कूपर बनाम कूपर (1874) LR 7 HL 53
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संपत्ति अंतरण अधिनियम

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सिविल कानून

कूपर बनाम कूपर (1874) LR 7 HL 53

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 06-May-2024

परिचय:

यह संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TOPA) की धारा 35 के अंतर्गत दिये गए निर्वाचन के सिद्धांत पर एक प्रमुख मामला है। इस मामले में लॉर्ड हीदर (हाउस ऑफ लॉर्ड्स) ने निर्वाचन के सिद्धांत की व्याख्या की।

तथ्य: 

  • हेराॅल्ड कूपर (पति) ने वर्ष 1933 में वेरा (पत्नी) से विवाह किया था। उनके दो बच्चे थे।
  • हेराॅल्ड अपने एवं वेरा के लिये चार बीमा पॉलिसियाँ लेता है तथा पत्नी ऐसी सभी पॉलिसियों की लाभार्थी थी।
    • उनके बीच न्यायिक पृथक्करण हो गया था तथा उनके मध्य एक करार हो गया था। इस करार के अनुसार पत्नी ने परिवार के लिये घर एवं एक ऑटोमोबाइल ले लिया तथा पति ने औज़ारों एवं उपकरणों की दुकान ले ली।
    • इसके बाद न्यायालय से उनके विवाह विच्छेद की डिक्री स्वीकृत हो गई।
  • विवाह विच्छेद के बाद दोनों पति-पत्नी, किसी दूसरे व्यक्ति से पुनः विवाह कर लेते हैं। पुनर्विवाह के बाद पति ने तीनों पॉलिसियों के लाभार्थी का नाम बदल दिया। अब उनकी नई पत्नी (इडा) तीनों पॉलिसियों की लाभार्थी थी।
  • इनमें से एक पॉलिसी पत्नी द्वारा हस्ताक्षरित छोड़ दी गई थी, लेकिन पति द्वारा हस्ताक्षरित नहीं थी।
  • कुछ समय बाद पति (हेराॅल्ड) की मृत्यु हो गई।

शामिल मुद्दे:

  • क्या वेरा एवं उसके बच्चों का संपत्ति पर कोई निहित हित है?

टिप्पणी:

  • हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने माना कि उस व्यक्ति पर सदैव एक दायित्व होता है, जिसने अपनी सहमति से लाभ स्वीकार किया है तथा यदि यह गलत, मिथ्या या भ्रामक है, तो दाता को इसे अस्वीकार करने या निपटान करने का अधिकार है।
  • कहा गया कि इस स्थिति में जिसे लाभ होगा, उसके कुछ दायित्व भी हैं।
  • हेराॅल्ड की मृत्यु के बाद वेरा को पॉलिसियों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, क्योंकि उसके समर्थन के लिये हेराॅल्ड का दायित्व एवं विवाह विच्छेद की डिक्री की शर्तों के अधीन, उसके पुनर्विवाह पर ही वह समाप्त हो गया था।
  • निर्वाचन के सिद्धांत को हाउस ऑफ लॉर्ड्स द्वारा निम्नलिखित शब्दों में समझाया गया था:
    • “... जो किसी वसीयत या अन्य लिखत के अंतर्गत लाभ प्राप्त करता है, उस पर यह दायित्व है कि वह उस लिखत में उल्लेखित पूरे कर्त्तव्य का पालन करे, जिसके अंतर्गत वह लाभ प्राप्त करता है तथा यदि यह पाया जाता है कि लिखत, किसी ऐसे उद्देश्य को प्रभावित करने का आशय रखता है, जिसे समाप्त करना दाता या निपटान कर्त्ता की सुविधा से परे था, लेकिन जिसका प्रभाव अक्सर उसकी सहमति से दिया जाता है, जो किसी प्रावधान के अंतर्गत लाभ प्राप्त करता है”।