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सिविल कानून

लाभ के लिये सॉफ्टवेयर खरीदने वाली कंपनियों को उपभोक्ता नहीं माना जाता

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 14-Nov-2025

"लाभ अर्जन से जुड़ी व्यावसायिक प्रक्रियाओं को स्वचालित करने के लिये सॉफ्टवेयर खरीदने वाली कंपनी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1) (घ) के अधीन 'उपभोक्ता' नहीं माना जा सकता है।" 

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

मेसर्स पॉली मेडिक्योर लिमिटेड बनाम मेसर्स ब्रिलियो टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड (2025)के मामले में न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ नेपॉली मेडिक्योर लिमिटेड द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, और कहा कि व्यावसायिक प्रक्रियाओं को स्वचालित करने के लिये सॉफ्टवेयर खरीदने वाली कंपनी को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अधीन "उपभोक्ता" नहीं माना जा सकता है, क्योंकि संव्यवहार का लाभ सृजन से सीधा संबंध था। 

मेसर्स पॉली मेडिक्योर लिमिटेड बनाम मेसर्स ब्रिलियो टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • अपीलकर्त्ता, पॉली मेडिक्योर लिमिटेड, जो कंपनी अधिनियम, 1956 के अधीन निगमित एक कंपनी थी, चिकित्सा उपकरणों और उपस्करों केनिर्यात और आयात में लगी हुई थी। 
  • कंपनी ने अपने संयंत्र में निर्यात/आयात दस्तावेज़ीकरण प्रणाली स्थापित करने और कार्यान्वित करने के लिये प्रत्यर्थी, ब्रिलियो टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड से "ब्रिलियो ऑप्टी सूट" नामक सॉफ्टवेयर का उत्पाद लाइसेंस खरीदा। 
  • अपेक्षित संदाय करने के बाद अपीलकर्त्ता ने अभिकथित किया कि सॉफ्टवेयर ने ठीक से काम नहीं किया, जो सेवा में कमी दर्शाता है। 
  • 2019 में, अपीलकर्त्ता ने राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, दिल्ली के समक्ष उपभोक्ता परिवाद संख्या 515/2019 दायर की, जिसमें उत्पाद लाइसेंस लागत और अतिरिक्त विकास लागत के लिये संदाय की गई पूरी राशि 18% ब्याज के साथ वापस करने की मांग की गई। 
  • प्रत्यर्थी ने परिवाद का विरोध करते हुए दावा किया कि यहपोषणीय नहीं है, क्योंकि अपीलकर्त्ताउपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)(घ) में परिभाषित "उपभोक्ता" नहीं है। 
  • राज्य आयोग ने दिनांक 19.08.2019 के आदेश के अधीन माना कि चूँकि सॉफ्टवेयर लाइसेंस वाणिज्यिक उद्देश्य के लिये खरीदा गया था, इसलिये परिवादकर्त्ता "उपभोक्ता" के रूप में योग्य नहीं है और परिवाद को पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दिया। 
  • अपीलकर्त्ता ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के समक्ष प्रथम अपील संख्या 1977/2019 दायर की, जिसे राज्य आयोग के आदेश की पुष्टि करते हुए 15.06.2020 को खारिज कर दिया गया। 
  • इसके बाद अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर की, जिसे सिविल अपील संख्या 6349/2024 में परिवर्तित कर दिया गया। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

"उपभोक्ता" की परिभाषा पर: 

  • न्यायालय ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)(घ) की जांच की, जिसमें उपभोक्ता को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है जो किसी प्रतिफल के लिये सामान खरीदता है या सेवाएँ प्राप्त करता है, किंतु इसमें उन व्यक्तियों को सम्मिलित नहीं किया गया है जो पुनर्विक्रय या किसी वाणिज्यिक उद्देश्य के लिये सामान प्राप्त करते हैं। 
  • धारा 2(1)(घ) के स्पष्टीकरण में स्पष्ट किया गया है कि "वाणिज्यिक उद्देश्य" में केवल स्वनियोजन के माध्यम से आजीविका कमाने के लिये वस्तुओं या सेवाओं का उपयोग सम्मिलित नहीं है। 
  • न्यायालय ने कहा कि धारा 2(1)(ड) में "व्यक्ति" की परिभाषा समावेशी है, संपूर्ण नहीं है, और इसलिये, एक निगमित कंपनी धारा 2(1)(घ) के अर्थ के भीतर उपभोक्ता हो सकती है। 

वाणिज्यिक उद्देश्य पर: 

  • न्यायालय नेलीलावती कीर्तिलाल मेहता मेडिकल ट्रस्ट बनाम यूनिक शांति डेवलपर्स (2020) के मामलेपर विश्वास करते हुए यह स्थापित किया कि "कारबार के उद्देश्य" में सामान्यत: विनिर्माण/औद्योगिक गतिविधि या वाणिज्यिक संस्थाओं के बीच कारबार-से-कारबार संव्यवहार सम्मिलित होते हैं। 

लाभ सृजन के साथ संबंध पर: 

  • न्यायालय ने "ब्रिलियो ऑप्टी सूट" सॉफ्टवेयर की प्रकृति की जांच की, जिसका उपयोग निर्यात दस्तावेज़ सेट, क्लबिंग/विभाजन एस..पी. विक्रय दस्तावेज़ों, ऋण पत्र प्रबंधन, कंटेनर इंडेंट और ट्रैकिंग, निर्यात ऋण प्रत्याभूति निगम (ECGC) पॉलिसी प्रबंधन, तथा फॉरेक्स फ़ॉरवर्ड कवर प्रबंधन के लिये किया जाता था 
  • न्यायालय ने पाया कि सॉफ्टवेयर का उपयोग माल के आयात और निर्यात के लिये आवश्यक दस्तावेज़ बनाने तथा सरकारी योजनाओं के अधीन खेप और लाभों को ट्रैक करने के लिये किया गया था, जिसका लाभ कमाने वाली गतिविधि से सीधा संबंध था। 
  • न्यायालय ने कहा कि कारबार की प्रक्रियाओं का स्वचालनन केवल बेहतर प्रबंधन के लिये किया जाता है, अपितु लागत कम करने और लाभ को अधिकतम करने के लिये भी किया जाता है। 

कारबार-से- कारबार संव्यवहार पर: 

  • न्यायालय ने कहा कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का उद्देश्य कारबार-से-उपभोक्ता विवादों का समाधान करना तथा उपभोक्ता विवादों का सरल एवं त्वरित समाधान उपलब्ध कराना है। 
  • यदि अधिनियम के अंतर्गत कारबार-से- कारबार के संव्यवहार की अनुमति दी गई तो इससे विधायन का मूल उद्देश्य ही असफल हो जाएगा। 

अंतिम निर्णय: 

  • चूँकि संव्यवहार का संबंध लाभ सृजन से था, इसलिये अपीलकर्त्ता को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)(घ) में परिभाषित "उपभोक्ता" नहीं माना जा सकता। 
  • न्यायालय नेराज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग दोनों के निर्णयों को बरकरार रखा तथालागत के संबंध में कोई आदेश दिये बिना अपील को खारिज कर दिया। 

उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 क्या है? 

बारे में: 

  • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 उपभोक्ताओं के हितों की बेहतर सुरक्षा प्रदान करने तथा उससे संबंधित मामलों के लिये अधिनियमित किया गया था। 
  • इस अधिनियम ने उपभोक्ता विवादों के त्वरित एवं सरल निवारण के लिये जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर त्रिस्तरीय अर्ध-न्यायिक तंत्र की स्थापना की। 
  • बाद में इस अधिनियम को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 द्वारा प्रतिस्थापित कर दिया गया, जो 20 जुलाई, 2020 को लागू हुआ। 

धारा 2(1)(घ) के अधीन उपभोक्ता की परिभाषा: 

  • "उपभोक्ता" से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जो प्रतिफल के बदले सामान खरीदता है या प्रतिफल के बदले सेवाएँ प्राप्त करता है। 
  • इस परिभाषा में माल के उपयोगकर्त्ता (क्रेता के सिवाय) और सेवाओं के लाभार्थी (सेवाओं का लाभ उठाने वाले व्यक्ति के सिवाय) सम्मिलित हैं, जब ऐसा उपयोग/लाभ क्रेता/सेवाओं का लाभ उठाने वाले व्यक्ति के अनुमोदन से हो। 
  • इस परिभाषा में विशेष रूप से उन व्यक्तियों को सम्मिलित नहीं किया गया है जो पुनर्विक्रय या किसी वाणिज्यिक उद्देश्य के लिये माल प्राप्त करते हैं, तथा उन व्यक्तियों को भी सम्मिलित नहीं किया गया है जो किसी वाणिज्यिक उद्देश्य के लिये सेवाएँ प्राप्त करते हैं। 

वाणिज्यिक उद्देश्य का स्पष्टीकरण: 

  • स्पष्टीकरण में स्पष्ट किया गया है कि "वाणिज्यिक उद्देश्य" में किसी व्यक्ति द्वारा खरीदी गई और उपयोग की गई वस्तुओं तथा उसके द्वारा प्राप्त सेवाओं का उपयोग, विशेष रूप से स्व-नियोजन के माध्यम से अपनी आजीविका कमाने के लिये सम्मिलित नहीं है। 
  • यह अपवाद उन स्व-नियोजित व्यक्तियों की रक्षा करता है जो अपनी आजीविका के लिये सामान खरीदते हैं या सेवाएँ प्राप्त करते हैं, तथा उन्हें लाभ के लिये व्यापार करने वाली वाणिज्यिक संस्थाओं से अलग करता है।