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सिविल कानून
रचनात्मक पूर्व न्याय
« »07-May-2025
एससी गुप्ता बनाम भारत संघ और अन्य। "यदि यह माना जाता है कि रचनात्मक पूर्व न्याय का सिद्धांत रिट कार्यवाही पर लागू नहीं होगा, तो यह स्पष्ट रूप से लोक नीति के विरुद्ध होगा, क्योंकि निर्णयों की अंतिमता इसका एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।" न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय एवं न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति देवेन्द्र कुमार उपाध्याय एवं न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि रचनात्मक पूर्व न्याय (Res Judicata) रिट कार्यवाही पर भी लागू होगा।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने एस.सी. गुप्ता बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
एससी गुप्ता बनाम भारत संघ एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड ने 31 जुलाई 2015 को सीमा शुल्क की जब्ती या उल्लंघन के मामलों में मुखबिरों एवं सरकारी कर्मचारियों को पुरस्कार देने के लिये संशोधित दिशा-निर्देश जारी किए।
- दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि पुरस्कार एक अनुग्रह भुगतान हैं, जिनका अधिकार के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है और इन्हें नियमित रूप से नहीं दिया जाना चाहिये।
- याचिकाकर्त्ता ने 29 जनवरी 2001 को केंद्रीय उत्पाद शुल्क की चोरी के संबंध में अधिकारियों को खुफिया सूचना दी।
- अधिकारियों ने 8 अप्रैल 2003 को चूककर्त्ता कंपनी को कारण बताओ नोटिस जारी किया, जिसमें बकाया शुल्क के रूप में 23.89 करोड़ रुपये की मांग की गई।
- 10 फरवरी 2020 को, "सबका विश्वास योजना" के अंतर्गत एक करार हुआ, जिससे देयता घटकर 11.94 करोड़ रुपये (मूल मांग का 50%) रह गई।
- याचिकाकर्त्ता ने 18 मई 2023 को एक अभ्यावेदन दिया, जिसमें वसूले गए कर का 20% (2.33 करोड़ रुपये) इनाम के रूप में मांगा गया।
- अधिकारियों ने याचिकाकर्त्ता को 25 लाख रुपये (दावा किए गए इनाम का 2%) का इनाम दिया, जिसे याचिकाकर्त्ता ने असंतोषजनक पाया।
- याचिकाकर्त्ता ने केंद्रीकृत लोक शिकायत निवारण एवं निगरानी प्रणाली (CPGRAMS) में शिकायत दर्ज कराई, जिसने 23 जुलाई 2024 को मामला बंद कर दिया।
- याचिकाकर्त्ता ने CPGRAMS के आदेश को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका (W.P.(C) संख्या 14658/2024) दायर की, लेकिन इसे 29 अक्टूबर 2024 को एकल न्यायाधीश द्वारा खारिज कर दिया गया।
- इसके बाद याचिकाकर्त्ता ने एक अंतर-न्यायालय अपील (LPA 1219/2024) दायर की, जिसे 17 दिसंबर 2024 को एक खण्ड पीठ ने भी खारिज कर दिया।
- मौजूदा याचिका दिशानिर्देशों के खंड 3.3.1 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देती है, जो अधिकारियों को पुरस्कार निर्धारित करने के लिये विवेकाधीन शक्ति देता है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- यहाँ निर्धारित किया जाने वाला एकमात्र मुद्दा यह था कि क्या वर्तमान याचिका में की गई प्रार्थना रचनात्मक पूर्व न्याय के सिद्धांत द्वारा वर्जित है।
- न्यायालय ने देखा कि सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) की धारा 141 में एक स्पष्टीकरण दिया गया है जो यह प्रावधानित करता है कि धारा 141 में होने वाली अभिव्यक्ति "कार्यवाही" में आदेश IX के अंतर्गत कार्यवाही शामिल है, लेकिन इसमें भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत कोई कार्यवाही शामिल नहीं है।
- न्यायालय ने वर्तमान मामले में माना कि यदि यह माना जाता है कि रचनात्मक पूर्व न्याय रिट कार्यवाही पर लागू नहीं होगा तो यह लोक नीति के विरुद्ध होगा क्योंकि निर्णयों की अंतिमता इसका एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।
- न्यायालय ने निर्धारित किया कि इस मामले में रचनात्मक पूर्व न्याय का सिद्धांत लागू होता है, क्योंकि याचिकाकर्त्ता पहले के मुकदमे में दिशानिर्देशों के खंड 3.3 को चुनौती दे सकता था, लेकिन ऐसा करने में विफल रहा।
- न्यायालय ने माना कि अब इस तरह की चुनौती की अनुमति देने से पक्षों के बीच अंतहीन मुकदमेबाजी हो जाएगी, जो रचनात्मक पूर्व न्याय सिद्धांत के लोक नीति उद्देश्य के विपरीत है, जिसका उद्देश्य मुकदमेबाजी की बहुलता को रोकना है।
- इन कारणों के आधार पर, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान रिट याचिका में की गई प्रार्थना रचनात्मक पूर्व न्याय के सिद्धांत द्वारा वर्जित है और इसलिये याचिका अनुरक्षणीय नहीं है।
रचनात्मक पूर्व न्याय क्या है?
- रचनात्मक पूर्व न्याय का सिद्धांत पूर्व न्याय के सिद्धांत का विस्तार है।
- विधि में इस सिद्धांत की उत्पत्ति CPC की धारा 11 के साथ आदेश II नियम 2 में निहित प्रावधानों में पाई जा सकती है।
- CPC की धारा 11 में पूर्व न्याय का सिद्धांत शामिल है, जिसके अनुसार, एक ही पक्ष के बीच दावे के संबंध में एक बाद का वाद वर्जित है यदि पहले एक ही मुद्दे को शामिल करते हुए वाद लाया गया है जो प्रत्यक्षतः एवं बहुत हद तक एक ही पक्ष के बीच मुद्दा रहा है।
- CPC की धारा 11 के साथ संलग्न स्पष्टीकरण IV में यह प्रावधान है कि कोई भी मामला जिसे किसी पूर्ववर्ती वाद में बचाव या मुक़दमे का आधार बनाया जा सकता था या बनाया जाना चाहिये था, ऐसे वाद में प्रत्यक्षतः और मूल रूप से मुद्दा माना जाएगा।
- एम. नागभूषण बनाम कर्नाटक राज्य, (2011) के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय ने माना कि CPC की धारा 11 के स्पष्टीकरण IV में प्रावधानित किये गए रचनात्मक निर्णय का सिद्धांत रिट याचिकाओं पर लागू होता है।