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व्यवहार विधि

ऐसे लोगों के साथ संविदा जो संविदा करने में असमर्थ हैं

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 13-Oct-2023

परिचय

  • भारत में अनुबंध, भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 द्वारा शासित होता है। यह एक संविदा के वादे के अतिरिक्त और कुछ नहीं है जो विधि द्वारा लागू करने योग्य है। एक अनुबंध तब होता है जब सहमति और प्रवर्तनीयता होती है।
  • भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 10 कहती है, “सब करार संविदाएँ हैं, यदि वे संविदा करने के लिये सक्षम पक्षकारों की स्वतंत्र सहमति से किसी विधिपूर्ण प्रतिफल के लिये और किसी विधिपूर्ण उद्देश्य से किये गए हैं और एतद्द्वारा अभिव्यक्तातः शून्य घोषित नहीं किये गए हैं।”
  • दूसरी ओर, भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 11 के अनुसार, "हर ऐसा व्यक्ति संविदा करने के लिये सक्षम है, जो उस विधि के अनुसार, जिसके वह अध्यधीन हो, प्राप्तव्य हो, और स्वस्थ्यचित्त हो, और किसी विधि द्वारा जिसके वह अध्यधीन है, संविदा करने से निर्हर्हित न है।''

एक अप्राप्तव्य संविदा:

  • भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 में अप्राप्तव्य शब्द को परिभाषित नहीं किया गया है।
  • भारतीय प्राप्तव्यता अधिनियम, 1875 के अनुसार, भारत में प्राप्तव्यता की आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है। किसी संविदा में प्रवेश करने के प्रयोजन से इस आयु से एक दिन भी कम होने पर व्यक्ति संविदा में पक्षकार होने से अयोग्य हो जाता है।
  • भारत में कोई अप्राप्तव्य समझौता शुरू से ही शून्य होता है यानी आरंभतः शून्य होता है।
  • शून्य संविदा एक औपचारिक समझौता है, जो इसके सर्जित क्षण से प्रभावी रूप से अधर्मज और अप्रवर्तनीय होती है।
  • अमान्य संविदा तब हो सकती है, जब शामिल पक्षकारों में से कोई एक समझौते के निहितार्थ को पूरी तरह से समझने में असमर्थ हो।
  • मोहरी बीबी बनाम धुर्मोदास घोष (1903) मामले में, प्रिवी कौंसिल ने विधि को घोषित करते हुए कहा कि किसी अप्राप्तव्य या किसी अप्राप्तव्य समझौते से कोई भी संपर्क "आत्यंतिकत शून्य" है।
  • अवयस्क द्वारा अनुबंध का अनुसमर्थन:
    • अप्राप्तव्य संविदा के अनुसमर्थन जैसी कोई चीज़ नहीं है। यदि संविदा में प्रवेश के समय कोई व्यक्ति अवयस्क है, तो संविदा शून्य है। वह अवयस्क, वयस्क होने के बाद संविदा में सुधार नहीं कर सकता (यदि सुधार किया तो संविदा अमान्य होगी)।
    • इसे सुधारा नहीं जा सकता क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यदि किसी अप्राप्तव्य संविदा करने की मानसिक क्षमता नहीं है, तो उसको इसे सुधारने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिये।

अप्राप्तव्य के विरुद्ध कोई विबंध नहीं:

  • एक अवयस्क जो मिथ्याकथन के तहत संविदा में प्रवेश करता है और बालिग होने का दावा करता है, उसके विरुद्ध कोई विबंध नहीं होगा और उसे कानूनी तौर पर न्यायालय के समक्ष अपनी उम्र साबित करने की आवश्यकता नहीं है। इसके पीछे का कारण अवयस्क को वयस्क लोगों के प्रति देय दायित्व से बचाना है।
  • जगर नाथ सिंह बनाम लालता प्रसाद (1908) मामले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने माना कि अवयस्क के मामले में कोई विबंध नहीं किया जाएगा क्योंकि ऐसी संविदा विधिक तौर पर पहले से ही शून्य है।

विकृत चित्त के व्यक्ति

  • भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 12, 'स्वास्थ्यचित्त' शब्द को इस प्रकार परिभाषित करती है:
    • यदि कोई व्यक्ति प्रश्न को समझने और उस प्रश्न का तर्कसंगत उत्तर देने में असमर्थ है तो उसे विकृत चित्त का व्यक्ति कहा जाता है।
    • किसी व्यक्ति को स्वास्थ्यचित्त वाला कहा जाता है यदि वह संविदा और उस संविदा के अपने हितों पर पड़ने वाले प्रभाव को समझने में सक्षम है।
    • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि एक व्यक्ति जो सामान्यतः विकृत चित्त का होता है, लेकिन कभी-कभी वह स्वास्थ्यचित्त का भी होता है, वह तब संविदा में प्रवेश कर सकता है जब वह स्वास्थ्यचित्त का हो। उदाहरण के लिये, पागलखाने में रहने वाला कोई व्यक्ति, जो समय-समय पर स्वास्थ्यचित्त वाला भी होता है, उस अंतराल के दौरान संविदा में प्रवेश कर सकता है।

 पागल:

  • जिस व्यक्ति की मानसिक स्थिति असंतुलित होती है उसे 'पागल' कहा जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि पागल सदैव पागलपन की अवस्था में ही रहे, उसे पागलपन के दौरे भी आ सकते हैं।

मंदबुद्धि:

  • जिस व्यक्ति ने अपनी मानसिक स्थिति पूरी तरह से खो दी है उसे 'मंदबुद्धि' कहा जाता है। मूढ़ता/मंद्बुद्धिता एक स्थायी व्याधि (permanent ailment) है; इसलिये, किसी मंदबुद्धि व्यक्ति द्वारा किया गया समझौता शून्य होगा।

नशे में धुत्त व्यक्ति:

  • एक शराबी व्यक्ति तर्कसंगत निर्णय लेने के लिये सही मानसिक स्थिति में नहीं होता है, इसलिये वह नशे की हालत में संविदा करने में सक्षम नहीं होता है।

कानून द्वारा अयोग्य व्यक्ति:

  • कानूनी, राजनैतिक या कॉर्पोरेट स्थिति जैसे कई कारणों से अयोग्य व्यक्ति संविदा करने में सक्षम नहीं होगा।
  • यदि उसकी अयोग्यता का कारण कानूनी है तो उसे संविदा करने हेतु सक्षम नहीं माना जाता है।
  • यदि ऐसा कोई अयोग्य व्यक्ति किसी संविदा में प्रवेश करता है तो वह संविदा वैध संविदा की स्थिति में नहीं आता है।

अयोग्य व्यक्तियों की सूची निम्नलिखित है:

अन्यदेशीय शत्रु:

  • किसी विदेशी देश का व्यक्ति ‘अन्यदेशीय’ होता है। जब उस देश के साथ युद्ध की घोषणा की जाती है, तो उस देश से संबंधित विदेशी व्यक्ति को अन्यदेशीय शत्रु माना जाता है।
  • भारत में, किसी अन्यदेशीय शत्रु के साथ संविदा शून्य है, लेकिन किसी अन्यदेशीय मित्र के साथ संविदा भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 के तहत वैध है।
  • युद्ध के दौरान किसी अन्यदेशीय शत्रु के साथ भारत सरकार की पूर्वानुमति के बिना कोई संविदा नहीं की जा सकती है।

सिद्धदोष:

  • आपराधिक आरोप के मामले में न्यायालय द्वारा दंडित व्यक्ति को दोषी या सिद्धदोष अपराधी कहा जाता है।
  • ऐसा व्यक्ति कुछ कार्यों को करने की अपनी वैधानिक क्षमता खो देता है। सिद्धदोष व्यक्ति सजा की अवधि के दौरान कोई संविदा नहीं कर सकता है।

दिवालिया:

  • दिवालिया व्यक्ति को तब तक संविदा में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाती है जब तक कि उसे विधिक न्यायालय द्वारा आरोपमुक्त नहीं किया जाता है।

विदेशी संप्रभु:

  • राजदूत, प्रतिनिधि संविदा में प्रवेश नहीं कर सकते क्योंकि वे नागरिक दायित्व से मुक्त हैं, जो आवासीय देश के कानून द्वारा बनाए गए हैं और इसके कारण, कोई व्यक्ति ऐसे व्यक्ति के साथ संविदा में प्रवेश नहीं कर सकता है क्योंकि उसके विरुद्ध कोई वैधानिक उपाय नहीं है।

निगम:

  • एक कंपनी विधि द्वारा निर्मित एक कृत्रिम व्यक्ति के समान होती है और संविदा करने के लिये सक्षम होती है। लेकिन संविदा की इसकी शक्त कुछ सीमाओं के अधीन है जो या तो आवश्यक या व्यक्त हो सकती है।

निष्कर्ष

  • संविदा के लिये योग्यता, संविदा विधि का एक अनिवार्य हिस्सा है। भारतीय संविदा अधिनियम, 1872, किसी व्यक्ति की संविदा में प्रवेश करने की क्षमता निर्धारित करने के लिये विशिष्ट प्रावधान प्रदान करता है। एक व्यक्ति जो वयस्क है, स्वास्थ्यचित्त का है और विधि द्वारा योग्य है, संविदा में प्रवेश कर सकता है।
  • यह सुनिश्चित करने के लिये कि समझौता विधिक रूप से बाध्यकारी और लागू करने योग्य है, संविदा के पक्षकारों की योग्यता को समझना महत्त्वपूर्ण है।