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आपराधिक कानून

CrPC की धारा 311

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 30-Jan-2024

परिचय:

वाद का महत्त्व गवाहों की उपस्थिति और जिस व्यक्ति को समन भेजा गया है, उसकी उपस्थिति में निहित है। यदि किसी व्यक्ति की पूछताछ या परीक्षण के चरण समाप्त हो जाते हैं और न्याय प्रदान करने के लिये किसी गवाह का परीक्षण आवश्यक होता है, तो ऐसे मामलों में दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 311 का संदर्भ लिया जाता है।   

CrPC की धारा 311:

  • यह प्रावधान न्यायालय को गवाहों को बुलाने और उनकी जाँच करने का अधिकार देता है।
  • इसमें कहा गया है कि “कोई न्यायालय इस संहिता के अधीन किसी जाँच, विचारण या अन्य कार्यवाही के किसी प्रक्रम में किसी व्यक्ति को साक्षी के तौर पर समन कर सकता है या किसी ऐसे व्यक्ति की, जो हाज़िर हो, यद्यपि वह साक्षी के रूप में समन न किया गया हो, परीक्षा कर सकता है, किसी व्यक्ति को, जिसकी पहले परीक्षा की जा चुकी है पुनः बुला सकता है तथा उसकी पुनः परीक्षा कर सकता है; और यदि न्यायालय को मामले के न्यायसंगत विनिश्चय के लिये किसी ऐसे व्यक्ति का साक्ष्य आवश्यक प्रतीत होता है तो वह ऐसे व्यक्ति को समन करेगा और उसकी परीक्षा करेगा या उसे पुनः बुलाएगा और उसकी पुनः परीक्षा करेगा।
  • इसे दो भागों में विभाजित किया गया है-
    • जहाँ पहला भाग न्यायालय का विवेक है जैसा कि ‘मे (May)’ शब्द के प्रयोग से परिलक्षित (रिफ्लेक्ट) होता है।
    • दूसरा भाग एक जनादेश (मैंडेट) है जिसके अनुसार न्यायालय को मामले के न्यायसंगत निर्णय के लिये गवाहों को बुलाना या वापस बुलाना चाहिये
  • CrPC की धारा 311 न्यायालयों को उन मामलों में अपना कर्त्तव्य निभाने के लिये सशक्त बनाती है जहाँ न्यायालय की कार्यवाही के दौरान कुछ अनुत्तरित सवालों के जवाब देने के लिये किसी व्यक्ति को बुलाना या किसी गवाह को वापस बुलाना महत्त्वपूर्ण है।

CrPC की धारा 311 का दायरा:

  • शब्द ‘किसी भी न्यायालय, किसी भी स्तर पर’ इस प्रावधान के दायरे का विस्तार करता है।
  • मोहनलाल शामजी सोनी बनाम भारत संघ (1991) मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ये शब्द धारा 311 के तहत न्यायालय के विवेक को दर्शाते हैं जो कि व्यापक है, और इसे संभव शर्तों में प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
  • मंजू देवी बनाम राजस्थान राज्य (2019) के मामले में, यह माना गया कि इस प्रावधान का दायरा मामले के न्यायसंगत निर्णय के लिये सच्चाई का निर्धारण करना है।

CrPC की धारा 311 का उद्देश्य:

  • हनुमान राम बनाम राजस्थान राज्य (2008) मामले में, यह उजागर किया गया था कि धारा 311 का उद्देश्य क्या है।
  • सबसे पहले, यह आरोपियों और अभियोजन पक्ष को अपना मामला पेश करने तथा न्याय प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है।
  • दूसरा, इस प्रावधान का उद्देश्य न्याय की विफलता के किसी भी दायरे को रोकना है।

CrPC की धारा 311 का  महत्त्व:  

  • इससे मामले की निष्पक्ष सुनवाई सुनिश्चित होती है।
  • इस धारा में "दोषी साबित होने तक निर्दोषता" का पालन होता है क्योंकि इसके तहत अभियुक्त को सुनवाई का उचित अवसर दिया जाता है।
  • इसमें ‘ऑडी अल्टरम पार्टम’ का नियम अपनाया गया है जो नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों में से एक है, जिसका अर्थ ‘दूसरे पक्ष को भी सुनना’ है।

CrPC की धारा 311 के अनुप्रयोग के मार्गदर्शक सिद्धांत:

न्यायालय ने CrPC की धारा 311 के अनुप्रयोग का मार्गदर्शन करने वाले विभिन्न सिद्धांत निर्धारित किये हैं, जो इस प्रकार हैं:  

  • न्यायालयों को नए तथ्यों की आवश्यकता को देखना चाहिये और यह निर्धारित करना चाहिये कि क्या यह उचित निर्णय के लिये आवश्यक है।
  • न्यायालय का निर्णय “अस्पष्ट, अनिर्णायक और तथ्यों की काल्पनिक प्रस्तुति” नहीं होना चाहिये।
  • इस शक्ति का प्रयोग केवल सही का निर्धारण करने या किसी तथ्य का उचित प्रमाण प्राप्त करने के लिये किया जाना चाहिये।
  • न्यायालय को इस तथ्य से पूरी तरह संतुष्ट होना चाहिये कि गवाहों के परीक्षण से पक्षों को न्याय सुनिश्चित होगा।
  • ऐसे मामलों में जहाँ उचित साक्ष्य या भौतिक अभिलेख प्रस्तुत नहीं किये जाते हैं, न्यायालयों को पक्षों को ऐसी त्रुटियों को सुधारने की अनुमति देने में उदार होना चाहिये।
  • अभियुक्त को एक उचित अवसर प्रदान किया जाना चाहिये, हालाँकि, न्यायालय को भी इसका उपयोग बहुत सावधानी से करना चाहिये ताकि इस तरह की विवेकाधीन शक्ति के किसी भी तरह के अनुचित प्रयोग से बचा जा सके।
  • इस प्रावधान के तहत आवेदन की अनुमति केवल मज़बूत और वैध कारणों में ही दी जानी चाहिये।
  • न्यायपालिका को विवेकपूर्ण तरीके से कार्य करना चाहिये न कि मनमाने ढंग से।
  • धारा 311 का प्रयोग करने का उद्देश्य वाद में एक कमी को भरना नहीं बल्कि पक्षों के खिलाफ किसी भी तरह के गंभीर पूर्वाग्रह को रोकना होना चाहिये।
  • इसे इस आधार पर लागू किया जाना चाहिये कि यह मामले के मुद्दों के अनुकूल है और विरोधी पक्ष को खंडन का अवसर प्रदान किया जाना चाहिये।

निर्णयज विधि:

  • वर्षा गर्ग बनाम मध्य प्रदेश राज्य और अन्य (2022) के मामले में, भारत के उच्चतम न्यायालय ने धारा 311 के अनुप्रयोग हेतु बुनियादी मापदंडों को व्यक्त किया, जो इस प्रकार हैं कि जिस व्यक्ति की जाँच की जानी है, उसके साक्ष्य की अनिवार्यता के साथ-साथ मामले के न्यायसंगत निर्णय की आवश्यक कसौटी न्यायालय के निर्णय की मार्गदर्शक होनी चाहिये।