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सांविधानिक विधि

TTP - भारत का संविधान (COI)

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 31-Oct-2025

परिचय 

भारतीय संविधान का भाग 14, जिसमें अनुच्छेद 308-323 सम्मिलित हैं, संघ और राज्य सरकारों के अधीन लोक सेवाओं को नियंत्रित करने वाला सांविधानिक ढाँचा स्थापित करता है। यह भाग भारत की लोक सेवा व्यवस्था में भर्ती, सेवा की शर्तों और प्रशासनिक शासन के लिये आधारभूत विधिक ढाँचे का काम करता है। 

अनुच्छेद 308: सांविधानिक निर्वचन और अपवर्जनात्मक प्रावधान 

  • अनुच्छेद 308 भाग 14 के लिये परिभाषात्मक प्रावधान के रूप में कार्य करता है, तथा बाद के सांविधानिक अनुच्छेदों के लिये व्याख्यात्मक मार्गदर्शन प्रदान करता है। 
  • इस अनुच्छेद की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें इस भाग के प्रयोजनों के लिये जम्मू और कश्मीर राज्य को "राज्य" की परिभाषा से स्पष्ट रूप से अपवर्जित किया गया है, जिससे एक विशिष्ट सांविधानिक व्यवस्था का निर्माण हुआ है, जो भारतीय सांविधानिक योजना में अपनाई गई असममित संघीय संरचना को प्रतिबिंबित करती है।  
  • यह अपवर्जनात्मक खण्ड एक सांविधानिक प्रावधान के रूप में कार्य करता था, जो अनुच्छेद 370 के अधीन जम्मू और कश्मीर को दिये गए विशेष दर्जे को मान्यता देता था। 
  • यह अपवर्जन प्रक्रियात्मक न होकर मूल था, जिससे प्रशासनिक अधिकारिता के अलग-अलग क्षेत्र निर्मित हो गए, जिसमें भाग 14 द्वारा शासित भर्ती, सेवा की शर्तें और अनुशासनात्मक तंत्र जम्मू और कश्मीर पर स्वतः लागू नहीं होते थे। 

अखिल भारतीय सेवाओं पर विधिशास्त्रीय प्रभाव 

  • सांविधानिक अपवर्जन ने अनुच्छेद 312 के अधीन स्थापित अखिल भारतीय सेवाओं - भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS), भारतीय पुलिस सेवा (IPS) और भारतीय वन सेवा (IFS) के संचालन को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। 
  • इन सेवाओं को भाग 14 के प्रावधानों से अपना सांविधानिक अधिदेश प्राप्त होता है, और अपवर्जन का अर्थ यह है कि अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों के कैडर आवंटन, पोस्टिंग, स्थानांतरण और सेवा शर्तें विशिष्ट सांविधानिक या विधायी हस्तक्षेप के बिना जम्मू और कश्मीर तक विस्तारित नहीं होतीं।  
  • इससे एक अद्वितीय प्रशासनिक विधि की स्थिति उत्पन्न हो गई, जिसके अधीन किसी भी क्रॉस-पोस्टिंग के लिये संघ और राज्य सरकारों के बीच अलग-अलग व्यवस्था की आवश्यकता थी, जिससे व्यापक भारतीय सांविधानिक ढाँचे के भीतर समानांतर प्रशासनिक संरचनाओं को प्रभावी ढंग से बनाए रखा जा सके। 

राज्य सेवा स्वायत्तता और प्रशासनिक स्वतंत्रता 

  • इस अपवर्जन ने जम्मू-कश्मीर को अन्य भारतीय राज्यों पर लागू एकसमान ढाँचे से स्वतंत्र होकर अपनी राज्य सेवाओं की स्थापना और विनियमन का सांविधानिक अधिकार प्रदान किया। राज्य ने इस अधिकार का प्रयोग अपने अलग लोक सेवा आयोग के माध्यम से किया, जो संघ लोक सेवा आयोग की अधिकारिता से अलग भर्ती परीक्षाएँ और चयन प्रक्रियाएँ आयोजित करता था। 
  • यह प्रशासनिक स्वायत्तता अखिल भारतीय सेवा नियमों और भारत में अन्यत्र लागू केंद्रीय सिविल सेवा नियमों से अलग सेवा नियमों, रोजगार शर्तों, अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं और अपीलीय तंत्रों के निर्माण तक विस्तारित थी। राज्य ने अपनी स्वयं की सिविल सेवा संरचना बनाए रखी, जिससे प्रशासनिक खामियाँ उत्पन्न हुईं, जो कभी-कभी केंद्र और राज्य सरकारों के बीच समन्वित नीति कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करती थीं। 

सांविधानिक विकास और एकीकरण 

  • संविधान (जम्मू और कश्मीर पर लागू) आदेश, 2019 और उसके बाद जम्मू और कश्मीर के पुनर्गठन के बाद संवैधानिक परिदृश्य में मौलिक परिवर्तन आया। 
  • एकसमान सांविधानिक ढाँचे में एकीकरण के परिणामस्वरूप पुनर्गठित केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख पर भाग 14 के प्रावधानों को पूर्वव्यापी रूप से लागू किया गया। 
  • इस सांविधानिक एकीकरण के लिये विद्यमान सेवा संरचनाओं को राष्ट्रीय ढाँचे के साथ सुसंगत बनाना आवश्यक हो गया, तथा प्रशासनिक प्रथाओं को सांविधानिक अनुरूपता में लाते हुए सेवा निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये सावधानीपूर्वक विधिक संक्रमण तंत्र की आवश्यकता पड़ी। 
  • अखिल भारतीय सेवा (संवर्ग) नियम, केंद्रीय सिविल सेवा नियम और अन्य अधीनस्थ विधि अब इन प्रदेशों में समान रूप से लागू होते हैं। 

न्यायिक निर्वचन और प्रशासनिक विधि के पूर्व निर्णय 

  • न्यायालयों ने संघीय व्यवस्थाओं में सांविधानिक समायोजन सिद्धांतों पर बल देते हुए अपवर्जन प्रावधानों की सांविधानिक वैधता को निरंतर बरकरार रखा है। 
  • उच्चतम न्यायालय ने माना है कि इस प्रकार के अपवर्जन, जब सांविधानिक आधार पर हों, तो समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करने के बजाय भारतीय सांविधानिक प्रणाली की समायोजनात्मक प्रकृति को दर्शाते हैं। 
  • न्यायिक घोषणाओं में इस बात पर बल दिया गया है कि सांविधानिक अपवर्जनों का  निर्वचन उनके उचित संवैधानिक संदर्भ में किया जाना चाहिये तथा स्पष्ट सांविधानिक प्राधिकार के बिना उन्हें उनके विशिष्ट पाठ्य दायरे से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।  

निष्कर्ष 

अनुच्छेद 308 संघीय विविधता को समायोजित करते हुए सांविधानिक निर्वचनात्मक स्पष्टता का उदाहरण प्रस्तुत करता है। अपवर्जनात्मक प्रावधान से लेकर एकसमान अनुप्रयोग तक इसका विकास, सांविधानिक विधि की गतिशील प्रकृति और एक एकीकृत विधिक ढाँचे के भीतर विधिक निरंतरता और सांविधानिक पवित्रता को बनाए रखते हुए, परवर्तित राजनीतिक और प्रशासनिक आवश्यकताओं के अनुकूल ढलने की भारतीय सांविधानिक प्रणाली की क्षमता को दर्शाता है।