एडमिशन ओपन: UP APO प्रिलिम्स + मेंस कोर्स 2025, बैच 6th October से   |   ज्यूडिशियरी फाउंडेशन कोर्स (प्रयागराज)   |   अपनी सीट आज ही कन्फर्म करें - UP APO प्रिलिम्स कोर्स 2025, बैच 6th October से










होम / एडिटोरियल

सिविल कानून

भारतीय अधिवक्ता सोशल मीडिया पर विज्ञापन नहीं दे सकते

    «
 06-Nov-2025

स्रोत:इंडियन एक्सप्रेस 

परिचय 

कर्नाटक राज्य विधिज्ञ परिषद् ने हाल ही में आठ अधिवक्ताओं को नोटिस भेजाजिन्होंने सोशल मीडिया से अपने प्रचार वीडियो हटाने से इंकार कर दिया था। यह नोटिस तब आया जब काउंसिल ने राज्य के सभी अधिवक्ताओं को 31 अगस्त, 2025 तक ऐसी सामग्री हटाने के लिये कहा था जो मुवक्किलों को आकर्षित करने की कोशिश करती प्रतीत होती हो। अधिकारी विशेष रूप से उन अधिवक्ताओं के बारे में चिंतित थे जो व्यवसाय बढ़ाने के लिये "कारों मेंपेड़ों के नीचे और फुटपाथों पर" रील बना रहे थे। इस वर्ष की शुरुआत मेंदिल्लीपंजाब और हरियाणा की विधिज्ञ परिषदों ने भी ऐसी ही चेतावनियाँ जारी की थीं। 

कौन सा विधिक प्रावधान अधिवक्ताओं को विज्ञापन देने से रोकता है? 

  • भारत मेंअधिवक्ताओं को अपनी सेवाओं का विज्ञापन करने से पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया है। यह नियम 1961 के अधिवक्ता अधिनियम से आया हैजो भारतीय विधिज्ञ परिषद् (बार काउंसिल ऑफ इंडिया) को देश के सभी अधिवक्ताओं के लिये वृत्तिक आचरण नियम निर्धारित करने का अधिकार देता है। 
  • भारतीय विधिज्ञ परिषद् के नियम 36 मेंस्पष्ट रूप से कहा गया है कि अधिवक्ता किसी भी तरह सेचाहे प्रत्यक्ष रूप से हो या अप्रत्यक्ष रूप सेकाम की मांग या विज्ञापन नहीं कर सकते। 
  • इसमें परिपत्रविज्ञापनव्यक्तिगत संसूचनाअखबारों में टिप्पणियाँया यहाँ तक कि उनके मामलों से संबंधित तस्वीरें प्रकाशित करना भी सम्मिलित है। यह नियम पारंपरिक विज्ञापन से लेकर आधुनिक सोशल मीडिया प्रचार तकसब की बात करता है। 

विज्ञापन पर कठोर प्रतिबंध क्यों है? 

  • इस प्रतिषेध के पीछे तर्क सरल किंतु प्रभावशाली है: वकालत को एक सामान्य वृत्ति नहींअपितु एक महान वृत्ति माना जाता है। उच्चतम न्यायालय ने दशकों में कई बार इस दृष्टिकोण पर बल दिया है। 
  • बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र बनाम एम.वी. दाभोलकर (1975) के ऐतिहासिक मामले में न्यायमूर्ति वी. कृष्णा अय्यर ने स्मरणीय ढंग से कहा था, "विधि कोई व्यापार नहीं हैब्रीफिंग कोई व्यापारिक वस्तु नहीं हैइसलिये वाणिज्यिक प्रतिस्पर्धा या खरीद के कारण विधि वृत्ति को अश्लील नहीं बनाना चाहिये।" 
  • बीस वर्ष बादभारतीय विधिक सहायता एवं सलाह परिषद बनाम भारतीय बार काउंसिल (1995) के मामले में उच्चतम न्यायालय ने पुनः इस बात पर बल दिया कि विधि एक "महान वृत्ति" हैजिसका समाज के प्रति दायित्त्व हैन कि केवल पैसा कमाने का एक तरीका। 
  • मुख्य चिंता यह है कि विज्ञापन की अनुमति देने से विधिक कार्यकलाप पूरी तरह से वाणिज्यिक गतिविधि में परिवर्तित हो जाएगाजिससे जनता का विश्वास खत्म हो जाएगा और वृत्ति की गरिमा को नुकसान पहुँचेगा। 

अपवाद क्या थे? 

  • 2008 मेंउच्चतम न्यायालय में एक चुनौती के बादअधिवक्ताओं को अपनी वेबसाइटों पर बुनियादी जानकारी साझा करने की अनुमति दी गई थी। इसमें उनका नामसंपर्क विवरणयोग्यताएँनामांकन संख्या और वे किस क्षेत्र में काम करते हैंसम्मिलित हैं। यद्यपियह केवल तथ्यात्मक जानकारी तक ही सीमित है—किसी भी आकर्षक प्रचार या ग्राहक प्रशंसापत्र की अनुमति नहीं है। 
  • हाल ही मेंजुलाई 2024 मेंमद्रास उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि क्विकर और सुलेखा जैसी ऑनलाइन विधिक निर्देशिकाएँ भी इन नियमों का उल्लंघन करती हैं। न्यायालय ने कहा कि "विधिक वृत्ति में ब्रांडिंग संस्कृति समाज के लिये हानिकारक है" और भारतीय विधिज्ञ परिषद् को ऐसे प्लेटफॉर्म पर विज्ञापन देने वाले अधिवक्ताओं के विरुद्ध कार्रवाई करने का आदेश दिया।  

वर्तमान प्रवर्तन की प्रेरणा क्या थी? 

  • प्रवर्तन की हालिया लहर विधिक फर्म के लिये अभिनेता की विशेषता वाले एक प्रचार वीडियो से शुरू हुई प्रतीत होती है। 
  • इसने भारतीय विधिज्ञ परिषद् का ध्यान आकर्षित किया और मार्च 2025 में कड़े शब्दों में एक कथन जारी किया गया।  
  • परिषद् ने सोशल मीडियाप्रचार वीडियो और सेलिब्रिटी विज्ञापनों का प्रयोग करने वाले "स्वयंभू विधिक प्रभावशाली लोगों" की निंदा की। इसने विधिक प्रभावशाली लोगों द्वारा बिना उचित प्रमाण-पत्रों के गलत सूचना फैलानेजनता को भ्रमित करने और न्यायालयों पर अनावश्यक मामलों का भार डालने पर गंभीर चिंता व्यक्त की। 
  • इस निदेश के बादराज्य विधिज्ञ परिषदों ने अपनी कार्रवाई शुरू कर दी। दिल्ली और पंजाब-हरियाणा ने जुलाई और अगस्त में चेतावनी जारी की थी कि काम मांगने के लिये सोशल मीडिया का प्रयोग करना वृत्तिक अवचार माना जाएगाजिसके परिणामस्वरूप निलंबन या लाइसेंस रद्द हो सकता है। 
  • कर्नाटक ने अनुपालन के लिये वास्तविक समय-सीमा निर्धारित कर दी और इस प्रकार ठोस कार्रवाई करने वाला पहला राज्य बन गया। 

निष्कर्ष 

जैसे-जैसे सोशल मीडिया पेशेवरों के स्वयं को प्रचारित करने के तरीके को नया रूप दे रहा हैभारत का विधिक तंत्र एक सख्त रेखा खींच रहा है। भारत के अधिवक्ताओं के लियेसंदेश स्पष्ट है: आपका व्यवसाय भले ही आधुनिक होलेकिन नियम पारंपरिक ही रहेंगे। विधि एक वृत्ति बना रहेगान कि विज्ञापित उत्पाद।