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पारिवारिक कानून
लिली थॉमस बनाम भारत संघ, AIR 2000 SC 1650
« »13-Dec-2023
परिचय:
यह मामला द्विविवाह (Bigamy) और दूसरे विवाह के लिये दूसरे धर्म में परिवर्तन से संबंधित है।
तथ्य:
- सुष्मिता घोष ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष एक याचिका दायर की जिसमें वर्ष 1984 में हिंदू रीति-रिवाज़ों के अनुसार श्री जी.सी. घोष के साथ उनके विवाह का उल्लेख किया गया था।
- उन्होंने आगे कहा कि उनके पति ने कहा कि उन्हें आपसी सहमति से विवाह-विच्छेद (Divorce) के लिये सहमत होना चाहिये।
- और चूँकि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act) द्विविवाह की अनुमति नहीं देता है, इसलिये उन्होंने सुश्री विनीता गुप्ता नामक महिला से दोबारा विवाह करने के लिये इस्लाम धर्म अपना लिया।
- उन्होंने शाही काज़ी के कार्यालय द्वारा जारी एक प्रमाणपत्र भी प्रस्तुत किया जिसमें प्रमाणित किया गया था कि उन्होंने इस्लाम अपना लिया है।
- 2002 की अवधि और पिछले कई वर्षों के दौरान, यह उन प्रचलन हिंदू पुरुषों के बीच आम हो गया जो अपनी पहली पत्नियों से विवाह-विच्छेद करने में असमर्थ थे और विशेष रूप से विवाह के उद्देश्य से मुस्लिम धर्म में परिवर्तित हो गए।
- यह प्रथा लगातार उन पतियों द्वारा अपनाई जाती थी जिन्होंने अपने दूसरे विवाह के लिये इस्लाम अपनाने में गलती की थी।
- हालाँकि बाद में वे संपत्तियों में अपना अधिकार बनाए रखने, अपनी सेवाएँ जारी रखने और अन्य सभी व्यवसाय करने के लिये अपने मूल नाम तथा धार्मिक संबद्धता के तहत अपने मूल धर्म में वापस आ गए।
शामिल मुद्दे:
- क्या कोई गैर-मुस्लिम बिना किसी वास्तविक परिवर्तन या विश्वास के और केवल पहले विवाह से बचने या दूसरा विवाह करने के उद्देश्य से 'मुस्लिम' धर्म में परिवर्तित हो जाता है, क्या ऐसे रूपांतरण के बाद उसके द्वारा किया गया विवाह अमान्य होगा?
- क्या प्रतिवादी IPC की धारा 494 के तहत द्विविवाह के लिये उत्तरदायी होगा?
- क्या समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का होना वांछनीय था?
अवलोकन:
- न्यायालय ने कहा कि यदि कोई हिंदू पुरुष विधिक परिणाम भुगते बिना दोबारा विवाह करने के लिये दूसरे धर्म में परिवर्तन करता है, तो यह आस्था के लिये ईमानदारी से किया गया धर्म परिवर्तन नहीं है।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि धर्म बदलने से विवाह अपने आप समाप्त नहीं हो जाता। यदि कोई पति विवाहित होते हुए भी इस्लाम अपना लेता है, तो उसे भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code- IPC) की धारा 494 के तहत विधिक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
- कुछ देशों के विपरीत, भारत में विवाहों को नियंत्रित करने वाली कोई समान नागरिक संहिता (UCC) नहीं है। इसके बजाय, लोग अपनी स्वीय विधियों (Personal Laws) का पालन करते हैं।
- हालाँकि न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि कोई अपनी स्वीय विधियों का उपयोग कुछ गलत करने के लिये करता है, जैसे उचित आधार के बिना दोबारा विवाह करना, तो वह दंडनीय है।
- UCC के प्रश्न पर विचार करते हुए न्यायालय ने कहा कि भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, जहाँ लोग विभिन्न धर्मों व मान्यताओं का पालन करते हैं, संविधान निर्माताओं को विभिन्न धर्मों, जातियों, लिंग एवं भाषाई पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को एक साथ लाने की चुनौती का सामना करना पड़ा।
- संविधान के नीति-निर्देशक सिद्धांत इस विविधता को पहचानते हैं, उसका सम्मान करते हैं और विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच एकता को बढ़ावा देने का प्रयास करते हैं।
- हालाँकि एक समान कानून वांछनीय है, लेकिन इसे एक साथ लागू करने से संभावित रूप से देश की एकता को हानि पहुँच सकती है।
- यह मान लेना अव्यवहारिक और गलत होगा कि सभी कानून तुरंत सभी पर समान रूप से लागू होने चाहिये।
- इसके बजाय, समय के साथ कानून लागू होने चाहिये और विधिक प्रक्रिया के माध्यम से धीरे-धीरे विशिष्ट समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष:
- इस मामले में न्यायालय ने पत्नी के पक्ष में फैसला सुनाया और पहली पत्नी के रहते हुए किसी और से विवाह करने के लिये इस्लाम अपनाने को अवैध घोषित किया।
नोट:
- IPC की धारा 494: पति या पत्नी के जीवनकाल के दौरान दोबारा विवाह करना-
- भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के अनुसार, जो कोई भी पति या पत्नी के जीवित होते हुए किसी ऐसी स्थिति में विवाह करेगा जिसमें पति या पत्नी के जीवनकाल में विवाह करना अमान्य होता है, तो उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास की सज़ा दी जाएगी जिसे सात वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और साथ ही आर्थिक दंड से भी दंडित किया जाएगा तथा यह एक गैर संज्ञेय ज़मानती अपराध है।
- HMA की धारा 11: शून्य विवाह -
- इसमें कहा गया है कि इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात् अनुष्ठित किया गया यदि कोई विवाह धारा 5 के खण्ड (i), (iv) और (v) में उल्लिखित शर्तों में से किसी एक का उल्लंघन करता है, तो वह अकृत और शून्य होगा तथा उसमें किसी भी पक्षकार के द्वारा दूसरे पक्षकार के विरुद्ध पेश की गई याचिका पर अकृतता की आज्ञप्ति द्वारा ऐसा घोषित किया जा सकेगा।
- HMA की धारा 17:
- यदि इस अधिनियम के प्रारंभ के पश्चात दो हिंदुओं के बीच अनुष्ठापित किसी विवाह की तिथि पर ऐसे विवाह के किसी पक्षकार का पति या पत्नी जीवित था या थी तो ऐसा विवाह शून्य होगा और भारतीय दंड संहिता (1860 का 45 ) की धारा 494 और 495 के उपबंध उसे तद्नुसार लागू होंगे।