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सिविल कानून

ट्रांसजेंडर माता-पिता

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 05-Jun-2025

"यद्यपि उपर्युक्त उल्लिखित विधिक प्रावधानों के माध्यम से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को वैधानिक मान्यता प्रदान की जा चुकी है, तथापि संपूर्ण समाज द्वारा उक्त वास्तविकता को स्वीकार किया जाना अभी शेष है, तथा यह एक समय-साध्य मामला है।" 

न्यायमूर्ति ज़ियाद रहमान ए.ए. 

स्रोत:केरल उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति जियाद रहमान ए.. की पीठ ने निर्णय दिया कि जन्म प्रमाण पत्र में पिता और माता के नाम के लिये निर्धारित कॉलम को हटाकर तथा याचिकाकर्त्ताओं के लिंग का उल्लेख किये बिना, माता-पिता के रूप में उनके नाम को सम्मिलित करके संशोधन के साथ जारी किया जाना चाहिये 

ज़हाद एवं अन्य बनाम केरल राज्य एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?  

  • रिट याचिका में ट्रांसजेंडर माता-पिता के अधिकारों और उनके बच्चे के जन्म प्रमाण पत्र पर दर्ज लिंग पहचान की जानकारी के संबंध में एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा उठाया गया है।  
  • प्रथम याचिकाकर्त्ता का जन्म महिला के रूप में हुआ था, किंतु बाद में उसकी पहचान पुरुष के रूप में हुई और उसने लिंग परिवर्तन को दर्शाते हुए ट्रांसजेंडर पहचान पत्र और आधार कार्ड प्राप्त कर लिया। 
  • दूसरा याचिकाकर्त्ता पुरुष के रूप में पैदा हुआ था, किंतु बाद में उसकी पहचान महिला के रूप में हुई और उसने लिंग परिवर्तन को दर्शाते हुए ट्रांसजेंडर पहचान पत्र और आधार कार्ड भी प्राप्त कर लिया। 
  • प्रथम याचिकाकर्त्ता, जो एक ट्रांस-मैन (trans-man) है, ने 08.02.2023 को मेडिकल कॉलेज अस्पताल, कोझीकोड में एक बच्चे को जन्म दिया। 
  • बच्चे का जन्म कोझिकोड निगम में पंजीकृत किया गया था, तथा जन्म प्रमाण पत्र में प्रथम याचिकाकर्त्ता को माता तथा दूसरे याचिकाकर्त्ता को पिता के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। 
  • याचिकाकर्त्ताओं को चिंता है कि जन्म प्रमाण पत्र में उनकी वर्तमान लिंग पहचान को गलत तरीके से दर्शाया गया है और इससे भविष्य में उनके बच्चे को शिक्षा या रोजगार जैसे क्षेत्रों में समस्या हो सकती है। 
  • उन्होंने कोझिकोड निगम से अनुरोध किया कि वह एक नया जन्म प्रमाणपत्र जारी करे, जिसमें माता-पिता दोनों को केवल "माता-पिता" के रूप में दर्शाया जाए, तथा लिंग का उल्लेख न किया जाए। 
  • निगम ने अनुरोध को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1969 और केरल नियम, 1999 के अधीन, प्रमाण पत्र के लिये फॉर्म 5 का पालन करना होगा, जिसमें "माता" और "पिता" के लिये कॉलम अनिवार्य रूप से सम्मिलित हैं 
  • याचिकाकर्त्ताओं ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर मांग की थी कि प्रारूप 1, 3, 5, एवं 7 एवं संबंधित नियमों की ऐसी व्याख्या की जाए जिससे जन्म प्रमाण पत्रों पर नाम तथा लिंग पहचान में परिवर्तन की अनुमति प्रदान की जा सके 
  • प्रत्यर्थी 2 और 3 ने तर्क दिया कि याचिकाकर्त्ता ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम के अधीन संरक्षण का दावा नहीं कर सकते क्योंकि बालक ट्रांसजेंडर नहीं है। 
  • प्रत्यर्थी 5 और 6 ने कहा कि वे विद्यमान विधिक ढाँचे से आबद्ध हैं और विहित प्रारूप के अतिरिक्त किसी अन्य प्रारूप में प्रमाण पत्र जारी नहीं कर सकते। 
  • मुख्य विधिक प्रश्न यह है कि जन्म पंजीकरण की वैधानिक रूपरेखा तथा ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 (Transgender Persons Act) के अंतर्गत स्व-पहचानी गई लिंग पहचान को प्राप्त सांविधानिक एवं सांविधिक मान्यता के मध्य अंतर्विरोध विद्यमान है। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • प्रत्यर्थियों ने इस आधार पर अनुतोष का विरोध किया कि जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1969 और केरल नियम, 1999 के अधीन विद्यमान विधिक ढाँचे में जन्म प्रमाण पत्र में "पिता" और "माता" का उल्लेख अनिवार्य है। 
  • याचिकाकर्त्ताओं ने तर्क दिया कि उन्हें माता और पिता के रूप में अभिलिखित करना उनकी विधिक रूप से मान्यता प्राप्त लिंग पहचान के विपरीत है और इससे भविष्य में उनके बच्चे के प्रति प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न हो सकता है। 
  • न्यायालय ने स्वीकार किया कि याचिकाकर्त्ताओं द्वारा उठाई गई आशंकाएं वास्तविक हैं और उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, विशेषकर इसलिये क्योंकि उनकी वर्तमान लिंग पहचान को ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम के अधीन विधिक मान्यता प्राप्त है। 
  • न्यायालय ने कहा कि बच्चे की पहचान स्वाभाविक रूप से उसके माता-पिता से जुड़ी होती है, और यद्यपि बच्चा ट्रांसजेंडर व्यक्ति नहीं है, फिर भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम के अधीन संरक्षण इस मामले में प्रासंगिक है। 
  • न्यायालय ने यह प्रतिपादित किया कि विधि को समाज के साथ विकसित होना चाहिये, और चूंकि 1969 का अधिनियम द्विलिंगी (Binary Gender) संरचना के अधीन अधिनियमित किया गया था, अतः उसने ट्रांसजेंडर मातृत्व/पितृत्व से उत्पन्न होने वाले उन जटिल प्रश्नों की कल्पना नहीं की थी, जिन्हें अब राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) निर्णय एवं 2019 के अधिनियम के पश्चात् विधिक मान्यता प्राप्त हो चुकी है। 
  • न्यायालय ने यह अवलोकन किया कि यद्यपि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सांविधानिक  तथा सांविधिक  मान्यता प्रदान की जा चुकी है, तथापि जन्म और मृत्यु का रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1969 एवं उसके अधीन निर्मित नियमों में अब तक ऐसे परिवर्तनों को प्रतिबिंबित करने हेतु कोई उपयुक्त संशोधन नहीं किया गया है 
  • न्यायालय ने "सामाजिक संदर्भ में न्यायनिर्णयन" (Social Context Adjudication) सिद्धांत का सहारा लेते हुए यह स्पष्ट किया कि विधि का ऐसा निर्वचन किया जाना चाहिये जो सामाजिक न्याय को बढ़ावा दे तथा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करे 
  • न्यायालय ने कहा कि चूंकि यह मामला जन्म प्रमाण पत्र जारी करने का व्यक्तिगत विवाद्यक है और यह किसी तीसरे पक्षकार या संस्था को प्रभावित नहीं करता है, इसलिये विधि का कठोर तकनीकी निर्वचन अनुचित है। 
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि जन्म रिकॉर्ड बनाए रखने का उद्देश्य सटीक और आवश्यक पहचान दस्तावेज़ों को संरक्षित करना है, न कि पुराने लिंग वर्गीकरण को लागू करना। 
  • न्यायालय ने पाया कि बालक के जन्म प्रमाण पत्र पर दोनों याचिकाकर्त्ताओं को केवल "माता-पिता" के रूप में दर्ज करने से अधिनियम का उद्देश्य नष्ट नहीं होगा तथा यह न्याय के हित में एक आवश्यक संशोधन है। 
  • न्यायालय ने कोझिकोड निगम को निदेश दिया कि वह फॉर्म 5 में नया जन्म प्रमाण पत्र जारी करे, जिसमें "पिता" और "माता" कॉलम के स्थान पर एक कॉलम हो, जिसमें दोनों याचिकाकर्त्ताओं को "माता-पिता" के रूप में सूचीबद्ध किया जाए, तथा लिंग का उल्लेख न किया जाए। 
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह संशोधन केवल जन्म प्रमाण पत्र पर लागू होगा, न कि आधिकारिक रजिस्टर प्रविष्टियों पर, जिनमें परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है। 

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकार क्या हैं? 

  • राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (National Legal Services Authority (NALSA)) बनाम भारत संघ (2014) मामलेमें उच्चतम न्यायालय नेसंविधान के अधीन हिजड़ों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को “तीसरे लिंग” के रूप में मान्यता दी। 
    • न्यायालय ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के स्वयं को पुरुष, महिला या तीसरे लिंग के रूप में पहचानने के अधिकार को बरकरार रखा।  
    • न्यायालय ने सरकारों को ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये विधिक मान्यता, आरक्षण, स्वास्थ्य देखभाल, लोक सुविधाएं और सामाजिक कल्याण योजनाएं प्रदान करने का निदेश दिया। 
    • निर्णय में इस बात पर बल दिया गया कि लिंग पहचान के लिये सेक्स रीअसाइनमेंट सर्जरी (sex reassignment surgery (SRS)) पर बल देना अवैध और अनैतिक है।  
    • न्यायालय ने कलंक को कम करने के लिये जागरूकता अभियान चलाने तथा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ सम्मान और गरिमा के साथ व्यवहार सुनिश्चित करने का आग्रह किया। 
    • इसके पश्चात्, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के साथ भेदभाव को रोकने और उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिये ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) अधिनियम, 2019 लागू किया गया। 

 इस मामले में कौन से ऐतिहासिक निर्णय चर्चित हुए? 

  • दीपिका सिंह बनाम केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण और अन्य (2013) 
    • माता, पिता और बच्चों वाली एक निश्चित इकाई के रूप में परिवार की पारंपरिक धारणा पुरानी और संकीर्ण हो चुकी है। 
    • मृत्यु, तलाक, पृथक्करण, पुनर्विवाह, दत्तक या पालन-पोषण जैसी परिस्थितियों के कारण पारिवारिक संरचनाओं में परिवर्तन संभव है 
    • पारिवारिक संरचना में एकल अभिभावक, घरेलू साझेदारी और समलैंगिक रिश्ते सम्मिलित हो सकते हैं। 
    • ये गैर-पारंपरिक परिवार भी पारंपरिक परिवारों की तरह ही वास्तविक और वैध हैं। 
    • विधि को सभी प्रकार के परिवारों को सामाजिक कल्याण लाभों का संरक्षण और विस्तार प्रदान करना चाहिये, न कि केवल पारंपरिक परिवारों को। 
    • जो महिलाएं अपरंपरागत तरीकों से मातृत्व को अपनाती हैं, उन्हें भी समान विधिक मान्यता और समर्थन की हकदार हैं 
  • .बी.सी. बनाम राज्य (दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) (2015) 
    • उच्चतम न्यायालय ने एकल अभिभावक द्वारा अपने बच्चे के लिये पिता का नाम सम्मिलित किये बिना जन्म प्रमाण पत्र प्राप्त करने में आने वाली कठिनाइयों को स्वीकार किया। 
    • न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि जन्म प्रमाण पत्र के अभाव में भविष्य में बच्चे को गंभीर समस्या हो सकती है। 
    • न्यायालय ने कहा कि यद्यपि न्यायालय पहले ही यह निर्णय दे चुके हैं कि स्कूल में प्रवेश या पासपोर्ट प्राप्त करने के लिये पिता का नाम अनिवार्य नहीं है, फिर भी ऐसे मामलों में अक्सर जन्म प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है। 
    • न्यायालय ने कहा कि विधि को परिवर्तित सामाजिक वास्तविकताओं के साथ विकसित होना चाहिये तथा तदनुसार नई विधिक चुनौतियों का समाधान करना चाहिये 
    • माता की पहचान पर कभी प्रश्न नहीं उठता, इसलिये जन्म प्रमाण-पत्र जारी करने के लिये एकल या अविवाहित माता से केवल शपथ-पत्र लेना ही पर्याप्त होना चाहिये 
    • प्राधिकारियों को ऐसे शपथपत्रों के आधार पर जन्म प्रमाण पत्र जारी करना होगा, जब तक कि न्यायालय ने इसके विपरीत आदेश जारी न कर दिया हो। 
    • न्यायालय ने दोहराया कि यह सुनिश्चित करना राज्य का उत्तरदायित्त्व है कि माता-पिता द्वारा जन्म का रजिस्ट्रीकरण न कराने के कारण किसी भी नागरिक को कठिनाई का सामना न करना पड़े। 
    • यह निर्णय व्यापक रूप से लागू होता है तथा केवल वर्तमान मामले के तथ्यों या पक्षकारों तक ही सीमित नहीं है।