर्व्यवहार, यातना, सामूहिक हिंसा आदि का शिकार होना पड़ता है।
- आर्थिक संसाधनों के अभाव में कई कैदियों को जमानत नहीं मिल पाती है।
- अधिकांश को कैदियों को सुरक्षित और स्वस्थ परिस्थितियों में रखने के लिए भीड़भाड़ और पर्याप्त जगह की कमी की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
- जेलों में अत्यधिक भीड़-भाड़ तथा कैदियों को सुरक्षित एवं स्वस्थ परिस्थितियों में रखने हेतु पर्याप्त स्थान की कमी जैसी समस्याएँ भी विद्यमान हैं।
- परिवार में कमाने वाले सदस्य की अनुपस्थिति में, परिवार में अत्यधिक गरीबी/अभावग्रस्तता की स्थिति उत्पन्न होती है तथा ऐसे में बच्चों में भटकाव होना बहुत ही सामान्य है।
- जेल में अक्सर उन्हें कई वर्षों तक उपेक्षित रखा जाता है और कुछ मामलों में तो यह स्थिति उनके द्वारा किये गए अपराध के लिये निर्धारित अधिकतम सज़ा से भी अधिक हो जाती है।
- परिस्थितिजन्य और युवा अपराधी अक्सर पूर्ण रूप से अपराधी बन जाते हैं।
विचाराधीन कैदियों से संबंधित कानूनी प्रावधान क्या हैं?
राज्य सूची का विषय
- 'कारागार अथवा कारागार में बंद व्यक्ति' भारतीय संविधान, 1950 (COI) की सातवीं अनुसूची के अंतर्गत सूची II की प्रविष्टि 4 के तहत राज्य सूची का विषय है।
- कारागारों का प्रशासन और प्रबंधन संबंधित राज्य सरकारों का उत्तरदायित्व है।
- आदर्श कारागार अधिनियम (Model Prisons Act), 2023 राज्यों के लिये मार्गदर्शक दस्तावेज के रूप में कार्य कर सकता है जिसे राज्यों द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र में लागू किया जा सकता है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 39A
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भारतीय संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 39A को जोड़ा गया था।
- यह समान न्याय और निशुल्क कानूनी सहायता के प्रावधानों से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है “राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक तंत्र इस प्रकार काम करे कि सामान अवसर के आधार पर न्याय सुलभ हो और वह, विशिष्टतया, यह सुनिश्चित करने के लिये कि आर्थिक या किसी अन्य निर्योग्यता के कारण कोई नागरिक न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न रह जाए, उपयुक्त विधान या स्कीम द्वारा या किसी अन्य रीति से निशुल्क विधिक सहायता की व्यवस्था करेगा।”
- सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन (1978) के मामले में,उच्चतम न्यायालय ने कैदियों को निशुल्क कानूनी सहायता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और जेल प्रबंधन में सुधार की सिफारिश की। न्यायालय ने कैदियों के मौलिक अधिकारों को बरकरार रखते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि दोषियों को भी कुछ सुरक्षा प्राप्त है।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21
- अनुच्छेद 21 को आम तौर पर 'जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करने वाला प्रक्रियात्मक मैग्ना कार्टा' (the procedural Magna Carta protective of life and liberty) के रूप में जाना जाता है।
- इसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं।
- फ्रांसिस कोरली मुलिन बनाम प्रशासक (1981) मामले में न्यायमूर्ति भगवती ने कहा कि अनुच्छेद 21 एक लोकतांत्रिक समाज में सर्वोच्च महत्त्व के संवैधानिक मूल्य का प्रतीक है।
अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958
- यह अधिनियम अपराधियों को कठोर अपराधी बनने के बजाय सुधरने का अवसर प्रदान करने के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था।
- यह अधिनियम अपराधियों को परिवीक्षा पर या सम्यक् भर्त्सना के बाद छोड़ देने का प्रावधान करता है।
- अधिनियम अपराधियों को सदाचरण की परिवीक्षा पर छोड़ने की अनुमति देता है यदि उन्हें ऐसा अपराध करने का दोषी पाया जाता है जो मृत्यु अथवा आजीवन कारवास से दंडनीय नहीं है।
- अधिनियम पहली बार अपराध करने वाले ऐसे अपराधियों को सम्यक् भर्त्सना के बाद छोड़ देने की अनुमति देता है जिन्हें दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 379, 380, 381, 404, और 420 के तहत दोषी पाया जाता है अथवा जो किसी अन्य विधि के अधीन दो वर्ष से अनधिक के लिये कारावास या जुर्माने अथवा दोनों से दंडनीय अपराध करने का दोषी पाया जाता है।
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 436A
- यह धारा उस अधिकतम अवधि से संबंधित है जिसके लिये किसी विचाराधीन कैदी को हिरासत में रखा जा सकता है।
- इसमें कहा गया है कि जहाँ किसी व्यक्ति ने इस संहिता के तहत किसी भी कानून के तहत अन्वेषण, जाँच या विचारण की अवधि के दौरान (ऐसा अपराध नहीं जिसके लिये मृत्युदंड को उस विधि के तहत दंड में से एक के रूप में निर्दिष्ट किया गया है) हिरासत में लिया गया है, उस विधि के तहत उस अपराध के लिये निर्दिष्ट कारावास की अधिकतम अवधि के आधे तक ज्यादा अवधि, उसे न्यायालय द्वारा अपने व्यक्तिगत बॉण्ड पर जमानत के साथ या इसके बिना रिहा किया जाएगा।
- बशर्ते न्यायालय, लोक अभियोजक को सुनने के बाद और इसके द्वारा लिखित रूप में कारण दर्ज करने के लिये, ऐसे व्यक्ति को उक्त अवधि के आधे से अधिक अवधि के लिये निरंतर हिरासत में रखने का आदेश दें या जमानत के साथ या बिना व्यक्तिगत बॉण्ड के बजाय उसे जमानत पर रिहा करें;
- एक और शर्त है कि ऐसे किसी भी मामले में जाँच या परीक्षण की अवधि के दौरान उस कानून के तहत व्यक्ति को उक्त अपराध के लिये दी गई कारावास की अधिकतम अवधि से अधिक के लिये हिरासत में नहीं लिया जाएगा।
भारत में कौन-से प्रावधान जेल सुधार से संबंधित हैं?
- वर्तमान में कारागार अधिनियम, 1894 जेलों/कारागारों से संबंधित नियमों और विनियमों को नियंत्रित करता है।
- केंद्र सरकार ने स्वतंत्रता-पूर्व युग के कारागार अधिनियम 1894, जो मुख्य रूप से अपराधियों को हिरासत में रखने और अनुशासन लागू करने पर केंद्रित था को प्रतिस्थापित करने हेतु एक व्यापक आदर्श कारागार अधिनियम (Model Prisons Act), 2023 को अंतिम रूप दिया है।
- इस नवीनतम अधिनियम का उद्देश्य जेलों को सुधारात्मक संस्थान बनाना है, जिसमें कैदियों को कानून का पालन करने वाले नागरिकों के रूप में समाज में वापस लाने और पुनर्वास करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- यह अधिनियम जेल प्रबंधन में प्रौद्योगिकी के उपयोग पर मार्गदर्शन प्रदान करके मौजूदा जेल अधिनियम में कमियों को दूर करने का उद्देश्य भी रखता है।
- नए आदर्श कारागार अधिनियम की कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
- सुरक्षा मूल्यांकन और कैदियों को अलग-अलग रखने, वैयक्तिक सजा योजना बनाने के लिये प्रावधान,
- शिकायत निवारण, कारागार विकास बोर्ड, बंदियों के प्रति व्यवहार में परिवर्तन
- महिला कैदियों, ट्रांसजेंडर आदि को अलग रखने का प्रावधान
- कारागार प्रशासन में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से प्रौद्योगिकी के उपयोग का प्रावधान
- अदालतों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, जेलों में वैज्ञानिक और तकनीकी पहल आदि का प्रावधान
- जेलों में प्रतिबंधित वस्तुओं जैसे मोबाइल फोन आदि का प्रयोग करने वाले बंदियों एवं जेल कर्मचारियों के लिये दंड का प्रावधान
- उच्च सुरक्षा जेल, ओपन जेल (ओपन और सेमी ओपन), आदि की स्थापना एवं प्रबंधन संबंधी प्रावधान
- खूंखार और आदतन अपराधियों की आपराधिक गतिविधियों से समाज को बचाने का प्रावधान
- कैदियों को कानूनी सहायता प्रदान करने, अच्छे आचरण को बढ़ावा देने के लिये पैरोल, फर्लो और समय से पहले रिहाई आदि संबंधी प्रावधान
- कैदियों के व्यावसायिक प्रशिक्षण एवं कौशल विकास तथा उन्हें समाज से दोबारा जोड़ने पर बल देना
आगे की राह
- पुलिस और जेल प्रशासन द्वारा इस क्षेत्र में विधानों एवं विधिक निर्णयों को सही तरीके से लागू न कर पाने के कारण भारत की जेलों में विचाराधीन कैदियों की संख्या बहुत अधिक है।
- एक समग्र विधायी सुधार की आवश्यकता है जो विचाराधीन कैदियों के सामने आने वाले उपरोक्त सभी मुद्दों का समाधान कर सके।
- अनिवार्य जमानत प्रावधानों का उद्देश्य भी विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक जेल में रहने से रोकना है।
- पेपर’-आधारित प्रक्रियाओं के चलते होने वाली देरी को रोकने के लिये हाल ही में न्यायालय से सीधे जेलों तक जमानत आदेशों का इलेक्ट्रॉनिक प्रसारण जैसे प्रौद्योगिकी-आधारित उपकरण लाए गए हैं।
- इसके अलावा आदर्श कारागर अधिनियम, 2023 के मसौदे का उद्देश्य अपराधियों और भ्रष्ट अधिकारियों के बीच साँठ-गाँठ को तोड़ना है जिससे जेलों की स्थिति में और सुधार होगा।