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आपराधिक कानून

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 के सिवाय अधिवक्ताओं को केवल कक्षीकार का प्रतिनिधित्व करने के लिये समन नहीं किया जा सकता

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 04-Nov-2025

"अन्वेषण अभिकरण केवल मुवक्किलों का प्रतिनिधित्व करने या उन्हें सलाह देने के लिये अधिवक्ताओं को समन नहीं कर सकते।" 
भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवईन्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारिया 
स्रोत:भारत का उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

भारत के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवईन्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजारियाकी उच्चतम न्यायालय कीपीठ ने निर्णय दिया कि अन्वेषण अभिकरण ​​अधिवक्ताओं को सिर्फ इसलिये समन नहीं कर सकते क्योंकि वेकिसी मामले मेंअभियुक्त व्यक्ति की ओर से पेश हुए थे या उन्हें सलाह दी थी। 

न्यायालय ने यह निर्णय 'इन री: मामलों के अन्वेषण के दौरान विधिक सलाह देने वाले या पक्षकरों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ताओं को समन करने के संबंध में" (2025) शीर्षक वाले मामले में दिया। 

निर्णय में कहा गया कि अन्वेषण अधिकारियों की ऐसी कार्रवाइयांविधिक वृत्ति की स्वतंत्रताऔरसंविधान केअनुच्छेद 19(1)() और 21 के अधीनअधिवक्ताओं और उनके मुवक्किलों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। 

मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • यह मामला तब शुरू हुआ जब अहमदाबाद पुलिस नेएक अधिवक्ता कोभारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 179 केअधीनकेवल इसलिये समन किया क्योंकि उसने जमानत के एक मामले में एक अभियुक्त का प्रतिनिधित्व किया था। 
  • गुजरात उच्च न्यायालय ने समन को रद्द करने से इंकार कर दियाजिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने इस विवाद्यक परस्वतः संज्ञान लिया और कहा कि इससेविधिक बंधुताऔरन्याय प्रशासनपर व्यापक प्रभाव पड़ेगा । 
  • उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशनऔरबार काउंसिल ऑफ इंडियासहित कई बार निकायों नेहस्तक्षेप किया और कहा कि समन नेभारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA), 2023 की धारा 132 केअधीन प्रत्याभूतअधिवक्ता- कक्षीकार विशेषाधिकार काउल्लंघन किया हैजोभारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 126 कोप्रतिबिंबित करता है। 
  • यह तर्क दिया गया कि अधिवक्ताओं को मुवक्किलों के साथ हुए संवाद को उजागर करने के लिये बाध्य करना न केवल वृत्तिक नैतिकता का उल्लंघन हैअपितुअभियुक्त की निष्पक्ष प्रतिरक्षा के अधिकार को भी कमजोर करता है। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

न्यायालय नेभारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 की धारा 132 से 134 काविश्लेषण कियाजो अधिवक्ताओं और उनके कक्षीकारों के बीच वृत्तिक संसूचनाओं से संबंधित हैऔर कहा कि: 

  • किसी अधिवक्ता कोवृत्तिक सेवा के दौरान किसी कक्षीकार द्वारा किये गए किसी भी संसूचना को प्रकट करने के लिये बाध्य नहीं किया जा सकतासिवाय सीमित परिस्थितियों केजैसे कि जब संसूचना किसीअवैध उद्देश्य कोआगे बढ़ाता हो यानियुक्ति के बाद किये गए किसीअपराध या कपट का प्रकटन करता हो। 
  • गोपनीयता का विशेषाधिकार अधिवक्ताकक्षीकार संबंध समाप्त होने के बाद भी जारी रहता है।  
  • वृत्तिक संसूचना को प्रकट न करने का अधिकार अनुच्छेद 20(3) के अधीन आत्म-अभिशंसन के विरुद्ध सांविधानिक संरक्षण का विस्तार है। 
  • भारतीय नगरिक सुरक्षा संहिता की धारा 179 पुलिस अधिकारियों को अपने मुवक्किलों के संबंध में जानकारी के लिये अधिवक्ताओं को समन करने का अधिकार नहीं देती है। 
  • ऐसा कोई भी प्रयत्नबार की स्वतंत्रता, विधिक प्रतिनिधित्व के अधिकारऔरन्याय प्रशासन काउल्लंघन करता है । 

न्यायालय ने आगे कहा कि "समन करने की शक्तिनष्ट करने की शक्ति नहीं है"और इसका उपयोग सांविधानिक न्यायालयों के कार्यरत रहने तक विशेषाधिकार प्राप्त संसूचना में हस्तक्षेप करने के लिये नहीं किया जा सकता है। 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 क्या है? 

धारा 132: वृत्तिक संसूचनाएं  

 (1) कोई भी अधिवक्ता अपने कक्षीकार की अभिव्यक्त सम्मति के सिवाय ऐसी किसी संसूचना को प्रकट करने के लियेजो उसके ऐसे अधिवक्ता की हैसियत में सेवा के अनुक्रम में और उसके प्रयोजनार्थ उसके कक्षीकार द्वाराया की ओर से उसे दी गई हो या किसी दस्तावेज़ कीजिससे वह अपनी वृत्तिक सेवा के अनुक्रम में और उसके प्रयोजनार्थ परिचित हो गया हैअन्र्त्तवस्तु या दशा कथित करने को या किसी सलाह कोजो ऐसी सेवा के अनुक्रम में और उसके प्रयोजनार्थ उसने अपने कक्षीकार को दी हैप्रकट करने के लिये किसी भी समय अनुज्ञात नहीं किया जाएगा: 

परंतु इस धारा की कोई भी बात निम्नलिखित बात को प्रकटीकरण से संरक्षण न देगी,- 

(क) किसी भी अवैध प्रयोजन को अग्रसर करने में दी गई कोई भी ऐसी संसूचना; 

(ख) ऐसा कोई भी तथ्य जो किसी अधिवक्ता ने अपनी ऐसी हैसियत में सेवा के अनुक्रम में संप्रेषित किया होऔर जिससे दर्शित हो कि उसके सेवा के प्रारंभ के पश्चात् कोई अपराध या कपट किया गया है 

(2) यह तत्त्वहीन है कि उपधारा (1) के परंतुक में निर्दिष्ट ऐसे अधिवक्ता का ध्यान ऐसे तथ्य के प्रति उसके कक्षीकार के द्वारा या की ओर से आकर्षित किया गया था या नहीं 

(3) इस धारा के उपबंध अधिवक्ताओं के दुभाषियों और लिपिकों या कर्मचारियों को लागू होंगे। 

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 132 के महत्त्वपूर्ण दृष्टांत  

(क) कक्षीकार ’, अधिवक्ता  से कहता है, "मैंने कूटरचना की है और मैं चाहता हूं कि आप मेरी प्रतिरक्षा करें। यह संसूचना प्रकटन से संरक्षित हैक्योंकि ऐसे व्यक्ति की प्रतिरक्षा आपराधिक प्रयोजन नहीं हैजिसका दोषी होना ज्ञात हो 

(ख) कक्षीकार ’, अधिवक्ता  से कहता है, "मैं संपत्ति पर कब्जा कूटरचित विलेख के उपयोग द्वारा अभिप्राप्त करना चाहता हूं और इस आधार पर वाद लाने की मैं आपसे प्रार्थना करता हूं। यह संसूचना आपराधिक प्रयोजन के अग्रसर करने में की गई होने से प्रकटन से संरक्षित नहीं है 

(ग)  पर गबन का आरोप लगाए जाने पर वह अपनी प्रतिरक्षा करने के लिये अधिवक्ता  को प्रतिधारित करता है। कार्यवाहियों के अनुक्रम में  देखता है कि  की लेखाबही में यह प्रविष्टि की गई है कि  द्वारा उतनी रकम देनी हैजितनी के बारे में अभिकथित है कि उसका गबन किया गया हैजो प्रविष्टि उसकी वृत्तिक सेवा के आरंभ के समय उस बही में नहीं थी। यह  द्वारा अपनी सेवा के अनुक्रम में सम्प्रेक्षित ऐसा तथ्य होने सेजिससे दर्शित होता है कि कपट उस कार्यवाही के प्रारंभ होने के पश्चात् किया गया हैप्रकटन से संरक्षित नहीं है।