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वाणिज्यिक विधि

माध्यस्थम् पंचाट का दिया जाना और कार्यवाहियों का समापन

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 04-Jun-2025

परिचय  

माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 का अध्याय 6 इस बात से संबंधित है कि माध्यस्थम् पंचाट किस प्रकार दिये जाते हैं और माध्यस्थम् कार्यवाही का समापन किस प्रकार होता हैइस अध्याय के उपबंधों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि पंचाट एक प्रभावी, निष्पक्ष एवं प्रवर्तनीय विवाद निवारण प्रक्रिया बनी रहे। यह अध्याय माध्यस्थम् अधिकरण की निर्णय लेने की प्रक्रिया, समयसीमा, त्वरित पंचाट विकल्प, आपसी सुलह, व्यय से संबंधित मामलों और कार्यवाही की अंतिम समाप्ति को नियंत्रित करने वाले नियमों की रूपरेखा प्रस्तुत करता है। 

विवाद का सार करने के लिये मूल नियम (धारा 28) 

  • यदि माध्यस्थम् का स्थान भारत मेंस्थित है : 
    • घरेलू माध्यस्थम् के लिये : माध्यस्थम् अधिकरण को भारतीय विधियों को लागू करना होगा। 
    • अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थम् के लिये : 
      • अधिकरण द्वारा विवाद का विनिश्चय विवाद के सार को लागू, पक्षकारों द्वारा अभिहित विधि के अनुसार करेगा। 
      • यदि पक्षकारों द्वारा कोई विधि निर्दिष्ट नहीं की गई है, तो अधिकरण उस विधि को लागू करेगा जिसे वह परिस्थितियों के अनुसार उपयुक्त समझेगा 
  • अधिकरण विवाद का निर्णय साम्या (निष्पक्षता) के आधार पर तभी कर सकता है जब दोनों पक्षकार स्पष्ट रूप से इस पर सहमत हों। 
  • अधिकरण कोमामले से संबंधितसंविदा की शर्तों और व्यापार प्रथाओं पर विचार करना होगा । 

मध्यस्थों के पैनल द्वारा विनिश्चय किया जाना (धारा 29) 

  • जब तक कि पक्षकारों ने अन्यथा करार न किया हो, विनिश्चयबहुमतसे जाएगा 
  • यदि पक्षकारों या अन्य माध्यस्थम् अधिकरण के सभी सदस्यों द्वारा प्राधिकृत किया जाए, तो प्रक्रिया संबंधी प्रश्न, पीठासीन मध्यस्थ द्वारा विनिश्चित किये जा सकेंगे 

माध्यस्थम् पंचाट की समय सीमा (धारा 29) 

  • अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थम् से भिन्न मामलों के लिये : अभिवाकों के पूरा होने की तारीख से 12 मासके भीतर पंचाट दिया जाना चाहिये  
  • अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक माध्यस्थम् मामलोंके लिये : कोई सख्त सीमा नहीं, किंतु12 मासके भीतर पंचाट दिये जाने का प्रयास किया जाना चाहिये । 
  • यदि पंचाट प्रारंभ होने के6 मासके भीतर दिया जाता है, तो अतिरिक्त शुल्क का संदाय किया जा सकता है। 
  • पक्षकारआपसी सम्मति से इस अवधि को6 मास तक बढ़ा सकते हैं। 
  • यदि समय पर कोई पंचाट नहीं दिया जाता है तो: 
    • जब तक न्यायालय समयनहीं बढ़ा देता, माध्यस्थम् की भूमिका समाप्त हो जाती है। 
    • यदि विलंब माध्यस्थम् की गलती के कारण हुई है तोन्यायालयमाध्यस्थम् की फीस भी कम कर सकता है। 
  • न्यायालयमध्यस्थ(मध्यस्थों) को प्रतिस्थापित करसकता है और कार्यवाही वहीं से प्रारंभ होगी जहाँ से रुकी थी। 
  • विलंब के लिये जुर्माना अधिरोपित किया जा सकता है। 
  • न्यायालय को विस्तार आवेदनों पर60 दिनोंके भीतर विनिश्चय करना चाहिये 

त्वरित माध्यस्थम् (धारा 29) 

  • पक्षकार लिखित रूप मेंत्वरित माध्यस्थम् के लिये करार कर सकेंगे, प्रायः एकल  मध्यस्थके साथ । 
  • मुख्य विशेषताएँ: 
    • केवल लिखित प्रस्तुतियोंके आधार पर विनिश्चय (जब तक आवश्यक न हो, मौखिक सुनवाई नहीं)। 
    • पंचाट 6 मासके भीतर दिया जाएगा । 
    • यदि विलंब होता है तो धारा 29क के नियम लागू होंगे। 

विवादों का समझैता (धारा 30) 

  • मध्यस्थों को माध्यस्थम् या सुलह के माध्यम से समझौते कोबढ़ावा दे सकते हैं । 
  • यदि समझौता हो जाता है तो: 
    • कार्यवाही समाप्त हो जाती है 
    • यदि पक्षकार सहमत हों तो समझौता को माध्यस्थम् पंचाट के रूप में अभिलिखित किया जा सकताहै 
    • इस पंचाट काकिसी भी अन्य माध्यस्थम् पंचाट केसमान ही विधिक प्रभाव है। 

माध्यस्थम् पंचाट का प्ररूप और उसकी विषय-वस्तु (धारा 31) 

  • पंचाटलिखित रूप मेंहोना चाहिये तथामध्यस्थों द्वाराहस्ताक्षरित होना चाहिये 
  • यदि हस्ताक्षर न होने का कारण स्पष्ट कर दिया जाए तो पंचाट मेंबहुमत के हस्ताक्षर पर्याप्त हैं। 
  • विनिश्चय के लिये कारण अवश्य दिये जाने चाहिये, जब तक कि: 
    • पक्षकार अन्यथा सहमत हों, या 
    • यह एक समझौता पंचाट है। 
  • निर्णय मेंमाध्यस्थम् कीतारीख और स्थान का उल्लेख होना चाहिये 
  • पंचाट कीएकहस्ताक्षरित प्रति प्रत्येक पक्षकार को दी जानी चाहिये 
  • अधिकरणअंतरिम पंचाटदे सकता है । 
  • अधिकरणब्याजदे सकता है : 
    • पंचाट से पूर्व: कोई भी उचित दर। 
    • पंचाट के पश्चात्: वर्तमान ब्याज दर से 2% अधिक (जब तक कि अन्यथा न कहा गया हो)। 
  • इसके अतिरिक्त खर्चभी प्रदान किया जाता है, जिसमें सम्मिलित हैं: 
    • मध्यस्थ और साक्षी की फीस, 
    • विधिक खर्च, 
    • प्रशासनिक शुल्क. 

खर्चों के लिये शासनतंत्र (धारा 31) 

  • न्यायालय या अधिकरण निम्नलिखित पर विनिश्चय कर सकता है: 
    • एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को खर्च संदेय है 
    • ऐसे खर्चों की रकम, और 
    • ऐसे खर्चों का संदाय कब किया जाना चाहिये 
  • सामान्य नियम : हारने वाला विजेता का खर्च वहन करेगा। 
  • अपवाद संभव हैं, बशर्ते उनके लिए कारण युक्त स्पष्टीकरण प्रदान किया जाए 
  • निम्नलिखित कारकों पर विचार किया जाता है: 
    • पक्षकारों का आचरण 
    • आंशिक सफलता, 
    • तुच्छ दावे/प्रतिदावे, 
    • युक्तियुक्त समझौता प्रस्तावों से इंकार करना। 

कार्यवाहियों का समापन (धारा 32) 

  • माध्यस्थम् तब समाप्त होती है जब:  
    • अंतिम पंचाटदिया जाता है, या 
    • अधिकरण निम्नलिखित कारणों सेसमाप्ति का आदेश देता है : 
      • दावा वापस लिया जाना (जब तक कि आक्षेप न की जाए), 
      • पक्षकार समाप्त करने पर सहमत हैं, 
      • इसे जारी रखना असंभव या अनावश्यक हो जाता है। 

पंचाट में सुधार और निर्वचन (धारा 33) 

  • माध्यस्थम् पंचाट की प्राप्ति के 30 दिनोंके भीतर, कोई भी पक्षकार: 
    • त्रुटियों (जैसे टाइपिंग या संगणित की गलतियाँ) के सुधार काअनुरोध कर सकेगा 
    • किसी विनिर्दिष्ट भाग का निर्वचन करने के लिये अनुरोध कर सकेगा (यदि पक्षकार सहमत हों)। 
  • अधिकरण 30 दिनों के भीतरस्वयं त्रुटियों को सुधार सकता है। 
  • यदि पंचाट में कुछ दावे छूट गए हों तो पक्षकारअतिरिक्त पंचाट कीमांग कर सकते हैं । 
  • अधिकरण के पासऐसा अतिरिक्त पंचाट देने के लिये60 दिन का समय है। 
  • सभी सुधार और परिवर्धन नियमित पंचाट के समान नियमों का पालन करते हैं। 

निष्कर्ष 

माध्यस्थम् और सुलह अधिनियम, 1996 का अध्याय 6 यह सुनिश्चित करता है कि माध्यस्थम् प्रक्रिया एक उचित समय सीमा के भीतर एक अच्छी तरह से संरचित और प्रवर्तनीय पंचाट के साथ समाप्त हो। यह पक्षकारों और अधिकरणों को प्रक्रियात्मक अनुशासन बनाए रखने, सौहार्दपूर्ण समझौतों को प्रोत्साहित करने, त्वरित विकल्पों के माध्यम से लचीलापन प्रदान करने और खर्चों और ब्याज के बारे में पारदर्शिता सुनिश्चित करने का अधिकार देता है। दक्षता, निष्पक्षता और प्रवर्तनीयता को संतुलित करके, ये उपबंध माध्यस्थम् को पारंपरिक न्यायालय मुकदमेबाजी का एक विश्वसनीय विकल्प बनाते हैं।