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आपराधिक कानून

सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 के अंतर्गत आयु प्रतिबंध

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 30-Dec-2025

एक्स और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य 

"न्यायालय विधायी निर्णयों की बुद्धिमत्ता का मूल्यांकन नहीं करताअपितु यह परीक्षा करता है कि क्या लिया गया निर्णय सांविधानिक सीमाओं का उल्लंघन करता है। आयु सीमा का निर्धारण सदैव से ही नीतिगत मामला माना गया है।" 

न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार और न्यायमूर्ति अरुण देव चौधरी 

स्रोत: गुवाहाटी उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

मुख्य न्यायाधीश आशुतोष कुमार और न्यायमूर्ति अरुण देव चौधरी की खंडपीठ नेएक्स और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (2025) के मामले मेंसहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम 2021 (ART Act, 2021) की धारा 21 (छ) की सांविधानिक वैधता को बरकरार रखा, जो भारत में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं तक पहुँच के लिये आयु सीमा विहित करती है।   

एक्स और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • याचिकाकर्त्ता एक विवाहित दंपत्ति थे जिन्होंनेसहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी अधिनियम 2021 के अधीन आयु प्रतिबंधों को चुनौती देने की मांग की थी। 
  • प्राकृतिक रूप से गर्भधारण करने में असमर्थ होने के बादयाचिकाकर्त्ताओं ने 2020 में सहायक प्रजनन प्रक्रिया के लिये चिकित्सा परामर्श शुरू किया। 
  • कोविड-19 महामारी ने उनके उपचार के क्रम को बाधित कर दियाजिससे उनकी सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (ART) उपचार प्रक्रिया में विलंब हुआ 
  • एक अस्पताल में प्रक्रिया सफल न होने के बादयाचिकाकर्त्ताओं ने सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं का लाभ उठाने के लिये 2024 में दूसरे अस्पताल से संपर्क किया। 
  • 13 मार्च 2024 को अस्पताल ने याचिकाकर्त्ताओं का इलाज करने से इस आधार पर इंकार कर दिया कि वे सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी अधिनियम 2021 की धारा 21(छ) के अधीन विहित आयु-पात्रता मानदंडों को पूरा नहीं करते हैं।  
  • याचिकाकर्त्ताओं नेधारा 21(छ) की सांविधानिक वैधता कोचुनौती दीयह तर्क देते हुए कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के अधीन उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। 
  • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि आयु के आधार पर किये गए कठोर अपवर्जन में व्यक्तिगत चिकित्सा मूल्यांकन को ध्यान में नहीं रखा गया था और यह मनमाना और असंगत था। 
  • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि चूँकि उन्होंने 2021 अधिनियम के लागू होने से पहले उपचार शुरू कर दिया थाइसलिये पश्चात्वर्ती लागू सांविधिक प्रतिबंध उन पर लागू नहीं होना चाहिये 
  • प्रत्यर्थियों ने तर्क दिया कि सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी अधिनियम 2021 सहायक प्रजनन से संबंधित नैतिकचिकित्सा और सामाजिक चिंताओं को संबोधित करने वाला एक व्यापक नियामक ढाँचा है।  
  • प्रत्यर्थियों ने तर्क दिया कि आयु सीमा मातृ स्वास्थ्य जोखिमोंभ्रूण के परिणामों और बाल कल्याण से संबंधित वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित है। 

न्यायालय की क्या टिप्पणियां थीं? 

  • पीठ ने टिप्पणी की कि यद्यपि प्रजनन संबंधी विकल्प चुनने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन व्यक्तिगत स्वतंत्रता का भाग हैजैसा कि उच्चतम न्यायालय नेसुचिता श्रीवास्तव और अन्य बनाम चंडीगढ़ प्रशासन (2009)में मान्यता दी है यह संरक्षण प्रत्येक व्यक्तिगत विकल्प को विनियमन से मुक्त नहीं करता है। 
  • न्यायालय ने कहा कि सांविधानिक अधिकारविशेष रूप से सामाजिक कल्याण और लोक स्वास्थ्य के क्षेत्र मेंअनुमेय विनियमन के ढाँचे के भीतर संचालित होते हैं। 
  • न्यायालय ने माना कि धारा 21(छ) चिकित्सा विज्ञाननैतिक मानकों और उपचार करा रही महिला और जन्म लेने वाले बच्चे दोनों के कल्याण के विचारों के आधार पर एक ऊपरी आयु सीमा विहित करती हैजो पूरी तरह से विधायी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं। 
  • न्यायालय ने कहा कि संसद द्वारा अधिनियमित किसी भी संविधि में सांविधानिकता की उपधारणा निहित होती है और असांविधानिकता साबित करने का भार काफी हद तक चुनौती देने वाले पर होता है। 
  • न्यायालय ने माना कि आर्थिक और सामाजिक कल्याण संबंधी विधायन न्यायिक सम्मान के पात्र हैंविशेष रूप से जहाँ अपनाए गए वर्गीकरण का उस उद्देश्य के साथ तार्किक संबंध हो जिसे प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है। 
  • पीठ ने पाया किधारा 21(छ) के अधीन आयु-आधारित वर्गीकरण सभी इच्छुक दंपतियों पर समान रूप से लागू होता है, एक बोधगम्य अंतर पर आधारित हैऔर सुरक्षितनैतिक और सामाजिक रूप से जिम्मेदार तरीके से सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं के विनियमन से सीधा संबंध रखता है।  
  • न्यायालय ने यह माना कि पात्रता पर विचार किये जाने की तिथि पर लागू विधि को सांविधिक लाभों तक पहुँच को नियंत्रित करना चाहियेभले ही अधिनियम के लागू होने से पहले के प्रयास विफल रहे हों। 
  • पीठ ने कहा कि कठिनाई या चिकित्सकीय फिटनेस के आधार पर व्यक्तिगत छूट देना विधायी नीति के स्थान पर न्यायिक विवेकाधिकार को प्रतिस्थापित करने के समान होगाजो सांविधानिक न्यायनिर्णय की अनुमेय सीमा से परे होगा। 
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 की धारा 21(सांविधानिक जांच में खरी उतरती है औरभारत के संविधान के अनुच्छेद 14 या 21 का उल्लंघन नहीं करती है।
  • याचिका खारिज कर दी गई। 

सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021 क्या है? 

बारे में: 

  • सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी अधिनियम 2021 भारत में सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं को नियंत्रित करने वाला एक व्यापक नियामक ढाँचा है। 
  • यह अधिनियम सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी प्रथाओं से संबंधित नैतिकचिकित्सा और सामाजिक चिंताओं को दूर करने के लिये बनाया गया था। 
  • इसका उद्देश्य सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी क्लीनिकों और सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी बैंकों को विनियमित और पर्यवेक्षण करनादुरुपयोग को रोकना और सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी प्रक्रियाओं में सम्मिलित पक्षकारों के अधिकारों की रक्षा करना है।   

धारा 21(छ) – आयु पात्रता मानदंड: 

  • सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी अधिनियम 2021 की धारा 21(छ) के अधीन सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाएँ उन महिलाओं को प्रदान की जा सकती हैं जिनकी आयु 21 वर्ष से अधिक और 50 वर्ष से कम है। 
  • पुरुषों के लियेसहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाएँ 21 वर्ष से अधिक और 55 वर्ष से कम आयु के लोगों के लिये उपलब्ध हैं। 
  • यह उपबंध माता और बच्चे दोनों के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिये अधिनियमित किया गया था। 
  • यह आयु सीमा मातृ स्वास्थ्य जोखिमोंभ्रूण के परिणामों और बाल कल्याण से संबंधित वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित है। 
  • यह उपबंध सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी सेवाओं के वितरण में चिकित्सा विज्ञाननैतिक मानकों और सामाजिक उत्तरदायित्त्व के विचारों को दर्शाता है।