होम / करेंट अफेयर्स
सिविल कानून
आदेश 7 नियम 11
« »01-May-2025
कुमारकुरुबरन बनाम पी. नारायणन और अन्य “सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 नियम 11 के अधीन वादपत्र को अवधि बाधित होने के कारण नामंजूर नहीं किया जा सकता है, जब खोज की तारीख विशेष रूप से अभिप्रेत की गई हो और यह तथ्य एवं विधि के मिश्रित प्रश्नों को उत्पन्न करता हो।” न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने यह निर्णय दिया कि जब परिसीमा में विवादित तथ्य और तथ्य और विधि के मिश्रित प्रश्न सम्मिलित होते हैं, तो इसे सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश 7 नियम 11 के चरण में निर्णीत नहीं किया जा सकता है और इसे विचारण के लिये आगे बढ़ाया जाना चाहिये।
- उच्चतम न्यायालय ने कुमारकुरुबरन बनाम पी. नारायणन एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया ।
पी. कुमारकुरुबरन बनाम पी. नारायणन एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी ?
- अपीलकर्त्ता, पी. कुमारकुरुबरन को 1974 में विशेष तहसीलदार, सैदापेट, तमिलनाडु द्वारा एक खाली जमीन आवंटित की गई थी, जहाँ उन्होंने एक घर बनाया और कर का संदाय किया।
- अपीलकर्त्ता ने 1978 में अपने पिता के. पोथिकन्नु पिल्लई के पक्ष में निर्माण और संबंधित गतिविधियों के लिये पावर ऑफ अटॉर्नी निष्पादित की थी, किंतु संपत्ति के अन्य संक्रामण (alienation) के लिये नहीं।
- प्राधिकार के सीमित दायरे के विपरीत, अपीलकर्त्ता के पिता ने 1988 में द्वितीय प्रतिवादी (अपीलकर्त्ता की पौत्री) के पक्ष में एक विक्रय विलेख निष्पादित किया, जिसके बारे में अपीलकर्त्ता ने दावा किया कि वह अवैध था।
- अपीलकर्त्ता ने आरोप लगाया कि उसे इस संव्यवहार के बारे में वर्ष 2011 में ही पता चला, जिसके पश्चात् उसने प्रतिवादी के परिवार के विरुद्ध भूमि हड़पने वाले प्रकोष्ठ के अधीन पुलिस में परिवाद दर्ज करया।
- तत्पश्चात्, दूसरे प्रतिवादी ने 2012 में तीसरे प्रतिवादी के पक्ष में एक समझौता विलेख निष्पादित किया, जिसने फिर प्रथम प्रतिवादी के पक्ष में एक सामान्य पावर ऑफ अटॉर्नी विलेख निष्पादित किया।
- अपीलकर्त्ता ने स्वामित्व की घोषणा , स्थायी व्यादेश और प्रतिवादियों द्वारा निष्पादित विभिन्न कार्यों को निरस्त करने की मांग करते हुए वाद O.S. संख्या 310/2014 दायर किया।
- कार्यवाही के दौरान, प्रतिवादियों ने आदेश 7 नियम 11 सिविल प्रक्रिया संहिता के अधीन एक आवेदन दायर किया, जिसमें इस आधार पर वादपत्र को नामंजूर करने की मांग की गई कि इसका मूल्यांकन कम किया गया था और यह परिसीमा काल द्वारा वर्जित थी।
- अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने इस आवेदन को खारिज कर दिया, किंतु पुनरीक्षण के पश्चात्, मद्रास उच्च न्यायालय ने सिविल पुनरीक्षण याचिका को अनुमति दे दी और केवल परिसीमा के आधार पर वादपत्र को नामंजूर कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि परिसीमा का प्रश्न, विशेष रूप से संदिग्ध संव्यवहार के ज्ञान या सूचना से संबंधित मामलों में, विधि और तथ्य का मिश्रित प्रश्न है, जिसे पूर्ण विचारण के बिना निश्चायक रूप से निर्धारित नहीं किया जा सकता।
- न्यायालय ने कहा कि जहाँ ज्ञान की तिथि का विशेष रूप से तर्क किया गया हो तथा वह वाद-हेतुक का आधार बनती हो, वहाँ परिसीमा के विवाद्यक पर संक्षेप में निर्णय नहीं किया जा सकता, अपितु यह एक मिश्रित प्रश्न बन जाता है जिसके लिये साक्ष्य की आवश्यकता होती है।
- न्यायालय ने यह उल्लेख किया कि आदेश 7 नियम 11 के प्रयोजन हेतु वादपत्र में किये गए कथनों (averments) को यथावत सत्य मानते हुए विचार किया जाना आवश्यक है, और उच्च न्यायालय द्वारा वादपत्र को नामंजूर करना, बिना पक्षकारों को साक्ष्य प्रस्तुत करने का अवसर दिये, न्यायिक त्रुटि थी।
- न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्त्ता द्वारा 2011 में अपराध का पता चलने तथा तत्पश्चात् की कार्रवाइयों (परिवाद दर्ज करना, पट्टा आवेदन) के संबंध में दिये गए दावे को उचित साक्ष्य परीक्षण के बिना खारिज नहीं किया जा सकता।
- न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने बिना यह जांच किये कि ज्ञान की तिथि के संबंध में दलील स्पष्ट रूप से मिथ्या थी या स्वाभाविक रूप से असंभव थी, विचार न्यायालय के तर्कपूर्ण आदेश को अनुचित तरीके से उलट दिया।
सिविल प्रक्रिया संहिता का आदेश 7 नियम 11 क्या है?
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का आदेश 7 नियम 11 एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रियात्मक उपबंध है जो न्यायालयों को विचारण की कार्यवाही के बिना ही किसी वादपत्र को प्रारंभिक चरण में नामंजूर करने का अधिकार देता है। यह नियम तुच्छ, कष्टप्रद या विधिक रूप से अस्थिर वादों को न्यायिक समय और संसाधनों को बर्बाद करने से रोकने के लिये एक फ़िल्टरिंग तंत्र के रूप में कार्य करता है।
- उपबंध में छह विशिष्ट आधार बताए गए हैं जिनके आधार पर न्यायालय किसी वादपत्र को नामंजूर कर सकता है:
- जहाँ वह वाद-हेतुक प्रकट नहीं करता है (नियम 11(क))।
- जहाँ दावाकृत अनुतोष का मूल्यांकन कम किया गया है और वादी मूल्यांकन को ठीक करने के लिये न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर जो न्यायालय ने नियत किया है, ऐसा करने में असफल रहता है (नियम 11(ख))।
- जहाँ दावाकृत अनुतोष का मूल्यांकन ठीक है किंतु वादपत्र अपर्याप्त स्टाम्प-पत्र पर लिखा गया है और वादी अपेक्षित स्टाम्प-पत्र के देने के लिये न्यायालय द्वारा अपेक्षित किये जाने पर उस समय के भीतर, जो न्यायालय ने नियत किया है, ऐसा करने में असफल रहता है (नियम 11(ग))।
- जहाँ वादपत्र में के कथन से यह प्रतीत होता है कि वाद किसी विधि, जिसमें परिसीमा विधि भी सम्मिलित है, द्वारा वर्जित है (नियम 11(घ))।
- जहाँ यह दो प्रतियों में फाइल नहीं किया जाता है (नियम 11(ङ))।
- जहाँ वादी नियम 9 के उपबंधों का अनुपालन करने में असफल रहता है (नियम 11(च))।
- नियम में एक परंतुक सम्मिलित है जो मूल्यांकन को सही करने या स्टाम्प पेपर उपलब्ध कराने के लिये समय बढ़ाने की न्यायालय की क्षमता को प्रतिबंधित करता है, जब तक कि वादी को असाधारण परिस्थितियों के कारण रोका न गया हो और इंकार करने से गंभीर अन्याय हो।
निर्णय में संदर्भित प्रमुख न्यायिक निर्णय
- डालीबेन वलजीभाई एवं अन्य बनाम प्रजापति कोदरभाई कचराभाई एवं अन्य (2024) – में यह स्थापित किया गया कि जब एक वादी किसी विशेष समय पर आवश्यक तथ्यों का ज्ञान प्राप्त करने का दावा करता है, तो इसे आदेश 7 नियम 11 के अधीन आवेदन पर विचार करने के चरण में स्वीकार किया जाना चाहिये, परिसीमा की संगणना ज्ञान प्राप्ति की तिथि से की जाएगी।
- छोटनबेन बनाम कीर्तिभाई जलकृष्णभाई ठक्कर (2018) – में यह कहा गया कि विक्रय विलेखों को रद्द करने के वादों में, परिसीमा काल ज्ञान की तारीख से प्रारंभ होती है, और जहाँ ऐसी तारीख को वाद में दलील दी जाती है, यह एक विचारणीय विवाद्यक बन जाता है जिसे संक्षेप में निर्धारित नहीं किया जा सकता है।
- सलीम डी. अगबोटवाला और अन्य बनाम शामलजी ओधवजी ठक्कर और अन्य (2021)- इस बात पर बल दिया गया कि आदेश 7 नियम 11 के अधीन वादपत्र को नामंजूर करना एक कठोर शक्ति है और जब कोई वादी किसी विशेष समय पर आवश्यक तथ्यों के ज्ञान का दावा करता है, तो इसे प्रारंभिक चरण में स्वीकार किया जाना चाहिये।
- शक्ति भोग फूड इंडस्ट्रीज लिमिटेड बनाम सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया एवं अन्य (2020) - स्पष्ट किया गया कि आदेश 7 नियम 11 के प्रयोजनों के लिये, केवल वादपत्र में दिये गए कथन ही सुसंगत हैं और तथ्य और विधि के मिश्रित प्रश्नों की आवश्यकता वाले मामलों को संक्षेप में तय नहीं किया जा सकता है।