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सिविल कानून

वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम के अंतर्गत परिसीमा अवधि

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 29-Apr-2025

झारखंड ऊर्जा उत्पादन निगम लिमिटेड बनाम मेसर्स भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड

"न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि आदेश XX नियम 1 (1) वाणिज्यिक न्यायालयों को निर्णय की प्रतियाँ उपलब्ध कराने का कर्त्तव्य अध्यारोपित करता है, लेकिन इससे तात्पर्य यह नहीं है कि पक्षकार अपनी क्षमता में प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करने के प्रयास के सभी उत्तरदायित्व से बच सकते हैं।"

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति आर. महादेवन

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि आदेश XX नियम 1 (1) वाणिज्यिक न्यायालयों को निर्णय की प्रतियाँ उपलब्ध कराने का कर्त्तव्य अध्यारोपित करता है, लेकिन इससे तात्पर्य यह नहीं है कि पक्षकार अपनी क्षमता में प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करने के प्रयास के सभी उत्तरदायित्व से बच सकते हैं।

  • उच्चतम न्यायालय ने झारखंड ऊर्जा उत्पादन निगम लिमिटेड बनाम मेसर्स भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (2025) मामले में यह निर्णय सुनाया।

झारखंड ऊर्जा उत्पादन निगम लिमिटेड बनाम मेसर्स भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • याचिकाकर्त्ता आवेदन दाखिल करने से छूट मांग रहा है। 
  • यह मामला झारखंड उच्च न्यायालय के 14 फरवरी 2025 के एक निर्णय से उत्पन्न हुआ है, जिसने अपील दायर करने में 301 दिन के विलंब को क्षमा करने के लिये परिसीमा अधिनियम, 1963 (LA) की धारा 5 के अंतर्गत याचिकाकर्त्ता के आवेदन को खारिज कर दिया। 
  • प्रतिवादी, भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (एक केंद्र सरकार की कंपनी) ने MSME काउंसिल कानपुर के एक पंचाट के आधार पर 26,59,34,854 रुपये और 15.75% ब्याज वसूलने के लिये याचिकाकर्त्ताओं के विरुद्ध एक सिविल वाद दायर किया था। 
  • याचिकाकर्त्ताओं ने अपनी सांविधिक अपील 301 दिन विलंब से दायर की तथा इस विलंब को क्षमा करने का अनुरोध किया, लेकिन उच्च न्यायालय ने यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि LA की धारा 5 के अंतर्गत कोई पर्याप्त कारण नहीं दिखाया गया था।
  • याचिकाकर्त्ताओं के अधिवक्ता, श्री सौरभ कृपाल एवं श्री जैन ए. खान ने तर्क दिया कि उच्च न्यायालय ने वाणिज्यिक न्यायालयों के लिये विशेष रूप से सम्मिलित सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश XX नियम 1 के प्रावधानों पर विचार न करके चूक कारित की है। 
  • उन्होंने आगे तर्क दिया कि परिसीमा अवधि ओपन कोर्ट में निर्णय की घोषणा से आरंभ नहीं होनी चाहिये, बल्कि आदेश CPC की XX नियम 1 के अनुसार उस समय से आरंभ होनी चाहिये जब निर्णय की एक निःशुल्क प्रति पक्षों को प्रदान की जाती है। 
  • इस प्रकार, मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि CPC के आदेश XX नियम 1(1) में यह प्रावधान है कि:
    • वाणिज्यिक न्यायालय, वाणिज्यिक प्रभाग या वाणिज्यिक अपील प्रभाग, जैसा भी मामला हो, विचारण के समापन के नब्बे दिनों के अंदर निर्णय देगा तथा उसकी प्रतियाँ विवाद के सभी पक्षों को इलेक्ट्रॉनिक मेल या अन्यथा के माध्यम से जारी की जाएंगी।
  • न्यायालय ने माना कि "दिये गए निर्णय एवं उसकी प्रतियाँ विवाद के सभी पक्षों को इलेक्ट्रॉनिक सामग्री या अन्यथा के माध्यम से जारी की जाएंगी" का निर्वचन किया जाना चाहिये।
  • विपक्षी पक्ष ने तर्क दिया है कि उपरोक्त प्रावधान अनिवार्य है और निर्देशात्मक नहीं है, इसलिये परिसीमा अवधि केवल उस तिथि से आरंभ होगी, जिस दिन किसी भी तरीके से पक्ष को निर्णय की प्रति प्रदान की जाएगी।
  • हालाँकि, न्यायालय ने माना कि उपरोक्त प्रावधान अनिवार्य नहीं हो सकते, क्योंकि इसका अर्थ यह होगा कि जब तक रजिस्ट्री निर्णय की प्रति प्रदान नहीं करती, भले ही इसकी मांग न की गई हो, तब तक परिसीमा अवधि निर्णय की घोषणा की तिथि से आरंभ नहीं होगी।
  • न्यायालय ने कहा कि हाउसिंग बोर्ड हरियाणा बनाम हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी वेलफेयर एसोसिएशन (1995) का निर्णय, जिसमें यह प्रावधान है कि आदेश को चुनौती देने की समय-सीमा ऐसी सूचना की तिथि से आरंभ होगी, केवल तभी लागू होगी जब पक्षकारों द्वारा आदेश प्राप्त करने के लिये किये गए सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद भी उसे प्राप्त नहीं किया जा सका और जिसके परिणामस्वरूप अपील दायर करने में अपरिहार्य विलम्ब हुआ। 
  • न्यायालय ने कहा कि परिसीमा विधि का एक मुख्य सिद्धांत पक्षकारों में अपने अधिकारों के प्रति तत्परता को प्रोत्साहित करना है। 
  • परिसीमा विधि को इस तरह से नहीं पढ़ा जा सकता है कि पक्षकार अपने अधिकारों के प्रति किसी भी तरह का सम्मान दिखाना बंद कर दें तथा असामयिक सूचना के बहाने स्वयं सतर्क हुए बिना वाद संस्थित कर सकें।
  • इस प्रकार न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि केवल इसलिये कि आदेश XX नियम I वाणिज्यिक न्यायालयों को निर्णय की प्रतियाँ उपलब्ध कराने का कर्त्तव्य अध्यारोपित करता है, इससे तात्पर्य यह नहीं है कि पक्षकार अपनी क्षमता में प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करने का प्रयास करने की सभी उत्तरदायित्व से बच सकते हैं।
    • इस प्रकार के किसी भी निर्वचन से परिसीमा विधि के मूल सिद्धांत तथा समय पर निपटान सुनिश्चित करने के अधिनियम, 2015 के हितकर उद्देश्य को झटका लगेगा।
  • वर्तमान मामले के तथ्यों के अनुसार, अपील दायर करने में विलंब 301 दिन है - जो कि LA की धारा 5 के अंतर्गत शक्ति के प्रयोग में क्षमा किये जाने के लिये उच्चतम न्यायालय के निर्णय द्वारा अनुमत 60 दिन + 60 दिन = 120 दिन से कहीं अधिक है। 
  • इसलिये, आवेदकों की उपेक्षा के कारण हुई ऐसी अत्यधिक विलंब क्षमा करने योग्य नहीं है।

वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 द्वारा सम्मिलित आदेश XX नियम 1 (1) क्या है?

  • वाणिज्यिक न्यायालय अधिनियम, 2015 द्वारा आदेश XX नियम 1 (1) डाला गया था। 
  • प्रावधान में प्रावधान है:
    • वाणिज्यिक न्यायालय, वाणिज्यिक अपीलीय न्यायालय, वाणिज्यिक प्रभाग या वाणिज्यिक अपीलीय प्रभाग को विचारण पूरी होने के 90 दिनों के अंदर निर्णय देना होगा। 
    • विवाद में शामिल सभी पक्षों को निर्णय की प्रतियाँ जारी की जानी चाहिये। 
    • प्रतियाँ इलेक्ट्रॉनिक मेल या अन्य माध्यमों से वितरित की जा सकती हैं।