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सिविल कानून
लंबित आपराधिक कार्यवाही के दौरान पासपोर्ट जारी करना
«13-Nov-2025
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"पासपोर्ट जारी करने वाला प्राधिकारी केवल एक वर्ष की वैधता वाला पासपोर्ट जारी करने के अपने अधिकार के अंतर्गत है और याचिकाकर्त्ता अधिकार के रूप में दस वर्ष के लिये पासपोर्ट या उसके नवीकरण की मांग नहीं कर सकता है।" न्यायमूर्ति अजीत कुमार और स्वरूपमा चतुर्वेदी |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अजीत कुमार और स्वरूपमा चतुर्वेदी की खंडपीठ ने रहीमुद्दीन बनाम भारत संघ और अन्य (2025) के मामले में निर्णय दिया कि पासपोर्ट प्राधिकारी एक वर्ष के लिये वैध पासपोर्ट जारी कर सकते हैं, जब यात्रा के लिये न्यायालय की अनुमति में अवधि निर्दिष्ट नहीं होती है, और पुलिस विभागों को विलंब से बचने के लिये निर्धारित समय सीमा के भीतर पासपोर्ट सत्यापन पूरा करने का निदेश दिया।
रहीमुद्दीन बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता के विरुद्ध एक आपराधिक मामला लंबित था (भारतीय दण्ड संहिता की धारा 447 और लोक संपत्ति क्षति निवारण अधिनियम, 1984 की धारा 3 के अधीन प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) संख्या 181/2016)।
- प्रारंभ में, लंबित आपराधिक कार्यवाही के कारण पासपोर्ट आवेदन अस्वीकार कर दिया गया था।
- याचिकाकर्त्ता ने पासपोर्ट जारी करने के लिये निदेश मांगते हुए रिट सी संख्या 30083/2024 के माध्यम से इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
- न्यायालय के दिनांक 10.09.2024 के आदेश के अनुसरण में, याचिकाकर्त्ता ने 10.10.2024 को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, पीलीभीत से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) प्राप्त किया।
- क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी, बरेली ने एक वर्ष (20.01.2025 से 19.01.2026) के लिये वैध पासपोर्ट जारी किया।
- याचिकाकर्त्ता ने एक वर्ष के बजाय दस वर्षों के लिये पासपोर्ट का नवीकरण/पुनः जारी करने की मांग करते हुए वर्तमान याचिका दायर की।
- याचिकाकर्त्ता ने पवन कुमार राजभर बनाम भारत संघ और 2 अन्य (2024) के निर्णय पर विश्वास किया।
- पासपोर्ट कार्यालय ने तर्क दिया कि चूँकि न्यायालय के आदेश में अवधि निर्दिष्ट नहीं की गई थी, इसलिये 28.8.1993 की अधिसूचना के अनुसार एक वर्ष की वैधता सही ढंग से प्रदान की गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
विधिक ढाँचा विश्लेषण:
न्यायालय ने पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 6(2)(च) की जाँच की, जिसके अनुसार यदि आवेदक के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही लंबित है तो पासपोर्ट देने से इंकार किया जा सकता है। यद्यपि, केंद्र सरकार ने धारा 22 के अधीन शक्तियों का प्रयोग करते हुए 25.08.1993 की अधिसूचना G.S.R. 570(ङ) जारी की, जिसमें न्यायालय की अनुमति प्राप्त करने वाले ऐसे व्यक्तियों को छूट प्रदान की गई।
अधिसूचना G.S.R. 570(ङ) - प्रमुख प्रावधान
अधिसूचना में न्यायालय के आदेश के आधार पर पासपोर्ट की वैधता अवधि निर्धारित की गई है:
- यदि न्यायालय अवधि निर्दिष्ट करता है - उस अवधि के लिये पासपोर्ट जारी करें।
- यदि न्यायालय अवधि निर्दिष्ट नहीं करता है - तो केवल एक वर्ष के लिये पासपोर्ट जारी करें।
- यदि आवेदक ने यात्रा नहीं की है और न्यायालय का आदेश वैध है तो एक वर्षीय पासपोर्ट का वार्षिक नवीनीकरण किया जा सकता है।
दिनांक 10.10.2019 के कार्यालय ज्ञापन में स्पष्ट किया गया है कि G.S.R. 570(ङ) में सांविधिक बल है और इसे कठोरता से लागू किया जाना चाहिये।
सांविधानिक सिद्धांत
न्यायालय ने मेनका गाँधी बनाम भारत संघ (1978) के मामले का हवाला देते हुए कहा कि यात्रा का अधिकार अनुच्छेद 21 का भाग है और प्रशासनिक कार्रवाई निष्पक्ष, उचित और मनमानी रहित होनी चाहिये। न्यायालय ने सतवंत सिंह साहनी (1967) के मामले का भी हवाला दिया, जिसमें यह स्थापित किया गया था कि व्यक्ति सामान्यतः पासपोर्ट पाने का हकदार है, जब तक कि इंकार करने के लिये वैध आधार विद्यमान न हों।
न्यायालय के निर्णय और निदेश
मुख्य निर्णय:
- एक वर्ष की वैधता उचित: चूँकि न्यायालय की NOC में अवधि निर्दिष्ट नहीं थी, इसलिये पासपोर्ट प्राधिकरण ने 1993 की अधिसूचना के अधीन एक वर्ष के लिये वैध पासपोर्ट जारी किया।
- दस वर्षीय पासपोर्ट का कोई स्वतः अधिकार नहीं: जब आपराधिक कार्यवाही लंबित हो तो याचिकाकर्त्ता अधिकार के रूप में दस वर्षीय पासपोर्ट की मांग नहीं कर सकता।
- वार्षिक नवीकरण उपलब्ध: यदि आवेदक ने यात्रा नहीं की है और न्यायालय का आदेश अपरिवर्तित रहता है तो एक वर्ष के पासपोर्ट की अवधि को प्रतिवर्ष बढ़ाया जा सकता है।
प्राधिकारियों के लिये निदेश:
- यदि पासपोर्ट जारी नहीं किया जा सकता है तो क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारियों को एक मास के भीतर आवेदकों को सूचित करना होगा।
- NOC प्राप्त होने के बाद, एक मास के भीतर आवेदन का निपटारा करें।
- पुलिस को चार सप्ताह के भीतर सत्यापन रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
सामान्य निदेश:
- आवेदकों को न्यायालय जाने से पहले आवश्यक NOC प्राप्त करनी चाहिये।
- पुलिस विभागों को विलंब से बचने के लिये समय पर सत्यापन सुनिश्चित करना चाहिये।
- निर्णय की प्रति उत्तर प्रदेश के सभी क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालयों और अपर मुख्य सचिव गृह, उत्तर प्रदेश को भेजी जानी चाहिये।
पासपोर्ट अधिनियम, 1967 क्या है?
बारे में:
- पासपोर्ट अधिनियम, 1967 भारत की संसद द्वारा पारित एक व्यापक विधि है जो भारतीय नागरिकों को पासपोर्ट और यात्रा दस्तावेज़ जारी करने और भारत से उनके प्रस्थान को नियंत्रित करता है। यह अधिनियम भारत में पासपोर्ट प्रशासन के लिये प्राथमिक विधिक ढाँचे के रूप में कार्य करता है और पासपोर्ट जारी करने के लिये प्राधिकरण, प्रक्रियाएँ और शर्तें निर्धारित करता है।
- यह अधिनियम 24 जून, 1967 को लागू हुआ और पूरे भारत में लागू है, साथ ही भारत के बाहर रहने वाले भारतीय नागरिकों पर भी लागू होता है। यह पासपोर्ट और यात्रा दस्तावेज़ जारी करने, भारतीय नागरिकों और अन्य व्यक्तियों के भारत से प्रस्थान को विनियमित करने, और पासपोर्ट प्रशासन से संबंधित या उससे संबंधित मामलों का समाधान करने का प्रावधान करता है।
पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 6(2) :
- धारा 6(2) - पासपोर्ट, यात्रा दस्तावेज़ आदि देने से इंकार करना।
- इसमें उन विशिष्ट आधारों का उल्लेख है जिनके आधार पर पासपोर्ट प्राधिकारी पासपोर्ट जारी करने से इंकार कर सकता है, जिनमें सम्मिलित हैं:
- भारत की गैर-नागरिकता
- भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिये हानिकारक गतिविधियाँ
- सुरक्षा संबंधी चिंताएँ
- आपराधिक दोषसिद्धि
- लंबित आपराधिक कार्यवाही
- बकाया वारण्ट
- जनहित संबंधी विचार
पासपोर्ट कितने प्रकार के होते हैं?

पासपोर्ट और वीज़ा में क्या अंतर है?

