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पारिवारिक कानून

आचरण द्वारा हिंदू धर्म में संपरिवर्तन

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 19-Nov-2025

"हिंदू धर्म अपनाने का वास्तविक आशय, और साथ ही उस आशय को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने वाला आचरण, संपरिवर्तन का पर्याप्त प्रमाण होगा। संपरिवर्तन के लिये शुद्धिकरण या समाप्ति का कोई औपचारिक संस्कार आवश्यक नहीं है।" 

न्यायमूर्ति पी.बी. बालाजी 

स्रोत: मद्रास उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

के.कृष्णप्रियन और आयशा सिद्दीका बनाम अधीनस्थ न्यायालय, अंबत्तूर (2025) के मामलेमें मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पी.बी. बालाजी नेपारस्परिक सम्मति से विवाह-विच्छेद की याचिका को खारिज करने के निर्णय को खारिज कर दिया और कहा कि हिंदू धर्म में संपरिवर्तन आचरण के माध्यम से स्थापित किया जा सकता है, इसके लिये  किसी औपचारिक संस्कार या घोषणा की आवश्यकता नहीं है। 

के.कृष्णप्रिय और आयशा सिद्दीका बनाम अधीनस्थ न्यायालय, अंबत्तूर (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • पुनरीक्षण याचिकाकर्त्ता, पति और पत्नी, नेहिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 (ख) के अधीनपारस्परिक सम्मति से अपने विवाह को भंग करने की मांग की। 
  • उन्होंने अधीनस्थ न्यायाधीश, अम्बत्तूर के समक्ष एक याचिका दायर की, जिसे 2024 की H.M.O.P. No.77 के रूप में क्रमांकित किया गया।  
  • अंतिम सुनवाई के दौरान, न्यायालय ने पाया कि पत्नी (दूसरी याचिकाकर्त्ता) जन्म से मुस्लिम थी और मामले को सुनवाई योग्य होने पर बहस के लिये स्थगित कर दिया। 
  • विद्वान उप न्यायाधीश ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 2 का हवाला देते हुए कहा कि यह अधिनियम केवल हिंदुओं, बौद्धों, जैनों या सिखों पर लागू होता है, न कि मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों या यहूदियों पर। 
  • उप न्यायाधीश ने याचिका को पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दिया तथा पाया किपत्नी का मुस्लिम होनादंपति को हिंदू विवाह अधिनियम के अधीन अनुतोष पाने के लिये अयोग्य बनाता है। 
  • याचिकाकर्त्ताओं ने इस खारिजी को चुनौती देते हुए भारतीय संविधान के अनुच्छेद 227 के अधीन एक सिविल पुनरीक्षण याचिका दायर की। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

आचरण के माध्यम से संपरिवर्तन पर: 

  • न्यायालय ने इस बात पर गौर किया कि पेरुमल नादर मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा था: "कोई व्यक्ति जन्म से या संपरिवर्तन से हिंदू हो सकता है। किसी अन्य धर्म में जन्मे व्यक्ति द्वारा हिंदू धर्म के प्रति मात्र सैद्धांतिक निष्ठा उसे हिंदू नहीं बनाती, न ही यह मात्र घोषणा कि वह हिंदू है, उसे हिंदू धर्म में परिवर्तित करने के लिये पर्याप्त है।" 
  • तथापि, "हिंदू धर्म में संपरिवर्तन का वास्तविक आशय, तथा उस आशय को स्पष्ट रूप से व्यक्त करने वाला आचरण, संपरिवर्तन का पर्याप्त साक्ष्य होगा।" 
  • उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि "संपरिवर्तन को प्रभावी बनाने के लिये शुद्धिकरण या समाप्ति का कोई औपचारिक संस्कार आवश्यक नहीं है।" 

मुख्य निष्कर्ष: 

  • यह विवाह बालमुरुगन मंदिर में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार अनुष्ठित हुआ, जैसा कि तस्वीरों और मंदिर के पुष्टिकरण पत्र से स्पष्ट है। 
  • पत्नी ने हिंदू विवाह संस्कारों में भाग लिया और आचरण के माध्यम से संपरिवर्तन का प्रदर्शन करते हुए हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के अधीन कुटुंब न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 
  • न्यायालय ने कहा कि केवल इसलिये कि पत्नी ने अपना मूल मुस्लिम नाम बरकरार रखा है, इस मामले में जांच की कोई आवश्यकता नहीं है। 
  • याचिकाकर्त्ताओं ने जानबूझकर हिंदू धर्म का हवाला देते हुए हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों का हवाला दिया। 
  • यद्यपि पत्नी जन्म से मुस्लिम थी, किंतु उसके आचरण से स्पष्ट रूप से हिंदू धर्म में परिवर्तन प्रदर्शित हुआ। मात्र औपचारिक संस्कार का अभावपारस्परिक सम्मति से विवाह-विच्छेद के आवेदन को खारिज करने का आधार नहीं हो सकता। 

    न्यायालय का निदेश: 

    • उच्च न्यायालय नेयाचिका खारिज करने के अधीनस्थ न्यायाधीश के आदेश कोअपास्त कर दिया । 
    • याचिका पर गुण-दोष के आधार पर तथा विधि के अनुसार निर्णय करने के लिये मामला अम्बत्तूर अधीनस्थ न्यायालय को भेज दिया गया। 
    • अधीनस्थ न्यायालय को उच्च न्यायालय का आदेश प्राप्त होने के चार सप्ताह के भीतर अंतिम आदेश पारित करने का निदेश दिया गया।

    हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 क्या है? 

    बारे में: 

    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) भारत में हिंदुओं के बीच विवाह को नियंत्रित करने वाली प्राथमिक विधि है। 
    • यह विधेयक हिंदू विवाह विधियों को संहिताबद्ध और सुधारित करता है, तथा वैध विवाहों के लिये शर्तें और विवाह-विच्छेद के आधार निर्धारित करता है। 

    धारा 2 के अंतर्गत प्रयोज्यता: 

    • अधिनियम की धारा 2 में परिभाषित किया गया है कि अधिनियम के प्रयोजनों के लिये कौन "हिंदू" के रूप में योग्य है। 
    • यह अधिनियम किसी भी ऐसे व्यक्ति पर लागू होता है जो धर्म से हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख है। 
    • यह उन क्षेत्रों में निवास करने वाले व्यक्तियों पर लागू होता है जिन पर अधिनियम लागू होता है। 
    • अधिनियम में विशेष रूप से मुसलमानों, ईसाइयों, पारसियों और यहूदियों को सम्मिलित नहीं किया गया है, जब तक कि उन्हें अधिनियम के अधीन हिंदू नहीं माना जा सकता। 
    • कोई व्यक्ति जन्म, वंश या संपरिवर्तन से हिंदू हो सकता है। 

    धारा 13() – पारस्परिक सम्मति से विवाह-विच्छेद : 

    • धारा 13() दंपतियों को पारस्परिक सम्मति से विवाह-विच्छेद की अनुमति देती है। 
    • दोनों पक्षकारों को संयुक्त रूप से एक याचिका दायर करनी होगी जिसमें यह कहा जाएगा कि वे एक वर्ष या उससे अधिक समय से पृथक् रह रहे हैं। 
    • उन्हें इस बात पर सहमत होना होगा कि वे एक साथ नहीं रह पाए हैं और उन्होंने पारस्परिक सम्मति से विवाह विच्छेद पर सहमति व्यक्त की है। 
    • आवेदन दाखिल करने के छह महीने बाद किंतु अठारह महीने के भीतर, दोनों पक्षकारों को दूसरे प्रस्ताव के माध्यम से अपनी सम्मति की पुष्टि करनी होगी। 
    • यदि न्यायालय संतुष्ट हो जाता है कि सम्मति वास्तविक है और सांविधिक आवश्यकताएँ पूरी हो गई हैं, तो वह तलाक का आदेश पारित कर सकता है। 

    संपरिवर्तन और प्रयोज्यता: 

    • न्यायालय ने माना कि जब कोई व्यक्ति हिंदू विवाह संस्कारों में भाग लेकर तथा निरंतर हिंदू के रूप में पहचान बनाकर हिंदू धर्म अपनाता है, तो हिंदू विवाह अधिनियम लागू होता है। 
    • इसमें औपचारिक संपरिवर्तन समारोह या दस्तावेज़ीकरण की कोई आवश्यकता नहीं है।  
    • सद्भावनापूर्ण आशय के साथ-साथ उस आशय को व्यक्त करने वाला स्पष्ट आचरण ही संपरिवर्तन के साक्ष्य के रूप में पर्याप्त है।  
    • जो व्यक्ति हिंदू मंदिर में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह करता है और हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों का उपयोग करता है, वह आचरण के माध्यम से संपरिवर्तन प्रदर्शित करता है, जिससे वह अधिनियम के अधीन पारस्परिक सम्मति से विवाह-विच्छेद सहित अन्य उपचार प्राप्त करने का पात्र हो जाता है।