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सांविधानिक विधि

भारतीय संविधान के अधीन पंचायत

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 03-Jun-2025

परिचय 

पंचायतीराज प्रणाली जमीनी स्तर पर लोकतंत्र और विकेंद्रीकृत शासन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का प्रतिनिधित्व करती है।भारतीय संविधान के भाग 9 के माध्यम से सांविधानिक रूप से मान्यता प्राप्त यह प्रणाली स्थानीय स्वायत्त शासन संस्थाओं के माध्यम से ग्रामीण समुदायों को सशक्त बनाती है। 1992 के 73वें संविधान संशोधन अधिनियम ने इन पारंपरिक ग्राम परिषदों को परिभाषित शक्तियों, उत्तरदायित्त्वों और प्रतिनिधित्व संरचनाओं के साथ औपचारिक लोकतांत्रिक संस्थाओं में बदल दिया।  

संशोधन: 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 

  • अधिनियमन तिथि: 24 अप्रैल, 1993 
  • सांविधानिक संशोधन: भाग 9 (अनुच्छेद 243 से 243) सम्मिलित किया गया 
  • अनिवार्य कार्यान्वयन: सभी राज्यों के लिये सांविधानिक बाध्यता 
  • प्रमुख परिवर्तन 
    • सांविधानिक स्थिति: पंचायतों को प्रशासनिक से सांविधानिक संस्थाओं में परिवर्तित किया गया।   
    • एकरूप संरचना: संपूर्ण भारतवर्ष में त्रिस्तरीय पंचायत प्रणाली की मानकीकृत स्थापना की गई - ग्राम पंचायत, मध्यवर्ती पंचायत तथा जिला पंचायत। 
    • लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व: प्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था की गई तथा महिलाओं, अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों हेतु आरक्षण का प्रावधान किया गया। 
    • वित्तीय स्वायत्तता: पंचायतों को कराधान के अधिकार प्रदान किये गए तथा प्रत्येक राज्य के लिये वित्त आयोग की स्थापना को अनिवार्य किया गया। 
    • न्यायिक संरक्षण: अनुच्छेद 243-ण के अंतर्गत पंचायतों के चुनावों में न्यायालयों के हस्तक्षेप को सीमित किया गया, जिससे निर्वाचन प्रक्रिया की अखंडता सुनिश्चित की जा सके। 

सांविधानिक परिभाषाएँ और संरचना 

  • मुख्य परिभाषाएँ (अनुच्छेद 243) 
    • जिला: किसी राज्य के भीतर प्रशासनिक प्रादेशिक इकाई 
    • ग्राम सभा: एक निर्वाचन निकाय जिसमें पंचायत क्षेत्र के अंतर्गत एक गाँव के सभी पंजीकृत मतदाता सम्मिलित होते हैं।  
    • मध्यवर्ती स्तर: राज्यपाल द्वारा अधिसूचित ग्राम और जिला स्तर के बीच का प्रशासनिक स्तर।  
    • पंचायत: अनुच्छेद 243ख के अधीन गठित ग्रामीण स्वायत्त शासन की संस्था।  
    • पंचायत क्षेत्र: पंचायत का प्रादेशिक क्षेत्र अभिप्रेत है 
    • जनसंख्या : पिछली प्रकाशित जनगणना के आंकड़े।  
    • गाँव: राज्यपाल द्वारा गाँव के रूप में विनिर्दिष्ट क्षेत्र, जिसमें गाँवों के समूह सम्मिलित हैं 
  • त्रि-स्तरीय प्रणाली (अनुच्छेद 243) 
    • ग्राम स्तर : प्रत्यक्ष सामुदायिक शासन के लिये ग्राम पंचायतें।  
    • मध्यवर्ती स्तर: ब्लॉक/तहसील पंचायतें (20 लाख से कम जनसंख्या वाले राज्यों के लिये वैकल्पिक) ।  
    • जिला स्तर: जिला-व्यापी समन्वय के लिये जिला पंचायतें।  

संरचना और चुनावी ढाँचा 

  • सदस्यता संरचना (अनुच्छेद 243) 
    • सभी सीटें प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से भरी जाएंगी 
    • राज्य भर में जनसंख्या-से-सीट अनुपात समान रूप से बनाए रखा गया 
    • प्रतिनिधित्व उपबंध: 
      • उच्च स्तर पर निचले स्तर की पंचायतों के अध्यक्ष।  
      • संसद और राज्य विधानमंडल के सदस्य।  
      • राज्य सभा और विधान परिषद के सदस्य (जहाँ निर्वाचक के रूप में रजिस्ट्रीकृत हों) ।  
  • अध्यक्ष चुनाव प्रक्रिया 
    • ग्राम स्तर: राज्य विधि के उपबंधों के अनुसार निर्वाचित 
    • मध्यवर्ती/जिला स्तर: निर्वाचित सदस्यों में से निर्वाचित 
  • मताधिकार (अनुच्छेद 243 (4)) 
    • सभी पंचायत सदस्यों को, चुनाव पद्धति की परवाह किये बिना, बैठकों में मतदान का अधिकार है 

आरक्षण और प्रतिनिधित्व 

  • अनिवार्य आरक्षण (अनुच्छेद 243) 
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति: पंचायत क्षेत्र में जनसंख्या के अनुपात में।  
    • महिलाएँ : अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति महिलाओं सहित कुल सीटों का न्यूनतम एक तिहाई।  
    • चक्रानुक्रम प्रणाली : निर्वाचन क्षेत्रों में चक्रानुक्रम द्वारा आवंटित आरक्षित सीटें।  
  • अध्यक्ष पद के लिये आरक्षण 
    • अनुसूचित जाति और अनुसूचित अध्यक्ष: राज्य की जनसंख्या के अनुपात में 
    • महिला अध्यक्ष: प्रत्येक स्तर पर न्यूनतम एक तिहाई 
    • चक्रानुक्रम: विभिन्न पंचायतों के बीच आरक्षित पदों का चक्रानुक्रम 

विशेष उपबंध 

  • पिछड़ा वर्ग: राज्य अतिरिक्त आरक्षण प्रदान कर सकते हैं (अनुच्छेद 243(6))। 
  • सूर्यास्त खण्ड: अनुच्छेद 334 के अनुसार अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति आरक्षण (जो स्त्रियों के लिये आरक्षण से भिन्न) समाप्त हो गया।   
  • अरुणाचल प्रदेश अपवाद: अनुसूचित जाति सीट आरक्षण लागू नहीं होता (अनुच्छेद 243ड.(3)) ।   

शक्तियां और वित्तीय ढाँचा 

  • अधिकार और उत्तरदायित्त्व (अनुच्छेद 243) 
    • आर्थिक विकास: विकास योजनाओं की योजना बनाना और उनका क्रियान्वयन करना 
    • सामाजिक न्याय: समतामूलक सामाजिक विकास के लिये कार्यक्रम 
    • ग्यारहवीं अनुसूची के विषय: कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा सहित 29 विषय 
  • वित्तीय शक्तियां (अनुच्छेद 243) 
    • करारोपण का अधिकार: कर, शुल्क, टोल और फीस लगाना, एकत्र करना और विनियोजित करना।  
    • राजस्व असाइनमेंट: राज्य सरकार द्वारा निर्धारित करों एवं शुल्कों का पंचायती संस्थाओं को प्रदाय। 
    • सहायता अनुदान: राज्य की समेकित निधि से पंचायतों को वित्तीय सहायता प्रदान की जा सकती है 
    • पंचायत निधि: पंचायतों के वित्तीय प्रबंधन हेतु पृथक् निधियों की संरचना का गठन 
  • वित्त आयोग (अनुच्छेद 243) 
    • गठन: प्रत्येक राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रत्येक पाँच वर्षों में एक राज्य वित्त आयोग का गठन किया जाना आवश्यक है। 
    • सिफारिशें: यह आयोग पंचायतों को कर आय का वितरण, अनुदान सहायता की राशि एवं पंचायतों की वित्तीय स्थिति सुदृढ़ करने हेतु आवश्यक उपायों की सिफारिश करता है। 
    • विधायी समीक्षा: आयोग की सिफारिशें राज्य सरकार द्वारा कार्यान्वयन ज्ञापन सहित राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत की जाती हैं 

प्रशासनिक और निर्वाचन उपबंध 

  • अवधि और निर्वाचन (अनुच्छेद 243) 
    • अवधि: प्रत्येक पंचायत का कार्यकाल उसकी प्रथम बैठक की तिथि से पाँच वर्षों का होगा 
    • निर्वाचन समयसीमा: पंचायत का कार्यकाल समाप्त होने से पूर्व अथवा विघटन की स्थिति में छः माह के भीतर निर्वाचन कराना आवश्यक है 
    • निरंतरता: यदि किसी पंचायत को विघटित कर दिया जाता है, तो नवगठित पंचायत केवल पूर्ववर्ती पंचायत के शेष कार्यकाल हेतु ही कार्य करेगी 
  • सदस्यता के लिये निरर्हताएँ  (अनुच्छेद 243) 
    • आयु आवश्यकता : किसी पंचायत का सदस्य बनने हेतु न्यूनतम आयु 21 वर्ष निर्धारित की गई है, जो सामान्यतः विधायिका के लिए लागू 25 वर्ष की तुलना में कम है 
    • अपात्रताएँ: राज्य विधान सभा के निर्वाचन हेतु लागू अपात्रताएँ पंचायतों पर भी लागू होंगी, साथ ही राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए अतिरिक्त अपात्रता नियम भी मान्य होंगे 
    • विवाद समाधान: पंचायत सदस्यता से संबंधित विवादों का निर्णय राज्य द्वारा निर्दिष्ट प्राधिकरण करेगा।   
  • निर्वाचन प्रशासन (अनुच्छेद 243) 
    • राज्य चुनाव आयोग: प्रत्येक राज्य में एक राज्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है, जो पंचायतों एवं नगर निकायों के चुनावों का पर्यवेक्षण, निर्देशन एवं नियंत्रण करता है।  
    • पद सुरक्षा: राज्य निर्वाचन आयुक्त को केवल उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान आधारों पर ही पद से हटाया जा सकता है, जिससे उसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है 
    • प्रशासनिक सहायता: निर्वाचन आयोग को आवश्यक कार्मिक एवं संसाधन राज्य सरकार द्वारा उपलब्ध कराए जाते है 
    • विधायी ढाँचा: राज्य विधानमंडल पंचायत चुनावों से संबंधित विस्तृत विधि का निर्माण कर सकते हैं।  
  • लेखाओं की संपरीक्षा और जवाबदेही (अनुच्छेद 243) 
    • लेखा संरक्षण: वित्तीय अभिलेख रखने के लिये विधायी उपबंध 
    • लेखासंपरीक्षा तंत्र: राज्य द्वारा निर्धारित लेखासंपरीक्षा प्रक्रियाएँ और मानक 

प्रादेशिक अनुप्रयोग (अनुच्छेद 243ठ और 243ड.) 

  • केंद्र शासित प्रदेश: केंद्र शासित क्षेत्रों में पंचायत प्रावधानों को राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट परिवर्तनों के साथ लागू किया जा सकता है 
  • अपवर्जन: अनुसूचित क्षेत्र, जनजातीय क्षेत्र, तथा कुछ विशिष्ट पूर्वोत्तर राज्यों को इन उपबंधों से प्रारंभिक रूप से अपवर्जित किया गया है। 
  • विशेष उपबंध: अपवर्जित क्षेत्रों में इन सांविधानिक उपबंधों को विधायी संकल्प द्वारा ऐच्छिक रूप से लागू किया जा सकता है।  

निष्कर्ष 

पंचायती राज की संवैधानिक रूपरेखा भारत में ग्रामीण स्वायत्त शासन हेतु एक व्यापक विधिक संरचना का प्रतिनिधित्व करती है। संविधान के भाग 9 के अंतर्गत संरचना, प्रतिनिधित्व, शक्तियां एवं उत्तरदायित्व से संबंधित विस्तृत उपबंधों के माध्यम से यह व्यवस्था जमीनी स्तर पर लोकतांत्रिक भागीदारी सुनिश्चित करती है। 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से पारंपरिक ग्राम प्रशासन प्रणाली को एक सुदृढ़ सांविधानिक व्यवस्था में परिवर्तित कर दिया गया, जिससे पंचायतों को भारतीय लोकतंत्र के तीसरे स्तर के रूप में स्थापित किया गया, जिसमें प्रभावी स्थानीय शासन के लिये प्रत्याभूत (guaranteed) प्रतिनिधित्व, वित्तीय स्वायत्तता और प्रशासनिक सहायता सम्मिलित है।