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सिविल कानून
लिखित कथन दाखिल करने में विलंब के लिये क्षमा
«03-Oct-2025
गौतम धाम को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड बनाम पारसी पंचायत, बॉम्बे के फंड और प्रॉपर्टीज और अन्य "बॉम्बे उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि लिखित कथन दाखिल करने की परिसीमा, वादपत्र की प्रति के साथ समन की रिट की वास्तविक तामील से प्रारंभ होती है, वकालतनामा दाखिल करने की तारीख से नहीं, तथा एक सोसायटी मामले में अधिवक्ता के कार्यालय की चूक के कारण हुए विलंब को क्षमा कर दिया।" न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन |
स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
गौतम धाम को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड बनाम पारसी पंचायत, बॉम्बे के फंड और प्रॉपर्टीज और अन्य (2025) के मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जितेंद्र जैन ने एक गैर-वाणिज्यिक वाद में लिखित कथन दाखिल करने में 75 दिनों का विलंब को क्षमा कर दिया, यह मानते हुए कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 8 नियम 1 के अधीन परिसीमा काल वादपत्र की प्रति के साथ समन की रिट की वास्तविक सेवा की तारीख से प्रारंभ होता है, वकालतनामा दाखिल करने की तारीख से नहीं।
गौतम धाम को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड बनाम पारसी पंचायत, बॉम्बे के फंड और प्रॉपर्टीज और अन्य (2025) के मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह अंतरिम आवेदन सं. 4761/2025 वाद सं. 393/2022 में मूल प्रतिवादी सं.1 (गौतम धाम को-ऑपरेटिव हाउसिंग सोसाइटी लिमिटेड) द्वारा प्रस्तुत किया गया था, जिसमें गैर- वाणिज्यिक वाद में लिखित कथन दाखिल करने में हुए 75 दिनों की विलंब की क्षमायाचना का निवेदन किया गया।
- वादी पारसी पंचायत, बॉम्बे और फंड और प्रॉपर्टीज के न्यासी थे, जिन्होंने प्रतिवादी सोसायटी और अन्य के विरुद्ध वाद दायर किया था।
- प्रतिवादी संख्या 1 की ओर से वकालतनामा 11.06.2021 को दायर किया गया था।
- वादपत्र की प्रति के साथ समन की रिट प्रतिवादी संख्या 1 को 08.03.2023 को दी गई।
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 8 नियम 1 के अनुसार, प्रतिवादी को समन की तामील से 30 दिनों के भीतर लिखित कथन दाखिल करना था, जो 07.04.2023 को समाप्त हो गया।
- हालाँकि, लिखित कथन वास्तव में 21.06.2023 को दायर किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप 08.04.2023 से प्रारंभ होकर 75 दिनों का विलंब हुआ।
- प्रतिवादी ने बताया कि विलंब इसलिये हुआ क्योंकि अधिवक्ता के कार्यालय ने अनजाने में समन प्राप्त होने पर अधिवक्ता को इसके बारे में सूचित नहीं किया।
- बाद में, प्रतिवादी संख्या 1 सोसायटी के पदाधिकारियों द्वारा पूछताछ करने पर, अधिवक्ता ने अपने कर्मचारियों से पूछताछ की और उन्हें पता चला कि समन की रिट 08.03.2023 को तामील कर दी गई थी।
- तत्पश्चात्, लिखित कथन का मसौदा तैयार करने, पदाधिकारियों से उसका अनुमोदन कराने तथा अंतिम रूप देने के लिये सम्मेलन आयोजित करने जैसे कार्य तत्काल शुरू कर दिये गए।
न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?
परिसीमा काल के प्रारंभिक बिंदु पर:
- न्यायालय ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 8 नियम 1 का उद्देश्य प्रतिवादी को वादपत्र में प्रस्तुत मामले में बचाव प्रस्तुत करने में सक्षम बनाना है, जिसके लिये वादपत्र की वास्तविक प्रति प्राप्त होना आवश्यक है।
- आदेश 8 नियम 1 के अधीन परिसीमा, वादपत्र की प्रति के साथ समन की रिट की तामील की तारीख से प्रारंभ होता है, जो इस मामले में 08.03.2023 थी।
विलंब के लिये पर्याप्त कारण पर:
- कारण "पर्याप्त कारण" थे क्योंकि प्रतिवादी संख्या 1 मानद सदस्यों द्वारा संचालित एक सोसायटी है।
- अधिवक्ता के कार्यालय में हुई चूक के लिये वादी को कष्ट नहीं दिया जा सकता, विशेषकर जब विलंब केवल 75 दिन का हो।
- पदाधिकारियों ने अधिवक्ता से संपर्क कर सतर्कता दिखाई और चूक का पता चलते ही तत्काल कदम उठाए गए।
- प्रतिवादी नंबर 1 को विलंब से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है।
अंतिम निर्णय:
- न्यायालय इस बात से संतुष्ट था कि आवेदक ने लिखित कथन दाखिल करने में हुए विलंब के बारे में बताया तथा इस विलंब को क्षमा किया जाना चाहिये।
- अंतरिम आवेदन को स्वीकार कर लिया गया तथा रजिस्ट्री को लिखित कथन अभिलेख में लेने का निदेश दिया गया।
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का आदेश 8 नियम 1 क्या है?
सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) के आदेश 8 में लिखित कथन के संबंध में उपबंध हैं।
नियम
- आदेश 8 का नियम 1 लिखित बयान से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि -
प्रतिवादी को, उस पर समन तामील किये जाने की तारीख से तीस दिन के भीतर, अपनी प्रतिरक्षा का लिखित कथन प्रस्तुत करेगा।
परंतु जहाँ प्रतिवादी उक्त तीस दिन की अवधि के भीतर लिखित कथन दाखिल करने में असफल रहता है, वहाँ उसे ऐसे किसी अन्य दिन को जो न्यायालय द्वारा ऐसे कारणों से जो लेखबद्ध किये जाएंगे, विनिर्दिष्ट किया जाए, दाखिल करने के लिये अनुज्ञात किया जाएगा, किंतु जो समन की तारीख से नब्बे दिन के पश्चात् का नहीं होगा।
परंतु जहाँ प्रतिवादी तीस दिन की उक्त अवधि के भीतर लिखित कथन फाइल करने में असफल रहता है वहाँ उसे ऐसे किसी अन्य दिन को लिखित कथन फाइल करने के लिये अनुज्ञात किया जाएगा जो न्यायालय द्वारा, उसके कारणों को लेखबद्ध करके और ऐसे खचों का, जो न्यायालय ठीक समझे, संदाय करने पर विनिर्दिष्ट किया जाये, किंतु जो समन के तामील की तारीख से एक सौ बीस दिन के बाद का नहीं होगा और समन की तामील की तारीख से एक सौ बीस दिन की समाप्ति पर प्रतिवादी लिखित कथन फाइल करने का अधिकार खो देगा और न्यायालय लिखित कथन अभिलेख पर लेने के लिये अनुज्ञात नहीं करेगा।
उद्देश्य एवं प्रयोजन:
इसका उद्देश्य प्रतिवादी को वादी के मामले में प्रतिरक्षा प्रस्तुत करने में सक्षम बनाना है, जिसके लिये वादपत्र की वास्तविक प्रति प्राप्त होना आवश्यक है।
इसलिये, परिसीमा काल वादपत्र के साथ समन की वास्तविक तामील से प्रारंभ होता है, किसी मान्य तिथि से नहीं।