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आपराधिक कानून

स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम की धारा 60

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 28-Oct-2025

“2022 के निपटान नियम विशेष न्यायालयों को जब्त वाहनों की अंतरिम अभिरक्षा देने से नहीं रोक सकते, क्योंकि ऐसा करना स्वापक औषधि और मन: प्रभावी पदार्थ अधिनियम और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होगा।” 

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में,न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहताकी पीठ नेनिर्णय दिया है कि वाहन स्वामियों को स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम के अधीन जब्त किये गए उनके वाहनों को अंतरिम अभिरक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता, यदि वे साबित कर दें कि वाहन का प्रयोग उनकी जानकारी या संलिप्तता के बिना नशीले पदार्थों के परिवहन के लिये किया गया था। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि 2022 के निपटान नियम स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम को रद्द नहीं कर सकते या विशेष न्यायालयों को अंतरिम रिहाई देने से नहीं रोक सकते, जब स्वामी का अपराध से कोई संबंध नहीं पाया जाता।  

देनश बनाम तमिलनाडु राज्य (2025) की पृष्ठभूमि क्या थी ? 

  • अपीलकर्त्ता एक लॉरी का रजिस्ट्रीकृत स्वामी था जिसका रजिस्ट्रीकरण नंबर TN 52 Q 0315 (अशोक लेलैंड, 14 पहिया वाहन) था, जो वैध रूप से वाणिज्यिक परिवहन गतिविधियों में लगा हुआ था। 
  • वाहन को मेसर्स एस.एस. स्टील एंड पावर, छत्तीसगढ़ से अशोक स्टील्स, रानीपेट, तमिलनाडु तक 29,400 मीट्रिक टन लोहे की चादरों के परिवहन के लिये किराए पर लिया गया था, जो वैध कारबार के उद्देश्य को दर्शाता है। 
  • पारगमन यात्रा के लिये वाहन को चार व्यक्तियों को सौंपा गया था: चालक कन्नन उर्फ ​​वेंकटेशन (अभियुक्त नंबर 1), देवा (अभियुक्त नंबर 2), सेंथमालिवालवन (अभियुक्त नंबर 3), और तमिल सेलवन (अभियुक्त नंबर 4)।  
  • 14 जुलाई 2024 को, परिवहन के दौरान, नेवेली टाउनशिप पुलिस थाने के अधिकारियों ने अपने चेकप्वाइंट पर वाहन को रोका और उसकी तलाशी ली। 
  • तलाशी लेने पर, ड्राइवर कन्नन की सीट के नीचे छिपाकर रखा गया 1.5 किलोग्राम गांजा बरामद हुआ, तथा अन्य तीन अभियुक्तों के पास से भी 1.5 किलोग्राम गांजा बरामद हुआ, कुल मिलाकर 6 किलोग्राम प्रतिबंधित सामग्री बरामद हुई। 
  • वाहन में मौजूद सभी चार अभियुक्तों को तुरंत घटनास्थल पर गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस थाने नेवेली टाउनशिप, जिला कुड्डालोर में स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 की धारा 8(), 20()(ii)(), 25 और 29(1) के अधीन दण्डनीय अपराधों के लिये प्रथम सूचना रिपोर्ट संख्या 220/2024 दर्ज की गई।  
  • अन्वेषण पूर्ण होने के पश्चात्, स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम के अधीन उपरोक्त अपराधों के लिये चार अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया गया था, और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अपीलकर्त्ता-स्वामी को दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 (2) के अधीन दायर रिपोर्ट में अभियुक्त के रूप में आरोपित नहीं किया गया था। 
  • अपने मूल्यवान वाणिज्यिक परिवहन वाहन के निरंतर कब्जे से व्यथित होकर, अपीलकर्त्ता ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (तत्कालीन धारा 451 दण्ड प्रक्रिया संहिता) की धारा 497 के अधीन अपर जिला न्यायाधीश/पीठासीन अधिकारी, आवश्यक वस्तु अधिनियम के अधीन विशेष न्यायालय, तंजावुर के समक्ष दाण्डिक विविध आवेदन संख्या 5495/2024 दायर किया, जिसमें आपराधिक विचारण के समापन तक जब्त वाहन को अंतरिम रूप से छोड़ने की मांग की गई। 

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं? 

  • निचले न्यायालय का अवलोकन  
    • विशेष न्यायालय ने 9 सितंबर 2024 के आदेश के अधीन अपीलकर्त्ता की अंतरिम अभिरक्षा के लिये आवेदन को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम के प्रावधानों के अधीन जब्त किये गए वाहन दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 451 और 452 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 497 और 498) को लागू करके सुपर्दगी पर छोड़ने के लिये उत्तरदायी नहीं थे, क्योंकि वे स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम की धारा 63 के अधीन जब्त करने के लिये उत्तरदायी थे। 
    • मद्रास उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर 2024 को दिये गए अपने निर्णय में कहा कि 2022 के नियमों के लागू होने के बाद, केवल औषधि निपटान समिति के पास ही जब्त किये गए वाहनों सहित संपत्ति के निपटान पर निर्णय लेने का विशेष अधिकार और अधिकारिता है, जिससे विशेष न्यायालय सहित अन्य सभी मंचों को ऐसे अधिकारिता से वंचित कर दिया गया है। 
    • उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि चूँकि 2022 के नियमों में औषधि निपटान समिति को विशेष अधिकार दिया गया है, इसलिये यह माना जा सकता है कि समिति को जब्त वाहनों की अंतरिम रिहाई के अनुरोधों पर विचार करने का अधिकार है, और तदनुसार अपीलकर्त्ता की पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया, जिससे उसे विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने के लिये विवश होना पड़ा। 
  • उच्चतम न्यायालय का निर्णय 
    • उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ (जब्ती, भंडारण, नमूनाकरण और निपटान) नियम, 2022 मूल स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम के पूरक मात्र हैं और दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 451 और 457 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 497 और 503) के अधीन जब्त वाहनों की अंतरिम अभिरक्षा या रिहाई के लिये आवेदनों पर विचार करने के लिये विशेष न्यायालयों की अधिकारिता को रद्द या वंचित नहीं सकते हैं।  
    • न्यायालय ने कहा कि स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम की धारा 60(3) और 63 एक सांविधिक ढाँचा तैयार करती है, जिसमें अधिहरण का निर्धारण करने की शक्ति विशेष न्यायालय में निहित है, और जहाँ कोई स्वामी प्रतिबंधित माल के परिवहन में ज्ञान की अनुपस्थिति या मौनानुकूलता साबित करता है, तो वाहन को केवल इसलिये अधिहरण नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका उपयोग अधिनियम के अधीन अपराध करने में किया गया था।   
    • न्यायालय ने कहा कि चूँकि अधिग्रहण एक ऐसा उपाय है जिसके परिणामस्वरूप संपत्ति से वंचित किया जाता है, इसलिये इसे प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिये और इससे पहले एक पूर्व सुनवाई होनी चाहिये, और कोई भी निर्वचन जो किसी वास्तविक स्वामी को न्यायिक जांच से वंचित करता है, वह स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम की सांविधिक योजना के साथ पूरी तरह से असंगत होगी और प्राकृतिक न्याय के मौलिक सिद्धांतों के विपरीत होगी। 
    • मामले के विशिष्ट तथ्यों की जांच करने पर, न्यायालय ने पाया कि अपीलकर्त्ता वैध स्वामी था, जिसका वाहन 29,400 मीट्रिक टन लोहे की चादरों के वाणिज्यिक परिवहन में लगा हुआ था, उसे अभियुक्त के रूप में आरोपित नहीं किया गया था, तथा आरोप-पत्र में ऐसी कोई सामग्री नहीं थी, जिससे पता चलता हो कि अपराध में उसकी जानकारी या मिलीभगत थी, जिससे उसकी प्रामाणिकता सिद्ध होती हो।  
    • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि यह अत्यधिक असंभव है कि अपीलकर्त्ता जानबूझकर 6 किलोग्राम गांजा के परिवहन की अनुमति देकर अपने महंगे वाहन, मूल्यवान माल और व्यावसायिक साख को खतरे में डालेगा, और यह सुरक्षित रूप से माना जा सकता है कि अपीलकर्त्ता के ज्ञान या मौनानुकूलता के बिना ड्राइवरों और खलासियों द्वारा प्रतिबंधित सामान खरीदा गया था। 
    • बिश्वजीत डे बनाम असम राज्य (2025) और तरुण कुमार माझी बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2025) के पूर्व निर्णयों का हवाला देते हुए, न्यायालय ने कहा कि स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम के उपबंध संबंधित न्यायालय को अंतरिम अभिरक्षा में वाहन को छोड़ने के लिये अपने विवेक का प्रयोग करने से नहीं रोकते हैं, जहाँ परिस्थितियाँ एक वास्तविक स्वामी को ऐसे अनुतोष प्रदान करने की आवश्यकता होती हैं। 
    • तदनुसार, न्यायालय ने विवादित निर्णय को अपास्त कर दिया और निदेश दिया कि रजिस्ट्रीकरण संख्या TN 52 Q 0315 वाले जब्त वाहन को अपीलकर्त्ता को विशेष न्यायालय द्वारा विहित शर्तों और नियमों के आधार पर मुक्त कर दिया जाएगा। साथ ही न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि मामले के तथ्य ऐसा चाहते हैं तो विचारण न्यायालय को अलग-अलग विचार रखने का लचीलापन है। 

स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम की धारा 60 क्या है? 

  • अवलोकन 
    • स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 की धारा 60, स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम के अधीन दण्डनीय कोई अपराध किये जाने पर अवैध औषधियों, पदार्थों, पौधों, वस्तुओं और प्रवहणों के अधिहरण के दायित्त्व से संबंधित है। 
  • धारा 60(3): वास्तविक स्वामियों के लिये संरक्षण 
    • धारा 60(3) मादक पदार्थों की तस्करी में प्रयुक्त वाहनों के निर्दोष स्वामियों के लिये एक सांविधिक प्रतिरक्षा और संरक्षण तंत्र प्रदान करती है। 
    • यह उपबंध यह स्थापित करता है कि मादक दवाओं, मन:प्रभावी पदार्थों या नियंत्रित पदार्थों को ले जाने में प्रयुक्त कोई भी जीवजंतु या प्रवहण सामान्यतः अधिहरण किया जा सकता है, क्योंकि इससे स्वापक औषधि एवं मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम के अधीन अपराध को अंजाम देने में सहायता मिलती है। 
    • यद्यपि, धारा 60(3) एक महत्त्वपूर्ण अपवाद प्रदान करती है, जिसमें कहा गया है कि यदि प्रवहण का स्वामी तीन आवश्यक शर्तें साबित कर देता है तो अधिहरण से बचा जा सकता है: पहला, प्रवहण का उपयोग उसके ज्ञान या मौनानुकूलता के बिना प्रतिबंधित माल के परिवहन के लिये किया गया था; दूसरा, इसका उपयोग उसके अभिकर्त्ता (यदि कोई हो) और प्रवहण के भारसाधक व्यक्ति के ज्ञान या मौनानुकूलता के बिना किया गया था; और तीसरा, कि उनमें से प्रत्येक ने ऐसे उपयोग के विरुद्ध सभी समुचित पुर्वावधानियाँ बरती थीं।   
    • यह उपबंध स्वामी पर अपनी निर्दोषता और उचित परिश्रम को साबित करने का भार डालता है, जिससे प्रभावी रूप से एक "उलटा भार" उत्पन्न होता है, जिसके अधीन स्वामी को सकारात्मक रूप से संलिप्तता की कमी को स्थापित करना होगा, न कि अभियोजन पक्ष को उसकी सहभागिता को साबित करना होगा। 
    • धारा 60(3) के पीछे विधायी आशय दो प्रतिस्पर्धी हितों को संतुलित करना है: एक ओर, यह सुनिश्चित करना कि नशीली दवाओं से संबंधित अपराधों में प्रयुक्त साधनों को अपराध को रोकने के लिये जब्त किया जाए; और दूसरी ओर, उन वास्तविक स्वामियों की रक्षा करना जिनकी संपत्ति का दुरुपयोग कर्मचारियों, अभिकर्त्ताओं या पर-व्यक्ति द्वारा उनके ज्ञान या सहमति के बिना किया गया हो। 
    • "युक्तियुक्त सावधानियों" को साबित करने की आवश्यकता का तात्पर्य यह है कि स्वामियों को दुरुपयोग को रोकने के लिये उठाए गए सक्रिय कदमों को प्रदर्शित करना होगा, जैसे ड्राइवरों का उचित सत्यापन, कार्गो की निगरानी, ​​रिकॉर्ड बनाए रखना और उनके परिवहन कारबार में सुरक्षा प्रोटोकॉल को लागू करना। 
    • जहाँ स्वामी ज्ञान की अनुपस्थिति, मौनानुकूलता और युक्तियुक्त तत्परता के प्रयोग को स्थापित करके इस दायित्त्व का सफलतापूर्वक निर्वहन करता है, वहाँ प्रवहण का केवल इसलिये अधिहरण नहीं किया जा सकता है क्योंकि इसका उपयोग अपराध करने में यंत्रवत् किया गया था, जिससे निर्दोष स्वामियों के संपत्ति अधिकारों को मनमाने ढंग से वंचित होने से बचाया जा सके।