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सांविधानिक विधि
जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ, 2018 SC 1676
« »06-Jun-2024
परिचय:
यह मामला एक ऐतिहासिक निर्णय है जिसमें यह माना गया कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है।
तथ्य:
- यह मामला भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 497 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देता है, जो व्यभिचार को अपराध मानता है तथा दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 198 को भी चुनौती देता है, जो व्यभिचार के मामलों में पति को पीड़ित व्यक्ति मानता है।
- धारा 497 IPC के अधीन व्यभिचार को केवल उस व्यक्ति के लिये अपराध माना गया है जो पति की सहमति या मिलीभगत के बिना उसकी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाता है। पत्नी को दुष्प्रेरक के रूप में दण्डयोग्य नहीं माना गया है।
- CrPC की धारा 198 में प्रावधान है कि कोई भी न्यायालय IPC के अध्याय XX के अंतर्गत दण्डनीय अपराध (जिसमें व्यभिचार भी शामिल है) का संज्ञान, महिला के पति द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के अलावा नहीं ले सकता।
 
- याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि ये प्रावधान महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं, उन्हें पुरुषों के अधीन मानते हैं तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करते हैं जो समानता, गैर-भेदभाव एवं जीवन व व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा की गारंटी देते हैं।
शामिल मुद्दे:
- क्या IPC की धारा 497 संवैधानिक रूप से वैध है?
- क्या धारा 198(2) संवैधानिक रूप से वैध है?
टिप्पणी:
- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 497, जो व्यभिचार को अपराध मानती है, को असंवैधानिक माना गया क्योंकि यह स्पष्टतः मनमाना है तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करती है।
- न्यायालय ने कहा कि यह धारा लैंगिक रूढ़िवादिता पर आधारित है और महिलाओं को उनके पतियों की संपत्ति मानती है। व्यभिचार को अपराध घोषित कर एवं केवल पुरुषों को दण्डित कर, इसने महिलाओं की अधीनता को कायम रखा तथा उन्हें वैवाहिक संबंधों में यौन स्वायत्तता, स्वतंत्रता, सम्मान और गोपनीयता से वंचित किया।
- संवैधानिक नैतिकता, मौलिक समानता एवं गरिमा के सिद्धांतों के अनुसार विवाहित महिलाओं को उनके पतियों की संपत्ति के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये। मानव कामुकता और यौन स्वायत्तता किसी की पहचान तथा व्यक्तित्व के आवश्यक आयाम हैं।
- धारा 497 के माध्यम से, विवाहित महिलाओं को "सुरक्षात्मक भेदभाव" प्रदान करने की धारणा, असंवैधानिक पितृसत्तावाद थी क्योंकि यह अधीनता को समाप्त करने के स्थान इसे यथावत् रखने का काम करती थी।
- यद्यपि संसद के पास विधान बनाने की शक्ति है, परंतु व्यभिचार को आपराधिक कृत्य मानने से राज्य को पति एवं पत्नी के बीच वैवाहिक संबंध से संबंधित गोपनीयता की सीमा में अनुचित प्रवेश करना पड़ेगा।
- इन निष्कर्षों के मद्देनज़र, उच्चतम न्यायालय ने अपने पहले के निर्णयों को खारिज करते हुए धारा 497 को असंवैधानिक करार दिया।
- CrPC की धारा 198(2), जो धारा 497 के अंतर्गत अपराधों में पति को पीड़ित व्यक्ति मानती है, इस धारा को भी मौलिक समानता का उल्लंघन करने के कारण असंवैधानिक माना गया।
निष्कर्ष:
संक्षेप में, सर्वसम्मति से लिये गए निर्णय ने व्यभिचार के कृत्य को अपराध मानने से अस्वीकार कर दिया तथा वैवाहिक संबंधों में लैंगिक समानता, यौन स्वायत्तता, गरिमा एवं गोपनीयता के संवैधानिक सिद्धांतों को मान्यता दी। व्यभिचार को आपराधिक कृत्य मानने वाले पहले के निर्णयों को असंवैधानिक होने के आधार पर अस्वीकृत कर दिया गया।