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होल्डिंग (नियंत्री) कंपनी और सहायक (समनुषंगी) कंपनी
« »25-Jul-2024
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 BRS वेंचर्स इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड बनाम SREI इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड एवं अन्य “होल्डिंग कंपनी और उसकी सहायक कंपनी सदैव अलग-अलग विधिक इकाई होती हैं। हो सकता है कि होल्डिंग कंपनी के पास सहायक कंपनी के शेयर हों। परंतु इससे होल्डिंग कंपनी, सहायक कंपनी की परिसंपत्तियों की मालिक नहीं बन जाती”। न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल  | 
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि "एक होल्डिंग कंपनी और उसकी सहायक कंपनी सदैव अलग-अलग विधिक इकाई होती हैं। हो सकता है कि होल्डिंग कंपनी के पास सहायक कंपनी के शेयर हों। परंतु इससे होल्डिंग कंपनी, सहायक कंपनी की परिसंपत्तियों की स्वामी नहीं बन जाती"।
- उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय, BRS वेंचर्स इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड बनाम SREI इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड एवं अन्य के मामले में दिया।
 
BRS वेंचर्स इन्वेस्टमेंट्स लिमिटेड बनाम SREI इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- गुजरात हाइड्रोकार्बन एंड पावर SEZ लिमिटेड (कॉर्पोरेट देनदार) ने वर्ष 2011 में SREI इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड (वित्तीय ऋणदाता) से 100 करोड़ रुपए का ऋण लिया।
 - यह ऋण, पट्टे पर दी गई भूमि की गिरवी, शेयरों की गिरवी तथा असम कंपनी इंडिया लिमिटेड (ACIL) की कॉर्पोरेट गारंटी द्वारा सुरक्षित था।
 - भुगतान में चूक के कारण, वित्तीय ऋणदाता ने ACIL की कॉर्पोरेट गारंटी को लागू कर दिया तथा ACIL के विरुद्ध दिवालियापन कार्यवाही के लिये आवेदन कर दिया।
 - ACIL ने दिवालियापन समाधान प्रक्रिया अपनाई, जिसमें अपीलकर्त्ता सफल समाधान आवेदक था। अपीलकर्त्ता ने 241.27 करोड़ रुपए के अपने स्वीकृत दावे के विरुद्ध वित्तीय ऋणदाता को 38.87 करोड़ रुपए का भुगतान किया।
 - वर्ष 2020 में, वित्तीय ऋणदाता ने शेष 1428 करोड़ रुपए की ऋण राशि के लिये मूल कॉर्पोरेट देनदार (गुजरात हाइड्रोकार्बन) के विरुद्ध दिवालियापन कार्यवाही के लिये आवेदन दायर किया।
 - अपीलकर्त्ता ने इसे चुनौती देते हुए तर्क दिया कि कॉर्पोरेट देनदार की देनदारियाँ, ACIL की समाधान प्रक्रिया के माध्यम से समाप्त हो गई थीं।
 
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या हैं?
- पृथक कार्यवाही की अनुमति:
- न्यायालय ने पुष्टि की कि कॉर्पोरेट देनदार और कॉर्पोरेट गारंटर दोनों के विरुद्ध एक साथ या अन्यथा अलग-अलग दिवालियापन कार्यवाही दायर की जा सकती है।
 
 - सहायक कंपनी की परिसंपत्तियाँ: 
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि किसी सहायक कंपनी की परिसंपत्तियाँ, होल्डिंग कंपनी की समाधान योजना का भाग नहीं हो सकतीं। ACIL के समाधान में गुजरात हाइड्रोकार्बन की परिसंपत्तियाँ शामिल नहीं थी।
 
 - सीमित प्रत्यायोजन अधिकार:
- न्यायालय ने माना कि अनुबंध अधिनियम की धारा 140 के तहत प्रत्यायोजन अधिकार, गारंटर द्वारा वास्तव में भुगतान की गई राशि तक सीमित हैं (इस मामले में 38.87 करोड़ रुपए)।
 
 - कॉर्पोरेट देनदार की सतत् देयता: 
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि गारंटर के दिवालियापन समाधान के दौरान किये गए आंशिक भुगतान से कॉर्पोरेट देनदार की ऋण चुकाने की देयता समाप्त नहीं होती है।
 
 - दिवालियापन आवेदन की वैधता:
- न्यायालय ने शेष ऋण के लिये मूल कॉर्पोरेट देनदार के विरुद्ध अलग से दिवालियापन आवेदन दायर करने की वैधता को यथावत् रखा।
 
 - होल्डिंग और सहायक कंपनियों के बीच अंतर:
- निर्णय में होल्डिंग और सहायक कंपनियों के बीच विधिक पृथक्करण पर ज़ोर दिया गया तथा कहा गया कि होल्डिंग कंपनी अपनी सहायक कंपनी की परिसंपत्तियों की स्वामी नहीं होती।
 
 
होल्डिंग कंपनी और सहायक कंपनी क्या है?
होल्डिंग कंपनी:
- होल्डिंग कंपनी एक कॉर्पोरेट इकाई है जो अन्य कंपनियों में नियंत्रण हिस्सेदारी रखती है, जिन्हें सहायक कंपनियाँ कहा जाता है।
 - भारत में कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत, होल्डिंग कंपनी वह है जो किसी अन्य कंपनी के कम-से-कम 50% शेयर रखती है या उसके निदेशक मंडल के गठन को नियंत्रित करती है।
 
सहायक कंपनी:
- दूसरी ओर, सहायक कंपनी वह कंपनी होती है, जिसका संचालन और निर्णय लेने का नियंत्रण किसी अन्य कंपनी (होल्डिंग कंपनी) द्वारा किया जाता है।
 - होल्डिंग कंपनी, सामान्यतः सहायक कंपनी के 50% से अधिक शेयरों का स्वामी होती है।
 - यदि होल्डिंग कंपनी के पास 100% शेयर हैं, तो उसे पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी कहा जाता है।
 
होल्डिंग और सहायक कंपनी के बीच क्या अंतर है?
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 परिप्रेक्ष्य  | 
 होल्डिंग कंपनी  | 
 सहायक कंपनी  | 
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 नियंत्रण  | 
 अन्य कंपनियों पर नियंत्रण रखता है  | 
 किसी अन्य कंपनी द्वारा नियंत्रित है  | 
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 स्वामित्व  | 
 सहायक कंपनियों के 50% से अधिक शेयरों का स्वामित्व  | 
 अधिकांश शेयर होल्डिंग कंपनी के स्वामित्व में हैं  | 
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 निर्णय क्षमता  | 
 सहायक कंपनियों के निर्णयों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है  | 
 प्रमुख निर्णयों में सीमित स्वायत्तता  | 
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 जोखिम  | 
 सहायक कंपनियों के जोखिमों के लिये सीमित देयता  | 
 जोखिम सीधे तौर पर होल्डिंग कंपनी को प्रभावित नहीं करते  | 
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 उद्देश्य  | 
 रणनीतिक प्रबंधन और निवेश  | 
 केंद्रित व्यावसायिक संचालन  | 
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 विधिक स्थिति  | 
 अलग विधिक पहचान  | 
 होल्डिंग कंपनी से अलग विधिक इकाई  | 
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 बोर्ड का गठन  | 
 सहायक कंपनी के बोर्ड के गठन को नियंत्रित कर सकते हैं  | 
 बोर्ड प्रायः होल्डिंग कंपनी से प्रभावित होता है  | 
होल्डिंग कंपनी और सहायक कंपनी पर ऐतिहासिक निर्णय क्या हैं?
- भारतीय जीवन बीमा निगम बनाम एस्कॉर्ट्स लिमिटेड एवं अन्य (1986)
- इस मामले में होल्डिंग-सहायक कंपनी संबंधों में नियंत्रण के मुद्दे को संबोधित किया गया:
 - "मात्र इस तथ्य से कि किसी कंपनी की अन्य कंपनियों में नियंत्रणकारी शेयरधारिता है, अन्य कंपनियों को उसकी सहायक कंपनी नहीं बना दिया जाता, जब तक कि नियंत्रक कंपनी अन्य कंपनियों के निदेशक मंडल के गठन को नियंत्रित करने की स्थिति में न हो।"
 
 - मध्य प्रदेश राज्य बनाम डालिया (2001)
- यह मामला होल्डिंग-सब्सिडियरी संबंधों के मामलों में कॉर्पोरेट पर्दे को हटाने के मुद्दे से संबंधित था:
- “कॉर्पोरेट पर्दा वहाँ हटाया जा सकता है जहाँ सहायक कंपनी, मूल कंपनी का दूसरा रूप मात्र है और जहाँ सहायक कंपनी का उपयोग कर चोरी या कर दायित्व से बचने के लिये किया गया है।”
 
 
 - यह मामला होल्डिंग-सब्सिडियरी संबंधों के मामलों में कॉर्पोरेट पर्दे को हटाने के मुद्दे से संबंधित था:
 - GVK इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड एवं अन्य बनाम आयकर अधिकारी एवं अन्य (2011)
- संवैधानिक पीठ के इस निर्णय ने विधि के अतिरिक्त-क्षेत्रीय अनुप्रयोग के सिद्धांत निर्धारित किये।
 - न्यायालय ने कहा कि संसद को उन अतिरिक्त-क्षेत्रीय पहलुओं या कारणों के संबंध में विधान बनाने का अधिकार है जिनका भारत से पर्याप्त और सीधा संबंध है।
 
 - वोडाफोन इंटरनेशनल होल्डिंग्स बी.वी. बनाम भारत संघ (2012)
- इस ऐतिहासिक मामले में होल्डिंग और सहायक कंपनियों की अलग-अलग विधिक स्थिति पर ज़ोर दिया गया। भारत के उच्चतम न्यायालय ने कहा, "कंपनी एक अलग विधिक व्यक्तित्व है और यह तथ्य कि उसके सभी शेयर एक व्यक्ति या मूल कंपनी के स्वामित्व में हैं, इस तथ्य का उसके अलग विधिक अस्तित्व से कोई लेना-देना नहीं है। यदि मूल स्वामित्व वाली कंपनी बंद हो जाती है, तो परिसमापक को सहायक कंपनी की परिसंपत्तियों पर कब्ज़ा कर लेने का अधिकार होगा, न कि उसकी मूल कंपनी को कोई ऐसा अधिकार प्राप्त होगा।"
 
 - भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड बनाम पैन एशिया एडवाइजर्स लिमिटेड और अन्य (2015)
- यह मामला विदेशी सहायक कंपनियों पर SEBI के अधिकार क्षेत्र से संबंधित था।
 - उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यदि SEBI यह प्रदर्शित कर सके कि उसका कोई प्रावधान धोखाधड़ी से सुरक्षा तथा भारत में निवेशकों और शेयर बाज़ार के हितों को सुरक्षित करेगा, तो वह 'भारत नेक्सस परीक्षण' के तहत विधि के ऐसे बाह्य हस्तक्षेप को उचित मान सकता है।
 
 
प्रमुख होल्डिंग कंपनियाँ और सहायक कंपनियाँ कौन-सी हैं?
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