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सिविल कानून

रेलवे अधिनियम की धारा 66

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 13-Jun-2025

भारत संघ बनाम मेसर्स कामाख्या ट्रांसपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड इत्यादि 

रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 66 के अधीन माल/खेप के परिदान के पश्चात् रेलवे द्वारा मिथ्या घोषित माल के लिये जुर्माना अधिरोपित किया जा सकता है। 

न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति पी.के. मिश्रा 

स्रोत:उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति पी.के. मिश्राकी पीठ नेभारत संघ बनाम मेसर्स कामाख्या ट्रांसपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड आदि मामले मेंनिर्णय सुनाया कि रेलवे अधिनियम, 1989 (अधिनियम) की धारा 66 के अधीन रेलवे द्वारा माल/खेप के परिदान के पश्चात् मिथ्या घोषित माल के लिये जुर्माना अधिरोपित किया जा सकता है। 

यूनियन ऑफ इंडिया बनाम मेसर्स कामाख्या ट्रांसपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड इत्यादि (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

प्रारंभिक विवाद: 

  • भारतीय संघ (रेलवे प्राधिकारियों) नेविभिन्न तिथियों पर कई प्रत्यर्थियों के विरुद्धमांग नोटिस (demand notices) जारी किये : 
    • 13 अक्टूबर 2011 
    • 7 अप्रैल 2012 
    • 29 अक्टूबर 2011 
    • 7 अप्रैल 2012 
  • उक्त मांग नोटिस में यह अभिकथित किया गया कि प्रत्यर्थियों द्वारा भारतीय रेलवे के माध्यम से प्रेषित माल के संबंध में मिथ्या घोषणा की गई थी 
  • प्रत्यर्थियों ने विरोध स्वरूप मांगी गई राशि का संदाय कर दिया। 

रेलवे दावा अधिकरण: 

  • मांगों का संदाय करने के पश्चात्, प्रत्यर्थियों नेरेलवे दावा अधिकरण अधिनियम, 1987 की धारा 16 के अधीनअलग-अलग दावा याचिकाएं दायर कीं । 
  • रेलवे दावा अधिकरण, गुवाहाटी पीठ के समक्ष OA Nos. 229/12, 184/12, 228/12 और 185/2012 में दावे दायर किये गए। 
  • प्रत्यर्थियों ने संदाय की गई राशि वापस करने की मांग करते हुए तर्क दिया कि माल के परिदान के पश्चात् जारी किये गए मांग नोटिस रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 73 और 74 के अधीन अवैध थे। 
  • अधिकरण ने 19 जनवरी 2016 के सामान्य आदेश द्वारादावा याचिकाओं को स्वीकार कर लिया । 
  • अधिकरण ने 6% वार्षिक ब्याज के साथ धनराशि वापस करने का निदेश दिया: 
    • सी.एम. ट्रेडर्स: रु. 4,47,965/- 
    • विनायक लॉजिस्टिक्स: रु. 4,97,342/- 
    • कामाख्या ट्रांसपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड: रु. 3,07,902/- और रु. 15,12,959/- 
  • अधिकरण ने भारत संघ बनाम मेघा टेक्निकल एंड इंजीनियर्स प्राइवेट लिमिटेड (2013)में गुवाहाटी उच्च न्यायालय के निर्णय पर विश्वास किया। 

गुवाहाटी उच्च न्यायालय: 

  • रेलवे प्राधिकारियों ने अधिकरण के आदेश के विरुद्ध गुवाहाटी उच्च न्यायालय में अपील की। 
  • अपीलें MFA सं. 80/2016, 57/2016, 29/2017, तथा 28/2017 के रूप में दायर की गईं। 
  • रेलवे प्राधिकारियों ने तर्क दिया कि अधिकरण इस बात पर विचार करने में असफल रहा कि माल को एक श्रेणी घोषित करके बुक किया गया था, किंतु लोड की गई वस्तुएँ भिन्न थीं। 
  • उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर 2021 के निर्णय द्वारा अपीलों को खारिज कर दिया। 
  • उच्च न्यायालय नेअधिकरण के आदेश की पुष्टि की। 

उच्चतम न्यायालय: 

  • रेलवे अधिकारियों ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष विशेष अनुमति याचिकाएँ (SLP(C) Nos.11566-11569/2022) दायर कीं।  
  • अनुमति प्रदान कर दी गई और विशेष अनुमति याचिका को सिविल अपील संख्या 7376-7379/2025 में परिवर्तित कर दिया गया। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

रेलवे अधिकारियों का मामला: 

  • निचले न्यायालय ने गलती से इस विवाद को मिथ्या घोषणा के मामले के बजाय वैगन पर अधिक भार (धारा 73 के अधीन) मान लिया। 
  • माल से संबंधित वास्तविक मामलेघोषित श्रेणी से भिन्न पाए गए, जिसकेकारण अधिनियम की धारा 66 के अंतर्गत जुर्माना अधिरोपित किया गया। 
  • उच्च न्यायालय का जगजीत कॉटन टेक्सटाइल मामले पर विश्वास करना गलत था, क्योंकि यह ओवरलोडिंग और धारणाधिकार के अधिकार से संबंधित था। 
  • धारा 83 परिदान के पश्चात् माल को रोके रखने की अनुमति देती है। 

प्रत्यर्थियों का मामला: 

  • चूंकि मांग नोटिस माल के परिदान के पश्चात् जारी किये गए थे, इसलिये धारा 66 लागू नहीं थी। 
  • निचले न्यायालय सही मायने में प्रत्यर्थियों के पक्ष में निर्णय देते हैं। 

उच्चतम न्यायालय का विश्लेषण: 

  • मांग नोटिस मिथ्या घोषणा के लिये थे, माल डब्बा (वैगन) में अधिक भार होने के लिये नहीं। 
  • वर्तमान मामले मेंधारा 66 लागू होती है , धारा 73 नहीं। 
  • मांग नोटिस वास्तविक प्रकृति के पाए गए। 
  • जगजीत कॉटन टेक्सटाइल मामले में उच्च न्यायालय का निर्वचन गलत था 
  • जगजीत कॉटन टेक्सटाइल में परिदान से पूर्व दण्डात्मक शुल्क वसूलने के बारे में की गई टिप्पणी धारा 54(1) के अधीन केवल एक सुझाव था, जोधारा 66 पर लागू नहीं होता। 

अंतिम निर्णय: 

  • उच्चतम न्यायालय नेगुवाहाटी उच्च न्यायालय के 20 दिसंबर 2021 के आदेश कोअपास्त कर दिया 
  • रेलवे प्राधिकारियों के पक्ष में सिविल अपील स्वीकार कर ली गई। 
  • लंबित आवेदनों का निपटारा किया गया 

संबंधित विधिक उपबंध क्या हैं? 

रेलवे अधिनियम, 1989: 

  • रेलवे अधिनियम, 1989 देश में रेल परिवहन केसभी पहलुओं को नियंत्रित करने के लिये भारतीय संसद द्वारा अधिनियमित एक विधि है। 
  • यह 1890 के रेलवे अधिनियम को प्रतिस्थापित करते हुए 1989 में लागू हुआ 
  • यह अधिनियम रेलवे जोनों, रेलवे अवसंरचना के निर्माण और रखरखाव, साथ ही यात्रियों और रेलवे कर्मचारियों से संबंधित सेवाओं से संबंधित विधिक उपबंधों को व्यापक रूप से रेखांकित करता है। 

रेलवे अधिनियम, 1989 की धारा 66: 

धारा 66 - माल के वर्णन से संबंधित कथन की अपेक्षा करने की शक्ति 

  • उपधारा (1): 
    • कोई व्यक्ति जो रेलवे परिवहन हेतु माल लाया है, अथवा जो उन वस्तुओं का स्वामी या भारसाधक है, उसे एक लिखित कथन प्रदान करना अनिवार्य है।  
    • प्राधिकृत रेलवे कर्मचारियों द्वारा अनुरोध किये जाने पर परेषिती या पृष्ठांकिती को भी विवरण उपलब्ध कराना होगा। 
    • विवरण में माल का विवरण अवश्य होना चाहिये जिससे परिवहन दर का निर्धारण किया जा सके। 
  • उपधारा (2): 
    • यदि स्वामी/व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर विवरण देने या पैकेज खोलने से इंकार कर दे। 
    • रेलवे प्रशासन माल ढुलाई के लिये स्वीकार करने से इंकार कर सकता है। 
    • वैकल्पिक: किसी भी वर्ग के सामान के लिये उच्चतम दर वसूल सकता है 
  • उपधारा (3): 
    • यदि परेषिती/ पृष्ठांकिती विवरण देने या पैकेज खोलने से इंकार करता है। 
    • रेलवे प्रशासन किसी भी श्रेणी के माल के परिवहन के लिये उच्चतम दर वसूल सकता है। 
  • उपधारा (4): 
    • यदि माल के विवरण के संबंध में कथन वास्तविक रूप से मिथ्या है। 
    • रेलवे प्रशासन किसी भी श्रेणी के सामान के लिये उच्चतम दर से दोगुनी दर से अधिक दर नहीं वसूल सकता। 
    • दर केंद्रीय सरकार द्वारा निर्दिष्ट की जाएगी। 
  • उपधारा (5): 
    • यदि माल के विवरण के संबंध में कोई मतभेद उत्पन्न होता है। 
    • रेलवे कर्मचारी माल को रोककर उसकी जांच कर सकते हैं। 
  • उपधारा (6): 
    • जब माल को परीक्षा के लिये निरुद्ध किया जाता है और वह बताए गए विवरण से भिन्न पाया जाता है। 
    • निरोध और परीक्षा का खर्च स्वामी/व्यक्ति/ परेषिती/ पृष्ठांकिती द्वारा वहन किया जाएगा।  
    • रेलवे प्रशासन निरोध/परीक्षा के कारण किसी भी हानि, नुकसान या क्षय के लिये दायी नहीं है। 

इस धारा के मुख्य तत्त्व: 

  • धारा 66 मेंयह निर्दिष्ट नहीं किया गया हैकि किस स्तर (परिदान से पूर्व या पश्चात् में) पर वहन अधिरोपित किया जा सकता है। 
  • विधायी आशय किसी भी स्तर पर धारा 66 के अंतर्गत वहन अधिरोपित करने की अनुमति देता है। 
  • केवल माल के परिदान से पूर्वजुर्माना अधिरोपित करने परकोई प्रतिबंध नहीं है। 
  • धारा 66, धारा 73 (अतिरिक्त भार) और धारा 78 (वितरण से पूर्व पुनः माप) से भिन्न है।