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पर्यावरणीय विधि
बंदी हाथी (स्थानांतरण या परिवहन) नियम, 2024
« »28-Mar-2024
स्रोत: द हिंदू
परिचय:
हाल ही में, केंद्र ने बंदी हाथी (स्थानांतरण या परिवहन) नियम, 2024 नामक नियमों का एक सेट अधिसूचित किया है, ये नियम उन शर्तों को उदार बनाते हैं जिनके तहत हाथियों को राज्यों के भीतर या उनके बीच स्थानांतरित किया जा सकता है।
बंदी हाथी (स्थानांतरण या परिवहन) नियम, 2024 क्या हैं?
- बंदी हाथियों के स्थानांतरण की परिस्थितियाँ:
- स्थानांतरण तब हो सकता है जब:
- जब मालिक हाथी के कल्याण को उचित रूप से बनाए रखने में सक्षम नहीं होता है।
- यदि यह निर्धारित हो जाए कि हाथी को उसकी वर्तमान स्थिति की तुलना में बदली हुई परिस्थितियों में बेहतर देखभाल मिलेगी।
- यदि मुख्य वन्य जीव वार्डन मामले की विशिष्ट परिस्थितियों के आधार पर हाथी के बेहतर रखरखाव के लिये इसे आवश्यक मान सके।
- स्थानांतरण तब हो सकता है जब:
- राज्य के भीतर की प्रक्रिया:
- किसी राज्य के भीतर हाथी को स्थानांतरित करने से पूर्व, पशुचिकित्सक द्वारा हाथी के स्वास्थ्य की पुष्टि की जानी चाहिये।
- वर्तमान और संभावित दोनों आवासों की उपयुक्तता को उप-वनसंरक्षक द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिये।
- इन आकलनों के आधार पर स्थानांतरण की स्वीकृति या अस्वीकृति मुख्य वन्य जीव वार्डन के विवेकाधिकार पर निर्भर करती है।
- राज्य के बाहर की प्रक्रिया:
- किसी राज्य के बाहर हाथियों को स्थानांतरित करने के लिये भी इसी तरह की शर्तें लागू होती हैं।
- इसके अतिरिक्त, स्थानांतरण से पूर्व हाथी की आनुवंशिक प्रोफाइल को पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) के साथ रजिस्ट्रीकृत किया जाना चाहिये।
- हाथी को स्थानांतरित करने के लिये आवश्यकताएँ:
- हाथी के साथ एक महावत और एक हाथी सहायक होना चाहिये।
- परिवहन के लिये उपयुक्तता की पुष्टि करने वाले पशुचिकित्सक से स्वास्थ्य प्रमाणपत्र प्राप्त करना अनिवार्य है।
- यदि संक्रामक रोगों के लिये आवश्यक हो तो संगरोध अवधि पूर्ण होने के बाद उसका परिवहन किया जाना चाहिये।
- परिवहन के दौरान उचित भोजन और पानी की व्यवस्था की जानी चाहिये।
- घबराए या चिड़चिड़े हाथियों को नियंत्रित करने के लिये पशुचिकित्सक के परामर्श पर ट्रैंक्विलाइज़र/शामक दवाओं का उपयोग किया जाना चाहिये।
हाथियों के स्थानांतरण और परिवहन के संबंध में क्या नियम हैं?
- वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972, (WPA) के प्रावधानों के अनुसार, हाथी अनुसूची 1 के प्रजाति हैं और इसलिये, चाहे वे जंगली हों या बंदी, किसी भी परिस्थिति में उनका व्यापार या कब्ज़ा नहीं किया जा सकता है।
- WPA की धारा 12 अनुसूची 1 के पशुओं को शिक्षा और वैज्ञानिक अनुसंधान जैसे विशेष उद्देश्यों के लिये स्थानांतरित करने की अनुमति देती है।
- इन्हें किसी भी जंगली जानवर को नुकसान पहुँचाए बिना वन्य जीवों की जनसंख्या प्रबंधन और मान्यता प्राप्त चिड़ियाघरों एवं संग्रहालयों हेतु नमूनों का संग्रह करने के लिये भी स्थानांतरित किया जा सकता है।
- WPA की धारा 40(2) राज्य के मुख्य वन्य जीव वार्डन की लिखित अनुमति के बिना एक बंदी हाथी के अधिग्रहण, कब्ज़े और स्थानांतरण पर रोक लगाती है।
- हालाँकि, वर्ष 2021 तक, इन कानूनों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ऐसे संव्यवहार व्यावसायिक प्रकृति के नहीं होने चाहिये।
- पर्यावरण मंत्रालय वर्ष 2021 में एक संशोधन लेकर आया जिसने धार्मिक या किसी अन्य उद्देश्य के लिये हाथियों के स्थानांतरण की अनुमति दी।
वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम, 1972 क्या है?
- यह अधिनियम मूलतः एक निषेधात्मक कानून है।
- यह अधिनियम जंगली पशुओं और पौधों की विभिन्न प्रजातियों की सुरक्षा, उनके आवासों के प्रबंधन, जंगली पशुओं, पौधों तथा उनसे बने उत्पादों के व्यापार के विनियमन एवं नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
- यह अधिनियम उन पौधों और पशुओं की अनुसूची भी सूचीबद्ध करता है जिन्हें सरकार द्वारा विभिन्न स्तर की सुरक्षा एवं निगरानी प्रदान की जाती है।
वन्य जीव संरक्षण के लिये संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा वनों तथा जंगली पशुओं और पक्षियों की सुरक्षा को राज्य सूची से समवर्ती सूची में हस्तांतरित कर दिया गया।
- COI के अनुच्छेद 48A में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने और देश के वनों और वन्य जीवों की सुरक्षा करने का प्रयास करेगा।
- भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 51A(g) में कहा है कि वनों और वन्य जीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उनके जीवन स्तर में सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्त्तव्य होगा।
आगे की राह:
- वन्य जीवों के संरक्षण के लिये विधि का सख्ती से पालन ज़रूरी है।
- रियल एस्टेट में शामिल व्यवसायों और निगमों को अपनी वित्तीय स्थिरता एवं जनशक्ति को संतुलित करने के लिये विधि का सख्ती से पालन करना चाहिये।
- केवल नियमों और तकनीकी समझ होना ही पर्याप्त नहीं है, स्थानीय समुदायों को भी अपनी भागीदारी के निर्वहन का एहसास होना चाहिये।