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सिविल कानून
विधिपूर्ण प्रतिफल एवं विधिपूर्ण उद्देश्य
« »28-Sep-2023
परिचय:
- प्रतिफल को "एक पक्ष को प्राप्त होने वाले कुछ अधिकार, लाभ एवं छूट या दूसरे पक्ष द्वारा दी गई छूट तथा उठाई गई हानि, सहनशीलता एवं ज़िम्मेदारी" के रूप में परिभाषित किया गया है।
- सरल शब्दों में 'प्रतिफल' का अर्थ ‘किसी के बदले में कुछ प्राप्त करना’ है। इसका कानून के दृष्टिकोण से कुछ मूल्य होता है।
परिभाषा:
- भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA) की धारा 23 में कहा गया है कि किसी अनुबंध के वैध होने के लिये प्रतिफल एवं उद्देश्य विधिपूर्ण होने चाहिये। उद्देश्य का आशय उस करार से होता है जिसके लिये दो पक्ष सहमत होते हैं। उद्देश्य पूरा होने पर निर्धारित प्रतिफल का अंतरण एक पक्ष से दूसरे पक्ष को हो जाता है।
- A अपना घर 10,000 रुपए में B को बेचने का करार करता है। यहाँ 10,000 रुपए देने का B का वचन घर बेचने के A के वचन के लिये प्रतिफल है और घर बेचने का A का वचन 10,000 रुपए देने के B के वचन के लिये प्रतिफल है । ये विधिपूर्ण प्रतिफल हैं।
विधिपूर्ण प्रतिफल एवं विधिपूर्ण उद्देश्य:
- अनुबंध/करार का प्रतिफल या उद्देश्य विधिपूर्ण है, सिवाय जब कि वह:
- विधि द्वारा निषिद्ध हो
- कपटपूर्ण हो
- ऐसी प्रकृति का हो कि यदि वह अनुज्ञात किया जाए तो वह किसी विधि के उपबंधों को विफल कर देगा
- किसी अन्य के शरीर या सम्पत्ति को क्षति पहुँचाए
- न्यायालय द्वारा अनैतिक या लोकनीति के विरुद्ध माना जाए
विधि द्वारा निषिद्ध
- विधि/कानून द्वारा निषिद्ध किसी उद्देश्य और/या प्रतिफल को विधिक नहीं माना जाता है जिससे अनुबंध शून्य हो जाता है। उद्देश्य के गैर-विधिपूर्ण प्रतिफल का आशय गैर-कानूनी (विधि द्वारा दंडनीय) गतिविधियों से है।
- उपयुक्त प्राधिकारी द्वारा अपने नियमों और विनियमों के माध्यम से अस्वीकृत कृत्यों की वैधता निर्धारित करने पर विचार किया जाता है।
- हालाँकि यदि ये नियम और विनियम कानून के अनुरूप नहीं हैं, तो ये लागू नहीं होते हैं।
- विधि द्वारा निषिद्ध प्रावधान किसी अनुबंध को शून्य बना देता है लेकिन सभी शून्य अनुबंध अवैध नहीं हो सकते हैं।
कपटपूर्ण प्रकृति:
- अनुबंध का उद्देश्य और प्रतिफल कपटपूर्ण नहीं होना चाहिये क्योंकि ऐसे में अनुबंध शून्य हो जाएगा।
- उदाहरण - A, B के साथ एक अनुबंध करता है जहाँ वह B को भुगतान करने के लिये सहमत होता है यदि वह इसमें C से पैसे का गबन करता है तो इसे एक धोखाधड़ी वाला उद्देश्य माना जाता है, और अनुबंध वैध नहीं रहता है।
विधि के उद्देश्य के प्रतिकूल:
- यदि अनुबंध करने का उद्देश्य कानून के किसी भी प्रावधान के प्रतिकूल है, तो अनुबंध शून्य माना जाएगा। अनुबंध शून्य होगा यदि:
- अनुबंध का उद्देश्य गैरकानूनी कार्य करना हो।
- अनुबंध का उद्देश्य स्पष्ट रूप से या निहित तरीके से कानून द्वारा निषिद्ध हो।
- कानून के प्रावधानों के विरुद्ध गए बिना अनुबंध का पूरा होना असंभव हो।
- उदाहरण - A, B के साथ एक अनुबंध करता है जिसके तहत B वादा करता है कि यदि A, B के घर में डकैती करता है तो वह A के खिलाफ कानूनी कार्यवाही नहीं करेगा। यह अनुबंध आईपीसी कानून के प्रावधानों के प्रतिकूल है।
किसी अन्य के शरीर या सम्पत्ति को क्षति होना
- अनुबंध के उद्देश्य से किसी भी संपत्ति को कोई नुकसान नहीं होना चाहिये या किसी अन्य व्यक्ति को इससे क्षति नहीं पहुँचनी चाहिये।
- उदाहरण:
- किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसके जीवन से संबंधित कोई पुस्तक प्रकाशित करना।
- संपत्ति की क्षति होना
- लाइसेंस का उल्लंघन होना
- कॉपीराइट का उल्लंघन होना
- जैसे - A, B के साथ एक अनुबंध करता है जिसके तहत वह शहर के एक ऐतिहासिक स्थल को नष्ट करने पर B को एक धनराशि देने के लिये सहमत होता है। इस अनुबंध में कोई वैध प्रतिफल और वैध उद्देश्य नहीं है जिससे इसे कानूनी नहीं माना जाएगा।
विधिक दृष्टिकोण से अनैतिक
- यदि अनुबंध के उद्देश्य और/या प्रतिफल को अनैतिक माना जाता है, तो अनुबंध को शून्य नहीं माना जाएगा।
- अनैतिक कार्य समाज द्वारा स्वीकृत उचित और स्वीकार्य सामान्य व्यवहार या व्यक्तिगत आचरण के विरुद्ध होते हैं।
- उदाहरण - A, B को इस शर्त पर पैसे उधार देता है कि B, C को तलाक दे देगा, और बाद में A से शादी कर लेगा। यदि B, C को तलाक नहीं देता है, तो A पैसे की वसूली के लिये B के खिलाफ कानूनी कार्यवाही नहीं कर सकता है। इस अनुबंध का मूल आधार अनैतिक है इसलिये इसे शून्य माना जाएगा।
लोकनीति के विरुद्ध
- व्यावसायिक कानून में वैध उद्देश्य का अर्थ है कि यह सार्वजनिक नीति के विरुद्ध नहीं होनी चाहिये। सार्वजनिक नीति का उद्देश्य किसी व्यक्ति के अधिकारों को कम करना नहीं होता है बल्कि समुदाय के सामान्य कल्याण को बनाए रखना और उसकी रक्षा करना होता है।
- लोकनीति के विरुद्ध माने जाने वाले अनुबंध:
- किसी ऐसे देश की पार्टी के साथ समझौता करना जिसके साथ भारत के शांतिपूर्ण संबंध नहीं हैं, समझौता रद्द हो जाता है।
- अभियोजन से रोकना: ऐसा अनुबंध जो किसी व्यक्ति को कानूनी सहारा लेने से रोकता है उसे शून्य माना जाता है।
- एकाधिकार स्थापित करने हेतु समझौते।
- पुरस्कार के रूप में विवाह की दलाली करने का समझौता।
- न्यायपालिका या राज्य के अधिकारियों को भ्रष्ट तरीके से कार्य करने के लिये प्रेरित करने एवं कानूनी कार्यवाही में हस्तक्षेप करने हेतु समझौता।
प्रमुख मामले:
- घेरूलाल पारख बनाम महादेवदास मैया एवं अन्य। (1959):
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि कोई भी समझौता जो सार्वजनिक नीति के खिलाफ है, उसे व्यक्ति के लिये हानिकारक समझौते के रूप में देखा जाएगा और शून्य माना जाएगा।
- क्ले बनाम येट्स (1856):
- इसमें न्यायालय द्वारा यह माना गया कि प्रत्येक समझौता जिसका उद्देश्य या प्रतिफल गैरकानूनी है, शून्य होगा।
- एलन बनाम रेस्कस (1676):
- इस मामले में न्यायालय ने माना कि समझौते का उद्देश्य हमला था, जो अवैध था, और इसका इरादा किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने का था। इसलिये इसे खारिज कर दिया गया और समझौता रद्द कर दिया गया।
निष्कर्ष:
किसी समझौते को लागू करने योग्य बनाने में उद्देश्य और प्रतिफल की वैधता को अधिक महत्त्व देना असंभव है। यदि उद्देश्य और प्रतिफल कानूनी नहीं हैं तो समझौता अमान्य है। जागरूक नागरिकों के रूप में, हमें यह समझना चाहिये कि न्यायालय में इस तरह के समझौते के तहत अपने अधिकारों की रक्षा करने के हमारे प्रयास तब तक व्यर्थ होंगे जब तक कि हमारा समझौता भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 10, 23 और 24 के ढाँचे के अनुकूल नहीं है क्योंकि इस तरह के समझौते की कोई कानूनी मान्यता नहीं होगी। इसके परिणामस्वरूप, समझौतों में हमें यह सुनिश्चित करने के लिये अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिये कि वे केवल "समझौते" बनकर न रहें, बल्कि कानूनी मानकों को पूरा कर सकें, ताकि अगर कुछ गलत हो तो उससे निपटने हेतु हमारे पास कानूनी सहारा होना चाहिये।