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अंतर्राष्ट्रीय कानून
शेख हसीना को मृत्युदण्ड
«19-Nov-2025
स्रोत: द हिंदू
परिचय
17 नवंबर, 2025 को, बांग्लादेश के अंतर्राष्ट्रीय अपराध अधिकरण ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमां खान कमाल को जुलाई-अगस्त 2024 के छात्र विद्रोह के दौरान मानवता के विरुद्ध अपराधों के लिये उनकी अनुपस्थिति में मृत्युदण्ड की सजा सुनाई, जिसमें 1,400 से अधिक लोग मारे गए थे। इस निर्णय ने भारत और बांग्लादेश के बीच एक बड़ा कूटनीतिक संकट उत्पन्न कर दिया है, क्योंकि हसीना भारत में निर्वासन में हैं, और ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ संबंधों के होते हुए भी, भारत पर उनके प्रत्यर्पण के लिये बढ़ते दबाव का सामना करना पड़ रहा है।
निर्णय: मुख्य तथ्य
- न्यायमूर्ति गोलाम मुर्तुज़ा मोजुमदार की अध्यक्षता वाले तीन सदस्यीय अधिकरण ने 10,000 पृष्ठों के दस्तावेज़ों और 80 से अधिक साक्षियों के परिसाक्ष्य सहित व्यापक साक्ष्यों की जांच के बाद हसीना को दोषी ठहराया। उन्हें हत्या के लिये उकसाने, प्रदर्शनकारियों पर घातक बल प्रयोग का आदेश देने और बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों के दौरान अत्याचारों को रोकने में असफल रहने का दोषी पाया गया।
- पूर्व पुलिस महानिरीक्षक चौधरी अब्दुल्ला अल-मामुन को अधिकरण के साथ सहयोग करने तथा दमन में संलिप्तता स्वीकार करने के बाद पाँच वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई।
जुलाई 2024 का छात्र विद्रोह: एक समयरेखा
- 5 जून, 2024: उच्च न्यायालय ने 1971 के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिये 30% नौकरी कोटा बहाल किया।
- 1 जुलाई, 2024: ढाका विश्वविद्यालय में छात्र विरोध प्रदर्शन शुरू।
- 15 जुलाई, 2024: बांग्लादेश छात्र लीग (अवामी लीग की छात्र शाखा) ने प्रदर्शनकारियों पर छड़ों और लाठियों से हमला किया; देश भर में हिंसा बढ़ गई।
- 19 जुलाई, 2024: 75 मौतों के साथ सबसे घातक दिन; सेना तैनात, दूरसंचार ब्लैकआउट लगाया गया।
- 21 जुलाई, 2024: उच्चतम न्यायालय ने आरक्षण घटाकर 5% कर दिया, किंतु विरोध प्रदर्शन जारी रहा।
- 3 अगस्त, 2024: छात्रों ने हसीना के इस्तीफे की मांग की।
- 5 अगस्त, 2024: हसीना हेलीकॉप्टर से भारत भाग गईं; मुहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार का नेतृत्व संभाला।
- कुल हताहत (जनहानि): लगभग 1,400 लोग मारे गए, जिनमें से अधिकांश निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षा बलों की गोलीबारी में मारे गए।
अंतर्राष्ट्रीय अपराध अधिकरण
- अंतर्राष्ट्रीय अपराध अधिकरण की स्थापना 2009 में अंतर्राष्ट्रीय अपराध (अधिकरण) अधिनियम 1973 के अधीन की गई थी, जिसे मूल रूप से 1971 के बांग्लादेश नरसंहार के अपराधियों पर अभियोजन चलाने के लिये बनाया गया था, जब अनुमानतः 3 मिलियन लोग मारे गए थे और 200,000 महिलाओं को पाकिस्तानी सेना द्वारा लैंगिक हिंसा का सामना करना पड़ा था।
- विवाद : एमनेस्टी इंटरनेशनल ने इस अधिकरण की बार-बार आलोचना की है, यह कहते हुए कि कार्यवाही राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित है, निष्पक्ष विचारण के मानकों का उल्लंघन करती है, मृत्युदण्ड देने के लिये अत्यधिक दबाव डाला जाता है तथा अपील के अधिकार से वंचित किया जाता है। आलोचक अवामी लीग पर राजनीतिक विरोधियों के विरुद्ध अधिकरण को हथियार बनाने का आरोप लगाते हैं।
भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि
संधि के प्रावधान:
- 28 जनवरी, 2013 को हस्ताक्षरित एक प्रत्यर्पण संधि (जो 23 अक्टूबर, 2013 से प्रभावी है) भारत और बांग्लादेश के बीच अपराधियों के आदान-प्रदान को नियंत्रित करती है। 2016 के एक संशोधन ने इस प्रक्रिया को सरल बना दिया है, जिसके अधीन अपराध के साक्ष्य के बजाय केवल गिरफ्तारी वारण्ट की आवश्यकता होती है।
इंकार के आधार:
भारत प्रत्यर्पण से इंकार कर सकता है यदि:
- आरोप राजनीतिक प्रकृति के हैं (राजनीतिक अपराध अपवाद)।
- आरोप सद्भावना से नहीं लगाए गए है।
- उचित प्रक्रिया या मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ मौजूद हैं।
- व्यक्ति का जीवन खतरे में है।
- मामला सैन्य अपराधों से संबंधित है जिन्हें आपराधिक उल्लंघन नहीं माना जाता है।
भारत-बांग्लादेश संबंध - स्वर्णिम युग (2009-2024):
शेख हसीना के नेतृत्व में भारत-बांग्लादेश संबंध अभूतपूर्व ऊंचाइयों पर पहुँचे:
- सीमा समझौता : सितंबर 2011 में हुए प्रमुख समझौते से चार दशक पुराना क्षेत्रीय विवाद समाप्त हो गया।
- सुरक्षा सहयोग : बांग्लादेश ने पूर्वोत्तर भारत में सक्रिय ULFA और NSCN जैसे भारत विरोधी विद्रोही समूहों का दमन किया।
- आर्थिक भागीदारी : भारत ने ऋण सहायता के माध्यम से 7.862 बिलियन डॉलर प्रदान किये, जिससे बांग्लादेश सबसे बड़ा प्राप्तकर्त्ता बन गया।
- बुनियादी ढाँचे का विकास : ढाका-कोलकाता-अगरतला को जोड़ने वाली सड़कें, पुल, रेलवे और मालवाहक जहाज पहुँच का पुनर्निर्माण किया गया।
- आतंकवाद-निरोध : घनिष्ठ खुफिया जानकारी साझा करना और संयुक्त अभियान।
अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठन
- एमनेस्टी इंटरनेशनल के महासचिव ने मृत्युदण्ड की निंदा करते हुए कहा कि यद्यपि अपराधियों को न्याय का सामना करना ही होगा, "यह विचारण और दण्डादेश न तो निष्पक्ष है और न ही न्यायसंगत है" तथा यह "परम क्रूर, अपमानजनक और अमानवीय दण्ड" है।
भविष्य का दृष्टिकोण और निहितार्थ
भारत की रणनीतिक गणना:
विश्लेषकों का मानना है कि भारत के सामने निम्नलिखित में से एक असंभव विकल्प है:
- हसीना का प्रत्यर्पण : मित्र नेताओं के लिये सुरक्षित आश्रय स्थल के रूप में अपनी विश्वसनीयता को नुकसान पहुँचाना तथा संभवतः किसी को फाँसी की सजा देना।
- प्रत्यर्पण से इंकार करना : बांग्लादेश की अंतरिम सरकार को अलग-थलग करना तथा बांग्लादेश को चीन की ओर मोड़ना।
बांग्लादेश की अस्थिरता:
हसीना के बाद बांग्लादेश को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा:
- राजनीतिक विखंडन और सत्ता संघर्ष।
- इस्लामी समूहों का उदय।
- अंतरिम सरकार के अधीन मानवाधिकारों का उल्लंघन।
- निर्णय के दौरान लगभग 50 आगजनी की घटनाएं हुईं और दर्जनों देशी बम विस्फोट हुए।
- आगामी फरवरी चुनाव अनिश्चित परिस्थितियों में होंगे।
निष्कर्ष
शेख हसीना के मृत्युदण्ड का निर्णय दक्षिण एशियाई भू-राजनीति में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व करता है। जिस तथ्य को अंतरिम सरकार जुलाई 2024 के नरसंहार के लिये न्याय के रूप में प्रस्तुत कर रही है, उसे आलोचक एक ऐसे राजनीतिक प्रतिशोध के रूप में देखते हैं, जिसे एक ऐसे अधिकरण के माध्यम से लागू किया गया है जिसका निष्पक्ष विचारण के मानकों के उल्लंघन से संबंधित विवादास्पद इतिहास रहा है।
यह संकट बुनियादी सिद्धांतों की परीक्षा ले रहा है: संक्रमणकालीन न्याय बनाम उचित प्रक्रिया, राष्ट्रीय संप्रभुता बनाम मानवीय सरोकार, और रणनीतिक भागीदारी बनाम नैतिक दायित्त्व। भारत का निर्णय दशकों तक क्षेत्रीय गतिशीलता को आकार देगा, और संभवतः यह निर्धारित करेगा कि बांग्लादेश भारत के प्रभाव क्षेत्र में बना रहेगा या निर्णायक रूप से चीन की ओर झुकेगा।
जैसे-जैसे यह नाटक सामने आ रहा है, एक बात तो तय है: भारत-बांग्लादेश संबंध, जो हसीना के शासनकाल में 15 वर्षों तक फलते-फूलते रहे, एक अनिश्चित और संभावित रूप से खंडित भविष्य का सामना कर रहे हैं। इस संकट का समाधान पूरे दक्षिण एशिया में लोकतंत्र, मानवाधिकारों और क्षेत्रीय स्थिरता के लिये महत्त्वपूर्ण पूर्व निर्णय स्थापित करेगा।