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आपराधिक कानून

IPC की धारा 304A

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 09-Jun-2025

हरीश बनाम कर्नाटक राज्य 

"मृतक नशे में था और जब वह मोटरसाइकिल चला रहा था तो वह मदिरा के नशे में था। ऐसे में 'पूर्वानुमान एवं निकटता के सिद्धांत' को लागू करने पर आरोपी की उपेक्षा की डिग्री का पता नहीं लगाया जा सकता है क्योंकि आरोपी अपनी गाड़ी को उचित दिशा में अर्थात सड़क के बाईं ओर चला रहा था, जिससे वह यह अनुमान लगाने में असमर्थ था कि मृतक अचानक उसके सामने आ जाएगा।"

न्यायमूर्ति राजेश राय के.

स्रोत: कर्नाटक उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यायमूर्ति राजेश राय के की पीठ ने आरोपी को दोषमुक्त करते हुए कहा कि मृतक के नशे में होने और आरोपी के उचित दिशा में वाहन चलाने के कारण उपेक्षा व जल्दबाजी सिद्ध नहीं हो सकी, जिससे घटना अप्रत्याशित हो गई।

  • कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हरीश बनाम कर्नाटक राज्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।

हरीश बनाम कर्नाटक राज्य, 2025 मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • 14 अप्रैल, 2018 को शिकायतकर्त्ता मनोहर डी.यू. और मृतक बी.टी. दिलीप कुमार दोपहिया वाहन पर मैसूर से बैंगलोर लौट रहे थे। 
  • जब वे नाइस रोड पर उल्लाला ब्रिज के पास पहुँचे, तो उन्होंने अपनी मोटरसाइकिल सड़क के सबसे बाएँ किनारे पर खड़ी कर दी, ताकि उनमें से कोई एक शौच के लिये जा सके। 
  • जब पीछे बैठा व्यक्ति शौच के लिये गया हुआ था, तब मृतक बी.टी. दिलीप कुमार खड़ी मोटरसाइकिल पर ही बैठे रहे। 
  • उस समय, याचिकाकर्त्ता हरीश, जो कार चला रहा था, ने कथित तौर पर अपनी गाड़ी मृतक की मोटरसाइकिल से टकरा दी। 
  • मृतक बी.टी. दिलीप कुमार को टक्कर लगने से गंभीर रक्तस्राव हुआ और उन्हें तुरंत इलाज के लिये विक्टोरिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। 
  • चिकित्सकीय सहायता के बावजूद, बी.टी. दिलीप कुमार ने उसी दिन अस्पताल में दम तोड़ दिया।
  • अभियोजन पक्ष ने हरीश के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 279 (सार्वजनिक मार्ग पर तेज गति से वाहन चलाना) और 304 (A) (उपेक्षा का मृत्यु का कारण होना) के अंतर्गत आरोप संस्थित किये गए। 
  • अभियोजन पक्ष ने आरोपी के अपराध को स्थापित करने के लिये पाँच साक्षियों की जाँच की, जिसमें शिकायतकर्त्ता घटना का प्राथमिक प्रत्यक्षदर्शी था। 
  • अधीनस्थ न्यायालय ने प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर हरीश को दोषी माना तथा उसे अपराधों के लिये दो महीने के साधारण कारावास की सजा दी। 
  • अपीलीय न्यायालय ने बाद में दोषसिद्धि की पुष्टि की, जिससे हरीश ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष एक पुनरीक्षण याचिका दायर की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि "उतावलापन और उपेक्षा बहुआयामी अवधारणाएँ हैं जिन्हें अलग-अलग करके नहीं समझा जा सकता तथा न ही उनका निर्वचन किया जा सकता है, क्योंकि वे प्रत्येक मामले के तथ्यों एवं परिस्थितियों पर महत्त्वपूर्ण रूप से निर्भर करते हैं।" 
  • डोनोग्यू बनाम स्टीवेन्सन में स्थापित 'पूर्वानुमान एवं निकटता के सिद्धांत' को लागू करते हुए, न्यायालय ने कहा कि "उतावलापन स्वाभाविक रूप से उपेक्षा का संकेत है, साथ ही देखभाल करने के कर्त्तव्य के प्रति सचेत उल्लंघन की स्थिति भी होती है, जहाँ देखभाल की आवश्यकता होती है।" 
  • न्यायालय ने पाया कि शिकायतकर्त्ता, कथित प्रत्यक्षदर्शी होने के बावजूद, पुलिस को घटना के सटीक स्थान का पता लगाने में विफल रहा तथा घटनास्थल पर माज़र तैयार करने के दौरान उपस्थित नहीं था, जिससे साक्षी के रूप में उसकी विश्वसनीयता पर संदेह उत्पन्न हुआ।
  • पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि मृतक के पेट की सामग्री "शराब की तीखी गंध के साथ तीखी थी", यह दर्शाता है कि मृतक घटना के समय नशे में था और शराब के प्रभाव में था।
  • न्यायालय ने निर्धारित किया कि अभियोजन पक्ष यह सिद्ध करने के लिये ठोस साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रहा कि आरोपी ने उपेक्षापूर्ण वाहन चलाई, तथा कहा कि बिना किसी विशिष्ट विवरण के "तेज़ गति" के केवल दावे अपराध को स्थापित करने के लिये अपर्याप्त थे।
  • यह देखते हुए कि आरोपी सड़क के सही तरफ गाड़ी चला रहा था तथा मृतक नशे में अचानक दिखाई दिया, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि उपेक्षा की डिग्री का पता नहीं लगाया जा सका, जिसके कारण भारतीय दण्ड संहिता की धारा 279 एवं 304 (A) के अंतर्गत अपराधों के लिये आरोपी को दोषमुक्त कर दिया गया।

भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 106 क्या है?

  • भारत के नए आपराधिक कोड BNS 2023 की धारा 106 जिसने भारतीय दण्ड संहिता की जगह ली है। यह धारा "उपेक्षा का मृत्यु का कारण होना" से संबंधित है तथा इसमें दो मुख्य प्रावधान हैं:
  • उपधारा (1) - सामान्य उपेक्षा का मृत्यु का कारण होना:
    • उपेक्षा या उतावलेपन के कारण हुई मृत्यु को शामिल करता है जो कि आपराधिक मानव वध की श्रेणी में नहीं आती।
    • सामान्य सजा: 5 वर्ष तक की कैद (साधारण या कठोर) और जुर्माना।
    • चिकित्सकों के लिये विशेष प्रावधान: चिकित्सा प्रक्रियाओं के दौरान मृत्यु होने पर 2 वर्ष तक की कैद और जुर्माना की कम सजा।
    • "पंजीकृत चिकित्सक" को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम, 2019 के अंतर्गत योग्य और राष्ट्रीय या राज्य चिकित्सा रजिस्टर में पंजीकृत व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है।
  • उपधारा (2) - हिट-एंड-रन मामले:
    • यह विशेष रूप से उपेक्षापूर्ण वाहन चलाने के कारण होने वाली मृत्यु को संबोधित करता है।
    • यदि चालक पुलिस या मजिस्ट्रेट को सूचित किये बिना भाग जाता है, तो उसे 10 वर्ष तक कारावास और जुर्माना की सज़ा दी जाएगी।
    • यह हिट-एंड-रन दुर्घटनाओं के गंभीर मुद्दे को संबोधित करने के लिये पिछले दण्डों की तुलना में महत्त्वपूर्ण वृद्धि दर्शाता है।