लोकसभा अध्यक्ष
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सांविधानिक विधि

लोकसभा अध्यक्ष

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 03-May-2024

परिचय:

लोकसभा का अध्यक्ष भारत की संसद के निचले सदन का पीठासीन अधिकारी एवं सर्वोच्च प्राधिकारी होता है। अध्यक्ष सदन का संवैधानिक एवं औपचारिक प्रमुख होता है।

लोकसभा अध्यक्ष:

  • भारत के संविधान, 1950 (COI) का अनुच्छेद 93, लोकसभा अध्यक्ष से संबंधित है।
  • इसमें कहा गया है कि लोक सभा, जितनी जल्दी हो सके, सदन के दो सदस्यों को क्रमशः अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष के रूप में चुनेगी तथा जब भी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त हो जाए, जैसा भी मामला हो, अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के पद के लिये सदन दूसरे सदस्य का चुनाव करेगा।

अध्यक्ष पद के लिये योग्यताएँ:

  • COI के अनुसार, अध्यक्ष, सदन का सदस्य होना चाहिये।
  • हालाँकि अध्यक्ष चुने जाने के लिये कोई विशिष्ट योग्यता निर्धारित नहीं है, लेकिन संविधान एवं देश के विधियों की समझ, अध्यक्ष पद के धारक के लिये एक प्रमुख अर्हता मानी जाती है।
  • आमतौर पर सत्तापक्ष से संबंधित सदस्य को अध्यक्ष चुना जाता है।
  • यह प्रक्रिया पिछले कुछ वर्षों में विकसित हुई है, जहाँ सत्तापक्ष, सदन में अन्य दलों एवं गुटों के नेताओं के साथ अनौपचारिक परामर्श के बाद अपने उम्मीदवार को नामांकित करता है।
  • यह सम्मेलन सुनिश्चित करता है कि एक बार निर्वाचित होने के बाद अध्यक्ष को सदन के सभी वर्गों का सम्मान प्राप्त हो।

अध्यक्ष का चुनाव एवं कार्यकाल:

  • अध्यक्ष (उपाध्यक्ष के साथ) का चुनाव सदन में उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत द्वारा लोकसभा सदस्यों में से किया जाता है।
  • एक बार उम्मीदवार पर निर्णय हो जाने के बाद, उसका नाम आम तौर पर प्रधानमंत्री या संसदीय कार्य मंत्री द्वारा प्रस्तावित किया जाता है।
  • अध्यक्ष अपने चुनाव की तिथि से अगली लोकसभा की पहली बैठक के ठीक पहले तक (5 वर्षों के लिये) पद पर बना रहता है।
  • वह पुनः चुनाव के लिये भी पात्र हैं।
  • जब भी लोकसभा भंग होती है, अध्यक्ष अपना पद खाली नहीं करता है तथा नवनिर्वाचित लोकसभा की बैठक होने तक पद पर बना रहता है।

अध्यक्ष के कार्यालय से त्याग-पत्र एवं निष्कासन:

COI के अनुच्छेद 94 के अनुसार लोक सभा के अध्यक्ष के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य-

(a) यदि वह लोक सभा का सदस्य नहीं रह जाता है तो उसे अपना कार्यालय रिक्त कर देना चाहिये।

(b) किसी भी समय, यदि ऐसा सदस्य अध्यक्ष है, तो उपाध्यक्ष को तथा यदि ऐसा सदस्य उपाध्यक्ष है, तो अध्यक्ष को संबोधित करते हुए, अपने पद से त्याग-पत्र दे सकता है

(c) सदन के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत से पारित लोक सभा के एक प्रस्ताव द्वारा उनके कार्यालय से उनको हटाया जा सकता है। बशर्ते कि इस प्रयोजन के लिये कोई भी प्रस्ताव तब तक प्रस्तुत नहीं किया जाएगा, जब तक कि प्रस्ताव प्रस्तुत करने के आशय के लिये कम-से-कम चौदह दिन का नोटिस न दिया गया हो।

COI के अनुच्छेद 96 के खंड (1) के अनुसार, लोक सभा की किसी भी बैठक में, जबकि अध्यक्ष को उसके कार्यालय से हटाने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन है, अध्यक्ष, उपस्थित होने के बावजूद, अध्यक्षता नहीं करेगा तथा अनुच्छेद 95 के खंड (2) के प्रावधान ऐसी प्रत्येक बैठक के संबंध में वैसे ही लागू होंगे, जैसे वे उस बैठक के संबंध में लागू होते हैं, जिसमें अध्यक्ष, या, जैसा भी मामला हो, उपाध्यक्ष अनुपस्थित है।

COI के अनुच्छेद 96 के खंड (2) के अनुसार, अध्यक्ष को लोक सभा में बोलने एवं अन्यथा उसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होगा, जबकि उन्हें पद से हटाने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन है। सदन, अनुच्छेद 100 में किसी प्रावधान के बावजूद, ऐसे प्रस्ताव पर या ऐसी कार्यवाही के दौरान, किसी अन्य मामले पर केवल पहली बार वोट देने का अधिकारी होगा, लेकिन वोटों की समानता के मामले में नहीं।

अध्यक्ष के वेतन एवं भत्ते:

  • COI के अनुच्छेद 97 के अनुसार, लोक सभा के अध्यक्ष को ऐसे वेतन एवं भत्ते का भुगतान किया जाएगा, जो संसद द्वारा निर्दिष्ट विधि द्वारा क्रमशः तय किये जा सकते हैं तथा जब तक कि इस संबंध में प्रावधान नहीं किया जाता है, तब तक ऐसे वेतन एवं भत्ते दिये जाएंगे, जो दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट हैं।

अध्यक्ष की भूमिका एवं शक्तियाँ:

  • निर्वचन: वह भारत के संविधान के प्रावधानों, लोकसभा की प्रक्रिया एवं संचालन के नियमों और सदन के भीतर संसदीय कार्यप्रणाली की अंतिम निर्वचक कहलाता है। इन प्रावधानों की व्याख्या से संबंधित मामलों में, वह अक्सर ऐसे निर्णय देते हैं, जिनका सदस्यों द्वारा सम्मान किया जाता है और जो वे प्रकृति में बाध्यकारी होते हैं।
  • दोनों सदनों की संयुक्त बैठक: वह संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है। किसी विधेयक पर दोनों सदनों के बीच गतिरोध को सुलझाने के लिये राष्ट्रपति द्वारा ऐसी बैठक बुलाई जाती है।
  • बैठक का स्थगन: वह सदन की कुल सदस्य संख्या (जिसे कोरम कहा जाता है) के दसवें हिस्से की अनुपस्थिति में सदन को स्थगित कर सकता है या बैठक को निलंबित कर सकता है।
  • धन विधेयक: वह निर्णय लेता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तथा इस प्रश्न पर उसका निर्णय अंतिम होता है।
  • सदस्य को योग्य घोषित करना: यह अध्यक्ष ही है, जो दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के अधीन दल-बदल के आधार पर उत्पन्न होने वाले लोकसभा सदस्य की अयोग्यता के प्रश्नों का निर्णय करता है।
  • समितियों का गठन: सदन की समितियाँ अध्यक्ष द्वारा गठित की जाती हैं तथा अध्यक्ष के पूर्ण निर्देशन में कार्य करती हैं।
  • सदन का विशेषाधिकार: अध्यक्ष सदन, उसकी समितियों एवं सदस्यों के अधिकारों और विशेषाधिकारों का संरक्षक होता है। यह पूरी तरह से अध्यक्ष पर निर्भर करता है कि वह विशेषाधिकार के किसी भी प्रश्न की जाँच और उसकी रिपोर्ट के लिये विशेषाधिकार समिति को संदर्भित करे।