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वाणिज्यिक विधि
परक्राम्य लिखत अधिनियम के अधीन साक्ष्य के विशेष नियम
«09-Jun-2025
परिचय
परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NIA), भारत में वचन पत्र, विनिमय पत्र और चेक से संबंधित विधि को संहिताबद्ध करता है। अधिनियम की धारा 118 से 122 परक्राम्य लिखतों से संबंधित विभिन्न उपधारणाओं और विबंध का विनियमन करती हैं। ये उपबंध वाणिज्यिक संव्यवहार के सुचारू संचालन और विश्वसनीयता को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण हैं। वे धारकों के पक्ष में कुछ विधिक उपधारणाएं स्थापित करते हैं और पक्षकारों को लिखत की वैधता या अंतरण से संबंधित प्रमुख पहलुओं को अस्वीकार करने से रोकते हैं।
धारा 118 - परक्राम्य लिखत के बारे में उपधारणाएं
जब तक प्रतिकूल साबित न हो जाए, निम्नलिखित उपधारणाएं की जाएंगी:
(क) प्रतिफल के विषय में:
यह कि हर एक परक्राम्य लिखत प्रतिफलार्थ रचित या लिखी गई थी और यह कि हर ऐसी लिखत जब प्रतिगृहीत, पृष्ठांकित, परक्रामित या अंतरित हो चुकी हो तब वह प्रतिफलार्थ, प्रतिगृहीत, पृष्ठांकित, परक्रामित या अंतरित की गई थी।
(ख) तारीख के बारे में:
यह कि ऐसी हर परक्राम्य लिखत जिस पर तारीख पड़ी है, ऐसी तारीख को रचित या लिखी गई थी।
(ग) प्रतिग्रहण के समय के बारे में:
यह कि हर प्रतिगृहीत विनिमय-पत्र उस तारीख के पश्चात् युक्तियुक्त समय के अंदर और उसकी परिपक्वता के पूर्व प्रतिगृहीत किया गया था।
(घ) अंतरण के समय के बारे में:
यह कि परक्राम्य लिखत का हर अंतरण उसकी परिपक्वता के पूर्व किया गया था।
(ङ) पृष्ठांकनों के क्रम के बारे में:
यह कि परक्राम्य लिखत पर विद्यमान पृष्ठांकन उस क्रम में किये गए थे जिसमें वे उस पर विद्यमान है।
(च) स्टाम्प के बारे में:
यह कि खोया गया वचन पत्र, विनिमय पत्र या चेक सम्यक् रूप से स्टाम्पित था।
(छ) यह कि धारक सम्यक्-अनुक्रम धारक है:
परक्राम्य लिखत का धारक, सम्यक् धारक माना जाता है।
परंतुक: तथापि, यदि लिखत अपराध, कपट या विधिपूर्ण प्रतिफल से अभिप्राप्त किया गया है, वहाँ यह साबित करने का भार धारक सम्यक् धारक है, धारक पर ही होगा।
धारा 119 - प्रसाक्ष्य के साबित होने पर उपधारणा
- उस लिखत के आधार पर जो अनादृत कर दी गई है, बाद में न्यायालय पर साक्ष्य के साबित हो जाने पर अनादर के तथ्य की उपधारणा करेगा यदि और जब तक कि ऐसा तथ्य नासाबित नहीं कर दिया जाता।
धारा 120 - लिखत की मूल विधिमान्यता का प्रत्याख्यान करने के विरुद्ध विबंध
किसी धारक द्वारा उचित समय पर दायर किये गये वाद में:
वचन पत्र या कोई भी रचियता,
विनिमय पत्र या चेक का कोई भी लेखिवाल, और
लेखिवाल के आदरणार्थ विनिमय-पत्र का कोई भी प्रतिगृहीता सम्यक् अनुक्रम धारक द्वारा उसके आधार पर किये वाद में लिखत की, जैसी कि वह मूलतः रची या लिखी गई थी, विधिमान्यता का प्रत्याख्यान करने के लिये अनुज्ञात न होगा।
धारा 121 पाने वाले की पृष्ठांकन की सामर्थ्य की प्रत्याख्यान करने के विरुद्ध विबंध
वचन पत्र का कोई भी रचियता और आदेशानुसार देय विनिमय पत्र का कोई प्रतिगृहीता सम्यक् अनुक्रम धारक द्वारा उसके आधार पर किये गए वाद में उस वचन-पत्र या विनिमय-पत्र की तारीख पर उसे पृष्ठांकित करने की पाने वाले की सामर्थ्य का प्रत्याख्यान करने के लिये अनुज्ञात न होगा।
धारा 122 – पूर्विक पक्षकार के हस्ताक्षर या सामर्थ्य का प्रत्याख्यान करने के विरुद्ध विबंध
परक्राम्य लिखत का कोई भी पृष्ठांकक किसी पश्चात्वर्ती धारक द्वारा उसके आधार पर किये गए वाद में उस लिखत के किसी भी पूर्विक पक्षकार के हस्ताक्षर या उसकी संविदा करने की सामर्थ्य का प्रत्याख्यान करने के लिये अनुज्ञात न होगा।
निष्कर्ष
परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धाराएँ 118 से 122 परक्राम्य लिखतों की पवित्रता एवं प्रवर्तनीयता की रक्षा हेतु एक महत्त्वपूर्ण विधिक साधन के रूप में कार्य करती हैं। धारा 118 के अधीन परक्राम्य लिखत के बारे में उपधारणाएं धारक को प्रारंभिक साक्ष्य भार से मुक्त कर वाणिज्यिक संव्यवहार की प्रक्रिया को सरल बनाती हैं, जबकि धाराएँ 120 से 122 में वर्णित विबंध से संबंधित उपबंध यह सुनिश्चित करते हैं कि किसी लिखत से संबंधित पक्षकार सद्भावपूर्वक कार्य करें एवं अपने ही कार्यों का प्रत्याख्यान कर अन्य पक्ष को क्षति न पहुँचाएँ। ये उपबंध सम्मिलित रूप से परक्राम्य लिखतों से संबद्ध वाणिज्यिक संव्यवहार में विश्वास एवं निश्चितता की स्थापना करते हैं।