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सिविल कानून

परिसीमा अधिनियम की धारा 5 निर्वाचन याचिकाओं को दाखिल करने पर लागू नहीं होती है

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 31-Dec-2025

ओमकार गुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्यप्रधान सचिवशहरी विकास विभागलखनऊ और अन्य 

"परिसीमा अधिनियम की धारा नगरपालिका अधिनियम, 1916 के अधीन दायर निर्वाचन याचिकाओं पर लागू नहीं होती हैक्योंकि ऐसी याचिकाएँ वाद नहीं हैं।" 

न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी 

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी ने ओमकारगुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्यप्रधान सचिवशहरी विकास विभागलखनऊ और अन्य (2025)के मामले में यह निर्णय दिया कि परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा उत्तर प्रदेश नगर पालिका अधिनियम, 1916 के अधीन दायर निर्वाचन याचिकाओं पर लागू नहीं होती है। 

ओमकारगुप्ता बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • प्रत्यर्थी ने उत्तर प्रदेश नगरपालिका अधिनियम, 1916 के अधीन नगरपालिका निर्वाचन परिणाम को चुनौती देते हुए एक निर्वाचन याचिका दायर की। 
  • निर्वाचन याचिका के साथप्रत्यर्थी नेपरिसीमा अधिनियम की धारा के अधीन 17 दिनों के विलंब की क्षमा हेतु एक आवेदन दायर किया। 
  • विलंब की क्षमा के लिये दायर आवेदन को अंबेडकर नगर के अपर जिला न्यायाधीश (F.T.C.-I) ने मंजूर कर लिया। 
  • याचिकाकर्त्ता ओमकार गुप्ता ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के अधीन इलाहाबाद उच्च न्यायालय में विलंब की क्षमा देने वाले इस आदेश को चुनौती दी। 
  • मूल विधिक प्रश्न यह था कि क्या परिसीमा अधिनियम की धारा 5, जो वादों को दायर करने में विलंब की क्षमा की अनुमति देती हैनगरपालिका अधिनियम, 1916 के अधीन दायर निर्वाचन याचिकाओं पर लागू होती है। 

न्यायालय की क्या टिप्पणियां थीं? 

  • न्यायालय ने यह माना कि यद्यपि नगरपालिका अधिनियम की धारा 20 के अधीन दायर की गई निर्वाचन याचिका एक वाद नहीं हैफिर भी यह एक मूल कार्यवाही है जिसका निर्णय वादों के निर्णय के लिये निर्धारित तरीके से किया जाना चाहिये 
  • न्यायमूर्ति विद्यार्थी ने टिप्पणी की कि परिसीमा अधिनियम की धारा वादों पर लागू नहीं होती हैऔर इसी कारण से यह नगरपालिका अधिनियम, 1916 के अधीन निर्वाचन याचिकाओं को दाखिल करने पर भी लागू नहीं होगी। 
  • परिसीमा अधिनियम के विनिर्दिष्ट अनुप्रयोग के संबंध मेंन्यायालय ने देखा कि नगरपालिका अधिनियम की धारा 23 का परंतुक यह निर्धारित करता है कि परिसीमा अधिनियम की धारा 12 की उपधारा (2) निर्वाचन याचिका की परिसीमा अवधारित करने के लिये लागू होगी। 
  • न्यायालय ने तर्क दिया कि जब विधानमंडल ने परिसीमा अधिनियम (धारा 12(2)) के किसी विशेष प्रावधान के आवेदन के लिये विशेष रूप से प्रावधान किया है और उस पर अन्य प्रावधान लागू नहीं किये हैंतो परिसीमा अधिनियम की धारा नगर पालिका अधिनियम के अधीन दायर निर्वाचन याचिकाओं पर लागू नहीं होगी। 
  • न्यायालय ने सुमन देवी बनाम मनीषा देवी के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर विश्वास कियाजिसका अनुसरण इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मेनका संजय गांधी बनाम रामभुआल निषाद के मामले में किया थाऔर यह माना किलोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के अधीन दायर निर्वाचन याचिकाओं पर परिसीमा अधिनियम की धारा लागू नहीं होगी। 
  • चूँकि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधान उत्तर प्रदेश नगरपालिका अधिनियम, 1916 के समान हैंइसलिये न्यायालय ने माना कि धारा बाद वाले अधिनियम के अधीन दायर निर्वाचन याचिकाओं पर लागू नहीं होगी। 
  • तदनुसाररिट याचिका स्वीकार कर ली गई और अपर जिला न्यायाधीश ((F.T.C.-I),), अंबेडकर नगर के समक्ष दायर निर्वाचन याचिका खारिज कर दी गई। 

परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा क्या है? 

बारे में: 

  • परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा विलंब की क्षमा के सिद्धांत को प्रतिपादित करती है। इसमें कहा गया है: 
  • कोई भी अपील या कोई भी आवेदन, जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 21 के उपबंधों में से किसी के अधीन से आवेदन से भिन्न हो, विहित काल के पश्चात् ग्रहण किया जा सकेगा यदि अपीलार्थी या आवेदक, न्यायालय का यह समाधान कर दे कि उसके पास ऐसे काल के भीतर अपील या आवेदन न करने के लिये पर्याप्त हेतुक था। 
  • इस अधिनियम की धारा में कहा गया है कि विलंब की क्षमा मांगने के लिये किसी पक्षकार कोविलंब का "पर्याप्त हेतुक" दिखाना होगा। 

विलंब की क्षमा: 

  • विलंब की क्षमा न्यायालयों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला एकविवेकाधीन उपचारहैजिसमें किसी पक्षकार द्वारा विहित काल के पश्चात् अपील या आवेदन को स्वीकार कराने के लिये किए गए आवेदन परन्यायालय विलंब को क्षमा (उपेक्षा करना) कर सकता है यदि पक्ष "पर्याप्त हेतुक" प्रदान करता है जिसके कारण वह समय पर अपील या आवेदन दाखिल करने में असमर्थ रहा। 

पर्याप्त हेतुक: 

  • पर्याप्त हेतुक का अर्थ है किन्यायालय के पास यह मानने के लिये पर्याप्त हेतुक या उचित आधारहोना चाहिये कि आवेदक को न्यायालय में आवेदन के साथ आगे बढ़ने से रोका गया था। 
  • धारा कुछ मामलों में विलंब के लिये पर्याप्त हेतुक बताए जाने पर विहित काल के विस्तार की अनुमति देती है। 
  • पश्चिम बंगाल राज्य बनाम प्रशासक (1972) : 
    • उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि समय का विस्तार एक रियायत का मामला है और इसे पक्षकार द्वारा अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है। 
    • पर्याप्त हेतुक के अर्थ को सटीक रूप से परिभाषित करना कठिन और अवांछनीय है। इसका अवधारण प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर किया जाना चाहिये। यद्यपिपर्याप्त हेतुक मेंनिम्नलिखित आवश्यक तत्त्व होने चाहिये: 
      • इसका कारण ऐसा होना चाहिये जो इसे लागू करने वाले पक्षकार के नियंत्रण से बाहर हो। 
      • वह उपेक्षा का दोषी नहीं होना चाहिये 
      • उनकी लगन और सावधानी प्रदर्शित की जानी चाहिये 
      • उसका आशय सद्भावनापूर्वक होना चाहिये