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सांविधानिक विधि
पासपोर्ट नवीनीकरण और आपराधिक मामले की लंबितता
« »20-Dec-2025
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महेश कुमार अग्रवाल बनाम भारत संघ और अन्य "आपराधिक कार्यवाही लंबित होने के आधार पर पासपोर्ट के नवीनीकरण पर अनिश्चितकालीन रोक नहीं लगाई जा सकती, विशेषत: जब सक्षम आपराधिक न्यायालयों ने विदेश यात्रा पर नियंत्रण बनाए रखते हुए ऐसे नवीनीकरण की अनुमति दी हो।" न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
महेश कुमार अग्रवाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य (2025) के मामले में न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने एक अपील को स्वीकार करते हुए पासपोर्ट नवीनीकरण का निदेश दिया, यह मानते हुए कि आपराधिक कार्यवाही लंबित होने का उपयोग पासपोर्ट नवीनीकरण पर अनिश्चितकालीन रोक लगाने के लिये नहीं किया जा सकता है, जबकि सक्षम आपराधिक न्यायालयों ने ऐसे नवीनीकरण की अनुमति दी है।
महेश कुमार अग्रवाल बनाम भारत संघ और अन्य (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह अपील व्यवसायी महेश कुमार अग्रवाल ने अपने पासपोर्ट के नवीनीकरण से इंकार किये जाने को चुनौती देते हुए दायर की थी।
- अपीलकर्त्ता का पासपोर्ट अगस्त 2023 में समाप्त हो गया था।
- रांची स्थित राष्ट्रिय अन्वेषण अभिकरण (NIA) न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय (जहाँ CBI द्वारा दोषसिद्ध ठहराए जाने के विरुद्ध उनकी अपील लंबित थी) दोनों ने नवीनीकरण के लिये "कोई आपत्ति नहीं" जताई थी।
- आपराधिक न्यायालयों ने कठोर शर्तें अधिरोपित की: अपीलकर्त्ता न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना विदेश यात्रा नहीं कर सकता था, और रांची न्यायालय ने नवीनीकृत पासपोर्ट को न्यायालय में वापस जमा करने का आदेश दिया।
- इन न्यायिक अनुमतियों के होते हुए भी, पासपोर्ट प्राधिकरण ने पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 6(2)(च) के अधीन प्रतिबंध का हवाला देते हुए नवीनीकरण से इंकार कर दिया ।
- धारा 6(2)(च) के अधीन आवेदक के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही लंबित होने पर पासपोर्ट देने से इंकार करना अनिवार्य है।
- कलकत्ता उच्च न्यायालय ने इस इंकार को बरकरार रखते हुए विधि का निर्वचन इस प्रकार किया कि जब तक आपराधिक न्यायालय के आदेश में किसी विशेष विदेश यात्रा के लिये अनुमति निर्दिष्ट न हो, तब तक यह प्रतिबंध पूर्णतः लागू होता है।
- अपीलकर्त्ताने तर्क दिया कि आपराधिक न्यायालयों ने जानबूझकर विदेश यात्रा पर नियंत्रण बनाए रखते हुए नवीनीकरण की अनुमति दी थी।
न्यायालय की क्या टिप्पणियां थीं?
- न्यायालय ने माना कि पासपोर्ट अधिनियम की धारा 6(2)(च) एक पूर्ण निषेध नहीं है और इसे धारा 22 और छूट अधिसूचना GSR 570(E) के साथ पढ़ा जाना चाहिये।
- पीठ ने टिप्पणी की कि पासपोर्ट प्राधिकरण और कलकत्ता उच्च न्यायालय दोनों ने सांविधिक छूट तंत्र को पूर्ण प्रभाव दिये बिना धारा 6(2)(च) को एक पूर्ण निषेध के रूप में माना।
- न्यायालय ने पाया कि उन्होंने वैध पासपोर्ट रखने के लिये एक सीमित प्रतिबंध को लगभग स्थायी अक्षमता में परिवर्तित कर दिया, जबकि आपराधिक न्यायालयों ने ऐसी अक्षमता को आवश्यक नहीं माना था।
- न्यायमूर्ति विक्रम नाथ ने इस बात पर बल दिया कि अनुच्छेद 21 के अधीन स्वतंत्रता राज्य का दान नहीं अपितु उसका पहला दायित्त्व है, और कहा, "विधि के अधीन रहते हुए, किसी नागरिक को आवागमन करने, यात्रा करने, आजीविका और अवसर प्राप्त करने की स्वतंत्रता अनुच्छेद 21 के अधीन प्रत्याभूत एक अनिवार्य भाग है।"
- न्यायालय ने इस बात पर बल दिया कि कोई भी प्रतिबंध सीमित दायरे में, आनुपातिक और स्पष्ट रूप से विधि पर आधारित होना चाहिये।
- न्यायालय ने चेतावनी दी कि प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों को कठोर बाधाओं में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिये, या अस्थायी अक्षमताओं को अनिश्चितकालीन बहिष्कार में तब्दील होने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
- न्यायालय ने माना कि धारा 6(2)(च) के पीछे वैध उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आपराधिक कार्यवाही का सामना करने वाला व्यक्ति आपराधिक न्यायालय की अधिकारिता के प्रति उत्तरदायी बना रहे।
- पीठ ने टिप्पणी की कि राष्ट्रिय अन्वेषण अभिकरण (NIA) न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा विदेश यात्रा से पहले पूर्व अनुमति अनिवार्य करने की शर्तों से यह उद्देश्य पूरी तरह से पूरा हो गया है।
- न्यायालय ने कहा कि जब दोनों आपराधिक न्यायालयों ने जानबूझकर पासपोर्ट नवीनीकरण की अनुमति दी थी, ऐसे में अनिश्चित काल के लिये पासपोर्ट नवीनीकरण से इंकार करना अपीलकर्त्ता की स्वतंत्रता पर एक असंगत और अनुचित प्रतिबंध होगा।
- न्यायालय ने कहा कि इस आशंका के आधार पर पासपोर्ट के नवीनीकरण से इंकार करना कि अपीलकर्त्ता पासपोर्ट का दुरुपयोग कर सकता है, आपराधिक न्यायालयों द्वारा जोखिम के आकलन पर प्रश्न उठाना होगा।
- न्यायालय ने विदेश मंत्रालय और क्षेत्रीय पासपोर्ट कार्यालय, कोलकाता को निदेश दिया कि वे अपीलकर्त्ता का साधारण पासपोर्ट दस वर्ष की सामान्य अवधि के लिये पुनः जारी करें।
विदेश यात्रा का अधिकार क्या है?
बारे में:
- भारत के संविधान में विदेश यात्रा के अधिकार का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है।
- यद्यपि, इसे संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन प्रत्याभूत प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के एक भाग के रूप में व्याख्यायित किया गया है।
संबंधित उपबंध:
- अनुच्छेद 21: किसी व्यक्ति को, उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगाअन्यथा नहीं।
- अनुच्छेद 19(1)(घ): यह अनुच्छेद आवागमन की स्वतंत्रता को प्रत्याभूत करता है, जिसकी व्याख्या देश के भीतर यात्रा करने के अधिकार को सम्मिलित करने के रूप में की जाती है।
- अनुच्छेद 19(1)(क): यह अनुच्छेद बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रत्याभूत करता है, जिसे शैक्षिक, सांस्कृतिक या वृत्तिक उद्देश्यों के लिये विदेश यात्रा के अधिकार को सम्मिलित करने के रूप में व्याख्यायित किया जा सकता है।
विधिक मामले:
- सतवंत सिंह साहनी बनाम डी. रामारत्नम, सहायक पासपोर्ट अधिकारी, भारत सरकार, नई दिल्ली (1967):
- उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि विदेश यात्रा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन एक मौलिक अधिकार है, और सरकार विदगी द्वारा स्थापित वैध प्रक्रिया के बिना पासपोर्ट जारी करने से इंकार नहीं कर सकती या उसे जब्त नहीं कर सकती।
- न्यायालय ने याचिकाकर्त्ताओं के पासपोर्ट और पासपोर्ट संबंधी सुविधाओं को बहाल करने के लिये सरकार को निदेश देते हुए एक परमादेश याचिका जारी की।
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978):
- इस मामले में, उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के दायरे का विस्तार किया और यह माना कि प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार में विदेश यात्रा का अधिकार भी सम्मिलित है।
- न्यायालय ने यह भी निर्णय दिया कि किसी व्यक्ति को उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित करने के लिये विधि द्वारा विहित कोई भी प्रक्रिया निष्पक्ष, न्यायसंगत और युक्तियुक्त होनी चाहिये।
पासपोर्ट अधिनियम, 1967 क्या है?
- इस अधिनियम का उद्देश्य पासपोर्ट और यात्रा दस्तावेज़ों को जारी करने का प्रावधान करना है।
- यह अधिनियम भारत के नागरिकों और अन्य व्यक्तियों के भारत से प्रस्थान को विनियमित करता है और इससे संबंधित या सहायक मामलों के लिये भी लागू होता है।
- पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 6 में पासपोर्ट अस्वीकार करने के आधार बताए गए हैं।
आपराधिक कार्यवाही लंबित रहने के दौरान पासपोर्ट के नवीनीकरण के संबंध में क्या विधि है?
- वंगाला कस्तूरी रंगाचार्युलु बनाम केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (2020):
- उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि पासपोर्ट देने से इंकार केवल उसी स्थिति में किया जा सकता है जब आवेदक को आवेदन की तिथि से ठीक पहले के 5 वर्षों की अवधि के दौरान नैतिक पतन से जुड़े किसी अपराध के लिये दोषसिद्ध ठहराया गया हो और उसे कम से कम दो वर्ष के कारावास का दण्ड दिया गया हो। (पासपोर्ट अधिनियम, 1967 की धारा 6(2)(च))।
- किसी व्यक्ति के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही लंबित होने के आधार पर पासपोर्ट के नवीनीकरण से इंकार नहीं किया जा सकता है।
- गन्नी भास्कर राव बनाम भारत संघ और अन्य (2023):
- आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने टिप्पणी की कि जब तक किसी व्यक्ति का अपराध सिद्ध न हो जाए, तब तक उसे निर्दोष माना जाता है।
- इसलिये, किसी मामले का लंबित होना पासपोर्ट को अस्वीकार करने, नवीनीकृत करने या पासपोर्ट को सरेंडर करने की मांग करने का आधार नहीं है।