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सिविल कानून
मानहानि, अपकथन एवं ट्रेडमार्क अतिलंघन
« »01-May-2025
सैन न्यूट्रिशन प्राइवेट लिमिटेड बनाम अर्पित मंगल एवं अन्य "प्रतिवादी संख्या 1 द्वारा की गई टिप्पणियाँ, प्रथम दृष्टया मेरे विचार में, प्रतिवादी संख्या 1 की ईमानदार राय बनाती हैं, जो 'पर्याप्त तथ्यात्मक आधार' पर आधारित है, अर्थात मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं से उपरोक्त परीक्षण रिपोर्ट।" न्यायमूर्ति अमित बंसल |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अमित बंसल की पीठ ने कथित मानहानि, अपकथन एवं ट्रेडमार्क अतिलंघन के आधार पर सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसरों के विरुद्ध निषेधाज्ञा देने से अस्वीकार कर दिया।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने सैन न्यूट्रिशन प्राइवेट लिमिटेड बनाम अर्पित मंगल एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
सैन न्यूट्रिशन प्राइवेट लिमिटेड बनाम अर्पित मंगल एवं अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- वादी एक कंपनी है जो प्रोटीन पाउडर एवं अन्य सप्लीमेंट्स सहित विभिन्न न्यूट्रास्युटिकल एवं हेल्थकेयर सप्लीमेंट उत्पादों के विक्रय एवं विपणन के व्यवसाय में लगी हुई है।
- वादी ने वर्ष 2018 में DC DOCTOR'S CHOICE ट्रेडमार्क एवं अन्य संबंधित मार्क्स के अंतर्गत आहार एवं पोषण संबंधी पूरक उत्पादों का विपणन एवं विक्रय आरंभ किया।
- वादी का दावा है कि वह आहार एवं पोषण संबंधी पूरक उद्योग में एक मार्केट लीडर है, जिसके उत्पाद अंतरराष्ट्रीय शोधकर्त्ताओं द्वारा तैयार किये गए हैं तथा जिन्हें भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा अनुमोदित किया गया है।
- वादी ने 16 नवंबर 2018 से ट्रेडमार्क पंजीकृत किया है, तथा कई अन्य DC DOCTOR'S CHOICE फॉर्मेटिव मार्क्स के पंजीकरण के लिये आवेदन किया है।
- वादी अपने उत्पादों को अपनी वेबसाइट, मोबाइल ऐप, ऑफलाइन रिटेलर्स और अमेज़न एवं फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म सहित विभिन्न चैनलों के द्वारा विक्रय करता है।
- वादी की विक्रय 2023-24 में 18,85,00,000/- रुपये तक पहुँच गई, जबकि उसी वर्ष विज्ञापन एवं प्रचार खर्च 1,71,00,000/- रुपये था।
- प्रतिवादी संख्या 1 से 4 YouTuber/प्रभावशाली लोग हैं जो YouTube एवं Instagram जैसे प्लेटफ़ॉर्म पर स्वास्थ्य सप्लीमेंट और संबंधित उत्पादों के विषय में कंटेंट बनाते एवं अपलोड करते हैं।
- वादी ने सितंबर 2022 के बाद विक्रय में भारी गिरावट देखी, जिसका कारण वे प्रतिवादियों द्वारा उनके उत्पाद DC DOCTOR'S CHOICE ISO PRO के विषय में अपलोड किये गए अपकथनजनक वीडियो को देते हैं।
- दिसंबर 2023 और फरवरी 2024 के बीच, वादी ने इन वीडियो का विश्लेषण किया तथा पाया कि उनमें उनके उत्पाद के विषय में निराधार एवं भ्रामक सूचना थी।
- वादी का आरोप है कि प्रतिवादी व्यूज एवं लोकप्रियता अर्जित करने के लिये उनकी ब्रांड वैल्यू का लाभ उठा रहे हैं और संभवतः प्रतिस्पर्धियों द्वारा प्रायोजित हैं।
- वादी ने 28 मार्च 2024 को गूगल के पास शिकायत दर्ज कराई, जिसमें वीडियो हटाने का अनुरोध किया गया, लेकिन गूगल ने 29 मार्च 2024 को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि वे पोस्ट की सत्यता का निर्णय नहीं कर सकते तथा मानहानि के आरोपों के आधार पर वीडियो नहीं हटाते।
न्यायालय की टिप्पणयाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने माना कि वादी अपने उत्पादों के संबंध में किसी भी मिथ्या दावे के लिये उत्तरदायी है, जिसमें लेबल पर पोषण संबंधी सूचना भी शामिल है, भले ही विनिर्माण किसी तीसरे पक्ष द्वारा किया गया हो, विशेषकर जब वादी के ट्रेडमार्क्स के अधीन बेचा जाता है।
- इस मामले में प्रतिवादी निष्पक्ष टिप्पणी के बचाव करने का अधिकारी प्रतीत होता है क्योंकि उनके वीडियो का उद्देश्य प्रोटीन सामग्री के दावों में विसंगतियों के विषय में उपभोक्ताओं को शिक्षित करना है।
- न्यायालय ने प्रतिवादी की टिप्पणियों को मान्यता प्राप्त प्रयोगशाला परीक्षण रिपोर्टों से पर्याप्त तथ्यात्मक साक्ष्य के आधार पर ईमानदार राय के रूप में देखा।
- न्यायालय ने आगे कहा कि कंटेंट (फिटनेस एवं पोषण उत्पाद) को लोक हित का मामला माना जाता है क्योंकि यह उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य एवं कल्याण को प्रभावित करता है।
- न्यायालय ने इस तथ्य पर असहमति व्यक्त किया कि "घटिया" (जिसका अर्थ है घटिया/निम्न) शब्द का प्रयोग असंसदीय या अपमानजनक भाषा है, इसे स्वीकार्य अतिशयोक्तिपूर्ण कथन या हाइपरबोल के रूप में देखा।
- वादी के ट्रेडमार्क "डॉक्टर की पसंद" के लिये "डॉक्टर के पास कोई विकल्प नहीं है" जैसे व्यंग्यात्मक संदर्भ वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत संरक्षित हैं।
- न्यायालय ने पाया कि वादी का स्वास्थ्य प्रभावितों के लिये ASCI दिशानिर्देशों पर विश्वास दोषपूर्ण है, क्योंकि प्रतिवादी ने तथ्यात्मक प्रयोगशाला परीक्षण परिणामों पर राय आधारित की थी।
- न्यायालय ने दोहराया कि वाणिज्यिक भाषण संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के अंतर्गत संरक्षित है जैसा कि टाटा प्रेस बनाम महानगर टेलीफोन निगम लिमिटेड (1995) मामले में स्थापित किया गया है।
- अपकथन स्थापित करने के लिये, तीन तत्त्वों को सिद्ध किया जाना चाहिये: असत्य/भ्रामक अभिकथन, दुर्भावना, और वादी को होने वाली विशेष हानि।
- न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादी ने "सत्य" एवं "निष्पक्ष टिप्पणी" के बचाव स्थापित किये, जबकि वादी दुर्भावना या विक्रय में गिरावट को वीडियो के कारण सिद्ध करने में विफल रहा।
- धारा 29(4) के अंतर्गत ट्रेडमार्क अतिलंघन केवल तभी लागू होता है जब कोई अन्य वाणिज्यिक यूनिट वादी के ट्रेडमार्क का शोषण करती है, जो यहाँ मामला नहीं था।
- विज्ञापन में ट्रेडमार्क अतिलंघन के संबंध में धारा 29(8) लागू नहीं पाई गई क्योंकि प्रतिवादी विज्ञापन के अंश के रूप में वादी के व्यापारिक चिह्नों (ट्रेडमार्क) का उपयोग नहीं कर रहे थे।
- इस प्रकार, न्यायालय ने वर्तमान मामले के तथ्यों में वादी के पक्ष में अनुतोष देने से अस्वीकार कर दिया।
मानहानि क्या है?
- मानहानि तब कारित होती है जब कोई व्यक्ति ऐसा अभिकथन देता है जिससे दूसरे व्यक्ति की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचती है।
- मानहानि बोले गए शब्दों, लिखित अभिकथनों या यहाँ तक कि वीडियो के रूप में भी हो सकती है।
- अगर कोई अभिकथन दूसरे लोगों की दृष्टि में किसी की प्रतिष्ठा को कम करता है तो उसे मानहानि माना जाता है।
- सभी मानहानि वाले अभिकथनों के लिये विधिक कार्यवाही नहीं की जा सकती, क्योंकि कुछ बचाव उपलब्ध हैं।
- पहला बचाव सत्य या औचित्य है, जिसका अर्थ है कि अगर अभिकथन सच सिद्ध हो सकता है, तो यह कार्यवाही योग्य मानहानि नहीं है।
- दूसरा बचाव निष्पक्ष टिप्पणी है, जो लोक हित के मामलों पर ईमानदार राय की रक्षा करता है जो सच्चे तथ्यों पर आधारित होते हैं।
- राम जेठमलानी बनाम सुब्रमण्यम स्वामी (2006) के मामले में न्यायालय ने कहा था कि निष्पक्ष टिप्पणी की दलील में सफल होने के लिये प्रतिवादी को निम्नलिखित स्थापित करना होगा:
- यह कथन तथ्यों पर आधारित एक टिप्पणी थी, जो पर्याप्त रूप से सत्य है।
- टिप्पणी का विषय लोक हित में था।
- यह टिप्पणी ऐसी थी जिसे कोई ईमानदार व्यक्ति ही बना सकता था।
- औचित्य या सत्य के बचाव के विपरीत, निष्पक्ष टिप्पणी के बचाव से निपटने के दौरान दुर्भावना एक प्रासंगिक कारक होगी जिस पर विचार किया जाना चाहिये।
- इसलिये, किसी दिये गए मामले में, यदि न्यायालय का मानना है कि प्रतिवादी द्वारा दिये गए कथन ऐसे हैं कि वह उन्हें अपने पास उपलब्ध तथ्यों के आधार पर सही मानता है, तो प्रतिवादी निष्पक्ष टिप्पणी के बचाव का आह्वान करने का हकदार होगा।
- प्रतिवादी को तथ्यात्मक कथन एवं टिप्पणी के बीच स्पष्ट रूप से अंतर करना चाहिये ताकि श्रोता/दर्शक/पाठक यह जान सकें कि कथन प्रतिवादी की व्यक्तिगत राय है।
- यदि प्रतिवादी जानता है कि उसकी टिप्पणियाँ असत्य तथ्यों पर आधारित हैं या सत्य को निर्धारित करने के किसी भी प्रयास के बिना की गई हैं, तो यह माना जाएगा कि टिप्पणियाँ दुर्भावना से की गई थीं।
- राम जेठमलानी बनाम सुब्रमण्यम स्वामी (2006) के मामले में न्यायालय ने कहा था कि निष्पक्ष टिप्पणी की दलील में सफल होने के लिये प्रतिवादी को निम्नलिखित स्थापित करना होगा:
- तीसरा बचाव विशेषाधिकार है, जो कुछ स्थितियों में दिये गए अभिकथनों की रक्षा करता है, जैसे न्यायालयी अभिकथन, संसदीय भाषण, या अन्य संदर्भों में जहाँ लोक नीति खुले संचार को प्रोत्साहित करती है।
अपकथन क्या है?
- अपकथन एक प्रकार का विद्वेषपूर्ण असत्य है जो किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा के बजाय उसके आर्थिक हितों की रक्षा करता है।
- अपकथन तब कारित होता है जब कोई व्यक्ति वादी के सामान या सेवाओं के विषय में असत्य या भ्रामक अभिकथन देता है जो जनता को उन सामानों को न खरीदने या उन सेवाओं का उपयोग न करने के लिये प्रभावित करता है।
- अपकथन के मामलों में, वादी पर यह सिद्ध करने का भार होता है कि प्रतिवादी के अभिकथन मिथ्या थे, मानहानि के मामलों के विपरीत।
- साक्ष्य के भार में यह अंतर इसलिये निहित है क्योंकि मानहानि व्यक्तिगत प्रतिष्ठा की रक्षा करती है जबकि अपकथन आर्थिक हितों की रक्षा करता है।
- अपकथन के वाद में विद्वेष एक अंतर्निहित तत्त्व है क्योंकि कार्यवाही का कारण वादी के सामान या सेवाओं को क्षति पहुँचाने के लिये मिथ्या अभिकथन देने पर आधारित है।
- सत्य में वास्तविक विश्वास के साथ दिया गया अभिकथन अपकथन के मामले में द्वेष के दावे को अस्वीकार कर देगा।
- द्वेष को कार्यवाही योग्य बनाने के लिये, इसमें बेईमानी या अनुचित आसह्य निहित होना चाहिये, जिसमें दुर्भावना या चोट पहुँचाने के आशय से मन की व्यक्तिपरक स्थिति शामिल हो।
- अपने स्वयं के वैध व्यावसायिक हितों की रक्षा करने वाले व्यक्ति पर दुर्भावना का आरोप नहीं लगाया जा सकता, भले ही उन्हें पता हो कि उनके कार्यों से दूसरों को क्षति हो सकती है।
- प्रतिद्वंद्वी की कीमत पर अपने व्यवसाय को बढ़ावा देने की एक व्यापारी की इच्छा को विवेक का उचित प्रयोग माना जाता है, न कि दुर्भावना।
इस मामले के संदर्भ में ट्रेडमार्क अतिलंघन क्या है?
- वर्तमान मामले के तथ्यों के मद्देनजर ट्रेडमार्क अधिनियम, 1999 (TMA) की धारा 29 (8) पर विचार किया जाना चाहिये।
- यह प्रावधान निम्नलिखित के लिये प्रावधान करता है:
- पंजीकृत ट्रेडमार्क का अतिलंघन तब कारित होता है जब उस ट्रेडमार्क का विज्ञापन अनुचित लाभ प्राप्त करता है तथा औद्योगिक या वाणिज्यिक मामलों में ईमानदार प्रथाओं का खंडन करता है।
- अतिलंघन तब भी होता है जब विज्ञापन पंजीकृत ट्रेडमार्क के विशिष्ट चरित्र के लिये हानिकारक होता है।
- पंजीकृत ट्रेडमार्क की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाने वाला विज्ञापन भी अतिलंघन माना जाता है।